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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

30 जुलाई, 2014

रोबो


                                                         

                                                              एस.आर. हरनोट

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एक आदमी नेता बन गया। कुछ दिनों बाद उसकी ताजपोशी मंत्री के पद पर हो गई। उसे लगने लगा कि अब वह दुनिया का सबसे खुश और ताकतवर प्राणी है। कुछ दिनों बाद उसके साथ अजीबोगरीब घटनाएँ घटने लगीं। उसे हर कहीं नींद आ जाती और तरह-तरह के भयानक सपने दिखने लगते। रात-दिन वह कई तरह के भय से परेशान रहने लगा था।
स्वप्न में कभी उसे लगता कि जिस कार से वह दौरे पर जा रहा है, वह अचानक दुर्घटनाग्रस्त हो गई है या उसमें किसी उग्रवादी या विपक्षी दल के आदमी ने बम रख दिया है और रिमोट से कार के परखचे उड़ा दिए है - और कभी उसे यह भी नजर आता कि वह खुद ही अपने जिस्म के लीथड़ों को इकट्ठा कर रहा है।
कभी जब वह अपने दफ्तर में काम कर रहा होता तो अचानक कुर्सी पर बैठे ही उसे नींद आ जाया करती। तब उसे यह लगता कि उसके सुरक्षा गार्ड, चपरासी और निजी स्टाफ के कर्मचारी किसी दूसरे देश से आए जासूस या उग्रवादी हैं। उन सभी के पास एके-47 हैं और वे उसकी हत्या करने के लिए उसके पीछे दौड़ रहे हैं।
मंत्री को सपने में यह भी दिखता कि जिस जनसभा में वह भाषण दे रहा है, अचानक एक-दो नकाबपोश भीड़ को चीरते हुए उसकी तरफ दौड़े आ रहे हैं। उन्होंने उस पर धड़ाधड़ गोलियाँ बरसा दी हैं और वह वहीं ढेर हो गया है।
अपने कमरे में आराम फरमाते कभी वह अचानक चीखने लगता। उसे कमरे की दीवारें, खिड़कियाँ और सारा सामान हिलता नजर आता। फर्श और छतें गिरतीं-ढहतीं लगने लगतीं। जैसे भयानक भूकंप आ गया हो, बादल फट गए हों या फिर उसके ऊपर आसमानी बिजली गिर पड़ी हो। कभी नजर आता कि किसी नदी में भयंकर बाढ़ आ गई हो और वह अपने मकान, सरकारी कार और बच्चों वह प्रेमिकाओं सहित उसमें बह गया हो।
कभी वह सपने में ही सख्त बीमार हो जाता। उसे लगता कि वह दिल की बीमारी से मर रहा है। कैंसर से जूझ रहा है। एड्स ने उस पर हमला कर दिया है। उसकी साँस फूलने लगी है। उसे दमा हो गया है। वह पीलिया से ग्रस्त है। उसके हाथ, बाजू, और टाँगें अधरंग से टेढ़ी-मेढ़ी हो गई हैं।
कभी उसे लगता कि उसके अंग अपनी जगह पर नहीं है। जहाँ नाक होना चाहिए वहाँ कान उग गए हैं, जहाँ कान होने चाहिए वहाँ आँखें लग गई हैं और सिर टाँगों के बीच लटका हुआ है। कई बार चलते-फिरते, महत्वपूर्ण बैठकों में भाग लेते हुए भी उसे महसूस होता कि उसके गले में किसी ने एक ढोलकी टाँग दी है और वह हिजड़ों के बीच नाचने लगा है।
इस स्वप्न-संभ्रम ने उसे अंदर से हिला सा दिया था। इसे न तो वह किसी के सामने प्रकट कर पाता और न तत्काल ऐसी विचित्र मनोस्थिति से निजात पाने का उसे कोई उपाय ही सूझता। उसने इस संकट का गहराई से विश्लेषण किया था। सोचा कि वह तो एक मंत्री है। आम आदमी नहीं है। कोई डर या भय उसके नजदीक कैसे आ सकता है। यकीनन वह ऐसी पोजीशन में है कि अपनी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कर सके। क्योंकि अगर वह सुरक्षित है तो उसका घर, उसकी गृहस्थी सुरक्षित है, जनता सुरक्षित है, प्रदेश तथा देश दानों सुरक्षित हैं। इसलिए उसने इस भय को मूल से समाप्त करने के उपाय ढूँढ़ने शुरू कर दिए।
पहला उपाय कार दुर्घटना से बचने का किया गया। विदेश से ऐसी कार मँगवाई गई जिस पर देशी मौसम, गोला-बारूद, ईंट-पत्थर का कोई प्रभाव न पड़ सके। इसी के साथ उसने अपने लिए बुलेट प्रूफ गांधी टोपी, नेहरू-कट सदरी, कुरता-पायजामा और बूट भी मँगवा लिए थे।
दूसरे उपाय थे भूकंप इत्यादि से बचने के लिए सुरक्षा। उसने अपने लिए एक ऐसी कोठी बनवाई जिसके निर्माण के लिए विदेशी इंजीनियर और कारीगर लाए गए। उसमें हजारों-लाखों टन लोहा कूटा-भरा गया। यानी अपने क्षेत्र की मीलों लंबी रेल पटरियाँ, सिंचाई योजना की पाइपें, स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों तथा दूसरे भवनों में लगनेवाला सरिया, सीमेंट, रेत और बजरी सब उस मकान में खपा लिए गए। इस आलीशान कोठी में कई तरह के अत्याधुनिक उपकरण भी लगाए गए थे जो भूकंप आने, बादल फटने या बाढ़ आने की पूर्व सूचना देने में सक्षम थे।
मंत्री ने तीसरा उपाय अपने सुरक्षाकर्मियों, निजी स्टाफ इत्यादि के अचानक आक्रमण से बचने का भी कर दिया। उस विदेशी कार के साथ कई रोबोगार्ड और रोबोडॉग तैनात थे जो हर समय मंत्री महोदय के साथ रहते थे।
चौथे विकल्प के तहत थे बीमारियों से निजात पाने के उपाय। देशी डाक्टरों के बजाय कई विदेशी डाक्टर नियुक्त कर लिए गए थे। उन्हे अपनी कोठी और दफ्तर के आसपास रखा गया था। मंत्री सदा जवान बना रहे उसके लिए दूसरे महकमों के साथ उसने अपने मंत्रालय के साथ स्वास्थ्य विभाग भी नत्थी कर लिया था।
यानी सपनों में जो भी चीजें मंत्री को भयाक्रांत करती रहतीं थीं उनसे तत्काल निजात पाने का वह उपाय ढूँढ़ ही लेता। जो भी धन अपने राज्य की योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए आबंटित होता उसे वह सहज ही इन उपायों पर खर्च कर डालता। इन उपायों को अमल में लाते-लाते उसकी सरकार के पाँच साल निकल ही गए। उसे न अपने परिवार की फिक्र रही, न गाँव की, न जनता और अपने प्रदेश व देश की। सुरक्षा के इन उपायों के बीच उसे पता भी न चला कि कब चुनाव आ गए। कुछ चमचे किस्म के लोग जरूर मंत्री के साथ आगे-पीछे रहते जिनका सारा दाना-पानी उसकी ही बदौलत चलता था।
मंत्री जैसे अब गहरी नींद से जागा था। अपने चारों तरफ के सुरक्षा कवच को देखा और मन ही मन मुस्करा दिया। दूसरे पल चुनाव का खयाल आया तो जैसे कबाब में हड्डी पड़ गई। उसने एक भद्दी गाली अपने देश की जनता को दी जिसके पास वोट माँगने जाना उसकी मजबूरी थी। उसे विश्वास था कि उसके पास इतने साधन है कि वह अपने जीतने योग्य वोटें तो अर्जित कर लेगा।
बहरहाल, वह दौरे पर निकल पड़ा। हालाँकि उसके पास विदेशी कार थी, रोबोगार्ड और रोबोडॉग थे। बुलेटप्रूफ टोपी, सदरी, कुरता पायजामा और बूट थे। लेकिन जनता यकीनन रोबो नहीं थी। वो तो वही नंगे-भूखे लोग थे। रास्ते में मंत्री कहीं भी कार से नहीं उतरा। जब अपना गाँव आया तो उतरना पड़ा। अब तक लोगों की बुरी हालत हो चुकी थी। उनके पास न रोटी थी, न मकान थे और न तन ढँकने के लिए कपड़ा। जो सामान्य जन सुविधाएँ लोग चाहते थे, वे सभी नदारद थीं। इसलिए जनता में रोष था। मंत्री जानता था कि लोगों के पास रोष व्यक्त करने के लिए कुछ भी नहीं है। न तो ये भूकंप ला सकते हैं, न बाढ़ें, न इनके कहने से बादल ही फट सकते हैं। न इनके पास ए-47 ही है। वैसे भी नंगों-भूखों के पास होता ही क्या है, यह बात मंत्री बखूबी जानता था। पर हुआ कुछ और ही। पल भर में मंत्री की यह धारणा गलत सिद्ध हो गई। जनता ने मंत्री को कई तरह से भयाक्रांत कर दिया।
एक मोची ने मंत्री पर चमड़ेवाला पानी फेंक दिया। एक नाई ने काटे हुए बालों का टोकरा उस पर उड़ेल दिया। एक लक्कड़हारे ने उस पर एक ऐसी लकड़ी फेंकी जिसे कोई भी अपने चूल्हे में जलाता नहीं था। एक किसान ने अपने हल, मोई और जुंगड़े की रस्सियाँ और जोच मंत्री पर डाल दिए। अभी वह सँभला भी नहीं था कि एक दुकानदार सामने से आया और अपनी तकड़ी उसकी कार के आगे पटक दी। मंत्री और उसके चमचों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। तभी गाँव का एक लुहार भागता हुआ आया और उस पर अपने आरन की राख बिखेर दी। एक जुलाहे ने अपना राछ और एक तुरी ने अपना ढोल उसके आगे फेंक दिया। एक पंडित ने जय श्री राम बोला और अपनी चोटी काट कर मंत्री के मुँह पर दे मारी। एक ठाकुर-कनैत ने अपनी मूँछें मुँड़वाई और खेत की मुँड़ेर के उपर से मंत्री की गांधी टोपी पर झाड़ दी। एक युवा बेरोजगार ने अपने उपर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी। एक भूखा-नंगा बच्चा कहीं से आया, दीवाल पर खड़ा हुआ और मंत्री पर मूत दिया। एक सुंदर लड़की ने उसके सामने अपने कपड़े फाड़ दिए और निपट नंगी हो गई। फिर एक सुहागिन आई और उसने अपने दाएँ बाजू की चूड़ियाँ पत्थर पर हाथ पटक कर तोड़ डालीं जिनकी बारीक किरचें मंत्री और चमचों की आँखों में घुस गईं। इससे पहले कि मंत्री अपनी कार में घुसता, एक बुढ़िया ने उस पर थूक दिया।
मंत्री के गाँव से भागने से पूर्व कुछ और अप्रत्याशित घटनाएँ घटीं। एक कौवे ने सूखे पेड़ की टहनी पर से कार पर बीट कर दी दी। एक काली बिल्ली ने उसका रास्ता काट दिया और एक कुत्ते ने जोर से अपने कान फड़फड़ा दिए।
कार धूल उड़ाती भाग निकली लेकिन मंत्री गाँव के इस अनूठे और चकित कर देने वाले आघातों को नहीं सह पाया क्योंकि उसे इस तरह के स्वप्न कभी भी पिछले पाँच सालों में नहीं दिखे थे और न ही उसने इस तरह की घटनाओं की कभी कल्पना तक की थी। वह सोच रहा था कि जब उसके अपने गाँव में ये सब कुछ घट गया तो अभी तो उसका अपना पूरा चुनाव क्षेत्र है जहाँ पता नहीं और क्या कुछ हो सकता है।
मंत्री अपनी सुरक्षित कोठी में था। परंतु उसे अब पहले के सपनों से अलग सपने दिखने शुरू हो गए थे। वह पहले की तरह ही हर कहीं सो जाता... घर में, दफ्तर में, अपनी कार में, उठते-बैठते, चलते-फिरते, खाते-पीते, नहाते-हगते...। उसको दिखता कि मोची, नाई, ठाकुर, दुकानदार, लुहार, किसान, लक्कड़हारा सब बारी-बारी से उसके पीछे भाग रहे हैं। यानी जो कुछ भी उसके साथ गाँव में घटा था वह अब कुछ दूसरे रूप में सपनों में आने लगा था। ऐसा ही कुछ-कुछ उन सभी चमचों के साथ भी होने लगा था जो मंत्री के साथ थे। इस भय का कोई उपाय-इलाज मंत्री को नजर नहीं आ रहा था। उसे जब ये सपने दिखते तो वह कभी अपनी कोठी के बंकर में घुस जाता, कभी अपनी बुलेट प्रूफ कार में, तो कभी विदेशी डाक्टरों के मकानों में, परंतु इससे छुटकारा पाना अब उसके लिए सचमुच मुश्किल हो गया था।
इस भय से मंत्री कहीं पहले से ज्यादा परेशान भी था। अधिक घबराया हुआ। इस भय ने उसे भीतर ही भीतर जला दिया था... मार दिया था... वह लाखों-करोड़ों रुपयों की संपत्ति का मालिक होते हुए भी अपनी सुरक्षा के इस नए भय से मुक्ति के लिए कोई जतन नहीं करवा पा रहा था। वह भय भी अब न जाने कितनी बद्दुआओं में तब्दील हो चुका था।
और ऐसे हालात का मारा मंत्री एक दिन अपने ही बाथरूम में मृत पाया गया।
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