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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

13 दिसंबर, 2024

प्रो.एस.जी सिद्धरामाय्या की कविताऍं



कन्नड साहित्य के सुप्रतिष्ठित लेखक, कवि, नाटककार श्री प्रो.एस.जी सिद्धरामाय्या का जन्म १९.११.१९४६ को कर्नाटक के तुमकूर में हुआ। एम.ए के बाद सरकारी कॉलेज   चिक्कनायकनहल्ली में प्राचार्य के रूप में नियक्त हुए। अवकाश ग्रहण करने के बाद कर्नाटक सरकार ने कन्नड पुस्तक प्राधिकार का अध्यक्ष नियुक्त किया।(२००५-२००८) उसके बाद  कन्नड उन्नति प्राधिकार का अध्यक्ष बनाया गया(२०१५-२०१८)। उपलब्धियाँ: दो दर्जन से अधिक कविता संग्रह, पाँच से ज्यादा नाटक, दस से ज्यादा आलोचना ग्रंथ, एक यात्रा वृत्त आदि । अपनी साहित्य साधना  के लिए वे अनेकों सम्मानों से विभूषित किये गये।जिनमें  कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार, साहित्य सम्मान पुरस्कार, राज्योत्सव पुरस्कार, मास्ति पुरस्कार, पु.ति.ना.पुरस्कार, अम्मा पुरस्कार प्रमुख हैं।

०००

कविताऍं

मूल कन्नड़: प्रो.एस.जी सिद्दरामय्य

हिन्दी अनुवाद: डॉ.एन.देवराज



शून्य नाद


ज्ञान और चिह्न रूपी

गर्भ मूल को ढूँढते

आगे बढ़ा जोगी


राह भटके जंगल में

तरई खंदकों में

सूर्य-चन्द्र को भूल गया


बहते पानी तक

शैवाल शिला पर कदम रख

मिट्टी का गंध भूल गया


पानी के उतरने की लीला

तन में भोगकर मन से भोगकर

वाणी रंग को ही भूल गया


बहाव की खूबी में पड़कर

भुलाये बात को निगलकर


मौन फलीभूत हुआ

अस्थि नास्थि हो गया

नास्थि सर्वस्व हो गया

आँख की चोट का यह शून्य नाद

०००








चित्र रमेश आनंद 


आशा


तिराहे के घर के लिए

मना करने वाली ने

अब गाँव भर ढूँढा घर के लिए


यूँही बिना प्रयास के

सब कुछ अपनाने की चिंता

ऐरावत के मिलने पर भी अंधा गधा!*


थाली का गरम खाना न खाकर

मिष्टान्न की चाह की जलन से

सुख तो स्वप्न मरीचिका है


भरोसा जब तक न बनता धरती की बात

तब तक मुँहबोले रिश्तों की कहीं जगह नहीं


सबब की शृंखला से बचने का जाल बुने तो

गले का फँदा बनने से चूकता नहीं


भरोसे के पीछे भागो तो

अविश्वासों का भ्रम

पाताल की ओर खींचने से

तुच्छता के भाव में चिल्लाने की आवाज़


चाह के बल पर

साधना के फावड़े से

खोदें तो अन्न, जितना भी निकालो पानी

परन्तु प्यास!


* अंधा गधा: मूर्ख



अनुवादक का परिचय:

डॉ.एन.देवराज:-

 

कन्नड साहित्य के सुप्रतिष्ठित कवि, कहानीकार एवं अनुवादक डॉ.एन.देवराज का जन्म तीस सितम्बर को बेंगलूरु में हुआ। आपने बेंगलूरु विश्वविद्यालय से एम.ए प्रथम रैंक (दो स्वर्ण पदक साहित) और पीहेच.डी (डॉ.ए.पी.जे अब्दुल कलाम जी के करकमलों से) और एम.बी.ए एम.एस.विश्वद्यालय से  उपाधी प्राप्त की। एम.ए के बाद आप बेंगलूर के प्रसिद्ध क्राईस्ट कॉलेज में हिन्दी प्राध्यापक नियुकत हुए। और कुछ समय तक जैन विश्वविद्यालय, बेंगलूरु के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक रहें। इण्या कॉमिक्स नामक कंपनी के सलाहकार भी थे। दर्जनों विश्वविद्यालयों में राष्ट्रीय व्याख्यान दिये हैं। फिलहाल मोरार्जी देसाई आवासीय पाठशाला, बेंगलूरु में कार्यरत हैं।

उपलब्धियाँ:- दो कविता संकलन (कन्नड भाषा में), दो आलोचना (हिन्दी से अनूदित), तीन उपन्यास (हिन्दी से अनूदित) , एक नाटक (कन्नड से अनूदित), बीस से अधिक कहानियों का अनुवाद (कन्नड और हिन्दी भाषा में, तीस से ज्याद कन्नड के प्रसिद्ध कविताओं का अनुवाद आकाशवाणी, बेंगलूर के लिए( कन्नड और हिन्दी भाषा में) पाँच से ज्यादा हिन्दी एकांकी और निबन्धों का अनुवाद, डॉ. बाबू जगजीवनराम अध्ययन और संशोधन केन्द्र, मैसूर विश्ववदियालय , मैसूर के लिए श्रीमति इन्द्राणी देवी जी द्वारा संकलित बाबू जगजीवनराम जी के भाषणों का अनुवाद, दस से अधिक शरण साहित्य से संबंधित लेखों का अनुवाद आकाशवाणी बेंगलूर केन्द्र के लिए तीन सौ से ज्यादा हिन्दी पाठ, दस से ज्यादा भाषण आदि प्रमुख हैं। अपनी सुदीर्घ साहित्य-साधना के लिए अनेक सम्मानों से विभूषित किए गए जिनमें आकाशवाणी से अनुवाद के लिए ‘राष्ट्रीय पुरस्कार‘, जंगल तंत्रम उपन्यास के अनुवाद के लिए बेंगलूरु विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग से ‘लाल बहादूर शास्त्री‘ अनुवाद पुरस्कार, कर्नाटक रक्षणा वेदिके बेंगलूरु से ‘कुवेम्पु स्मारक साहित्य रत्न‘ पुरस्कार, ज्ञानद होम्बेलकु संस्था से ‘सावित्री बाई फुले‘ पुरस्कार, राष्ट्रीय चेतना परिवार  ‘गुरु द्रोणाचार्य‘ पुरस्कार प्राप्त हैं।

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