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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

07 मई, 2011

Il postino ( The Postman )


इल पोस्तिनो ( द पोस्टमैन )
अमेय कान्त


मोस्सिमो त्रोसी की फिल्म इल पोस्तिनो ( द पोस्टमैन ) गाँव में रहने वाले एक सीधे - सादे आदमी और एक बड़े जनकवि के बीच के महीन रिश्ते पर आधारित है . एक अत्यंत सामान्य व्यक्ति के भीतर धीरे- धीरे कैसे एक कवि जन्म लेने लगता है और उसकी समूची दुनिया बदल देता है , यह इतालवी फिल्म इस बात को बड़ी सुन्दरता से कहती है . इटली का एक छोटा और ख़ूबसूरत सा द्वीप है जहाँ मारिओ अपने पिता के साथ रहता है . मारिओ एक बेहद सीधा सादा युवक है जिसके पास फिलहाल कोई रोज़गार नहीं है और न ही वो अपने मछुआरे पिता की तरह पुश्तैनी पेशा अपनाना चाहता है.
इसी बीच मारिओ को एक थिएटर में दिखाई जाने वाली डॉक्युमेंट्री फिल्म में पता चलता है की चिली के जाने - माने कवि पाब्लो नेरुदा अपने देश से निष्कासन की अवधि पूरी होने तक उन्ही के द्वीप पर आकर रहने वाले हैं . नेरुदा के कम्युनिस्ट विचारों के कारण कई लोग उनसे प्रभावित हैं और इस जनकवि के अपने यहाँ आने से खुश भी . लेकिन मारिओ जिस बात से सबसे ज़्यादा प्रभावित है वो ये कि नेरुदा महिलाओं और लड़कियों में खासे लोकप्रिय हैं और अब उसके गाँव में आने वाले हैं .
इस सबके बीच नौकरी के एक इश्तेहार पर मारिओ की नज़र पड़ती है जिसमें लिखा है की पोस्ट ऑफिस में एक अस्थाई डाकिये की ज़रुरत है . पोस्टमास्टर से मिलने पर मारिओ को यह पता चलता है की यह पोस्टमैन उन्हें खासतौर पर नेरुदा के लिए आने वाली ढेर सारी डाक उन तक पहुचाने के लिए चाहिए .
पोस्टमास्टर मारिओ के कहने पर उसे काम पर रख तो लेता है लेकिन उसके घोंचूपन को देखते हुए उसे हिदायत भी देता है की वह रोज़ चुपचाप नेरुदा को उनकी डाक सौपकर वापस आ जाया करे और फ़िज़ूल बातें कर के उनका वक़्त जाया न किया करे . नेरुदा को लेकर पोस्टमास्टर और मारियो की राय अलग है क्योकि पोस्टमास्टर नेरुदा को एक महान जनकवि के रूप में देखता है जबकि मारियो के मन में उनकी छवि एक रोमांटिक कवि की है . बहरहाल, मारिओ बहुत खुश है क्योंकि अब वह रोज़ नेरुदा से मिल सकेगा .
इसी गाँव की एक लड़की बीट्रिस से मारिओ प्रेम करने लगता है . बीट्रिस अपनी आंटी की होटल में काम करती है . मारिओ उसे प्रभावित करने के लिए ये दिखाना चाहता है कि नेरुदा से उसका कितना मेलजोल है, लेकिन शुरुआत में बात कुछ बन नहीं पाती . जाने अनजाने में मारिओ पर नेरुदा कि कविताओं का असर होने लगता है , हालाँकि ज़्यादातर बातें उसकी समझ से बाहर हैं . नेरुदा जब उसे मेटाफर (रूपक ) का उदाहरण देते हुए उसका अर्थ समझाते हैं तो निहायती भोलेपन से वह पूछता है कि इसके लिए मेटाफर जैसे भारी -भरकम शब्द का इस्तेमाल क्यों किया जाता है .
वह नेरुदा को बताता है कि उसे भी बहुत सी चीज़ें महसूस होती हैं पर वह नहीं जानता कि उन्हें व्यक्त कैसे करे . गाँव के इस भोले भले शख्स के मन में कविताओं के प्रति इस तरह का लगाव और संवेदनशीलता देखकर नेरुदा भी अचंभित हैं . वह नेरुदा को बताता है कि जिस तरह से उन्हें नाइयों कि दुकानों से उठने वाली गंध उदास करती है , उसकी कुछ वैसी ही स्थिति मछुआरों के जाल देखकर होती है .
नेरुदा एक दिन वे मारिओ को एक टेप -रेकॉर्डर दिखाते हैं जो उन्हें भेंट में मिला है. उसकी आवाज़ रिकॉर्ड करने के लिए वे उसे कहते हैं कि वह अपने द्वीप की खूबसूरत चीज़ों के बारे में कुछ बताए. बहुत सोचने के बाद मारिओ सिर्फ एक नाम बोल पता है - बीट्रिस . मारिओ के इस पागलपन को देखते हुए नेरुदा उसके प्रेम को हासिल करने में उसकी मदद करते हैं और अंततः मारिओ और बीट्रिस का विवाह हो जाता है. इन दोनों कि शादी में नेरुदा बेस्ट मैन बनते है . पार्टी के दौरान ही उन्हें एक पत्र मिलता है , जिसमें उन्हें पता चलता है कि उनका निष्कासन समाप्त हो चुका है और वे अब अपने देश चिली लौट सकते हैं .
नेरुदा के इस तरह से अचानक वापस जाने से मारिओ कुछ असहज भी है और उदास भी . एक तरफ तो उसे नेरुदा के देश लौटने कि ख़ुशी है वहीं दूसरी तरफ एक मित्र के जाने का दुःख . नेरुदा के चले जाने के बाद मारिओ उन्हें कई पत्र लिखता है , लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिलता. वह खुद को समझाता है कि हो सकता है, अपनी व्यस्तता के चलते नेरुदा उसके पत्रों का जवाब न दे पा रहे हों. एक दिन उसे नेरुदा की ओर से एक पत्र मिलता है लेकिन दुर्भाग्यवश वह उनकी सेक्रेटरी का पत्र है जिसमें लिखा कि है कि वह नेरुदा की महत्वपूर्ण चीज़ों को चिली वापस पहुँचा दे. इस सबके बीच वह नेरुदा के टेप - रिकॉर्डर से द्वीप पर कई तरह की आवाजें रिकॉर्ड करता है, यहाँ तक कि पत्नी के पेट में पल रहे अपने बच्चे के दिल की धड़कन भी.
कई साल बाद जब नेरुदा अपनी पत्नी के साथ द्वीप पर लौटते हैं तो मारिओ की पत्नी और उसके बेटे पाब्लितो से मिलते हैं, जिसका नाम पाब्लो नेरुदा के नाम पर ही रखा गया है . लेकिन मारिओ उन्हें कही दिखाई नहीं देता. वे स्तब्ध रह जाते हैं जब उन्हें पता चलता है कि मारिओ अपने बच्चे के पैदा होने से कुछ दिन पहले ही मारा जा चुका था. नेपल्स में होने वाले एक कम्युनिस्ट प्रदर्शन के दौरान वह खुद की लिखी हुई एक कविता सुनाने वाला था लेकिन पुलिस द्वारा की गई हिंसा के दौरान अन्य कई लोगों के साथ वह भी मारा गया. बीट्रिस उन्हें मारिओ द्वारा रिकॉर्ड किया गया टेप सौंप देती है.
यह फिल्म इतालवी लेखक अंतोनियो स्कार्मेता के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित थी. मोस्सिमो त्रोसी जो असल में एक हास्य अभिनेता थे, पाब्लो नेरुदा की कविताओं से काफी प्रभावित थे और इसलिए लम्बे समय से नेरुदा पर फिल्म बनाना चाह रहे थे. लेकिन फिल्म की सारी तैयारियाँ हो जाने के बाद उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और उन्हें हिदायत दी गई कि वे जल्दी ही ह्रदय का ऑपरेशन करवा लें. फिर भी त्रोसी ने अपने दोस्त और फिल्म के निर्देशक माइकल रेडफोर्ड की सलाह के विपरीत फिल्म में मुख्य भूमिका ही निभाई , परिणामस्वरूप अत्यधिक शारीरिक श्रम हो जाने के कारण फिल्म की रिलीज़ के पहले ही हृदयाघात से उनका निधन हो गया . इसे त्रोसी की अपने प्रिय कवि के प्रति अगाध श्रद्धा कहें या संयोग, कि बिल्कुल फिल्म के मुख्य पात्र मारिओ की तरह त्रोसी भी क्लाइमेक्स के पहले ही परदे से जा चुके थे , हमेशा के लिए.
फिल्म में अपनी जानदार भूमिका के लिए त्रोसी कि विश्व भर में जमकर तारीफ हुई . फिल्म में नेरुदा की भूमिका फिलिप नोइरे ने निभाई. 1994 में रिलीज़ हुई इस फिल्म को सर्वश्रेष्ट अभिनेता सहित 5 अकादमी पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया जिनमे से इसे सर्वश्रेष्ठ संगीत के लिए अकादमी पुरस्कार मिला. बाफ्टा पुरस्कारों के अलावा इसे और भी कई पुरस्कार मिले. इस फिल्म को न सिर्फ एक महान कवि के साथ आम आदमी के रिश्ते के लिए बल्कि एक महान फ़िल्मकार और अभिनेता के फिल्म निर्माण के प्रति अपने जुनून के लिए भी याद रखा जाना चाहिए.

4 टिप्‍पणियां:

  1. ३ साल पहले इस फिल्म का डीवीडी मैने देखा था. मेरी बेटी ने दिखाया. वह ३ हफ्ते हमारे साथ रही और उस दौरान मैने इसे ३ या ४ बार देखा! इतनी बेहतरीन फिल्म है कि क्या कहूं? अभिनय...दृश्य संरचना और पात्र चित्रण...सभी उम्दा. पोस्टमेन का भोलापन और उसका नेरूदा के साथ आदर से भरी दोस्ती...और फिल्म का अन्त तो और भी मार्मिक ! इसके बारे मे बिजूका मे विवरण देने केलिए धन्यवाद.
    shanta sundari

    हाल ही मे इस उपन्यास का तेलुगु अनुवाद एक तेलुगु वेब पत्रिका मे धारावाहिक छपा था.

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  3. 'घोंचुपन' शब्द का इस्तेमाल मज़ेदार लगा :)

    समीक्षा पढ़कर फ़िल्म को देखने की इच्छा तीव्र हो गयी है ...

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  4. इस फिलम को देखना चाहता हूं कैसेट कहाँ मिलेगा

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