उदय चे |
आज सुबह जब मैंने रेड लाइट पर गाड़ी रोकी तो एक महिला जिसकी गोद मे बच्चा था मेरी गाड़ी के शीशे को थपथपा रहे थे। ये सीन रोज़ाना होता है, ये लोग भीख माँगकर अपना गुज़ारा करते हैं। उसने बाहर से खाली बोतल दिखाते हुए पानी का इशारा किया मुझे समझते देर नहीं लगी कि वह पानी माँग रही है। मैंने शीशा नीचे किया और मेरी गाड़ी में रखी बोतल का सारा पानी उसे दे दिया। वह महिला पानी लेकर चली गयी। लेकिन मेरे ज़ेहन में कई सवाल छोड़ गई।
इस समय कोरोना की महामारी के समय जब लोग बाहर निकलना छोड़ अपने घरों में कैद हो गए हैं, सरकार लोगों से आह्वान कर रही है कि बाहर न निकलें, बाहर निकलें तो मास्क का प्रयोग करें, बार-बार साबुन से या साफ़ पानी से हाथ धोएँ, सेनेटाइज़र का प्रयोग करें. ये सब हिदायतें सरकार किसके लिए दे रही है? प्रधानमंत्री या राज्यों के मुख्यमंत्री ये हिदायतें किसे दे रहे हैं। जिनके पास पीने का साफ़ पानी नहीं है उनके पास साबुन, मास्क, सेनेटाइज़र का प्रयोग, क्या यह एक भद्दा मजाक नहीं है?
अब तक इस वायरस की कोई कारगर दवाई विकसित करने में विश्व के चिकित्सक कामयाब नहीं हुए हैं लेकिन वे सब अपने स्तर पर ईमानदारी से कोशिशें कर रहे हैं। इससे पहले भी जब विश्व पर संकट आया तो इन्हीं चिकित्सकों ने दिन-रात मेहनत करके मानव जाति को संकट से निकाला है।
लेकिन वर्तमान में जब पूँजीवाद अपने फ़ायदे के लिए चिकित्सा प्रणाली को इस्तेमाल कर रहा है। चिकित्सक पूँजीवाद के लूट में साझेदार बने हुए हैं, उस समय चिकित्सकों द्वारा निर्मित प्रत्येक दवाई पर पूँजी अपना अधिकार रखती है। इसलिए वर्तमान में चिकित्सक आम जनता के लिए काम न करके सिर्फ़ पूँजी की लूट के लिए अपनी सेवाएँ दे रहे हैं।
लेकिन इसी लुटेरी अंधी दौड़ में क्यूबा जैसा छोटा सा समाजवादी मुल्क अपनी चिकित्सा प्रणाली को पूँजी की लूट के लिए इस्तेमाल न करके, आम जनता के लिए इस्तेमाल करके इन काली अंधेरी रातों में रोशनी का काम कर रहा है। क्यूबा की समाजवादी विचारधारा वाली सत्ता ने अपने मुल्क की आम जनता के लिए तो यह सब साबित किया ही है कि उसकी चिकित्सा लुटेरों का हथियार न बनकर आम जनता के लिए है, पूरे विश्व में जब भी मानवता को बचाने के लिए क्यूबा की ज़रूरत विश्व को महसूस हुई उसने अपना दायित्त्व मज़बूती से निभाया है।
आज जब कोरोना वायरस पूरे विश्व को अपने लपेटे में लिए हुए है, पूरी मानवजाति के लिए खतरा बना हुआ है। इस समय जब सभी मुल्कों खासकर विकसित मुल्कों को एकजुट होकर इस महामारी के खात्मे के लिए साझा प्रयास करने चाहिए। लेकिन विकसित देशों का व्यवहार ठीक इसके विपरीत काम कर रहा है। वे इस महामारी में सिर्फ़ अपना मुनाफ़ा देख रहे हैं। इस बुरे दौर में ईरान जैसे देश की मदद करने की बजाए उस पर प्रतिबंध जारी हैं। विकसित देशों के इस व्यवहार से यह साफ़ ज़ाहिर हो रहा है कि पूँजी सिर्फ़ अपना फ़ायदा देखती है, उसे मानवता और मानव जाति से कोई सरोकार नहीं है। उसी दौर में क्यूबा ने अपने सार्थक प्रयास से साबित किया है कि समाजवाद ही मानवता और मानवजाति को बचा सकता है। क्यूबा द्वारा बनाई गई इंटरफ़ेरॉन अल्फ़ा 2 बी दवा से उसने विश्व के अलग-अलग मुल्कों में हजारों लोगों की इस वायरस से जान बचाई है। क्यूबा जिसे साम्राज्यवादी मुल्क हिकारत की नजर से देखते हैं। जिस पर साम्राज्यवादी मुल्कों और उनके साझेदारों ने अमानवीय प्रतिबन्ध लगाए हुए हैं। इस समय क्यूबा ने उन सभी मुल्कों की जनता को बचाने के लिए अपने चिकित्सकों की टीमें रवाना कर दी हैं।
भारत के हालात
भारत मे कोरोना वायरस के अब तक लगभग 195 मरीज़ सामने आए हैं। 5 लोगों की इस वायरस से मौत हुई है। भारत के लुटेरे पूँजीपति भी इस नाज़ुक समय में अवाम के साथ खड़े होने की बजाए लूट में लगे हुए हैं। 5 से 6 रुपए में बिकने वाला साधारण मास्क 100 रु. में बिक रहा है। सेनेटाइज़र भी अपनी मूल कीमत से 10 गुना महँगा बेचा जा रहा है। इससे पहले भी जब भी कोई प्राकृतिक आपदा मुल्क में आई, मुल्क के सरमायेदारों ने जनता का साथ देने की बजाए उनकी जेब काटने का काम किया। 5 रुपए वाला बिस्किट 50 में बेचा जाता है। 1 रुपए की टेबलेट 100 रुपए में मिलने लगती है। प्राकतिक आपदा या कोई महामारी पूँजीपति के लिए फ़ायदे का सौदा ही साबित होती रही है।
भारत सरकार के प्रयास
कोरोना ने जैसे ही भारत में दस्तक दी, भारत सरकार ने मूलभूत ज़रूरी काम करने की बजाए सिर्फ़ औपचारिकताएँ ही निभाई हैं। उसके इन कदमों से लगता ही नहीं कि उसे मुल्क की अवाम की थोड़ी सी भी कोई चिंता है। सरकार ने सभी फ़ोनों में रिंग टोन लगा दी जिसमें ये जानकारियाँ दी जाती हैं कि कोरोना से कैसे बचा जाए। ‘मास्क लगाओ’, ‘सेनेटाइज़र से बार-बार हाथ साफ़ करो’, ‘खाँसते हुए यह करो-वह करो’।
सरकार ने जनता को यह बताया कि कोरोना को फैलने से रोकने और खुद के बचाव के लिए यह करना चाहिए। लेकिन सरकार ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जिससे आम जनता को फ़्री में मास्क और सेनेटाइज़र मिल सके। इसके विपरीत सरकार ने ब्लैक में मास्क और सेनेटाइज़र बेचने वालों पर भी कोई कार्रवाई नहीं करके पिछले दरवाज़े से ब्लैक करने वालों को छूट ही दी है। इससे तो सरकार का साफ़ संदेश है कि सरकार सिर्फ़ जानकारी देने के लिए है जिसे अपनी जान बचानी है वो खुद अपनी सुरक्षा के लिए ये सब खरीदे।
मुल्क की जनता
मुल्क की जनता जिसका बड़ा तबका गाँव में किसान-मज़दूर के तौर पर जीवन व्यतीत कर रहा है जो कड़ी मेहनत करके जीवन यापन करता है। अवाम का एक बड़ा हिस्सा महानगरों में मज़दूर के तौर पर फ़ैक्ट्रियों में, निर्माण कार्यों में, ट्रांसपोर्ट में काम करता है। निर्माण और ट्रांसपोर्ट में काम करने वाला मज़दूर जिसकी ज़िंदगी काम करेगा तो खायेगा, काम नहीं तो रोटी नहीं, वाली ज़िंदगी होती है। कोरोना वायरस से सबसे ज़्यादा यह मज़दूर प्रभावित हुआ है। महानगरों में निर्माण कार्य ठप हो चुका है। लोग घर से नहीं निकल रहे हैं जिसके कारण उबेर/ओला जिसमें लाखों लोग अपनी गाड़ियाँ लगाए हुए हैं जिसके कारण उनके घर का चूल्हा जलता है। वे भयानक मंदी की मार से गुज़र रहे हैं।
महानगर की सड़कें खाली हैं। सड़कों पर भीड़ से ही जिन्हें 2 वक्त की रोटी मिलती है अब वे कहाँ जाएँ। क्या सरकार उन लाखों मज़दूरों, ड्राइवरों, भिखारियों, रेहड़ी-पटरी वालों को कुछ आर्थिक मदद करेगी?
लेकिन सरकार बहादुर है कि अपनी आँखों पर काली पट्टी बांधकर मज़दूरों के उजड़ने का तमाशा देख रही है। वह आर्थिक मदद देना तो दूर, मास्क और सेनेटाइज़र भी फ़्री में उपलब्ध नहीं करवा रही है।
जनता को इन मुद्दों पर बात करनी चाहिए, इस बुरे दौर में सरकार से सवाल करना चाहिए। सरकार और पूँजीपतियों की लूट पर सवाल उठाना चाहिए। लेकिन भारतीय समाज जो सड़ रहा है वह अपने-अपने धर्म का चश्मा लगाकर अपने धर्म की रूढ़िवादी परम्पराओं को सर्वोच्चम साबित करने पर तुला हुआ है। वह कोरोना पर चुटकले बना रहा है, सत्ता के अतार्किक फैसलों पर तालियाँ बजा रहा है, ईरान से लाये गए भारतीय मुस्लिमों पर व्यंग्य कर रहा है।
धार्मिक संगठन
देश ही नहीं, विदेशों के धार्मिक संगठन भी इस नाज़ुक दौर में अफ़वाहें फैला रहे हैं। कोई ऊँट का पेशाब पीने से कोरोना का इलाज करने का दावा कर रहा है तो वहीं हमारे मुल्क के महान मूर्ख गाय-मूत्र पार्टी कर रहे हैं। पार्टी में गाय का मूत्र और गोबर से बने बिस्किट खिलाकर कोरोना का इलाज करने का मूर्खतापूर्ण दावा कर रहे हैं। ये मूर्ख लोग माँग कर रहे हैं कि विदेशों से आये लोगों को एयरपोर्ट पर गाय का मूत्र पिलाया जाए और गोबर से स्नान करवाया जाए। भारतीय सत्ता जो इन्हीं मूर्खो के सहारे सत्ता में आसीन हुई, वह इन मूर्खों पर कोई कार्रवाई करेगी, ऐसा सोचना ही मूर्खता है।
इस समय जब पूरा विश्व डर के साये में जी रहा है उस समय मुल्क के अवाम को अंधविश्वास और मज़ाक, धर्म-जाति व पार्टी राजनीति से ऊपर उठकर सरकार से माँग करनी चाहिए :
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सरकार जितना जल्दी हो, फ़्री में मास्क, सेनेटाइज़र, साबुन और सभी जगह साफ़ पानी उपलब्ध करवाए।
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मेहनतकश मज़दूर, ड्राइवर, रेहड़ी-पटरी, भिखारी इन सबको आर्थिक मदद की जाए ताकि वे भूख से न मरें।
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सरकार भी नियमों को ईमानदारी से लागू करवाए।
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जनता को सरकार से पूछना चाहिए कि कोरोना से लड़ने के लिए सरकार ने स्वास्थ्य के क्या इंतज़ाम किए हैं, कितने अस्थाई अस्पताल बनाये हैं या बनाने की योजना है।
(लेख में लेखक के निजी विचार हैं और इनसे संपादक अथवा मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है)
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