कत्लगाह
पशुवधगृह में
जांचकर जानवरों को
लगाए जा रहे ठप्पे
उनकी पीठ पर
मुंबई विश्वविद्यालय
कलीना परिसर की
बाहरी सड़क पर
पिछली आधी सदी से खड़े
पीपल बरगद गूलर जामुन
गुलमोहर आम कारंज
नारियल ताड़ वर्षावृक्ष
और भी जिनके नाम
मुझे नहीं पता
ऐसे दो सौ से अधिक पेड़
जांचे जा रहे हैं
साताक्रुज़ चेंबूर लिंक
उड़नपुल गुज़रने वाला है
कई पेड़ तो हैं
बिलकुल किनारे
पर पुल की शोभा के लिए
हर पेड़ पर लग रही है
आधिकारिक परची
सरकार की
प्लास्टिक पर पाबंदी
लानेवाली सरकार ने प्लास्टिक की थैलियों में
करीने से साटकर
थाप दिए हैं उन पेड़ों पर
जो नितांत अनपढ़ हैं
और पढ़वा भी नहीं सकते
किसी राह चलते से
हत्यारे गिन रहे हैं पेड़
अपने सीने पर
चिपकाए फ़रमान
अपनी मौत का
ख़ामोश खड़े हैं
दो सौ से अधिक
आधी सदी पुराने पेड़
एकदम अकेले असहाय
क़त्लगाह में लाए गए
बेज़ुबान जानवरों की तरह
सबसे ऊंची पढ़ाई वाली
यूनिवर्सिटी से सटी सड़क
और किसी ने नहीं पढ़ा
फ़रमान क़त्ल का
सावन में काटे गए ये पेड़
जब सूखेंगे
तब जलाएंगे इन्सानी मुर्दे
करेंगे राख पूरे जिस्म को
तब ढूंढ़ नहीं पाएगा कोई
कौन सी राख पेड़ की है
कौन सी इन्सान की
बेज़ुबान की हाय
कभी ख़ाली नहीं जाती
पेड़ों को न पाकर
कभी भटक जाते हैं बादल
तो कभी बरसते हैं धारासार
मचाते हैं प्रलय
मरता है सिर्फ़ वही
जो चुप रह जाता है तब
जब मारे जाते हैं पेड़
प्रलय में नहीं मरते देवता
न मंत्री न नेता न सौदागर
इनके घरों में नहीं भरता
बाढ़ का मटमैला पानी
नहीं भीगते इनके रेशमी वस्त्र
नहीं बहती इनकी रोटी
इनकी रोज़ी इनके मवेशी
नहीं ताकते ये आसमान
राहत सामग्री की भीख को
जो होते हैं धरती पर
पूरी तरह सुरक्षित
वे सबसे बड़ा ख़तरा हैं
धरती की सुरक्षा के लिए
मक़्तल तैयार है
छुरी गड़ांसों पर
दी जा रही धार
मुर्दागाड़ियां साफ़ हो रही
लोग चले जा रहे सड़कों पर
पैदल या गाड़ियों में
यूनिवर्सिटी में जुटाई जा रही
राहत सामग्री देशभर के
बाढ़ पीड़ितों के लिए
पर किसी को दीख नहीं रहा
कफ़न का छोटा टुकड़ा
जो टंगा है पेड़ों के सीने पर
मौत की ख़बर लिए
और हम सब
ख़ुशफ़हमी में मुब्तिला
कि जहाँ से फाड़े गए हैं
ये छोटे टुकड़े कफ़न के
वह थान कपड़े का
ख़त्म हो गया है पूरी तरह
सब
पूर्वार्द्ध
सब का
साथ
सब का
विकास
ये सब
कौन हैं
जिन्हें
सब ढूंढ़ रहे हैं
और सब
परेशान हैं
उत्तरार्द्ध
पचहत्तर
साल पहले
एक पागल
बूढ़े ने बताया था
'सब' का अर्थ
पांत का
आख़िरी आदमी
बिलकुल
आख़िरी
जिसके
बदन पर चिथड़े
खाली
फूटी हांडी लिए
पीढ़ियों
से खड़ा है
अपनी
बारी के इंतज़ार में
जिसकी
झोंपड़ी बह गई
कल की
बाढ़ में
और वह भी
इनफ़ेलाइटिस
के शिकार
अपने
इकलौते बेटे को
जो अभी
अभी दफ़ना कर
चूतड़ पर
हाथ पोछते खड़ा है
और वह
मुसम्मात बुढ़िया
जो विधवा
पेंशन के
रुपये
पांच सौ पाने को
जमा करवा
कर आई है
पूरे
पचास रुपए
बड़े बाबू
के पास
और वह
लड़की जो खड़ी है
जवान
विधवा मां के साथ
जिसका
बाप लटक गया
कर्ज़ के
बोझ से
हल्का
होने की ख़ातिर
वह जो
ढेर सारे
नंगे
भूखे बच्चों की भीड़
खेलने में
मशगूल है
वे ही
हैं 'सब'
जिसके
बाद सीने पर
मौत का
फ़रमान सटाए
खड़ा है
भरापूरा जंगल
कटने के
इंतज़ार में
और जिसके
जिम्मे है
'सब' का विकास
वह एक दम
आगे
सुसज्जित
मंच पर
मखमली
कालीन पर
अनासक्त
भाव से
ध्यानस्थ
सुन रहा
स्टीरियोफ़ोनिक
साउन्ड में-
वैष्णव
जन तो तेने कहिए
जे पीड़
पराई जाणे रे!
अहिंसा
ढाई आखर
की
हिंसा
और
एक अकेला
अ
देखें कब
तक टिकता है!
समय नहीं
है
मैं अभी
शामिल नहीं होना चाहता
आपकी
अकादमिक बहस में
आपकी
शास्त्रीय पुनर्व्याख्याएं
कर सकती
हैं इंतज़ार
आपकी
बहसें
मुल्तवी
हो सकतीं हैं
आप कभी
भी पाला लांघ
सुरक्षित
ज़ोन में जा सकते हो
पर वे
पेड़ हैं
वह भी
हज़ारों
अपंग हैं
हिल तक
नहीं सकते
अपनी जगह
से
न चीख़
सकते हैं
न रो
चिल्ला सकते हैं
मुझे अभी
तुरंत पहुंचना है
उनका
शुक्रिया अदा करने
पापों की
माफ़ी मांगने
अदम्य
इच्छा के बावजूद
बचा नहीं
पा रहा उन्हें
आजकल बड़ी
तेज़ी से हो रहे
फ़ैसले
सरकार के
इतनी
तत्परता तब नहीं देखी
जब मर
रहे थे बच्चे
भूख और
बीमारियों से
या डूब
रहा था शहर
या बरस
रही थी लाठियाँ
अन्यायग्रस्त
शिक्षकों पर
जितनी
तत्परता से
होता है
फ़ैसला
पेड़ों के
कटने का
हत्यारे
पहुंचें
उससे
पहले पहुंचना चाहता हूँ
हर उस
बलिवेदी तक
जहाँ
हैवानी सुविधाओं के
शैतानी
यज्ञ में
दी जाएगी
आहुति
बेकसूर
बेज़ुबान बेबस पेड़ों की
आप जारी
रखिए
अपनी बहस
अपने
सेमिनार, गोष्ठियाँ
अपने
बौद्धिक उत्सव
और
टुच्ची उपलब्धियों के
महामहोत्सव
मैं
वृक्षों के श्मशान होकर
लौटता
हूँ शीघ्र ही
यह बताने
कि कब
आएगी बारी हमारी
नि:शब्द
शब्द खड़े
हैं क़तार में
ख़ामोश,भयभीत,निरीह
अर्थों
के वस्त्र उतारे हुए
नितांत
नंगे
निर्लज्जता
में सहमे
बारी के
इंतज़ार में
कुशल
निपुण कसाई
हलाल
करता
एक एक शब्द
छोटे बड़े
नए पुराने
आत्मसमर्पित
शब्द
बिना
प्रतिरोध हो रहे क़त्ल
सिर
झुकाए
चमत्कारी
जादूगर
मरे
शब्दों की खाल खींच
भरता है
उनमें
जली
पोथियों की राख
और बड़ी
ख़ूबसूरती से सीकर
इंद्रधनुषी
रंगों से सजा
लटका
देता है उन धागों में
जिसके
सिरे बंधे हैं
चतुर
कलाकार की उंगलियों से
जो नचा
रहा है
राख
ठुंसे
उन
अर्थहीन शब्दों को
जो कभी
हुआ करते थे ब्रह्म
तन्मय
होकर ताक रहे हैं
गूंगे बहरे आसन मारे
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