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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

15 अप्रैल, 2010

सवाल लेकर आयें हैं.. जवाब लेकर जायेंगे.......

नर्मदा बचाओ आंदोलन के सैकड़ों कार्यकर्ता इन्दौर में एन.सी.ए के कार्यालय के सामने गाँधीवादी तरीक़े से अपना अधिकार माँग रहे हैं। जो सरकार हिंसक तरीक़ों से अपने अधिकार की माँग करने वालों को जड़ से ख़त्म करने के लिए अड़बी पड़ी है, उससे अनुरोध है कि वह गाँधीवादी तरीक़े से अपना अधिकार माँगने वालों की सुध ले। इनका भरोसा देश के लोकतंत्र पर से उठने से बचाये। कहीं ऎसा न हो कि कुछ समय बाद इनके लिए भी कोई आपरेशन शुरू करना पड़े। आंदोलनकारी 13. 4. 2010 से एन सी ए कार्यालय के बाहर पर धरने पर बैठे हैं। एन सी ए के वरिष्ठ अधिकारी हमेशा की तरह 13, 14 को गायब रहे हैं। आंदोलनकारियों का कहना है, सवाल लेकर आये हैं, जवाब लेकर जाएँगें। क्या सच में इन्हें कोई ठीक-ठक जवाब मिलेगा ? या हमेशा की तरह आश्वासन का झुनझुना पकड़ा दिया जायेगा ? जैसे पिछले 25 बरस से किसी न किसी आश्वासन का झुनझुना पकड़ाया जाता रहा है।


पर्यावरण मंत्रालय द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति की विपरीत रिपोर्ट के बावजूद बांध की ऊँचाई 122 मीटर से 17 मीटर
और बढ़ाकर 139 मीटर करने हेतु गेट लगाने की अनुमति दे दी गई है। सरकार का यह बि कहना हे कि गेट केवल खड़े किये जा रहे हैं, बंद नहीं करंगे, खुले रखेंगे, तो भइया केवल दिखाने के लिए गेट लगा रहे हो कया ?

इन सब बातों के इसके पीछे जहां एक ओर गुजरात की राजनीति सक्रिय है वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश सरकार अपने निवासियों और गांवों के हित की अनदेखी करते हुए गुजरात सरकार की हाँ में हाँ मिला रही है। आखिर म. प्र. को भी गुजरात की तरह विकसित प्रदेश बनाने की ज़िम्मेदारी जो निभानी है !

आओ .... इन आंदोलन कारियों के धैर्य और हौसले को सलाम करें... लेकिन लाल सलाम मत कहना.. वरना सरकार आपके ख़िलाफ़ भी कोई कार्यवाही का ऎलान कर देंगी। सरकार की कार्यवाही का सभी अवसरवादी भी समर्थन करेंगे। हाँ... जय श्री राम कहोगे तो ..... सरकार की भी पूँ.....बोल जायेगी।

बिजूका लोक मंच, इन्दौर
bizooka2009.blogspot.com

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