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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

04 सितंबर, 2016

शान हिल की ट्विटर कहानियाँ  ( अनुवाद: मनोज पटेल)

रचना का कोई दायरा नहीं होता। जबसे लेखन की शुरुआत हुई है,  इस क्षेत्र में भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रयोग किये जाते रहे हैं। ऐसे ही प्रयोगों का उदाहरण है आज की यह पोस्ट,  जो कुछ अलग ज़ायका लिये हुए है। इन्हें प्रसिद्ध रचनाकार शान हिल ने अपने ट्विटर अकाउंट पर साझा किया तथा अनुवाद मनोज पटेल  द्वारा किया गया है

इन्हें अतिलघुकथाओं की श्रेणी में भी रख सकते हैं अथवा 'कैप्सूल पोयम' की तर्ज़ पर 'कैप्सूल स्टोरीज़' भी कह सकते हैं।  ख़ैर...  नाम में क्या रखा है..!
कृपया हमें बताएँ कि आपको ये पोस्ट कैसी लगी।
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ट्विटर कहानियाँ :

'शान हिल की ट्विटर कहानियाँ '
( अनुवाद: मनोज पटेल)

1. कामदेव खुद मेरी मदद के लिए चले आए. उन्होंने रेना पर अपना बाण चलाया मगर निशाना थोड़ा नीचे रखा. जिंदगी भर मैं उसके पैरों से ही प्यार करता रहा. 

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2. बादशाह को खुश करने के लिए मैंने उन्हें एक और कहानी सुनाई. यह उनकी अफीम थी. वे मेरे शब्दों में रहते थे जबकि बाहर उनका परास्त साम्राज्य बिखर रहा था. 

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3. अपनी प्रेमिका के लिए मैंने ख़ास डिश पकाई थी. मगर प्लेट में मछली परोसते ही वह चीख पड़ी. जाहिर है जलपरियाँ अपनी दोस्तों को नहीं खातीं. 

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4. वे चिल्लाए, "अपनी बन्दूक नीचे फेंक दो!" ई-किताबों के हमले से लायब्रेरी को बचाने के लिए खिड़की से मैंने बुलडोजर पर गोली चलाई. 

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5. माँ ने मेरे सर से नकली बालों को नोच लिया. "तुम इनके बिना ही ठीक लगती हो," वे बोलीं. उन्हें वापस छीनकर मैं रोने लगी. डैड की यही तो एक निशानी बची थी मेरे पास. 

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6. अटारी की सफाई करते हुए मुझे हम दोनों की एक पुरानी तस्वीर मिली. उस समय हम कितने खुश दिख रहे थे. इच्छा हुई कि तुम्हें खोद निकालूँ और माफ़ी मांगूं. 

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7. दवाईयों ने बिल्कुल काम नहीं किया. अच्छे ख़याल आते ही रहे. उदासी से दूर हो जाने के कारण बतौर एक कलाकार मेरे दिन ख़त्म हो गए. मैं सामान्य लोगों में शामिल हो गया. 

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8. चीरफाड़ का वह नतीजा नहीं रहा. मैरी में लक्षण तो दिख रहे थे लेकिन उसके भीतर हमें शैतान का कोई भौतिक प्रमाण नहीं मिल पाया. 

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9. मनश्चिकित्सा तब तक ठीक काम करती दिख रही थी जब तक मुझे यह एहसास नहीं हो गया कि मैं डाक्टर नहीं मरीज हूँ. और भी बुरा तो तब हुआ जब मुझे समझ आया कि मैं तो महज कुर्सी ही था. 

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10. मार्टिन ने ट्विटर पर एक शब्द लिखने में कुछ गलती कर दी. व्याकरण के गिद्धों ने उसे घेर लिया और अपने टूटे हुए दिल से ध्यान हटाने के लिए वह भी भिड़ा रहा. 

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11.  ट्रक पलट गया और उसमें आग लग गई. मैं किसी तरह निकला और उस पर लदी चोरी की पेस्ट्रियों को जलता हुआ देखता रहा. अब मैं तुमसे अपना प्यार कैसे साबित कर पाऊँगा? 

(ब्लॉग "पढ़ते- पढ़ते" से साभार)
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प्रस्तुति-बिजूका समूह
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टिप्पणियाँ:-

सुषमा सिन्हा:-
यह पोस्ट मुझे बहुत, बहुत ही अच्छी लगी। इन छोटी-छोटी कुछ पंक्तियों में आईं पूरी कहानियों ने दिल छू लिया। पहली बार इस तरह की रचनाओं से रूबरू हुई हूँ।  धन्यवाद अनुवादक, रचना जी और बिजूका।

प्रमोद तिवारी:-
रचना जी, नमस्‍कार। शानदार पोस्ट। अत्यंत सशक्त और बहुअर्थी। शान हिल के बारे में और बताने, पढ़ाने का कष्‍ट करें। ऐसे कैप्सूल का एक डोज़ पूरे दिन तरोताजा रखता है।

आशीष मेहता:-
उम्दा पेशकश। कुछ 'कथाएँ' समझने में असमर्थ रहा। इस 'असमर्थता' को भी 'हासिल' ही पाता हूँ, बाकि कथाओं के साथ।अच्छी प्रस्तुति के लिए साधुवाद

एक आदमी और एक औरत खेल रहे हैं ........ शतरंज खेल रहे हैं। औरत केन्द्रित और ध्यानमग्न है, उसके जीतने की प्रबल संभावनाएँ हैं। आदमी अपनी मजबूती से बिसात सरका सकता है। वह असमंजस में है, ताकत का इस्तेमाल करे या प्रेम का।

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