सुप्रभात साथियों,
आज समूह के साथी की रचनाओं के अन्तर्गत कंचनलता जी की चार कविताएँ प्रस्तुत है-
सभी साथी पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें ।
"दु:ख"
किसी समंदर से
इक पहाड़ ने कहा –
मैंने जाना कि तुम
इतने नमकीन क्यूँ हो.
तुम्हारे भीतर
मेरे भीतर का दुःख
जो बह रहा है.
"हम-तुम"
तुम्हारे भीतर
मैं नहीं बहती.
कोई और
नदी बहती है.
मेरे भीतर
कीडे
कीड़े सा रेंगता है
तुम्हारा स्पर्श.
रीढ़-विहीन.
"कवि होना"
बहुत सारा कच्चा माल
पड़ा हुआ है,
बारुद से भरी गोदामों में,
कोई सैनिक
कभी भी
कवि बन सकता है.
कभी भी.
"आनर किलिंग"
काट दी जाती हैं औरतें,
बेटियाँ ,जवान होती लड़कियाँ,
कुल्हाड़ी ,कटार ,गडासे से
जैसे काटे जा चुके हैं
प्रेम से भरी आँखों के सपने.
अब अपने ही मार डालते हैं
अपने खूरेंजी हाथों से
मासूम प्यार से सजी जिन्दगियों को
क्योंकि प्रेम दाग होता हे
जो छोड देता है काले धब्बे
इज्जत की चादरों पर
इसीलिए
अब
आनर किलिंग होती है.
कंचन लता जायसवाल
प्रस्तुति:-तितिक्षा
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टिप्पणियाँ:-
शैली किरण:-:
मार्मिक कविताएं...! शब्दों का हुनर..थोडे में ज्यादा कहने की कला...!"हम तुम" मन को छू गई...कई बिम्ब युक्त.....!
परमेश्वर फुंकवाल:-
पहली दो कविताएँ अच्छी लगी। तीसरी कविता को समझ नहीं पाया। अंतिम कविता सपाट सी लगी।
राजेश झरपुरे:
कंचनलताजी की सभी कवितायें बेहद सम्भावनाओं से भरी हुई है । दु:ख और हम-तुम कविता अपने छोटे स्वरूप के बाव़जूद बड़े अर्थ समेटे हुए है ।कवि होना और आनर किलिंग बेहतरीन कविता होने से चूक सी गई । इन्हें मसौदा मानकर आगे बढ़ा जाये तो यह अपनी पूर्णता और श्रेष्ठता को प्राप्त कर सकती है ।
क॓चनजी और तितिक्षा को बधाइ ।
गौतम चटर्जी:-
कंचनलता जी की कविताओं को पढ़ कर यह सम्भावना बनती हैं कि वे कवितायेँ देख सकती हैं। कवि कविता देख पाता है ऋषि की तरह। यह दृष्टि थोड़ी सुषुप्तावस्था में ही सही कवयित्री में है। उनका स्वागत। तितिक्षा जी का आभारी।
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