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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

20 अक्तूबर, 2010

आँसुओं में शर्म की कोई बात नहीं

( अब्राहिम लिंकन का अपने पुत्र के शिक्षक के नाम पत्रः संपादित अंश )

उसे पढ़ाना कि संसार में दुष्ट होते हैं तो आदर्श नायक भी
कि जीवन में शत्रु हैं तो मित्र भी
उसे बताना कि श्रम से अर्जित एक रुपया
बिना श्रम के मिले पाँच रुपयों से भी अधिक मूल्यवान है
उसे सिखाना कि पराजित कैसे हुआ जाता है
यदि तुम उसे सिखा सको तो सिखाना
कि ईर्ष्या से दूर कैसे रहा जाता है
नीरव अट्टहास का गुप्त मंत्र भी उसे सिखाना
तुम करा सको तो उसे पुस्तकों के
आश्चर्य लोक की सैर अवश्य कराना
किन्तु उसे इतना समय भी देना कि वह
नीले आकाश में विचरण करते विहग-वृन्द के
शाश्वत सत्य को जान सके
हरे-भरे पर्वतों की गोद में खिले फूलों को देख सके
उसे सिखाना की पाठशाला में अनुत्तीर्ण होना
अधिक सम्मानजनक है
बनिस्बत किसी को धोका देने के
उसे अपने विचारों में आस्था रखना सिखाना
चाहे उसे सभी कहें- ‘ यह विचार ग़लत है ’
तब भी
उसे सिखाना कि सज्जन के साथ सज्जन रहना है
और कठोर के साथ कठोर….
मेरे पुत्र को ऎसा मनोबल देना
कि वह भीड़ का अनुसरण न करे
और जब सभी एक स्वर में गाते हों तो उसे सिखाना
कि तब वह उन्हें धैर्य से सुने
किन्तु वह जो कुछ सुने उसे सत्य की छलनी से छान ले
उसे समझाना दुख में कैसे हंसा जाता है
उसे समझाना आँसुओं में शर्म की कोई बात नहीं होती
तुनक मिजाजियों को लताड़ना उसे सिखाना
और यह भी कि अधिक मधुभाषियों से सावधान रहना है
उसे सिखाना कि अपना मस्तिष्क और विचार
अधिकतम बोली लगाने वाले को ही बेचे
मगर अपने ह्रदय और आत्मा पर मूल्य-पट्ट भी न टाँके
उसे समझाना कि शोर करने वाली भीड़ पर कान न दे
और यदि वह समझे कि वह सही है
तो उस पर दृढ़ रहे और लड़े
उसके साथ सुकोमल व्यवहार करना
पर अधिक दुलारना भी मत
क्योंकि अग्नि-परीक्षा ही इस्पात को सुन्दर, सुदृढ़ बनाती है
अधीर होने का साहस भी उसमें पैदा करना
और बहादुर होने का धैर्य भी
उसे सिखाना कि वह सदैव अपने आप में उदात्त आस्था रखे
क्योंकि तभी वह
मनुष्य जाति में उदात्त आस्था रख पाएगा

रूपांतरणः रामप्रसाद दाधीच

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2 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद खूबसूरत संदेश देती एक सार्थक अभिव्यक्ति।

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  2. bahut hi saral kintu mahatavapurna sandesh deti hein ye kavita.sabse badi baat ye ki ye har yug mein prasangik rahegi.aapka bahut bahut dhanavad.

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