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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

18 दिसंबर, 2024

जसवीर त्यागी की माँ केंद्रित कविताएँ


एक 


माँ और आग


माँ को अँधेरे से सख्त नफरत है

जहाँ कहीं भी उसे वह दिखता है

झट से रोशनी कर देती है













मैंने माँ को अनेक बार

आग के इर्द-गिर्द ही देखा है

सुबह-शाम और देर रात में


माँ भोर में उठ,फूँक मार-मारकर

आग से धुआं हटाती रहती है

उसके आँसू बहुत बार

आग पर झरते रहते हैं


फिर भी वह हार नहीं मानती 

और आग जलाकर

सबकी आग शांत करती है


शाम को दिन भर की थकान

उतार फेंकती है आग में


माँ देर रात तक मशाल लिए

सिरहाने बैठी रहती है

हम चैन की नींद सोते रहते हैं


मैं नहीं जानता माँ

तेरा आग से रिश्ता कितना पुराना है?

पर हाँ! इतना ज़रूर जानता हूँ

कि तूने अपनी ज़िंदगी के दमकते दिन

इसी आग में झोंक दिए हैं


कभी- कभी लगता है 

कि माँ बावरी हो गयी है

तूझे आग से बिल्कुल भी डर नहीं लगता?


पता नहीं कितनी बार

जला होगा तेरा हाथ इसी आग में


माँ, मैं यह भी जानता हूँ

तू इसी आग को जलाती-जलाती

खुद ही बुझ जायेगी एक दिन


फिर भी तू कभी माँ

यह आग जलाना क्यों नहीं भूलती?


दो


माँ का भय


मैंने बेटा जना

प्रसव पीड़ा भूल गयी


वह धीरे-धीरे हँसने-रोने लगा

मैंने स्त्री होना बिसरा दिया


उसने तुतली भाषा में माँ कहा

मैं हवा बनकर बहने लगी


वह जवान हुआ

मैं उसके पैरों तले की मिट्टी वारती फिरूँ


उसके सिर सेहरा बंधा

मुझे याद आया 

मैं भी एक रोज ब्याहकर आयी थी

इसके पिता संग


कुछ दिनों बाद मैंने जाना

ईश्वर अरूप है

और सारे पौधे

बिन पानी सूख गए हैं


नहीं सोचती कि आसमान से

कोई देवदूत उतरेगा


नहीं आँकना चाहती

जीवन के आँकड़े


मुझे कुछ पतझड़ और देखने हैं

उसके बाद एक अंतहीन बसंत

होगा मेरे चारों ओर


नहीं सोचती

कि मेरे मरने के बाद

बेटा क्या करेगा.....?


वह जानता होगा

हर सुबह

शाम में ढल जायेगी


मैं उस दिन से डरती हूँ

जब मेरा पोता

अपने पिता को छोड़कर दूर जायेगा


और उसे पहली बार अहसास होगा

किसी को अकेला छोड़कर जाने का दुःख

कितना जानलेवा होता है


उस दिन वह रह-रहकर

माँ को ज़रूर याद करेगा । 

    


       










तीन


एक शब्द की कविता


एक शब्द की

कविता है

माँ


सबसे छोटे

शिल्प में रची गयी


सबसे बड़ी

कविता है

माँ।


चार

 समय 


माँ को गए

बरस बीत चुके हैं


आज भी वो मुझे

नींद से जगाती है 


जलती हुई मशाल-सी

अंधकार में राह सुझाती है 


डूबने को होता हूँ जब

संसार के समंदर में


तब कोई कश्ती बन

किनारे पर पहुँचाती है


एक समय था

जब मैं

माँ की गोद में रहता था


एक समय है

जब माँ

मेरे ह्रदय में रहती है ।

                                

पॉंच 


बच्चा और माँ 


आया बच्चे को लेकर

खड़ी है घर के द्वार पर


बच्चे की माँ को

जाना है अपने काम पर


बच्चा अपलक देखता है

देर तक 

माँ को दूर जाते हुए


सिर्फ़ माँ ही

नहीं करती है काम


बच्चा भी 

माँ की राह निहारता है

हर शाम।


छः 

तस्वीर 

                      

घर में सभी की तस्वीर है

एक माँ को छोड़कर


कई बार सोचा भी था

किसी रोज उतरवाएँगे

माँ की एक बढ़िया-सी तस्वीर


माँ है कि अपनी दुनिया में मस्त

बच्चों की भीड़ में

मन्दिर में या फिर

चिड़ियों को दाना खिलाने में व्यस्त 


पता नहीं क्यों माँ को?

तस्वीर खिंचवाना  भाता न था


अक्सर पूछने पर वह डांट देती थी

'तस्वीर....

कोई  देखेगा तो क्या कहेगा?'

मानो कुछ अप्रत्याशित घटा हो


फिर एक रोज

माँ ने पकड़ ली चारपाई

हम सब दवा-दारू में जुट गए


किसी को भी 

यह ख्याल नहीं आया


कि माँ की एक भी तस्वीर

नहीं है घर में


माँ अपनी सबसे अच्छी तस्वीर भी

ले गयी अपने साथ


अब माँ नहीं है

और न ही माँ की कोई तस्वीर


लेकिन! जब कभी

बात चलती है तस्वीर खिंचाने की


मुझे याद आता है

चिता की लपटों में जलता

माँ का शरीर।

     

सात


माँ का अहसास


माँ काम से बाहर गयी है

उसके घर वापसी का समय निश्चित है


घर के मुख्य द्वार पर

जब भी 

कोई आहट होती है

चौंकता है बच्चा

शायद माँ है


माँ शब्द है ऐसा

चाहे हर समय 

वह साथ न हो


लेकिन! होने का

अहसास तो जगाता ही है।













आठ   

चाँद 


माँ ने मुझे चाँद कहा

स्नेह की शीतलता

मुझ में समाती चली गयी


आत्मीयता के आसमान में

मैं चमचमाने लगा


उसके अलावा

कभी किसी ने

मुझे चाँद नहीं कहा


मैं यह तो नहीं जानता 

कि मैं चाँद हूँ या नहीं


हाँ!यह बखूबी जानता हूँ

माँ कभी असत्य नहीं बोलती।

       

नौ

                

माँ


सुबह

सबसे पहले जगती है


रात

सबसे बाद में सोती है


हर घर में माँ

ऐसी ही होती है।

   

दस

उड़ान


बूढ़ी माँ हर रोज

चिड़ियों को दाना खिलाती थी


जब कभी

चिड़िया नहीं आतीं

माँ भोजन करते हुए

उन्हें बार-बार याद करती


माँ और चिड़ियों का संबंध 

इतना गहरा और रहस्यमय था


एक दिन माँ

चिड़ियों की तरह पँख लगाकर

उन्मुक्त आकाश में उड़ गयी।

ग्यारह 

  

परिवार


बाहर बालकनी में रखे

गमलों में से

मैंने एक गमला उठाकर

अंदर कमरे में रख लिया


कुछ दिन बाद

उसका पौधा मुरझाने लगा

माँ ने देखा और कहा -

गमले को अकेला नहीं

दूसरे गमलों के साथ रखो


पौधा हो या कोई और

परिवार से बिछुड़कर

सूख जाता है।

                              

बारह 

कविता


माँ नवजात को

निहार रही है 

अपलक


वह कविता नहीं

लिख रही है


वह कविता जी रही है।

      

तैरह


महाकाव्य


बच्चा

सुबह से देर रात तक

माँ के संग ही चिपका रहता है


उसी के हाथ से खाता-पीता है

उसी के संग हँसता-बोलता है

और यहाँ तक की 

प्यार और तकरार भी 

माँ से ही करता है


ममता का महाकाव्य है

माँ।     

 ■

     

चौदह

                

माँ


अब माँ नहीं है

माँ की स्मृति है


अब स्मृति ही

माँ है।

परिचय

शिक्षा: एम.ए,एम.फील,पीएच.डी(दिल्ली विश्वविद्यालय)

सम्प्रति: प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजधानी कॉलेज(दिल्ली विश्वविद्यालय)राजा गार्डन नयी दिल्ली-110015

प्रकाशन: साप्ताहिक हिन्दुस्तान, पहल, समकालीन भारतीय

साहित्य, नया पथ,आजकल, कादम्बिनी,जनसत्ता,हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा,कृति ओर,वसुधा, इन्द्रप्रस्थ भारती, शुक्रवार, नई दुनिया, नया जमाना, दैनिक ट्रिब्यून आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ व लेख प्रकाशित।

अभी भी दुनिया में- काव्य-संग्रह।

कुछ कविताओं का अँग्रेजी, गुजराती,पंजाबी,तेलुगु,मराठी,नेपाली भाषाओं में अनुवाद।

सचेतक और डॉ. रामविलास शर्मा (तीन खण्ड)का संकलन-संपादन।

रामविलास शर्मा के पत्र- का डॉ.  विजयमोहन शर्मा जी के साथ संकलन-संपादन।

सम्मान: हिन्दी अकादमी दिल्ली के नवोदित लेखक पुरस्कार से सम्मानित।

संपर्क: WZ-12 A, गाँव बुढेला, विकास पुरी दिल्ली-110018

मोबाइल:9818389571

ईमेल: drjasvirtyagi@gmail.com

19 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही मर्मस्पर्शी कविताएं।सर को ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं 💐🙏

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  2. बहुत ख़ूबसूरत एहसास की कविताएं , माँ की याद दिला गई जिन्हें मैं बहुत पहले खो चुका हूँ .

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  3. बहुत संवेदनशील व ह्रदयस्पर्शी कविताएं।मां के लिए लिखी गई कविताओं के क्षेत्र में यह हटके किया गया सृजन है।जसवीर जी का अभिनंदन ,आभार ,मां की ईतनी गहरी छवि रचने के लिए।

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  4. बहुत सुंदर कविताएं।

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  5. मां के अनमोल रिश्ते पर बेहद प्यारी कविताएं

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  6. जसवीर त्यागी एक संवेदनशील और भावपूर्ण कवि हैं, जो अपने शब्दों से गहरी मानवीय भावनाओं को सरलता और प्रभावशाली तरीके से व्यक्त करते हैं। उनकी कविताएँ जीवन के उन पहलुओं को उजागर करती हैं, जिन्हें हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं। माँ पर आधारित उनकी यह कविता उनकी भावुक दृष्टि और संवेदनशीलता का प्रमाण है। उनका लेखन पाठकों को सोचने और महसूस करने पर मजबूर करता है, जो उन्हें एक सशक्त रचनाकार बनाता है।

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    1. श्री जसवीर त्यागी सर की कविताएं ही उनका व्यक्तित्व हैं। वे दिल,दिमाग और विचारों से संत हैं।

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  7. भाई आपकी कविताओं का वैसा ही दीवाना हो और क्या तारीफ करूं आप बताएं
    All the Best 👍 👌

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  8. भाई आपकी कविताओं का वैसा ही दीवाना हो और क्या तारीफ करूं आप बताएं

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  9. *माँ आग जलाकर सबकी आग शांत करती है*। अति उत्तम 👏🏻👏🏻

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  10. *माँ आग जलाकर सबकी आग शांत करती है*। अति उत्तम 👏🏻👏🏻

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  11. प्रो. जसवीर त्यागी संवेदना और सादृश्यता के कवि हैं । मानवीय संवेदनाओं और अपने आस पास के जगत को वो अपनी कविताओं बहुत ही सुंदर तरीके से अभिव्यक्ति करते हैं ।
    "मां" पर केंद्रित प्रो. जसवीर त्यागी की कविताएं पाठक को भावविभोर कर देती हैं । रोजाना घटने वाली घटनाएं पर हम ध्यान नहीं देते उसे एक कवि हृदय ही सही ढंग अभिव्यक्त करता है । सर की कविताएं हर पाठक को संवेदना से भरकर भावविभोर कर देती हैं ।

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  12. सविता पाठक18 दिसंबर, 2024 19:44

    जसवीर जी कविताओं की सादगी अनूठी है। माँ को याद करते हुए उनके भीतर प्यार और एक कसक झलकने लगती है। जैसे सूरज का उगना तय हो और फिर एक दिन न उगे वैसे ही। मां जीवन अभ्यास का हिस्सा, जिसकी तस्वीर से उसकी दिनचर्या को अलग नहीं किया जा सकता..फिर उसकी कोई तस्वीर न याद आये।
    पढववाने के लिए शुक्रिया बिजूका ब्लाग।

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  13. जसवीर त्यागी हमारे समय के अनूठे कवि हैं। उनकी कविताएं हमारे आसपास बिखरी विडंबनाओं को बड़ी सरलता और सहजता से हमारे सामने लाती हैं। रिश्तों पर उन्होंने बहुत सी कविताएं लिखी हैं। पिता और बेटी पर भी बहुत सी कविताएं हैं लेकिन मुझे लगता है कि मां पर लिखी कविताएं किसी को भी अपनी और आकर्षित कर सकती हैं।

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  14. शाश्वत सत्य अब मां नहीं है मां स्मृति में है, मा को गए बरस बीत चुके हैं आज भी वो नींद से जगाती है, हर मां का आग से रिश्ता जनम जन्मांतर का है जसवीर सर की मां पर लिखी कविताएं अत्यंत भावुक, मर्मस्पर्शी और मां की याद को तरोताजा करने वाली कविताएं हैं ।

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