एक
माँ और आग
माँ को अँधेरे से सख्त नफरत है
जहाँ कहीं भी उसे वह दिखता है
झट से रोशनी कर देती है
मैंने माँ को अनेक बार
आग के इर्द-गिर्द ही देखा है
सुबह-शाम और देर रात में
माँ भोर में उठ,फूँक मार-मारकर
आग से धुआं हटाती रहती है
उसके आँसू बहुत बार
आग पर झरते रहते हैं
फिर भी वह हार नहीं मानती
और आग जलाकर
सबकी आग शांत करती है
शाम को दिन भर की थकान
उतार फेंकती है आग में
माँ देर रात तक मशाल लिए
सिरहाने बैठी रहती है
हम चैन की नींद सोते रहते हैं
मैं नहीं जानता माँ
तेरा आग से रिश्ता कितना पुराना है?
पर हाँ! इतना ज़रूर जानता हूँ
कि तूने अपनी ज़िंदगी के दमकते दिन
इसी आग में झोंक दिए हैं
कभी- कभी लगता है
कि माँ बावरी हो गयी है
तूझे आग से बिल्कुल भी डर नहीं लगता?
पता नहीं कितनी बार
जला होगा तेरा हाथ इसी आग में
माँ, मैं यह भी जानता हूँ
तू इसी आग को जलाती-जलाती
खुद ही बुझ जायेगी एक दिन
फिर भी तू कभी माँ
यह आग जलाना क्यों नहीं भूलती?
■
दो
माँ का भय
मैंने बेटा जना
प्रसव पीड़ा भूल गयी
वह धीरे-धीरे हँसने-रोने लगा
मैंने स्त्री होना बिसरा दिया
उसने तुतली भाषा में माँ कहा
मैं हवा बनकर बहने लगी
वह जवान हुआ
मैं उसके पैरों तले की मिट्टी वारती फिरूँ
उसके सिर सेहरा बंधा
मुझे याद आया
मैं भी एक रोज ब्याहकर आयी थी
इसके पिता संग
कुछ दिनों बाद मैंने जाना
ईश्वर अरूप है
और सारे पौधे
बिन पानी सूख गए हैं
नहीं सोचती कि आसमान से
कोई देवदूत उतरेगा
नहीं आँकना चाहती
जीवन के आँकड़े
मुझे कुछ पतझड़ और देखने हैं
उसके बाद एक अंतहीन बसंत
होगा मेरे चारों ओर
नहीं सोचती
कि मेरे मरने के बाद
बेटा क्या करेगा.....?
वह जानता होगा
हर सुबह
शाम में ढल जायेगी
मैं उस दिन से डरती हूँ
जब मेरा पोता
अपने पिता को छोड़कर दूर जायेगा
और उसे पहली बार अहसास होगा
किसी को अकेला छोड़कर जाने का दुःख
कितना जानलेवा होता है
उस दिन वह रह-रहकर
माँ को ज़रूर याद करेगा ।
■
तीन
एक शब्द की कविता
एक शब्द की
कविता है
माँ
सबसे छोटे
शिल्प में रची गयी
सबसे बड़ी
कविता है
माँ।
■
चार
समय
माँ को गए
बरस बीत चुके हैं
आज भी वो मुझे
नींद से जगाती है
जलती हुई मशाल-सी
अंधकार में राह सुझाती है
डूबने को होता हूँ जब
संसार के समंदर में
तब कोई कश्ती बन
किनारे पर पहुँचाती है
एक समय था
जब मैं
माँ की गोद में रहता था
एक समय है
जब माँ
मेरे ह्रदय में रहती है ।
■
पॉंच
बच्चा और माँ
आया बच्चे को लेकर
खड़ी है घर के द्वार पर
बच्चे की माँ को
जाना है अपने काम पर
बच्चा अपलक देखता है
देर तक
माँ को दूर जाते हुए
सिर्फ़ माँ ही
नहीं करती है काम
बच्चा भी
माँ की राह निहारता है
हर शाम।
■
छः
तस्वीर
घर में सभी की तस्वीर है
एक माँ को छोड़कर
कई बार सोचा भी था
किसी रोज उतरवाएँगे
माँ की एक बढ़िया-सी तस्वीर
माँ है कि अपनी दुनिया में मस्त
बच्चों की भीड़ में
मन्दिर में या फिर
चिड़ियों को दाना खिलाने में व्यस्त
पता नहीं क्यों माँ को?
तस्वीर खिंचवाना भाता न था
अक्सर पूछने पर वह डांट देती थी
'तस्वीर....
कोई देखेगा तो क्या कहेगा?'
मानो कुछ अप्रत्याशित घटा हो
फिर एक रोज
माँ ने पकड़ ली चारपाई
हम सब दवा-दारू में जुट गए
किसी को भी
यह ख्याल नहीं आया
कि माँ की एक भी तस्वीर
नहीं है घर में
माँ अपनी सबसे अच्छी तस्वीर भी
ले गयी अपने साथ
अब माँ नहीं है
और न ही माँ की कोई तस्वीर
लेकिन! जब कभी
बात चलती है तस्वीर खिंचाने की
मुझे याद आता है
चिता की लपटों में जलता
माँ का शरीर।
■
सात
माँ का अहसास
माँ काम से बाहर गयी है
उसके घर वापसी का समय निश्चित है
घर के मुख्य द्वार पर
जब भी
कोई आहट होती है
चौंकता है बच्चा
शायद माँ है
माँ शब्द है ऐसा
चाहे हर समय
वह साथ न हो
लेकिन! होने का
अहसास तो जगाता ही है।
■
आठ
चाँद
माँ ने मुझे चाँद कहा
स्नेह की शीतलता
मुझ में समाती चली गयी
आत्मीयता के आसमान में
मैं चमचमाने लगा
उसके अलावा
कभी किसी ने
मुझे चाँद नहीं कहा
मैं यह तो नहीं जानता
कि मैं चाँद हूँ या नहीं
हाँ!यह बखूबी जानता हूँ
माँ कभी असत्य नहीं बोलती।
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नौ
माँ
सुबह
सबसे पहले जगती है
रात
सबसे बाद में सोती है
हर घर में माँ
ऐसी ही होती है।
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दस
उड़ान
बूढ़ी माँ हर रोज
चिड़ियों को दाना खिलाती थी
जब कभी
चिड़िया नहीं आतीं
माँ भोजन करते हुए
उन्हें बार-बार याद करती
माँ और चिड़ियों का संबंध
इतना गहरा और रहस्यमय था
एक दिन माँ
चिड़ियों की तरह पँख लगाकर
उन्मुक्त आकाश में उड़ गयी।
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ग्यारह
परिवार
बाहर बालकनी में रखे
गमलों में से
मैंने एक गमला उठाकर
अंदर कमरे में रख लिया
कुछ दिन बाद
उसका पौधा मुरझाने लगा
माँ ने देखा और कहा -
गमले को अकेला नहीं
दूसरे गमलों के साथ रखो
पौधा हो या कोई और
परिवार से बिछुड़कर
सूख जाता है।
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बारह
कविता
माँ नवजात को
निहार रही है
अपलक
वह कविता नहीं
लिख रही है
वह कविता जी रही है।
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तैरह
महाकाव्य
बच्चा
सुबह से देर रात तक
माँ के संग ही चिपका रहता है
उसी के हाथ से खाता-पीता है
उसी के संग हँसता-बोलता है
और यहाँ तक की
प्यार और तकरार भी
माँ से ही करता है
ममता का महाकाव्य है
माँ।
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चौदह
माँ
अब माँ नहीं है
माँ की स्मृति है
अब स्मृति ही
माँ है।
■
परिचय
शिक्षा: एम.ए,एम.फील,पीएच.डी(दिल्ली विश्वविद्यालय)
सम्प्रति: प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजधानी कॉलेज(दिल्ली विश्वविद्यालय)राजा गार्डन नयी दिल्ली-110015
प्रकाशन: साप्ताहिक हिन्दुस्तान, पहल, समकालीन भारतीय
साहित्य, नया पथ,आजकल, कादम्बिनी,जनसत्ता,हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा,कृति ओर,वसुधा, इन्द्रप्रस्थ भारती, शुक्रवार, नई दुनिया, नया जमाना, दैनिक ट्रिब्यून आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ व लेख प्रकाशित।अभी भी दुनिया में- काव्य-संग्रह।
कुछ कविताओं का अँग्रेजी, गुजराती,पंजाबी,तेलुगु,मराठी,नेपाली भाषाओं में अनुवाद।
सचेतक और डॉ. रामविलास शर्मा (तीन खण्ड)का संकलन-संपादन।
रामविलास शर्मा के पत्र- का डॉ. विजयमोहन शर्मा जी के साथ संकलन-संपादन।
सम्मान: हिन्दी अकादमी दिल्ली के नवोदित लेखक पुरस्कार से सम्मानित।
संपर्क: WZ-12 A, गाँव बुढेला, विकास पुरी दिल्ली-110018
मोबाइल:9818389571
ईमेल: drjasvirtyagi@gmail.com