image

सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

15 मई, 2020

देवेश पथ सारिया की कविताएँ




देवेश पथ सारिया




प्रेम को झुर्रियां नहीं आतीं

बुढ़िया ने गोद में रखा
अपने बुड्ढे का सर
और मालिश करने लगी
सर के उस हिस्से में भी जहां से
बरसों पहले विदा ले चुके थे बाल

दोनों को याद आया
कि शैतान बच्चे टकला कहते हैं बुड्ढे को
और मन ही मन टिकोला मारना चाहते हैं
उसके गंजे सर पर

दोनों हँसे अपने बचे हुए दांत दिखाते हुए
बुढ़िया ने हँसते हुए टिकाना चाहा
(जितना वह झुक पाई)
झुर्रियों भरा अपना गाल बुड्ढे के माथे पर

बैलगाड़ी के एक बहुत पुराने पहिए ने
याददाश्त संभालते हुए गर्व से बताया -
"मैं ही लेकर आया था इनकी बारात"





  

वैज्ञानिकों की फुर्सत भरी बातचीत

फ्रांस के उस होटल में
कॉन्फ्रेंस डिनर से पहले
एक यूरोपियन वैज्ञानिक ने अपना फ़ोन निकाला
और मोबाइल के कवर पर
' बराबर एम सी स्क्वायर' समीकरण दिखाते हुए पूछा- 
"क्या मैं नर्ड* हो गया हूँ?"

आसपास खड़े सभी वैज्ञानिकों ने
एक साथ जवाब दिया-
"बिलकुल नहीं"

सौरमंडल पर शोध करने वाले
एक युवा वैज्ञानिक ने आगे जोड़ा,
"मैं प्लूटो की याद में टैटू बनवाने की सोच रहा हूँ"


*नर्ड- बुद्धिमान किंतु एकनिष्ठ व्यक्ति





भेड़

भेड़ों में नहीं होता
सही नेतृत्व चुनने का शऊर
और चुने हुए ग़लत नेतृत्व को
उखाड़ फेंकने का साहस

इतिहास बताता है 
इंसानों में भी ये गुण
यदा कदा ही देखे गए हैं

सर्वप्रथम,
शऊर और हिम्मत की ग्रंथियां टटोलकर
दुरूस्त करने के बाद
अनुशासन का पाठ
इंसान को
भेड़ों से सीखना चाहिए
  



कम्प्यूटर पर कविता

तमाम सहूलियतें हैं
कंप्यूटर पर कविता लिखने में
बच जाते हैं पेड़
नहीं पड़तीं कागज़ पर काटने की बदसूरत लकीरें
रद्दोबदल करने में नहीं पचाना पड़ता माथा 
डायरी खो जाने की चिंता नहीं होती

नहीं, मुझे कोई आपत्ति नहीं 
पन्ने की खुशबू ना मिल पाने से
या स्याही को कागज़ पर उतरते हुए ना देख पाने से
वैसे भी मेरी लिखावट नहीं समझ पाते 
संपादक और प्रकाशक 

कविता की आत्मा से जुडी हुई
एक ही बात है जो मुझे सालती है
कि उत्तरोत्तर सुधार की पूरी प्रक्रिया में 
अक्सर एडिट होता जाता है पिछला ड्राफ्ट
अन्यमनस्कता में पुराने को सुरक्षित किए बिना
और कविता की गंगोत्री, पहला ड्राफ्ट
ग़ुम हो जाता है सदा के लिए





अफ़वाह 

कुछ नहीं
बस एक गुब्बारा फूटा था, बड़ा-सा
आवाज़ भी हुई,
गुब्बारा फूटने जितनी ही

उसी पर खड़ा किया गया
एक दृश्य
किसी थ्रिलर फिल्म जैसा

एक पूरा हुज़ूम
क़त्ल की अफवाह के चलते
शक़ के दायरे में है
धर लिए जाएंगे
भीड़ के सब लोग
किसी लावारिस लाश की
बरामदगी दर्ज दिखा कर

एक गुब्बारे
के हत्यारे
इतने सारे

पंखे पर कहीं
चिपकी छुपी पड़ी रहेगी
फूटे हुए गुब्बारे की रबड़


  



कविताओं को दोहराता

तुम्हारे लिए लिखी
कविताओं को दोहराता
मैं करता रहूंगा तुमसे प्रेम

जैसे कोई करता है
रूठ कर चली गयी
अपने बच्चों की मां से


(सभी फ़ोटोग्राफ़ : देवेश पथ सारिया)





परिचय

देवेश पथ सारिया

हिन्दी कवि, अनुवादक एवं कथेतर-गद्य लेखक 


साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशन: वागर्थ, पाखीकथादेश, कथाक्रम, कादंबिनी, आजकलपरिकथा, प्रगतिशील वसुधा, दोआबा, जनपथ, समावर्तन, आधारशिला, अक्षर पर्व, बया, बनास जनमंतव्य, कृति ओरशुक्रवार साहित्यिक वार्षिकी, ककसाड़, उम्मीद, परिंदे, कला समय, रेतपथ, पुष्पगंधा आदि पत्रिकाओं में मेरी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं.

समाचार पत्रों में प्रकाशन: राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, दि सन्डे पोस्ट

वेब पत्रिकाओं में प्रकाशन: सदानीरा, जानकीपुल, समकालीन जनमत, पोषम पा, शब्दांकन, हिन्दीनामा, अथाई

सम्प्रतिताइवान में खगोल शास्त्र में पोस्ट डाक्टरल शोधार्थी।  मूल रूप से राजस्थान के राजगढ़ (अलवर) से सम्बन्ध। 

ताइवान का पता :
देवेश पथ सारिया
पोस्ट डाक्टरल फेलो
रूम नं 522, जनरल बिल्डिंग-2
नेशनल चिंग हुआ यूनिवर्सिटी
नं 101, सेक्शन 2, ग्वांग-फु रोड
शिन्चू, ताइवान, 30013
फ़ोन: +886978064930
ईमेल: deveshpath@gmail.com 



2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी कवितायेँ पढ़वाने के लिये बिजूका का आभार,देवेश को शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया कविताएँ है देवेश की.
    अखिलेश

    जवाब देंहटाएं