देवेश पथ सारिया |
प्रेम को झुर्रियां नहीं आतीं
बुढ़िया ने गोद में रखा
अपने बुड्ढे का सर
और मालिश करने लगी
सर के उस हिस्से में भी जहां से
बरसों पहले विदा ले चुके थे बाल
दोनों को याद आया
कि शैतान बच्चे टकला कहते हैं बुड्ढे को
और मन ही मन टिकोला मारना चाहते हैं
उसके गंजे सर पर
दोनों हँसे अपने बचे हुए दांत दिखाते हुए
बुढ़िया ने हँसते हुए टिकाना चाहा
(जितना वह झुक पाई)
झुर्रियों भरा अपना गाल बुड्ढे के माथे पर
बैलगाड़ी के एक बहुत पुराने पहिए ने
याददाश्त संभालते हुए गर्व से बताया -
"मैं ही लेकर आया था इनकी बारात"
वैज्ञानिकों की फुर्सत भरी बातचीत
फ्रांस के उस होटल में
कॉन्फ्रेंस डिनर से पहले
एक यूरोपियन वैज्ञानिक ने अपना फ़ोन निकाला
और मोबाइल के कवर पर
'ई बराबर
एम सी स्क्वायर' समीकरण दिखाते
हुए पूछा-
"क्या मैं नर्ड* हो गया हूँ?"
आसपास खड़े सभी वैज्ञानिकों ने
एक साथ जवाब दिया-
"बिलकुल नहीं"
सौरमंडल पर शोध करने वाले
एक युवा वैज्ञानिक ने आगे जोड़ा,
"मैं प्लूटो
की याद में टैटू बनवाने की सोच रहा हूँ"
*नर्ड- बुद्धिमान
किंतु एकनिष्ठ व्यक्ति
भेड़
भेड़ों में नहीं होता
सही नेतृत्व चुनने का शऊर
और चुने हुए ग़लत नेतृत्व को
उखाड़ फेंकने का साहस
इतिहास बताता है
इंसानों में भी ये गुण
यदा कदा ही देखे गए हैं
सर्वप्रथम,
शऊर और हिम्मत की ग्रंथियां टटोलकर
दुरूस्त करने के बाद
अनुशासन का पाठ
इंसान को
भेड़ों से सीखना चाहिए
कम्प्यूटर पर कविता
तमाम सहूलियतें हैं
कंप्यूटर पर कविता लिखने में
बच जाते हैं पेड़
नहीं पड़तीं कागज़ पर काटने की बदसूरत लकीरें
रद्दोबदल करने में नहीं पचाना पड़ता माथा
डायरी खो जाने की चिंता नहीं होती
नहीं, मुझे कोई आपत्ति नहीं
पन्ने की खुशबू ना मिल पाने से
या स्याही को कागज़ पर उतरते हुए ना देख पाने से
वैसे भी मेरी लिखावट नहीं समझ पाते
संपादक और प्रकाशक
कविता की आत्मा से जुडी हुई
एक ही बात है जो मुझे सालती है
कि उत्तरोत्तर सुधार की पूरी प्रक्रिया में
अक्सर एडिट होता जाता है पिछला ड्राफ्ट
अन्यमनस्कता में पुराने को सुरक्षित किए बिना
और कविता की गंगोत्री, पहला ड्राफ्ट
ग़ुम हो जाता है सदा के लिए
अफ़वाह
कुछ नहीं
बस एक गुब्बारा फूटा था, बड़ा-सा
आवाज़ भी हुई,
गुब्बारा फूटने जितनी ही
उसी पर खड़ा किया गया
एक दृश्य
किसी थ्रिलर फिल्म जैसा
एक पूरा हुज़ूम
क़त्ल की अफवाह के चलते
शक़ के दायरे में है
धर लिए जाएंगे
भीड़ के सब लोग
किसी लावारिस लाश की
बरामदगी दर्ज दिखा कर
एक गुब्बारे
के हत्यारे
इतने सारे
पंखे पर कहीं
चिपकी छुपी पड़ी रहेगी
फूटे हुए गुब्बारे की रबड़
कविताओं को दोहराता
तुम्हारे लिए लिखी
कविताओं को दोहराता
मैं करता रहूंगा तुमसे प्रेम
जैसे कोई करता है
रूठ कर चली गयी
अपने बच्चों की मां से
परिचय
देवेश पथ सारिया
हिन्दी कवि, अनुवादक एवं कथेतर-गद्य लेखक
साहित्यिक पत्रिकाओं
में प्रकाशन: वागर्थ,
पाखी, कथादेश, कथाक्रम, कादंबिनी,
आजकल, परिकथा, प्रगतिशील वसुधा, दोआबा,
जनपथ, समावर्तन, आधारशिला,
अक्षर पर्व, बया, बनास
जन, मंतव्य, कृति ओर, शुक्रवार
साहित्यिक वार्षिकी, ककसाड़, उम्मीद,
परिंदे, कला समय, रेतपथ,
पुष्पगंधा आदि पत्रिकाओं में मेरी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं.
समाचार पत्रों में
प्रकाशन: राजस्थान पत्रिका,
दैनिक भास्कर, दि सन्डे पोस्ट
वेब पत्रिकाओं में
प्रकाशन: सदानीरा, जानकीपुल, समकालीन जनमत, पोषम
पा, शब्दांकन, हिन्दीनामा, अथाई
सम्प्रति: ताइवान
में खगोल शास्त्र में पोस्ट डाक्टरल शोधार्थी।
मूल रूप से राजस्थान के राजगढ़ (अलवर) से सम्बन्ध।
ताइवान का पता :
देवेश पथ सारिया
पोस्ट डाक्टरल फेलो
रूम नं 522, जनरल बिल्डिंग-2
नेशनल चिंग हुआ
यूनिवर्सिटी
नं 101, सेक्शन 2, ग्वांग-फु रोड
शिन्चू, ताइवान, 30013
फ़ोन: +886978064930
ईमेल: deveshpath@gmail.com
बहुत अच्छी कवितायेँ पढ़वाने के लिये बिजूका का आभार,देवेश को शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविताएँ है देवेश की.
जवाब देंहटाएंअखिलेश