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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

01 मई, 2020

नॉट आउट ऋषि कपूर


विजय शर्मा





               कहते हैं वटवृक्ष के नीचे कोई और पेड़-पौधा नहीं पनपता है। कई बार अपवाद होते हैं। ऋषि कपूर ऐसे ही अपवाद थे। पृथ्वीराज कपूर वटवृक्ष थे फ़िर भी उनके तीन बेटों ने नाम कमाया। राज कपूर शोमैन कहलाए, शम्मी कपूर ने याहू अर्जित किया और शशि कपूर नाटक और फ़िल्म दोनों में सहज रहे। राज कपूर के बेटों के लिए आसान नहीं रहा होगा फ़िल्मी सफ़र। पर सिने जगत और सिने प्रेमियों के लिए चिंटु बहुत प्यारा रहा। शायद राज कपूर और ऋषि कपूर की जड़े विरासत में गहरे धँसी थीं अत: वे फ़ले-फ़ूले। फ़ूलना भी उनकी विरासत थी, अपने शरीर के वजन पर उनका नियंत्रण न था। कपूर खानदान के बिना भारतीय सिनेमा की बात नहीं हो सकती है।

               ऋषि कपूर ने बाल कलाकार के रूप में फ़िल्मों में प्रवेश किया और काफ़ी दिन लवर बॉय बने रहे। ‘बॉबी’ का प्रेमी असल जीवन में नीतू का प्रेमी-पति बना। ‘बॉबी’ में उनकी एक चॉकलेटी छवि बनी, एक मासूम छवि बनी, बाद में ‘अमर, अकबर, अंथोनी’ के अकबर, ‘मुल्क’ और कुछ साल पहले ‘102 एंड नॉट आउट’ में यह मासूमियत बरकरार रही। आज भी ‘मेरा नाम जोकर’ में किशोर का टीचर के प्रति प्रेम भाव न मालूम कितने दर्शकों को अपनी किशोरावस्था स्मरण करा देता है। तुलना कीजिए ‘दहन’ (ऋतुपर्ण घोष) के रीढ़हीन पति और ‘चाँदनी’, ‘दामिनी’ तथा ‘नगीना’ के मजबूत पति की। ‘हिना’, ‘प्रेम ग्रंथ’, प्रेम रोग’, ‘लैला मजनू’, ‘हाउअस्फ़ुल 2’, ‘सिंदूर’, ‘कर्ज’, ‘सरगम’, सागर’, ‘नमस्ते लंदन’ और न जाने कितनी और फ़िल्में ऋषि कपूर के खाते में हैं। मगर याद उन्हें ‘बॉबी’ के लिए किया जाएगा, ‘अमर, अकबर, एंथॉनी’ के लिए जाएगा। उनकी गीत प्रधान फ़िल्में – ‘कर्ज’, ‘लैला मजनू’, ‘सरगम’, ‘प्रेम रोग’, ‘चाँदनी’, ‘नगीना’, ‘हिना’, ‘दामिनी’’ जैसी  खूब लोकप्रिय हुईं। ऋषि कपूर ने ‘एक चादर मैली सी’ जैसी साहित्यिक ऑफ़बीट फ़िल्म में भी (हेमा मालिनी के साथ) काम किया।

                अपने पिता राज के नाम से ‘बॉबी’ (1973) में अवतरित होने वाले ऋषि कपूर की अंतिम फ़िल्म ‘मंटो’ (2018) है। हालाँकि ‘बॉबी’ के पहले वे ‘मेरा नाम जोकर’ और यादों की बारात’ में काम कर चुके थे। राज कपूर बहुत लोगों के आदर्श थे भला बेटे के लिए रोल मॉडल क्यों न होते। ऋषि कपूर के लिए उनके पिता सबसे बड़े आदर्श थे। पिता आदर्श थे तो उन्हीं के नक्शे कदम पर चलते हुए उन्होंने ‘आ अब लौट चलें’ फ़िल्म का निर्देशन भी किया।

                 जब ऋषि कपूर की आत्मकथा ‘खुल्लमखुला’ आई तो वे चर्चा में आए क्योंकि उन्होंने हिन्दी सिने जगत की पोल खोली थी। इसमें उन्होंने अपने परिवार की कई बातों को लिखा था जिन्हें लोग जानते थे लेकिन जब उन्होंने लिखा तो उसके अर्थ बदल गए।

                 ‘बॉबी’ फिल्म ने उन्हें बेशुमार सफलता दी साथ ही उन्हें साल 1974 का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला। न जाने देश में कितने बच्चों का नाम बॉबी रखा गया। 2008 में उन्हें फ़िल्मफ़ेयर का लाइफ़टाइम अचीवमेंट सम्मान दिया गया। 4 सितंबर 1952 को जन्में ऋषि कपूर पत्नी नीतू तथा बेटा रणबीर कपूर और बेटी ऋद्धिमा कपूर साहनी को छोड़ कर 30 एप्रिल 2020 को इस दुनिया से आउट हो गए पर सिने प्रेमियों के लिए वे सदैव नॉट आउट रहेंगे।

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डॉ विजय शर्मा का इरफ़ान खान की फ़िल्म 'करीब-करीब सिंगल' पर लेख इस लिंक पर पढ़ा जा सकता है :
डबल सिंगल : विजय शर्मा





विजय शर्मा

      डॉ विजय शर्मा, 
      326, न्यू सीताराम डेरा, एग्रीको, 
      जमशेदपुर – 831009

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      Email: vijshain@gmail.com

1 टिप्पणी:

  1. सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित किया है विजय शर्मा जी ने...

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