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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

16 अप्रैल, 2016

श्रीलंका, जहाँ रावण मुखौटों में ज़िन्दा है : संतोष श्रीवास्तव

आज पढ़ते हैं एक बहुत ही रोचक यात्रा वृतान्त। असल में लेखक की यात्रा के साथ पाठक भी यात्रा करता है और उस यात्रा का हूबहू ऑखों देखे हाल की तरह उसका आस्वादन करता है। तो आज हम भी लेखक के साथ श्रीलंका की यात्रा पर चलते हैं, लेकिन आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।  तो आइए पढ़ते हैं

श्रीलंका, जहाँ रावण मुखौटों में ज़िन्दा है
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अभी कल ही कविता की चार पंक्तियाँ दिमाग में आई थीं- सीता तुम लोकगीतों में हो| राम धर्म में हैं, राजा हैं| तुम सीता मैया हो| तुम्हारी कहानी हर औरत की कहानी है..........और आज श्रीलंका के जयवर्दनपुरे विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय शोध काँन्फ्रेंस का न्यौता मिला|
११ अक्टूबर को मुम्बई से चेन्नई और १२ को चेन्नई से कोलम्बो के सिरिमारो भंडारनायके अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर हमारा दल सुबह २.३० बजे पहुँचा| दल में थे प्रोफ़ेसर व्यास, श्रीमती व्यास शोधार्थी निशान्त सक्सेना, शैलजा सक्सेना और मेरी अंतरंग दोस्त कवयित्री मधु सक्सेना| सभी रायपुर से आये थे| टूर गाइड और ड्राइवर (ड्राइवर ही गाइड होते हैं) रवीन्द्र हमारे नाम की तख़्ती लिए मुस्कुराता खड़ा था| अमेरिकन डॉलर को श्रीलंकन करेंसी में कन्वर्ट कराके एयरपोर्ट की बेहद मीठी कॉफ़ी पीकर जो चालीस श्रीलंकन रुपए यानी बीस भारतीय रुपयों की थी हम श्रीलंका के सबसे ठंडे हिल स्टेशन नुवाराइलिया की ओर रवाना हुए| एयरपोर्ट से बाहर आते ही नज़रें सामने लगे विज्ञापन पर पड़ीं- मलेरिया मुक्त श्रीलंका में आपका स्वागत है| पढ़कर अच्छा लगा| पूछने पर रवीन्द्र ने बताया- “श्रीलंका में शिक्षा भी फ्री है और इलाज भी| यह सकारात्मक नज़रिए का संकेत था|
मुम्बई से ११ तारीख़ की रात ७.५० का चेन्नई के लिए प्लेन था और चेन्नई से रात एक बजे कोलंबो का तो सारी रात रतजगा हुआ| रतजगे की थकान की वजह से गाड़ी आरामदायक नहीं लगी। जो भी पूछताछ करनी थी वो निशान्त और व्यासजी ही करते रहे| एयरपोर्ट से हाईवे द्वारा हमारी ६ सीटर गाड़ी नुवाराइलिया की ओर जा रही थी| हाईवे की सुन्दरता नियॉन लाइट में जगमगा रही थी| कई देशों के राष्ट्रीय झंडे लगे थे| भारत का तिरंगा भी लहरा रहा था| श्रीलंका का झंडा केशरी, हरा और लाल... लाल पर बना पीला शेर जो कटार लिये था... शेर के सिर और पैर की ओर एक-एक पत्ता बना था| झंडा चारों ओर पीली पट्टी से युक्त था| झंडे को यहाँ सिंहकोडिया कहते हैं| जैसे हमारा तिरंगा| यहाँ केलानी नदी बहती है जिसे कोलंबो की जीवन रेखा माना जाता है| यह नदी नुवाराइलिया पर्वत से ही निकलती है| नुवाराइलिया समुद्र सतह से २००० मीटर की ऊँचाई पर एक ऐसा पहाड़ी नगर है जहाँ नेल्लु पुष्प चौदह वर्षों में एक बार खिलता है इसीलिए इसका नाम नुवाराइलिया पड़ा|
१२ अक्टूबर- नुवाराइलिया नगर में प्रवेश करते ही ठंड ने हमें दबोच लिया| सुबह के साढ़े आठ बजे थे| कोहरा और बर्फ़ीली ठंडक| उफ़... गरम कपड़े तो लाये ही नहीं| होटल ‘हेवन सेवन’ पहाड़ पर था| चेक इन टाइम दोपहर १२ बजे था| हमारे पहुँचने तक रूम भी ख़ाली नहीं हुए थे, लिहाज़ा दो ढाई घंटे| ४ डिग्री तापमान में बिना गरम कपड़े के इंतज़ार में ठिठुरते रहे और गर्म चाय पी-पी कर ठिठुरन सहते रहे| आसपास का दृश्य बेहद लुभावना था| चाय बागानों का सीढ़ीदार सिलसिला... जैसे पर्वतों से चाय के पौधे धीरे-धीरे उतर रहे हों| रंग बिरंगे फूलों से लदे पौधे कायनात ने खुले हाथों लुटाए थे|
मेरी घड़ी में भी ग्यारह बजे थे और स्थानीय समय भी ग्यारह ही था| पहले श्रीलंका और भारत के समय में आधे घंटे का फ़र्क़ था पर अव दोनों का समय एक जैसा ही है| इंतज़ार की घड़ियाँ ख़त्म हुईं और मुझे और मधु को एक कमरा नसीब हुआ| गरम पानी से नहाना थकान उतारने का बेहतरीन विक़ल्प साबित हुआ| धीरे-धीरे नींद भी आने लगी| डेढ़ घंटे की नींद ने तरोताज़ा कर दिया| दोपहर डेढ़ बजे लंच के लिए तराई में उतरे जहाँ ये पर्वतीय शहर घना बसा है| कोई अच्छा रेस्तराँ नहीं दिखाई दिया| थक हार कर जिस जगह प्रवेश किया वह बहुत साधारण होटल था| दोसा, वड़ा, साँभर, इडली दक्षिण भारतीय भोजन था| मैंने दोसा मँगवाया| साँभर बिल्कुल ठंडा था जो छोटी बाल्टी में उसने लाकर दिया| चम्मच काँटा कुछ नहीं| साँभर के लिए कटोरी भी कई बार माँगने पर मिली| चम्मच नहीं देने की वजह होटल मालिक ने बताई कि चम्मच तो नॉनवेज होटलों में होती है| फिर देर तक मेरी कुर्सी से चिपका बतियाता रहा जिसकी वजह से मैं संकोचवश ठीक से खा नहीं पा रही थी|
यहाँ हिन्दी भाषा किसी को नहीं आती| तमिल और सिंहली भाषा ही बोली जाती है| संपर्क भाषा के रूप में अंग्रेज़ी ही प्रचलित है|
हम ग्रेगरी लेक के किनारे से गुज़र रहे थे| बहुत तेज़ हवा थी| सड़क और झील के बीच सात आठ फीट के घने पेड़ों का झुरमुट था| कहीं थोड़े से जल में कमलिनी खिली थी तो कहीं कुमुदनी| रवीन्द्र हमें अशोक वाटिका ले आया| मैं रोमांचित थी| देख रही हूँ त्रेता युग की अशोक वाटिका| कहते हैं रावण का महल यहाँ से चालीस किलोमीटर दूर था| जिस पर्वत से छलाँग लगाकर हनुमान सीताजी के पास अशोक वाटिका में आए थे वह पर्वत ऐसा लग रहा था जैसे हनुमानजी लेटे हों| जिस पेड़ के नीचे सीताजी बैठी थीं और जहाँ हनुमान ने उन्हें रामजी की भेजी अँगूठी दी थी अब वहाँ राम सीता लक्ष्मण का मंदिर है जो दक्षिणी स्थापत्य का कुछ-कुछ मीनाक्षी मंदिर जैसा है| पुजारी बता रहा था कि वो जो मंदिर से लगी जलधारा बह रही है वहाँ देखिए उभरी चट्टान पर हनुमानजी के पैरों के निशान जिन्हें अब पीली रेखा से दर्शनीय बना दिया गया है| चट्टान में धँसे निशान अद्भुत, रोमांचकारी थे| पुजारी से ही पता लगा कि श्रीलंका में रावण का एक भी मंदिर नहीं है वह मात्र मुखौटों में जिंदा है जो रामकथा को मंचित करते समय और लोक नृत्यों में कलाकार लगाते हैं| पूरे विश्व में केवल मानसरोवर और थाईलैंड में रावण का मंदिर है| अशोक वाटिका में बीचोंबीच मंदिर है और आसपास ऊँचे-ऊँचे घने दरख़्त... वन का आभास देते... कुछ सूखे पेड़ थे जिनकी सफ़ेद पड़ गई छाल मनमोहक लग रही थी| सीता के वास के दौरान निश्चय ही यह जगह फलों से लदे दरख़्तों और फूलों की रंग बिरंगी छटा से मनोहारी रही होगी| कहाँ अयोध्या... कहाँ श्रीलंका... सहज कल्पना असंभव है|
वापसी में रास्ता चाय बागानों से हरा-भरा बेहद खूबसूरत था| पर्वतों पर बादल उतर आए थे| हलकी से धुँध थी| जिसमें सड़क के दोनों ओर रंग बिरंगे लकड़ी, पत्थर या सीमेंट के मकान, बगीचों से गुज़रते हुए हम न्यू बाज़ार स्ट्रीट आ गये थे जो यहाँ का मुख्य बाज़ार है... तरह-तरह के फल... जैसे मैंने कंबोडिया, वियतनाम में देखे थे| सब्जियाँ... लम्बी लौकीनुमा चायनीज़ पत्ता-गोभी... ब्राउन कलर की ककड़ियाँ और किंग कोकोनट का तो क्या कहना| एक नारियल में एक डेढ़ लीटर पानी तो रहता ही है| ५० श्रीलंकन रुपयों का एक नारियल| हम लोग हर एक वस्तु के दाम को भारतीय रुपयों से आँकते बेहद खुश थे क्योंकि भारतीय एक रूपया यहाँ के दो रुपयों के बराबर जो था| नुवारा इलिया की ठिठुरती ठंड का मुकाबला करने के लिए स्वेटर की कई दुकानें देखीं... फिर लगा आज की रात ही तो रुकना है यहाँ, स्वेटर का बोझ सारे सफ़र में ढोना पड़ेगा| लिहाज़ा हमने मूँगफलियाँ ख़रीदीं और डिनर वही दोसा, मैदू वड़ा वगैरह का लेकर होटल लौटे| सुबह दस बजे कैंडी के लिए प्रस्थान था लिहाज़ा गर्म कंबल में दुबक गये... पलकों पर नींद की दस्तक थी और बाहर गला देने वाली ठंड का पहरा|
१३ अक्टूबर- सुबह ब्रेकफ़ास्ट के बाद हम कैंडी की ओर रवाना हुए| खूबसूरत नुवाराइलिया छूट रहा था| पहाड़ से वैली में उतरना बड़ा रोमांचक था| वैली में बसे छोटे-छोटे गाँव सूरज की गर्मी से अँगड़ाई लेते जाग रहे थे| कैंडी समुद्र सतह से ६०० मीटर की ऊँचाई पर स्थित है... रवीन्द्र बता रहा था... “यहाँ रेसकोर्स, विक्टोरिया पार्क, गोल्फ़ के मैदान जो संख्या में ६ हैं ३ क्रिकेट ग्राउंड हैं| दो इंटरनेशनल एयरपोर्ट हैं मार्तला और सिरिमानो भंडारनायके... महेन्द्र राज नेशनल एयरपोर्ट है|”
हम इन सभी स्थलों से गुज़र रहे थे| एयरपोर्ट को छोड़कर.....
हर जगह चाय के नयनाभिराम बाग़ान थे|
“चाय यहाँ की मुख्य खेती होगी?”
“जी मैडम, चाय, मसाले और सब्ज़ियाँ भी जो यहाँ बहुतायत से होते हैं|”
एक खूबसूरत पॉइंट पर गाड़ी रुकवाकर हमने फोटो खींचे और चढ़ाई पर ट्रैकिंग करते हुए जहाँ पहुँचे दूर-दूर तक सिर्फ चाय ही चाय के बागान जैसे हरे रंग का गुदगुदा गलीचा बिछा हो| कहते हैं यहाँ चाय और पर्वतीय स्थलों की खोज अंग्रेज़ों ने की| जबकि यहाँ के पूर्वी और पश्चिमी तटीय इलाके हरे और पीले नारियल के वृक्षों से मालामाल हैं| चाय बागानों के बीच में कई झरने चट्टानों से अलमस्त उतरते हैं झरझर करते| आगे चलकर स्ट्रॉबेरी के खेत मिले| खेत से लगी हुई स्ट्रॉबेरी शॉप जहाँ स्ट्रॉबेरी से तैयार जैम, जैली, जूस आदि मिलता है| प्रवेश में एक पोस्टर ऐसा लगा है जिसके बड़े से गोल छेद में अपना चेहरा फिट करके फोटो खिंचवाओ तो ऐसा लगता है जैसे नीली जींस और लाल चैक की बुश्शर्ट पहने बहुत विशाल स्ट्रॉबेरी लिए हम खड़े हैं| सबने मज़े-मज़े में फोटो खिंचवाई|
कोथमाले में स्थित हनुमंता मंदिर की ओर जाते हुए एक लम्बी सुरंग से गुज़रे... जब तक आँखें अँधेरे की अभ्यस्त होतीं कि सुरंग ख़त्म हो गई| देवदार, चीड़ के लम्बे दरख़्तों की घनी छाँव में से सूरज की किरणें हीरे जैसी चमक रही थीं| ठंडी हवाओं में चीड़ की खुशबू थी| हनुमंता मंदिर के लिए नंगे पाँव ८५ सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं| प्रवेश द्वार पर विशाल दरवाज़े मंदिर की भव्यता का संकेत दे रहे थे| ब्राउन दरवाज़े पर छोटी छोटी पीतल की घंटियाँ थीं| दरवाज़े के बायीं ओर राम सीता लक्ष्मण की मूर्तियाँ तथा दाहिनी ओर शिवजी की मूर्ति और मूर्ति के साथ ही शिवलिंग भी था| सफ़ेद संगमरमर के मंदिर में| ८ फीट ऊँची काले ग्रेनाइट से बनी हनुमानजी की मूर्ति थी| लंका में प्रवेश के दौरान इस पर्वत पर हनुमानजी ने विश्राम किया है| अब यहाँ उनका मंदिर है| मंदिर के सामने डैम है| डैम का हरा, नीला, सफ़ेद पानी स्थिर सा लगा... जल सतह या तो हवा से झिलमिलाती या परिंदों के पंखों से| डैम के उस तरफ़ वही पर्वत था जो अशोक वाटिका से दिखा था| लेटे हुए हनुमानजी जैसी आकृति वाला| मैं डैम की ओर जाने वाली सीढ़ियों से उतरकर लचीले लॉन पर चलती रही| क्यारियों में रंग-बिरंगे फूल खिले थे| पूरा मंज़र किसी चित्रकार द्वारा बनाए लैंडस्केप जैसा था|
चाय बागानों को देख-देख कर मन में सवाल उठता रहा था कि चाय तैयार कैसे होती है| सो हम चाय फैक्टरी देखने आये| सफ़ेद और ग्रे कलर की विशाल टी फैक्टरी में सबसे पहले ग्राहकों, पर्यटकों का स्वागत चाय से किया जाता है| हमें भी बिना दूध की चाय पेश की गई| हॉल विदेशी सैलानियों से भरा था| काँच के पार्टीशन के उस पार का व्यू बेहद खूबसूरत था| चाय के शोरूम में तरह-तरह की चाय ब्लैक टी, ग्रीन टी, सिल्वर टी, नार्मल टी| कारखाने में तरह-तरह की मशीनें... हर मशीन का अलग काम| चाय की पत्ती को हर मशीन से गुज़रना होता है| टूटना, पिसना, छनना होता है तब जाकर बनती है चाय| एक ही पौधे से पाँच पत्तियों सहित फुनगी तोड़ी जाती है| वो भी सूरज ढलने के पहले वरना पत्तियाँ मुरझा जाती हैं| सबसे ऊपर की पत्ती से सिल्वर टी, बीच की दो पत्तियों से ग्रीन टी और आख़िरी की दो पत्तियों से ब्लैक और नॉर्मल टी बनती है| वेनीला चाय वेनीला की खुशबू लेकर ही पैदा होती है| यहाँ से तैयार चाय का २५ प्रतिशत देश में रखा जाता है बाकी ७५ प्रतिशत विश्व के विभिन्न देशों में निर्यात किया जाता है|
दोपहर ढल रही थी| आसमान में कहीं-कहीं बादल छाए थे| वैसे तो पूरे साल कभी भी बारिश होने लगती है लेकिन अक्टूबर से दिसंबर तीन महीने यहाँ वर्षा ऋतु के माने जाते हैं| बस, अब हम कैंडी में अपने ठिकाने दि स्विस रेसिडेंस पहुँचने ही वाले थे| कैंडी श्रीलंका का दूसरा बड़ा शहर माना जाता है| गेलोलिया मार्केट, १२५ साल पुराना किंग्सवुड कॉलेज और हरे-भरे दरख़्तों से घिरी यह खूबसूरत सड़क पेरादेनिया रोड कहलाती है| जैकलिन फर्नांडिस यहीं की है... वो मिस श्रीलंका चुनी गई थी और भारत में सलमान ख़ान की फिल्म किक की हीरोइन भी है|
श्रीराम होटल में डिनर के बाद दि स्विस रेसिडेंस होटल आ गये जहाँ हमारा स्वागत ताज़े अनन्नास के जूस और आई बो वन यानी नमस्ते कहकर किया गया| आई बो वन का शाब्दिक अर्थ है आयुष्मान भव यानी छोटे बड़े सबसे आयुष्मान भव का आशीर्वाद मिला|
१४ अक्टूबर- आज हम कैंडी के सिटी टूर पर हैं रवीन्द्र ने बताया कि सबसे पहले हम पेरादेनिया रॉयल बोटेनिकल गार्डन चल रहे हैं जिसकी स्थापना १३७१ में विक्रमाबाहु तृतीय ने की थी| बाद में राजा कीर्तिश्री राजसिंघे ने १७८० में इसे रॉयल बॉटेनिकल गार्डन में परिवर्तित कर दिया|
प्रवेश टिकट लेने के बाद मेरी नज़र प्रवेश द्वार पर टिक गई, जैसे बसंत ऋतु आमंत्रण दे रही हो| हरीतिमा उमड़ी पड़ रही थी| प्रवेश द्वार पर लगी बेहतरीन पेंटिंग मेरियन नॉर्थ नाम के विक्टोरियन ट्रैव्हलर ने १८७६ में बनाई थी| चूँकि उद्यान तीन सौ एकड़ एरिया में फैला है अतः हमें उद्यान में चलने वाली चारों तरफ़ से खुली विशेष गाड़ी लेनी पड़ी| जिसका किराया एक हज़ार श्रीलंकन रुपए था और जो एक घंटे तक हमें उद्यान की सैर कराएगी| गाड़ी सबसे पहले ऑर्किड हाउस में रुकी जहाँ ऑर्किड फूलों का खूबसूरत कलेक्शन था| इस तरह हमने पाम एवन्यू, लॉन, डबल कोकोनट ट्री, फ्लॉवर गार्डन, फर्नरी, कैक्टस हाउस, बम्बू कलेक्शन, फ्लावरिंग ट्रीस आदि तीस पॉइंट देखे| मुझे सबसे ज़्यादा मज़ा स्पाइस गार्डन में आया लौंग, इलायची, दालचीनी, तेजपात, अदरक, हल्दी, धनिया, जायफल, काली बड़ी इलायची, काली मिर्च, सौंफ, जीरा सहित मिर्च की कई किस्में यानी कि सारे मसालों की और पीपरमिंट तक के पेड़ पौधे वहाँ लगे थे| पान की लतर, सुपारी के ऊँचे-ऊँचे पेड़, कत्था... मज़ा आ गया| मैं तो जहाँ तक हाथ पहुँचता एक-एक पत्ती तोड़ती| पत्ती को सूँघना ही अपने आप में रोमांचक था| पीपरमिंट की पत्ती सूँघी तो नाक झनझना गई| एक झील भी देखी जो श्रीलंका के नक्शे की आकृति की थी उसमें नीली कमलिनी खिली थी जो यहाँ का राष्ट्रीय पुष्प है|
उद्यान के तीन और महावेली नदी बहती है जो उद्यान को हरा-भरा रखती है| चौथी और पेरादेनिया पुल है| उद्यान में शोरूम भी है जहाँ मसाले और सोविनियर की चीज़ें बिकती हैं|
रॉयल बोटेनिकल गार्डन से हम वुड कार्विंग फैक्ट्री आये| फैक्टरी में कई प्रकार की लकड़ियों के टुकड़े देखे| मैंने पहली बार जाना कि खारूद वुड और कोकोनट वुड से भी फर्नीचर से बनाया जाता है| डिमाँस्ट्रेशन भी देखा... शोरूम तरह-तरह के फर्नीचर से भरा था| अगर पसंद आता है तो वे उसका पार्सल आपके घर तक पहुँचा देते हैं चाहे आप विश्व के किसी भी कोने में बसे हों|
वैसे तो जेम्स फैक्टरी मैंने अन्य देशों में भी देखी थी पर ग्रुप के अन्य लोगों को देखना था इसलिए आना पड़ा| पहले हमें दस मिनट की एक फिल्म दिखाई गई जिसमें हीरा प्राप्ति के कठिन प्रोसेज़ का वर्णन था| शायद इसीलिए हीरा इतना महँगा होता है| शोरूम में सारे रत्नों का कलेक्शन था| सभी बेतहाशा महँगे| रत्नों के मामले में मुझे भारत अधिक रीज़नेबल लगा|
भूख लग आई थी सो बालाजी दोसाई रेस्टॉरेंट में भारतीय थाली मँगवाई| लंच के बाद हमने कैंडी शहर के बीचोंबीच छलकती झील का चक्कर लगाया फिर घुमावदार रास्ते से ऊपर अपर लेक का व्यू देखने गये| गाड़ी से उतरकर देर तक रेलिंग से टिके तलहटी में झील को देखते रहे| झील में एक फाउंटेन भी है, झील के किनारे काले बगुले बैठे थे| आसपास फुटपाथ जिसमें पर्यटक टहल रहे थे| रेलिंग के सामने शांति का संदेश देती बुद्ध की विशाल मूर्ति है|
कैंडी को जिस तरह से यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्ज़ा दिया है उसमें सबसे महत्त्वपूर्ण वजह है दलदमलिगव नामक मन्दिर जहाँ बुद्ध का दाँत सुरक्षित रखा है| मैं जिस उत्कंठा से इस मंदिर को देखना चाहती थी वह था बुद्ध का दाँत लेकिन हमें दाँत के दर्शन नहीं मिले| प्रवेश करते ही लगा जैसे राजमहल में प्रवेश कर रहे हों| सचमुच वो राजमहल ही था| राजाओं के शासनकाल में कैंडी उनकी राजधानी थी| यह महल राजा विमल सत्यधर्म का था| महल की छत पर ऊँची-ऊँची बुर्जियाँ और झरोखे थे जहाँ खड़े होकर राजा प्रजा को दर्शन देते थे| सामने विशाल परकोटे युक्त प्रांगण में प्रजा खड़ी रहती थी| चौथी शताब्दी में जिस समय राजा गुहाशिव का शासन था उनके आदेश पर राजकुमारी हेमा और उनके पति दंथा भारत के कलिंग से बुद्ध का दाँत स्मगल करके लाये थे| चूँकि यहाँ बौद्ध धर्म था अतः यह दाँत धर्म का प्रतीक मानकर पूजा जाने लगा| मंदिर में जहाँ दाँत रखा गया है उसके पट बंद थे और उस पर कत्थई मख़मली परदा था| बुद्ध पूर्णिमा के दिन पट खुलते हैं और दाँत दर्शन के लिए रखा जाता है| मंदिर के सामने फूल इस तरह चढ़ाए जाते हैं जैसे गलीचा बिछा हो| फूल एक के ऊपर एक नहीं चढ़ाए जाते| हर एक फूल सजाकर संगमरमर की रेलिंग पर रखा जाता है| अगरबत्तियाँ जलाई जाती हैं और लोग फर्श पर मेडिटेशन के लिए बैठते हैं| शांति का साम्राज्य हर जगह... हिदायत यह भी कि बुद्ध की प्रतिमा की ओर पीठ करके फोटो नहीं खिंचवाना है|
दर्शन के बाद हम सब शाम पाँच बजे होने वाले कैंडी कल्चरल प्रोग्राम की प्रतीक्षा के लिए बरगद की छाँव में बने चबूतरे पर आ बैठे| परकोटे से उतरो तो झील थी और बायीं ओर कतार से दीप जल रहे थे| ढेरों दीप... मैंने और मिसेज़ व्यास ने भी दीप जलाए| दाहिनी ओर हाथी का मंदिर था| मानो सजीव हो... उसकी खाल में भूसा भरकर उसे सजीव बना दिया गया था| राजा विमल सत्यधर्म इस हाथी को बहुत मानते थे| इस हाथी ने संकट के समय उनकी रक्षा की थी|
शो का समय हो गया था इसलिए हम मंदिर से चल पड़े| हॉल में ढेरों कुर्सियाँ...उतने ही देशी विदेशी दर्शक| डेढ़ घंटे के इस कल्चरल शो में श्रीलंका की संस्कृति, धर्म नृत्य के माध्यम से दिखाई जाती है| मृदंग, ढोल वगैरह नृत्य को ताल देते हैं| मुखौटे लगाकर भी नृत्य हुए| नृत्य के दौरान ही गरज घुमड़कर बारिश होने लगी| खूब पानी बरसा और बिजली कड़की| विदेश हो या देश यात्रा पर निकलते समय मेरे सामान में छाता ज़रूर होता है| पर बाकियों के पास नहीं था| रवीन्द्र की गाड़ी में दो छाते थे| हर एक छाते में दो-दो के हिसाब से हम आधे भीगते गाड़ी तक आए| अब कहीं रूककर डिनर लेने का मूड नहीं था इसलिए रास्ते से दही ख़रीदा और होटल लौटकर भारत से लाए थेपले दही के साथ खाकर देर तक गपशप करते रहे| बारिश लगातार हो रही थी|
१५ अक्टूबर- १५ और १६ अक्टूबर कोलंबो के श्री जयवर्दनपुरे विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय शोध कॉन्फ्रेंस है जिसमें पाँच देशों सहित भारत से हम छै: भी भाग लेंगे| लिहाज़ा दो दिन कोलंबो में ही रहना है| विश्व विद्यालय की ओर से हमारे रहने का इंतज़ाम एक थ्री बेडरूम हॉल किचन अपार्टमेंट में किया गया है जो न्यू एरिया नोवागोडा में विश्वविद्यालय से दस मिनट के वॉकिंग डिस्टेंस पे है|
कैंडी से कोलंबो जाते हुए रास्ते में पड़ने वाले दर्शनीय स्थलों को देखना था| रवीन्द्र ने कोलंबो का अर्थ आम का पत्ता बताया यह भी कि यहाँ कॉमनवेल्थ पार्टी है| अंग्रेज़ों के शासन से ४ फरवरी १९४८ को मुक्त होने के बाद भी श्रीलंका ने कॉमनवेल्थ यानी इंग्लैंड की रानी की साझा सम्पत्ति बने रहना स्वीकार कर लिया था| कॉमनवेल्थ के कारण ही इंग्लैंड की रानी जब यहाँ आती हैं तो उन्हें वीज़ा की ज़रुरत नहीं पड़ती|
सबसे पहले हमने हर्बल स्पाइस गार्डन देखा| तमाम जड़ी बूटियों और मसालों के पेड़ पौधे तो बोटेनिकल गार्डन में देख ही चुके थे| यहाँ कॉफ़ी, कोको, वेनीला, लाल केले के पेड़ भी देखे| हर एक पेड़ के पास रूककर गाइड उस पेड़ की उपयोगिता और उससे तैयार तेल, क्रीम आदि हमें दिखा रहा था| यहाँ भी डिपार्टमेंटल स्टोर है जहाँ से जड़ी बूटियों से तैयार दवाएँ, कॉस्मेटिक्स, शैम्पू, तेल आदि ख़रीदा जा सकता है| थोड़ी चढ़ाई पर मैं शैलजा के साथ वेनीला और कोको के पेड़ देखने गई जहाँ झोपड़ीनुमा जगह में एक तमिल व्यक्ति ने हमें धनिया, सौंफ़, ज़ीरा, काली मिर्च आदि को सिल पर पीसकर खुशबूदार पाउडर बनाकर सुँघाया, चखाया| बेहतरीन... लेकिन स्वाद चिरपिरा था| इसी तरह अन्य चीज़ों का डिमाँस्ट्रेशन भी नीचे उतराई में बाँस से बने कमरे में दिखाया गया और ब्रोशर बांटे गये| यह सरकारी उद्यम था|
वहाँ से निकलकर हम पिन्नावल एलीफेंट आर्फेनेज़ गये| रास्ते में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर मसालों और जड़ी बूटियों के उद्यान थे| एलीफेंट आर्फेनेज़ की स्थापना १९७९ में हाथियों की तीमारदारी के लिए की गई| यहाँ के जंगलों में हाथी बहुतायत से पाए जाते हैं| जब वे बीमार पड़ते हैं तो उन्हें यहाँ लाया जाता है| उनका नामकरण भी होता है| हमने जिन दो बीमार हाथियों से मुलाक़ात की उनके नाम सुकुमाली और विजया थे| चिलचिलाती धूप में हम जिन हाथियों को देखने गये संख्या में लगभग पच्चीस, वे सब अंधे थे| वहाँ से हम रिवर साइड गये... महाओय नदी में हाथी स्नान कर रहे थे| महावत भोंपू बजाकर सबको किनारे कर रहा था| नहाए हुए हाथियों का झुंड वापिस अपने खेमे में चला गया, फिर दूसरा दल नहाने आया, अद्भुत मंज़र था| इतने सारे हाथी एक साथ देखना रोमांचक था... सभी पर्यटकों ने उनकी विडियो फिल्म उतारी, मधु ने भी| सड़क के दोनों ओर चमड़े के पर्स आदि बिक रहे थे| मैंने एक दुकानदार से पूछा- “क्या ये हाथी के चमड़े से तैयार किये गये हैं?” उसने कानों पर हाथ लगाया-“तौबा, हाथी हमारी धरोहर हैं| सामने ही पेपर मेकिंग फैक्टरी थी| जहाँ स्त्रियाँ कार्यरत थीं| उन्होंने हमें जंगली घास से कैसे पेपर बनता है पूरी प्रक्रिया डिमाँस्ट्रेशन के द्वारा बताई| शो रूम में पेपर से बनी सुंदर वस्तुएँ विक्रय के लिए रखी थीं|
रबर के जंगलों के बीच बनी सड़क से हम कोलंबो की ओर जा रहे थे| अभी डेढ़ घंटे की दूरी शेष थी| व्यासजी रवीन्द्र से जानकारी इकट्ठी कर रहे थे| यहाँ भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग जम कर जड़े जमाए है| भारत के मुकाबले मारुति, नैनो कार, अशोक लीजेण्ड, बजाज, महिन्द्रा, स्कूटी आदि के दाम यहाँ काफी अधिक हैं क्योंकि यहाँ पहुँचते तक उसमें टैक्स भी जुड़ जाता है|
“रवीन्द्रजी यहाँ का मुख्य भोजन क्या है?”
“चावल और मछली मैडम"
ताज्जुब है... जिन अठारह देशों में (श्रीलंका, भारत, कोरिया, हाँगकाँग, वियतनाम, इंडोनेशिया, जापान, चीन, नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, मलेशिया, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, लाओत, कंबोडिया) बौद्ध धर्म प्रचलित है सब मांसाहारी देश हैं| प्राणियों पर दया करने वाले गौतम बुद्ध के अनुयायी माँसाहारी? मैंने पढ़ा है कि गौतम बुद्ध ने भी अपने शिष्यों के द्वारा प्रेम पूर्वक परोसे जाने पर माँसाहार किया है| यहाँ ६० प्रतिशत सिंहली हैं जो बौद्ध धर्म को मानते हैं और तीस प्रतिशत तमिल जो राम के उपासक हैं... बाकी दस प्रतिशत मुस्लिम, ईसाई आदि धर्मों के लोग हैं| रास्ते में कई जगह दीप मालिकाएँ और बिजली के रंग बिरंगे जलते-बुझते बल्बों को देख पता चला है कि अभी सिंहलियों का त्यौहार चल रहा है| सिंहली बुद्ध पूर्णिमा से ११ दिन का उत्सव मनाते हैं| मैंने स्त्रियों के अधिकारों शोषण हिंसा आदि के बारे में जानना चाहा, रवीन्द्र ने बताया स्त्रियों को पूर्ण स्वतंत्रता है, उन्हें कानूनी अधिकार भी दिए गए हैं लेकिन दहेज़ प्रथा ज़ोरों पर है| नगद राशि लाखों में, सोना, चाँदी दहेज़ में देना आवश्यक है| १२वीं तक शिक्षा फ्री है... लड़के, लड़की दोनों की| स्त्रियों के संग कोई क्राइम नहीं होता| रेप नाम से ही चौंक पड़ा था रवीन्द्र| वह इस नाम से परिचित नहीं था| रेप, घरेलू हिंसा, शोषण, प्रताड़ना से मुक्त हैं यहाँ की स्त्रियाँ| शिक्षा की सुविधा होने के कारण स्त्रियाँ उच्च पदों पर कार्यरत हैं| यहाँ सड़क दुर्घटनाएँ नहीं के बराबर हैं| वाहन कोई तेज़ चलाता नहीं, ट्रैफ़िक पूरे कंट्रोल में है| पदयात्रियों को ख़ास महत्व दिया जाता है| सिग्नल लाल हो या हरा अगर पदयात्री रास्ता पार कर रहा है तो पूरा ट्रैफ़िक रुक जाता है| थोड़ी-थोड़ी दूरी पर ज़ेबरा क्रॉसिंग भी है|
कोलंबो स्थित नोवागोडा आ गया था| अपने अपार्टमेंट तक पहुँचते पहुँचते बारिश ने ज़ोर पकड़ लिया| बिजली कड़कने लगी| विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रेशन के बाद अपार्टमेंट में ही डिनर मँगवा लिया था| किचन उपलब्ध था अतः चाय के दौर चले और ढेरों बातें| अपार्टमेंट का केयर टेकर सुंदरलिंगम था| तमिल, बेहद हँसमुख, हम उसे अईया पुकारने लगे जिसका अर्थ था भाई| कमर के पास झालरयुक्त श्रीलंकन साड़ी मेरी जिज्ञासा की वजह थी| सुंदरलिंगम ने बताया-“वैसी साड़ी को ओसरी साड़ी कहते हैं| पेटा मार्केट में मिल जाएगी| आपको लेना है?”
और हँसने लगा| बारिश थम चुकी थी और मेरी पलकें नींद से बोझिल थीं|
१६ अक्टूबर- विश्वविद्यालय में प्रेज़ेंटेशन चार बजे दोपहर को था इसलिए हम कोलंबो सिटी टूर और शौपिंग के लिए सुबह नौ बजे निकल गये|
कल की तेज़ बारिश का कहीं नामोनिशान न था| आसमान साफ़ था और धूप की तेज़ी अभी से महसूस हो रही थी| अजीब मौसम है यहाँ का, शाम चार बजे से बादल बरसने लगते हैं और सुबह से ही धूप तेज़ हो जाती है| बारिश की ठंडक नाम को नहीं|
सामने स्वच्छ पानी की लहर बह रही थी| उस पर पुल था जिस पर से हमारी गाड़ी गुज़र रही थी| कोलंबो श्रीलंका का सबसे बड़ा शहर है| प्रेसिडेंट हाउस जहाँ दो सैनिक बंदूक लिए आवाजाही पर नज़र रखे थे| सीलोन रेडियो स्टेशन की पुरानी सी बिल्डिंग... मेरे स्कूल के दिनों में हम पर रेडियो सीलोन से प्रसारित बिनाका गीतमाला, अमीन सयानी और तबस्सुम की आवाज़ का जादू छाया था| तब श्रीलंका का नाम सीलोन हुआ करता था| ताज समुद्र होटल बिल्कुल मुम्बई के ताजमहल होटल की तर्ज़ पर बना दिखाई दे रहा था| पिंक हार्बर, आई टी सी टोबेको कंपनी, ओल्ड पार्लियामेंट और टकसाल| सराउंडिंग में रंग बिरंगे झंडे फ़हरा रहे थे| वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, पुर्तगीज़ स्थापत्य का सीलोन होटल, कृश स्क्वेयर, श्रीलंका टेलिकॉम की नीले रंग की बिल्डिंग, डच स्थापत्य की ऑफ व्हाइट बिल्डिंग, शिप यार्ड , आर्मी हेड क्वार्टर्स, बेरे नामक झील से सटा बौद्ध मंदिर था जो काले टाइल्स का था| उसके तीन तरफ़ की दीवारों पर हरे रंग की ढेर सारी बुद्ध प्रतिमाएँ कतारबद्ध थीं| झील के बीच में सफ़ेद पत्थर से बना विशाल बतख़ था| महादेवी पार्क को लवर्स पार्क भी कहते हैं| पार्क में घास का लम्बा चौड़ा मैदान था| बैंच एक भी नहीं थी| ऊँचे-ऊँचे दरख़्तों के नीचे प्रेमी युगल अपने में खोये बैठे थे| उसी के आगे चिल्ड्रन पार्क था| फिर टेनिस कोर्ट| इस कोर्ट में २५०० श्रीलंकन रुपयों में एक घंटे टेनिस खेला जा सकता है| आगे नाट्य थियेटर था| यहाँ रंगमंच को नेलूमपुकुनल कहते हैं| इंडिपेंडेंस हॉल बहुत अधिक भव्य था| ब्राउन पत्थर से बना विशाल स्थापत्य जहाँ फादर ऑफ़ नेशन सिल्वा सेना-नायक की सिलेटी रंग की विशाल मूर्ति थी| वे अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़े थे और उन्होंने सिंहल भाषा इंट्रिड्यूज़ कराई थी| मूर्ति के पीछे क्यारीनुमा जगह पर पानी था और द्वार पर दो शेर| बायीं दीवार पर सेनानायक के बारे में पत्थर पर खुदा था|
मैंने जितनी भी बिल्डिंग देखीं अधिकतर ब्राउन, हलके नीले, सिलेटी, सफ़ेद और ऑफ़ व्हाइट कलर की ही देखीं| सेंट जोसेफ़ हाईस्कूल से सफ़ेद यूनिफॉर्म पहने विद्यार्थी निकल रहे थे| लाल सफ़ेद बिल्डिंग वाला बैंक ऑफ़ सीलोन था| सड़कों पर भीड़ थी लेकिन एक अजीब सी शांति भी थी| हाई लेवल रोड और विज़रम्मा रोड से गुज़रते हुए हम किसी अच्छे रेस्तरां की तलाश में थे जहाँ लंच किया जा सके| अब दोसा इडली से जी भर गया था| रवीन्द्र ने भी गाड़ी रोक-रोक कर भारतीय रेस्तरां की पूछताछ की| अंत में ‘नमस्ते’ नाम का रेस्तरां मिला| यह पूरा भारतीय पद्धत्ति का रेस्तरां था| दीवारों पर जलमहल, आमेर का किला आदि की पेंटिंग थी| गुलाम अली की आवाज़ माहौल में तरन्नुम भर रही थी| हमने गेहूँ की रोटी, पीली दाल फ्राई, आलू गोभी, मिक्स्ड वेजिटेबल का स्वाद श्रीलंका प्रवास में पहली बार लिया|
अभी हमारे पास दो घंटे और थे, इसलिए हम पेटा मार्केट आ गये जो यहाँ का सबसे बड़ा और किफ़ायती दामों वाला मार्केट था| सबने जमकर ख़रीदी की| अपार्टमेंट लौटते हुए ३.३० हो गये| प्रेज़ेंटेशन के लिए यूनिवर्सिटी का समय हो रहा था| तैयार होने लगे तो बारिश शुरू| दो घंटे धुआँधार बारिश हुई| बिजली इतनी तेज़ कड़क रही थी जैसे कहीं गिरी हो| जैसे तैसे यूनिवर्सिटी पहुँचे| विभिन्न देशों से आए प्रतिभागियों [फीज़ी, हॉलैंड, मॉरिशस, सूरीनाम, बाली और भारत] से मुलाक़ात हुई| स्थानीय लोगों में प्रोफ़ेसर्स, लेक्चरर्स के अलावा हिन्दी डिपार्टमेंट के हेड ऑफ़ दि डिपार्टमेंट जो सिंहली थे... बेहद हँसमुख उन्होंने बताया कि यहाँ शोधछात्र सिंहली, तमिल और मुस्लिम हैं जो हिन्दी में रिसर्च कर रहे हैं| सुनकर अच्छा लगा| अलग-अलग कमरों में प्रस्तुतिकरण हो रहा था| सुनने वाले बस चार पाँच ही| इसी बीच लाइट चली गई| मोमबत्ती की रोशनी में आधा पर्चा पढ़ लिया तब इन्वर्टर ऑन हुआ| प्रस्तुतिकरण के बाद कल्चरल प्रोग्राम हुआ| नृत्य प्रस्तुतियाँ और वाद्य यंत्रों का संगीत कार्यक्रम| जैसा हमने कैंडी कल्चरल शो में देखा था वैसा ही, मुझे तो कलाकार भी वही लग रहे थे| फिर डिनर था| बहुत खूबसूरत ढंग से डिनर हॉल सजाया गया था| काले और सफ़ेद कॉम्बिनेशन का.....मद्धम रोशनी... संगीत और शाकाहारी, माँसाहारी दोनों प्रकार की डिशेज़... तरह तरह के फल|
१७ अक्टूबर- कोलंबो से अलविदा कहने का वक़्त आ गया था और हम सुबह दस बजे ब्रेकफास्ट लेकर खूबसूरत नगर बेन्टोटा की ओर रवाना हो रहे थे जो हिन्द महासागर के तट पर बसा था| सुंदरलिंगम हमें सी ऑफ़ करने आया था| उसकी हँसी हमेशा याद रहेगी|
रास्ते में वालूगंगा और माद्र नदी मिली| छोटे-छोटे गाँव... गाँवों के अजीबोग़रीब नाम जैसे आलूथगामा गाँव| मसाले और जड़ी बूटियों के उद्यान तो इफ़रात| प्रकृति जैसे अपनी रसोई लिए यहीं पड़ाव डाले है| सड़क के दोनों ओर हरे पीले नारियल के पेड़, सुपारी के पेड़, लाल, पीले और हरे केले के पौधों की गाछें...ये केला अलग अलग साइज़ और स्वाद का होता है| हमारा ध्यान चाय की ओर जाता ही नहीं था| बस नारियल पानी पीते और यहाँ के विभिन्न आकार, प्रकार, स्वाद के फल चखते| ऐसे फल न कभी देखे, न खाए थे| लंच के लिए रेस्तरां की तलाश शुरू... इस चक्कर में काफी भटके पर कहीं भारतीय शाकाहारी भोजन उपलब्ध न था| मरता क्या न करता... भूख कास कर लग आई थी| निशान्त ने एक जगह से पराँठे और सूखी दाल पैक करवाई| सोचा गाड़ी में ही खा लेते हैं पर रवीन्द्र नदी के किनारे बने एक हरे भरे दो मंज़िला रेस्तरां में ले आया| टेरेस पर कुर्सी टेबल लगे थे| सामने का व्यू सुंदर था| लंच में वेजिटेबिल फ्राइड राइस उपलब्ध था, वही मँगवाया... साथ में लाल मिर्च की कुरकुरी सी बेहद स्वादिष्ट चटनी| पराँठे, दाल भी बाँटे गये| पराँठे क्या थे मैदे की लुगदी... किसी ने नहीं खाए| तय हुआ कि डिनर के लिए सैंडविच का सामान ले लिया जाए वरना फिर खाने के लिए भटकते रहेंगे| सो ब्रेड, बटर, टमाटर, ककड़ी, प्याज़ ख़रीदे|
बेन्टोटा में हम सागर के किनारे रॉयल बीच होटल में रुके| वह होटल कम रेसॉर्ट था... भव्य, सुन्दर... यह एरिया इन्द्रुवा कहलाता है| मैं जिस कमरे में रुकी वहाँ की बाल्कनी से लगे हुए नारियल के पेड़ ही पेड़ और पेड़ों से झाँकता लहराता महासागर, साँझ ढलने पे हम समन्दर के किनारे गये| मैं मधु के साथ बीच से दूर तक टहलती रही| समन्दर का पानी नीला था... उस पर से सफ़ेद फेनयुक्त लहरें सफ़ेद रेत वाले तट पर टकरा कर फ़ैल जातीं| बेहद खूबसूरत नज़ारा था| दूर-दूर तक तट निर्जन था| थोड़ी देर में बारिश होने लगी| हम शेड में आकर कुर्सियों पर बैठ गए और कविताएँ सुनाने लगे| इस छोटी सी कवि गोष्ठी ने तरोताज़ा कर दिया| हलके-हलके भीगे कपड़ों में ठंड लगने लगी थी| कमरे में लौटकर चेंज किया और चाय पी| चाय केतली भरकर आती थी सो चाय का दौर चलता रहा| रात मेरे ही कमरे में सैंडविच की डिनर पार्टी हुई| कल सुबह एक बजे होटल से चैक आउट करना था| इसलिए सब आराम के मूड में थे| मैं मधु को बिस्तर पर लेटे-लेटे नज़्में, ग़ज़ल सुनाती रही, सुनती भी रही|
१८ अक्टूबर- सुबह-सुबह नींद खुल गई| महासागर की गर्जना के साथ पक्षियों की चहचहाहट एक अलग संगीत की रचना कर रही थी| चाय पीकर मैं मधु के साथ सागर तट पर आ गई| दूर-दूर तक कोई न था| निर्जन तट पर खड़े हम... हमारे पाँवों को लहरें भिगोती रहीं, लिपटती रहीं| पैरों के नीचे की रेत सरकती रही| एक गुदगुदा सा एहसास जैसे समन्दर का आवाहन हो... उसकी पुकार सुनकर खिंची चली आई थी और अब वह मेरे करीब था, मुझमें समाया सा| उसकी लहरें मुझे चारों ओर से घेरे थीं| बीचोंबीच मैं और चारों ओर हहराता सागर... मूँद लो आँखें/ शाम की मानिन्द/ ज़िन्दगी की चार तरफ़ें मिट गई हैं/ ओ महासागर..........
थोड़ी देर बाद हमारे दल के बाकी के लोग भी आ गये| हम स्विमिंग पूल के पास राखी लम्बी कुर्सियों पर पेड़ की छाँव में लेटे ही थे कि वहाँ की सार सम्हाल करने वाली श्रीलंकन औरत हिन्दी फिल्म का गाना गाती हमारे पास आई और हम सब देर तक तट पर नाचते रहे| उसे मेरा गाउन बहुत पसंद आया| कहने लगी अपना ये गाउन मुझे बतौर निशानी दे जाना| हम देर तक हँसते रहे| चूँकि भीग चुके थे इसलिए कमरे में आकर नहाया और ब्रेकफास्ट के लिए नीचे आ गये| तब तक व्यास जी ने नॉन वेज को वेज समझकर अपनी प्लेट में परोस लिया| मैंने बताया तो घबरा गए| मैंने उनकी धर्मरक्षा की पर उन्होंने थैंक्स तक नहीं कहा..... आश्चर्य!!
एक बजे हमें मय सामान के बेन्टोटा सिटी टूर के लिए तैयार रहना था| सबसे पहले टरटल फॉर्म म्यूज़ियम देखा| पीले नारियल के पेड़ों से घिरा म्यूज़ियम जहाँ छोटे छोटे कई वॉटर टैंक थे जिनमें विभिन्न प्रजातियों के कछुए थे| ये कछुए मछली फँसाने के जाल में फँस कर घायल हो गये थे अतः उनके इलाज के लिए उन्हें यहाँ रखा जाता है| अच्छा हो जाने पर वापिस समुद्र में छोड़ देते हैं| विश्व में सात प्रजाति के कछुए हैं जिनमें से पाँच प्रजाति के यहाँ हैं- लैथर, बैक, ग्रीन, ऑलिव, हॉक्सिबल.....इनका वजन १५० से ६०० किलो तक होता है और ये सौ साल तक जीते हैं| अंडे में से ४८ दिन में बच्चा बाहर आ जाता है| म्यूज़ियम की रेलिंग से लगा ढलवाँ सागर तट था जहाँ काली और पीली रेत थी| हलकी-हलकी बारिश शुरू हो गई थी| हम मैंग्रोव्ज़ रिवर बोट सफारी के लिए जा रहे थे जो यहाँ का ख़ास एडवेंचर है|
रास्ते में कई गाँव पड़े... एक जगह साप्ताहिक हाट भरा था जहाँ आलू, प्याज़ और मछली आदि बिक रही थी|
यहाँ की सबसे बड़ी नदी महावेली गंगा पर ही बोट सफारी करना था| नदी के दोनों ओर मैंग्रोव्ज़ का सघन वन था| सफारी के नज़दीक ही होटल था| वेलकम ड्रिंक के रूप में फ्रूट जूस पीकर और लाइफ जैकेट पहनकर हम बोट में आ बैठे| काफ़ी रोमांचक सफ़र था| नदी पर छोटे-छोटे चार पुल मिले| पुल के आते ही हमें सिर झुका लेना पड़ता वरना टकरा जाते| मैंग्रोव्ज़ लगून के भीतर जब नाव गई तो ऐसा लगा जैसे किसी गुफ़ा में प्रवेश कर रहे हों| काले पत्थर का टूटा फूटा शिवजी का मंदिर भी मिला| एक लगून के किनारे उतर कर हम ऊपर गये वहाँ दाल चीनी के पेड़ थे| एक तमिल व्यक्ति ने दाल चीनी की लकड़ी से गोल-गोल छै: सात इंच लम्बे टुकड़े चाकू से काटकर दिखाए| यहाँ इनकी बिक्री भी होती है| वहाँ से वापिस नाव में बैठकर हम बुद्धा टैंपल आए| मंदिर थोड़ा चढ़ाई पर था| द्वार से लगा हुआ तीन सौ साल पुराना बरगद का दरख़्त था| बुद्धा टैंपल में ४०० साल पुराने ग्रंथ रखे हैं जो पाली भाषा में ताड़ के पत्तों पर नारियल के तेल में लोहे के पेन को डुबोकर लिखे गए हैं| इन ग्रंथों में आयुर्वेद और जड़ी बूटियों का वर्णन है| पुजारी ने सबकी कलाई में सफ़ेद चमकीला रक्षा सूत्र बाँधा|
लौटने लगे तो तेज़ बारिश शुरू हो गई| छतरियाँ खुलीं नाव पर पाल बाँधा गया फिर भी तेज़ बौछारों ने भिगा ही डाला| तभी मेरी नज़र पानी की सतह पर तैरते मगर के बच्चे पर गई| लेकिन वह मगर नहीं था| बड़ी छिपकली थी|
सफ़ारी से लगे होटल में हमें तौलिए दिए गए| रवीन्द्र ने सबकी अटैचियाँ गाड़ी से उतारीं... भीगे कपड़े बदलकर हमने होटल में ही फ्राइड राइस और चाय का लंच लिया|
अब हम कोलंबो की ओर सीधे हवाई अड्डे की राह पर थे| हवाई अड्डे हम रात के नौ बजे पहुँच जाएँगे| तीन बजे रात की चेन्नई के लिए फ्लाइट थी और चेन्नई से मुम्बई के लिए सुबह ७.१० की|
रात के आठ बज चुके थे| भूख भी लग आई थी| कोलंबो के चेन्नई रेस्टॉरेंट में हमने पूड़ी, सब्ज़ी, उत्तपम और हापर मसाला दोसा मँगवाया| हापर दोसा जोकर की टोपीनुमा खूब कुरकुरा था| टोपी उठाने पे नीचे आलू का मसाला था| बहुत ज़ायकेदार उम्दा दोसा था|
साढ़े नौ बजे हवाई अड्डे पहुँच गये| अब रवीन्द्र और श्रीलंका से विदाई की बेला थी| इतने दिन साथ रहकर रवीन्द्र से लगाव सा हो गया| बिछुड़ते हुए सबके मन भर आए थे|
रात ३.३० पे प्लेन ने चेन्नई के लिए उड़ान भरी| विदा श्रीलंका... रावण की लंका के रूप में प्रसिद्ध अब तुम सम्पूर्ण राममयी हो|

प्रस्तुति- मनीषा जैन

लेखक परिचय --
नाम- संतोष श्रीवास्तव
जन्म- 23 नवंबर (जबलपुर)
शिक्षा- एम.ए(हिन्दी,इतिहास),  बी.एड., पत्रकारिता में बी.ए
प्रकाशित पुस्तकें- बहके बसंत तुम,बहते ग्लेशियर,प्रेम सम्बन्धों की कहानियाँ,  आसमानी आँखों का मौसम (कथा सँग्रह), मालवगढ की मालविका.दबे पाँव प्यार,टेम्स की सरगम,हवा मे बँद मुट्ठियाँ(उपन्यास),  मुझे जन्म दो माँ(स्त्री विमर्श), फागुन का मन(ललित निबँध सँग्रह),  नहीं अब और नहीं तथा बाबुल हम तोरे अँगना की चिड़िया (सँपादित सँग्रह), नीले पानियोँ की शायराना हरारत(यात्रा सँस्मरण),  विभिन्न भाषाओ में रचनाएँ अनूदित, पुस्तकों पर एम फिल तथा शाहजहाँपुर की छात्रा द्वारा पी.एच.डी, रचनाओं पर फिल्माँकन,कई पत्र -पत्रिकाओ में स्तम्भ लेखन व सामाजिक,मीडिया,महिला एवँ साहित्यिक संस्थाओं से संबद्ध।
प्रतिवर्ष हेमंत फाउँडेशन की ओर से हेमंत स्मृतिकविता सम्मान एवं विजय वर्मा कथा सम्मान का मुम्बई मे आयोजन,महिला संस्था विश्व मैत्री मंच की संस्थापक,अध्यक्ष पुरस्कार.... अठारह राष्ट्रीय एवं दो अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं पत्रकारिता पुरस्कार जिनमें महाराष्ट्र के गवर्नर के हाथों राजभवन में लाइफ टाइम अचीव्हमेंट अवार्ड तथा म.प्र. राष्ट्र भाषा प्रचार समिति द्वारा मध्य प्रदेश के गवर्नर के हाथों नारी लेखन पुरस्कार विशेष उल्लेखनीय है।
"मुझे जन्म दो माँ" पुस्तक पर राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा पी एच डी की मानद उपाधि। महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी का राज्यस्तरीय हिन्दी सेवा सम्मान। SRM यूनिवर्सिटी चैन्नई के बीए के रिफ्रेशिंग कोर्स में "आसमानी आँखो का मौसम" किताब सम्मिलित।भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय पत्रकार मित्रता संघ की ओर से 20 देशों की प्रतिनिधि के रूप मेँ यात्रा।
ग़ज़ल की दुनिया में 3 साल पहले "सदफ़" तख़ल्लुस से शुरुआत।

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