1.. किसे असमर्थ कहूँ
-------------
-------------
हाथों में डायरी देखते ही
चली आई अपनी तीन पहिये वाली छोटी सायकल पर
चली आई अपनी तीन पहिये वाली छोटी सायकल पर
शारीरिक रूप से असमर्थ बारह साल की उस बच्ची का स्वतंत्र रूप से जाने का यही साधन हुआ करता था
हाथ में कोरा पन्ना लिए
जिसकी स्थिति ठीक उसके जीवन को ही बयां कर रही थी
कोरी और अपूर्णता लिए हुए
जिसकी स्थिति ठीक उसके जीवन को ही बयां कर रही थी
कोरी और अपूर्णता लिए हुए
नाज़ुक उंगलियों के इशारे कह रहे थे उस पर कुछ लिखूँ
अस्पष्ट अभिव्यक्ति की गहराई मे शायद कहीं ये उम्मीद थी कि
उस अधूरे कागज़ पर उसका दु:ख दर्द खुशी सब समायी हो
जो चाहकर भी पूरी तरह अव्यक्त रह गयी
जो चाहकर भी पूरी तरह अव्यक्त रह गयी
उसकी आंखो में झलकता विश्वास
किसी कठिन परीक्षा सा लगा
किसी कठिन परीक्षा सा लगा
और मेरी उलझन उस अंतर्मन को पूरी तरह समझने और टूटती उम्मीद को बचा लेने को लेकर थी
नि:शब्द मैं उसे देख कि
आखिर असमर्थ कौन??
आखिर असमर्थ कौन??
2.. कचरे वाली
--------
--------
रोज़ आती है कचरा बीनने वाली वो औरत
फ़टे कपड़ों में और नंगे पैर
चेहरे पर कोई भाव नहीं
शायद समय के साथ धीरे धीरे अंदर ही दबे रह गए
ठीक उसके दर्द की तरह
जिसे सुनने समझने वाला कोई नहीं होगा
अपने दर्द की तरह उठाती है कचरे का बोझ सर पर
और सामान जो उसकी जरूरत का हो
भरती है थैले में हर घर से फेंके गए कचरे को
कर डालती है रोज़ ही खत्म हर घर का
कचरा
और हम बरसों बाद भी नहीं खत्म कर पाते अपने दिलो दिमाग में जमा कचरा।
फ़टे कपड़ों में और नंगे पैर
चेहरे पर कोई भाव नहीं
शायद समय के साथ धीरे धीरे अंदर ही दबे रह गए
ठीक उसके दर्द की तरह
जिसे सुनने समझने वाला कोई नहीं होगा
अपने दर्द की तरह उठाती है कचरे का बोझ सर पर
और सामान जो उसकी जरूरत का हो
भरती है थैले में हर घर से फेंके गए कचरे को
कर डालती है रोज़ ही खत्म हर घर का
कचरा
और हम बरसों बाद भी नहीं खत्म कर पाते अपने दिलो दिमाग में जमा कचरा।
3.. मेरी प्रेरणा
--------
--------
अस्तित्व में ना होकर भी
कहीं न कहीं तुम हो
बहुत पहले से तुम
मेरे भीतर जी रही हो
कहीं न कहीं तुम हो
बहुत पहले से तुम
मेरे भीतर जी रही हो
बदलते परिवेश और कुरीतियों
के सामने
तुम कहीं हो ये अहसास ही मुझे सशक्त बनाता रहा
के सामने
तुम कहीं हो ये अहसास ही मुझे सशक्त बनाता रहा
मेरे अनुभवों और हर परिस्थिति में मेरे विचारों की तुम ही एकमात्र साक्षी रही हो
जीवन के तमाम निर्णय लेने से पूर्व
हर क्षण मेरे सम्मुख एक प्रश्न सी मज़बूती से खड़ी होती रही
आख़िर अंत में क्या मैं कमज़ोर कहलाऊंगी
हर क्षण मेरे सम्मुख एक प्रश्न सी मज़बूती से खड़ी होती रही
आख़िर अंत में क्या मैं कमज़ोर कहलाऊंगी
इसी एक प्रश्न में ही उत्तर और परेशानियों का हल मिल जाना मेरी सच्ची ख़ुशी होती थी
सच्ची साथी-सी हरदम मौजूद रही
मेरे भविष्य तक साथ रहने वाली मेरी प्रेरणा
मेरे भविष्य तक साथ रहने वाली मेरी प्रेरणा
तुम सचमुच आओगी कभी
और तुम्हे एक स्वस्थ माहौल देने का वादा है मेरा
और तुम्हे एक स्वस्थ माहौल देने का वादा है मेरा
तुम्हारे आने तक और उसके बाद भी ये सिलसिला अनवरत ज़ारी रहेगा.....
प्रस्तुति:- राजेश झरपुरे
--------------------------
टिप्पणियाँ:-
टिप्पणियाँ:-
आशा पाण्डेय:-
पहली दोनों कविताऐ मुुझे बहुत अच्छी लगी.तितिक्षा जी को बधाई।
पहली दोनों कविताऐ मुुझे बहुत अच्छी लगी.तितिक्षा जी को बधाई।
प्रज्ञा:-
कविता करकरे के जाने और उनके देने की कहानी को नमन । मैंने रचनाकार पर शेयर किया।
कविता करकरे के जाने और उनके देने की कहानी को नमन । मैंने रचनाकार पर शेयर किया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें