इलाहाबाद के करछना तहसील के दस गाँवों के किसान 22 अगस्त को अपनी खेती की जमीन बचाने और पुलिल दमन के विरोध में सड़क पर उतरे. इन दस गांवो के किसानों की करीब 1800 एकड़
जमीन प्रदेश सरकार ने पॉवर प्लांट दे लिये तीन लाख रूपए प्रति बीघा के
हिसाब से अधिग्रहित की थी. किसान शुरू से ही इसका विरोध कर रहे थे. मामला
कोर्ट में पंहुचा. 13 अप्रैल 2012 को
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण रद्द कर दिया था परंतु प्रशासन अभी
भी किसानों को उनका हक देने को तैयार नहीं है. रविन्द्र की एक रिपोर्ट
भूमि अधिग्रहण के विरोध में करछना इलाहाबाद (उ0प्र0) में आन्दोलन के दो साल पूरे होने पर 22 अगस्त 2012 को किसान महापंचायत कर किसानों ने अपने हक के लिए एकजूट होकर हुंकार भरी तथा केन्द्र एवं प्रदेश सरकार की तरफ से हो रही किसानों की उपेक्षा की घोर निन्दा की। करछना पांवर प्रोजेक्ट के लिए 2007 में करछना के कचरी, देवरीकलां, कचरा, भिटार, गढ़वा कला, देहली भगेसर, मेड़रा आदि गांवो की जमीन अधिग्रहण की गयी थी. पुनर्वास किसान कल्याण समिति अधिग्रहण के विरोध में दो साल से लगातार क्रमिक अनशन और आन्दोलन कर रही है।
भूमि अधिग्रहण के विरोध में करछना इलाहाबाद (उ0प्र0) में आन्दोलन के दो साल पूरे होने पर 22 अगस्त 2012 को किसान महापंचायत कर किसानों ने अपने हक के लिए एकजूट होकर हुंकार भरी तथा केन्द्र एवं प्रदेश सरकार की तरफ से हो रही किसानों की उपेक्षा की घोर निन्दा की। करछना पांवर प्रोजेक्ट के लिए 2007 में करछना के कचरी, देवरीकलां, कचरा, भिटार, गढ़वा कला, देहली भगेसर, मेड़रा आदि गांवो की जमीन अधिग्रहण की गयी थी. पुनर्वास किसान कल्याण समिति अधिग्रहण के विरोध में दो साल से लगातार क्रमिक अनशन और आन्दोलन कर रही है।
महापंचायत में कचरी पावर प्लांट के विरूद्ध आन्दोलन चला रहे आठों गांवो के पुरूष और महिलाओं ने अपने परम्परागत हथियारों लाठी-डंडे, फरूआ, गढ़सा, और हसिया लेकर महापंचायत में सुबह 11 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक पूरी मुस्तैदी से भागीदारी की। प्रशासन की तरफ से भारी फोर्स तैनात किया गया था ।
ज्ञात हो कि करछना पावर प्लांट के लिए कुल 1920 काश्तकारों से जमीन ली गई थी लेकिन मुआवजा 1850 काश्तकारों को दिया गया जबकि शेष 70 काश्तकारों ने मुआवजा लेने से इनकार कर दिया। पावर प्लांट के विरोध में करछना में कई बार बवाल हुआ। अंत में मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा और न्यायालय ने भूमि अधिग्रहण रद्द कर दिया। अब प्रशासन किसानों से पूछा रहा है कि वो अपनी जमीन वापस लेना चाहते हैं तो मुआवजे की रकम वापस कर दें और अगर जमीन नहीं लेना चाहते हैं तो मुआवजे की रकम अपने पास रख लें।
इधर किसानों का दावा है कि प्रति बीघा जमीन पर खेती कर वह साल भर में तकरीबन एक लाख रुपये कमा लेते थे। चार साल तक खेती न होने के कारण उन्हें चार लाख रुपये का नुकसान हुआ जबकि सरकार ने जमीन अधिग्रहण के लिए किसानों को तीन लाख रुपये प्रति बीघा की दर से मुआवजा दिया था। ऐसे में किसानों को प्रति बीघा एक लाख रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। इसके अलावा करछना पावर प्लांट को लेकर पूर्व में जो भी आंदोलन हुए, उसके मद्देनजर जिला प्रशासन ने किसानों पर ढेरों मुकदमे लाद दिए। अब तक मुकदमे वापस नहीं लिए गए हैं।
13 अप्रैल 2012 को हाईकोर्ट ने अधिग्रहण को रद्द कर नये सिरे से जमीन अधिग्रहण की बात कही तो आंदोलन सुस्त पड़ गया था। लेकिन आदेश के बाद से कम्पनी, कम्पनी
के दलाल और सरकार तंत्र के लोग किसानों के बीच में भ्रम पैदा कर के किसान
विरोधी कार्य कर रहे थे । सरकार तथा कम्पनी के दलाल यहां की किसानों की
एकता को कई बार तोड़ने की कोशिश कर चुके है लेकिन उसमें उनको सफलता नही
मिली। किसान महापंचायत में प्रदेश भर से जाने-माने किसान नेता तथा भूमि
अधिग्रहण के खिलाफ चल रहे अन्दोलन के साथियों ने बड़ी संख्या में अपनी
भागीदारी की तथा कचरी में किसानों के आन्दोलन में अपना सहयोग करने का वादा
भी किया।
पुनर्वास
किसान कल्याण समिति के अध्यक्ष राज बहादुर पटेल ने किसान महापंचायत में
कहा कि सरकार किसानों की उपेक्षा कर रही है। जनसंघर्ष समन्वय समिति के
किसान नेता अरूण सिंह ने कहा कि देश के किसी भी कारखाने में गेहूं, धान, अरहर, चना, आलू, गन्ना
पैदा नही किया जा सकता है और केन्द्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा किसानों
के विरूद्ध यदि कार्य किया तो देश में किसान उसका मुहं तोड़ जवाब देगा।
महापंचायत में विवेक श्रीवास्तव, प्रदेश मंत्री किसान मोर्चा, मुख्य अतिथि भाजपा के प्रदेश महामंत्री विनोद पाण्डेय, कृषि भूमि बचाओ मोर्चा से राघवेंद्र, प्रदीप शुक्ला, राजेन्द्र मिश्रा, भारतीय किसान मजदूर सभा बारा के राम कैलाश, राम चन्द्र, भाकियू से महेंद्र तिवारी, संत लाल साहू, सीमा शर्मा ने संबोधित किया।
sangharsh sanwad se sabhar
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें