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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

21 अप्रैल, 2019

 उपन्यास: छली गई मेनका

                                
      सामाजिक सच्चाई की साण पर ग्रामीण स्त्री

बद्री सिंह भाटिया

वर्तमान समय में शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा अंतर नहीं रह गया है। शहर प्रतिदिन गाँव में रमण करने लग गया है। यदि कुछ बदला है तो दिनचर्या। शहर के लोगों को सुबह सेवेर अपने आफिस, व्यवसाय, कारोबार आदि के सरोकारों के लिए तैयार होना होता है तो गाँव में घर, मवेशी और खेती-बाड़ी के लिए कुछ लोग ऐसे भी जिनके पास समय होता है। कटता नहीं। वे धूप के कुछ आगे निकलने अथवा खाली होने के इंतजार में घर से निकल कहीं किसी ठिये पर ताशादि की मनोइच्छा लिए निकल जाते हैं। रास्ते में या ठीहये पर लोग मिल ही जाते हैं प्रतीक्षारत कि कोई चौथा आए तो ताश की एक बाजी ही लगा ली जाए। सायं होने के समय गला तर करने के लिए योजना भी भिड़ाते हैं। शहर चूंकि गाँव में अपनी दस्तक रोज देता है, इसलिए कुछ, जिनके पास कुछ पैसे भी होते हैं औेर समय भी; वे कुछ न कुछ काम निकाल शहर की ओर भी चले जाते हैं। छोट-बड़े शहर औेर कस्बे उनकी निगाह में होते हैं। यह दैनिक उपक्रम है।



बद्री सिंह भाटिया


गाँव जबसे शहर से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ गए हैं तबसे बसों, कारों आदि की आवाजाही से एक अलग तरह की हम्म सी भी गाँव में विद्यमान रहने लगी हैं। गाँव के बहुत से क्रिया-क्लाप अब गाँव के बाहर बने बस स्टैंड की ओर उन्मुख हो गए हैं। बस स्टैंड का पीपल का पेड़ और उसका चबूतरा इसबात का साक्षी बनता रहता है।

हिमाचल प्रदेश के चर्चित कथा लेखक गंगाराम राजी ने अपने उपन्यास ‘छली गई मेनका’ में एक ऐसे ही गाँव को दर्शाया हे जो हाल ही में सड़क से जुड़ा है। जाने कितनी बसें रोज इस गाँव से होकर गुजरती हैं। गाँव के बाहर बना बस स्टैंड शहर और अन्यत्र आने-जाने वालों का केंद्र बनने के साथ कुछ लोंगों के व्यवसाय का केंद्र भी बन गया है।ं इस बस स्टैंड के पास एक चबूतरा है और उसके बीच में पीपल का पेड़ है जो हर प्रकार की गति-विधियों का गवाह है। चबूतरे पर प्राय हर समय एक चौकड़ी लोगों की बैठी होती है जो ताश खेलती रहती है।ं इनमें चार लोग तो पक्के ही हैं। चारों उमर के छः दसक के आस-पास हैं। बस स्टैंड नया बना है तो वहाँ चानू और भानू दो भाईयों ने जूते बनाने और मरम्मत करने के ठीहये स्थापित कर लिए हैं। एक नाई लालू ने भी एक पेड़ में कील गाड़ कर अपना शीशा टाँग कर सेवा देनी आरम्भ कर दी है। कहा जा सकता है कि इसके आस-पास कोई और दुकान भी होगी जो इस उपन्यास का वर्ण्य विषय नहीं बन सकी।
उपन्यास के बारे में स्वयं गंगाराम राजी कहते हैं कि वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था में भटकता आज का युवा इतना पंगू हो गया है कि उसके आगे गहन अंधेरा है और मातापिता के लिए उसे संभालना टेढी खीर हो गया है, जोखिम भरा भी।
उपन्यास की धूरी एक लड़की ममता है। ममता दसवीं कर रही है और वह गणित विषय में कुछ कमजोर है। उसके स्कूल में एन.सी.सी. आफिसर के रूप में मास्टर बलिभद्र भी हैं जो गणित या अन्य विषय में कमजोर छात्रओं को पास कराने के लिए मशहूर है। यह अलग बात है कि वह उनसे इसके लिए हल्की जिस्मानी फीस भी ले लेता है। अपनी इस विशेषता के लिए वह स्कूल में चर्चित है। यह भी कह सकते हैं कि बदनाम है। उससे खार खाने वाले अध्यापक इस उम्मीद में रहते हैं कि वह कोई गलती करे औेर वे उसे फसाएं। ममता गणित में कमजोर हैं। पास होना जरूरी है। अपनी चिंता सहेलियों के पास व्यक्त करती है तो उसकी कुछ सहेलियाँ उसे प्रेरित करती हैं कि वह मास्टर बलिभद्र से सहायता माँगे। काफी सोच के बाद वह ऐसा करती है और उसके कमरे में जाकर आग्रह करती है। वहाँ वही होता है जो प्रचारित है। वह किसी तरह कमरे से निकलती है कि उसे फिट पड़ जाता है।ं मास्टर घबरा जाता है मगर लड़की के होश आने पर तब वह भीतरी हलचल के बारे नहीं बताती तो बलिभद्र आश्वासत हो जाता है।
ममता गाँव की कुछ सहेलियों के साथ दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लेने की सोचती हैं। इस प्रक्रिया में उसे गाँव में रहने वाला एक लालचंद नाम धावक मिलता है जो निकट शहर में अस्थाई रूप से कोच का काम भी करता है। ममता के साथ उसकी एक और मित्र भी होती है। वह उन्हें प्रेरित करता है और धावक के नियमों से अवगत करा उन्हें प्रशिक्षण देने की बात करता है। देता भी है। फिर उन्हें ग्रामीण टूर्नामेंट में बिलासपुर भी ले जाता है। वहाँ वे पहले ही राउंड में हार जाती हैं मगर खेल स्पर्द्धाओं को देखने के लिए रुक जाती हैं। यहीं उनका साक्षात्कार एक विधायक के लड़के मोहर सिंह से हो जाता है। मोहर सिंह कार लेकर घूमता है। उनके समीप भी आता है और अपने साथियों के साथ उन्हें सैर करवाता है। कुछ अल्हड़ ग्रामीण लड़कियाँ और शहरी लड़के जब मिलते हैं और उनके पास खाली समय हो तो कुछ अनैतिक हरकतें होना स्वभाविक है जिनसे ममता और उसकी दो ेसहेलियां भी गुजरीं। इन सहेलियों का बाद में एकाध बार ही जिक्र आया है। ममता के जीवन के अगले अनेक पहलु उपन्यास में वर्णित है। उसकी महŸवाकांक्षा। लालचंद की खोज में वह एक दिन शहर चली जाती है। खेल अधिकारी का दफ्तर खाली देख वह एक अन्य कमरे की ओर बढ़ती है तो खेल अधिकारी से सामना होता है। अकेली ममता को चाय के ऑफर के बाद फिर वह अधिकारी के बलात्कार का शिकार हो जाती है।ं वह चाहती है कि शिकायत करें मगर नहीं करती।ं चुप लौट जाती है। ममता अपने लिए समाज में एक जगह बनाने के चक्कर में उसी बड़े गाँव की एक रानी नामक बहू के पास चली जाती है। वहाँ उसे फिर मास्टर बलिभद्र मिल जाता है जो रानी के साथ अनैतिक कर्म में संलिप्त है। दोनों राजदार होने से मर्दों से बदला लेने की सोचती है। इसमें ममता फेसबुक चैटिंग का सहारा लेती है। अपनी सुदरता को दर्शाती है और सिसोदिया नामक एक ग्वालियर के युवक को अपने जाल में फंसा देती हैं। वह महसूस करती है कि वह इंद्रलोक की एक अप्सरा सी है जो विश्वमित्र की तपस्या को भी भंग कर देती है। उसके इस मेनका रूप को एक झटका तब लगा जब वह फेसबुक मित्र सिसोदिया को लूटने के विचार से चण्डीगढ़ में अवस्थित एक पांच सितार होटल में मिलती है। सिसोदिया उसकी सुंदरता से प्रभावित होता है। उसे पाना चाहता है। ममता भी उसकी अमीरी से प्रभावित हो उसे पाने का विचार बना लेती है। सोचती है कहाँ वह गांव की मध्यम दर्जे की लड़की और कहां यह अमीर। वे ेचण्डीगढ़ में घूमते हैं। एक दूसरे को समझते हैं। सिसोदिया उसे कीमती उपहार देता है जिनसे वह आभार के बोझ तले दब जाती है। इतने के बाद फिर देह की माँग सामान्य व्यवहार की एक अहम हिस्सा बनता है परंतु ममता शादी से पहले उसके आगे समर्पण करने से मुकर जाती है। यह यह कुछ अटपटा सा भी लगता है कि सिसोदिया भी उसकी इस बात से सहमत हो जाता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो ऐसी परिस्थितियों में कोई भी युवती जिस्म को इतना मूल्यवान नहीं समझती और ऐसे फेसबुकिया मित्र तो ये सब करते ही इसलिए है कि जिस्म मिल और बस।

बात नहीं बनती तो सिसोदिया अपने परिवार को शामिल करने से झिझक बताता है कि इतने दूर से तो मुश्किल है। वह ऐसे ही शादी करना चाहता है। ममता अपनी भाभी और सहेली रानी को बुलाती है।ं चण्डी मंदिर में शादी हो जाती है। पंद्रह दिन तक वे खूब मौज करते हैं। वह सिसोदिया के साथ ग्वालियर ससुराल में जाने से पहले अपने गाँव जाना चाहती है। उसके इस आग्रह को वह मान लेता है और एक दिन उसे सोई छोड़े एक कागज लिख कहीं चले जाता है कि ममता यह खेल यहीं समाप्त। वह सिसोदिया नहीं है। उसकी ज्वेलरी भी नकली है। वह अपने गाँव सुकेत में लौट जाए। ममता को लगा वह जिसे ठल से ठगने व लूटने के लिए आई थी वह तो उसे ही छल से लूट गया। यहाँ उपन्यास का शीर्षक सार्थक भी हो जाता है।

उपन्यास में ममता के गिर्द कुछ सहयोगी कहानियाँ भी घूमती रहती हैं। जब वह बिलासपुर में खेल स्पर्द्धाओं के लिए गई थी तो विधायक पुत्र मोहर सिंह के चक्कर में आ गई थी वह उससे इतना प्रभावित हुआ कि उसे खोजने लगा था। एक बार तो रात में ही गाँव आ गया मगर उसका घर नहीं ढूँढ पाने के कारण गाँव के लोगों ंद्वारा मारकर भगा दिया जाता है। मगर वह फिर एकदिन एक मित्र के साथ फिर उसे ढूँढता आता है कि एक मोड़ पर एक ट्रक को पास देते उसकी कार दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है और वह दिवंगत हो जाता है।
ममता को आते-जाते पीपल के पेड़ के पास ताश खेलती चौकड़ी का एक वृद्ध दशरथ उसके साथ कई बार शहर तक आता जाता है। वह उसे अपने आगोश में भी लेता है।ं ममता समझती है कि बूढ़ा उसके साथ यौनिक आकर्षण के कारण जुड़ता है। इसका वह रानी से ेभी जिक्र करती है। परंतु उसकी हैरानी का पारावार नहीं रहता जब उसे महसूस होता है कि दशरथ तो उसमें अपनी भागी हुई बेटी को देखता थां। यह तब हुआ जब वह चण्डीगढ़ से हार कर जब गाँव आई तो बस स्टैंड से दशरथ उसे अपने घर ले गया और अपनी बेटी के विवाह को रखा रिड़ा और कुछ गहने उसे दे देता है। वह जान गया था कि ममता ने चण्डीगढ़ में शादी कर ली है। ममता दशरथ के इस बर्ताव से हक्की-बक्की रह गई। और रोने लगी। यहाँ कहीं रचनाकार के मन में आदर्श मूल्यों की स्थापना का विचार भी हो सकता है।

उपन्यास में बलिभद्र की हरकतों का भी जिक्र बाखूबी हुआ र्है। बलिभद्र शिक्षा तंत्र में अध्यापकों के भ्रष्टतंत्र का प्रतिनिधित्व करता है। स्कूल में वह ममता के इलावा एक और लड़की से छेड़छाड़ के कारण उसने अपनी क्लास में बता दिया। लड़कों ंने विरोध किया औेरे जब प्रिंसिपल ने पीटीआई को समस्या हल करने को कहा तो उसने अपना किस्सा बराबर करने के कलए स्कूल में छात्रों की हड़ताल करवा दी। मास्टर बलिभद्र की बदली दूरदराज क्षेत्र में हो गई। बलिभद्र जहाँ भी जाता है अपनी आदतों से बाज नहीं आता। वह लोगों को धोखा देता है। झूठे बायदे और पहुँच का जिक्र कर पैसा एेंठता है। वह इस हरकत पर पिटता भी है। उसकी हरकत और परस्त्रिगामी होने का पता ममता को एकबार फिर चलता है जब वह गाँव की सुबेदार की बहू रानी से मिलने शहर जाती है। रानी का शहर जाना शिक्षा व्यवस्था के तहत ग्रामीण स्कूलों शिक्षा की गुणवŸा पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। प्रायः लोग अच्छी औेर गुणात्मक शिक्षा देने के लिए अपने बच्चों को गाँव की अपेक्षा शहर में किसी अच्छे स्कूल में पढ़ाने की सोचने लगे है। गंगाराम राजी ने इस प्रकरण में शिक्षा व्यवस्था और तदनुरूप सोच का विवेचन सुबेदार और स्थानीय स्कूल के मुख्याध्यापक के वार्तालाप के माध्यम से किया है।
उपन्यास में देश की सीमाओं पर दैनंदिन हो रहे अतिक्रमण, घुसपैठ और मारे जा रहे सेनानियों को लेकर भी सुंबेदार के माध्यम से एक अध्याय जोड़ा गया है। सुबेदार का बेटा सीमा पर तैनात है। रानी उसकी बहू है। सरकार की सीमा सम्बंधी नीतियों पर भी टिप्पणी हुई है।







गाँव की चौपाल वही पीपल के पेड़ के पास लगती है। वे ेमात्र ताश ही नहीं खेलते बल्कि विभिन्न योजनाओं पर भी विचार-विमर्श होता है। जनहित योजनाओं की बात होती है और समस्याओं की भी। बंदरों की समस्याओं पर बात करते पता चलता है कि सरकार ने बंदर मारने की इजाजत दे दी है और यदि बंदर मारकर उसकी पूँछ वन विभाग के पास जमा कराई जाती है तो अमुक को छः सौ रूपये मिलेंगे।ं इस योजना का लाभ लालू नाई लेना चाहता है। वह पीपल के पेड़ पर मिले बंदरों में से एक को पकड़ता है। वह उसे काटता भी है मगर वह उसकी पूंछ काटने ेमें सफल होता है। जब पूँछ ले वह वन विभाग जाता है तो पता चलता है कि योजना बंद हो गई है। इसलिए वह अस्पताल जाए और वहाँ मेडिकल करा कर बंदर के काटने का प्रमाण पत्र लाये तो उसे सहायता मिल सकती है। ऐसे विकल्प और सरकारी योजनाओं की प्रभावान्विति और आम जनता तक पहुँचने के बारे में उपन्यास में जिक्र मिलता है

समसामयिक समस्याओं में लिंचिक एक अहम समस्या उभरी हैं। लोग गाय की चमड़ी उधेड़ने वाले ेलोगों पर गौ-रक्षा के नाम पर आक्रमण करने लगे हैं। गुजरात और कुछ और प्रदेशों की समस्याओं के दृष्टिगत उपन्यास के गाँव में भी एकदिन यह घटना हो ही गई। संभवतया सावित्री नामक महिला जो डायरी चला रही है की गाय मर जाती है। बस स्टैंड पर चानू और भानू दो भाई उसका चमड़ा निकालने लगते हैं तो एक छुटभैया नेता गाँव के कुछ लोगों को प्रेरित करता है और उन्हें मारने के लिए कदम उठाने को कहता है। ंमगर पहाड़ी गाँंवों में वे अपने साथियों को सहायता के लिए आवाज़ देते हैं और मुकाबला करते हैं। इस प्रकरण के माध्यम से गंगाराम राजी यह बताना चाहते हैं कि हिमाचल जैसे पहाड़ी प्रदेश में अन्य राज्यों की तरह समस्याँ उतनी ओर वैसी नहीं है। बल्कि इस घटना के माध्यम से वह दोनों भाइयों में हुई एकता को भी प्रकट करते हैं कि भाईचारे के लिए यहाँ लोग कभी भी एकता कर लेते हैं।
दयानतदारी आदमी के जीवन की एक अहम कड़ी है। अच्छाई इसका एक गहना है।ं लालचंद शहर में कोच की नौकरी भी करता हैं उसे एकदिन सड़क पार करने के लिए मधुमती नामक महिला ने रास्ता पार कराने के लिए कहा। उसे पता चलता है कि वह अंधी है। लालचंद उससे प्रायः मिलता है और उसके मन में मधुमती के लिए  दया आती है। वह उसका चेकअप करा कर उसकी आँखों का आप्रेशन करवा देता है। अपनी दोनों आंखे देकर। मगर यहाँ मधुमती को जब पता चलता है कि वह अंधा हो गया है तो उसे छोड़ देती है। इसी प्रकार एक दिन गाँव में पागल कुŸो से एक बच्चे को बचाते राधेलाल घायल हो जाता है। अस्पताल में उसे एक नर्स मिलती है जो उसमें अपने किसी अभिभावक या रिश्तेदार को पाती है। उनमें अंतःसंबंध बन जाते है। यह और भी तब पता चलता है जब वह उससे मिलने गाँव आ जाती है।
सावित्री नामक महिला प्रकरण के माध्यम से गंगाराम राजी ने इस उपन्यास में लोगों द्वारा छोड़ी गायों का जिक्र बाखूबी किया है। सावित्री नामक महिला को लगता है कि ये कैसे लोग हैं। उसे इससे पहले यह भी महसूस हुआ कि लोग अब गायों को तो पालते ेनहीं मगर मन में धार्मिक भावना रखते हैं। पंडित रोज उन्हें गाय को ेरोटी, घास देने को कहते हैं। सावित्री इस बात को समझती है और एक दिन अपनी गाय बस स्टैंड के समीप बांध देती है। घास का गटठर भी और कहती है जिस किसी ने गाय को घास डाल कर पुण्य कमाना हो तो वे उससे घास खरीद कर गाय को खिला सकता है। इसी तरह उसकी गाय भी पलने लगी और घास के साथ दूध भी बिकने लगा। उसने सड़कों पर लावारिस छोड़ी गायों को भी अपने बाड़े में बाँधना आरम्भ कर दिया। गाभिन हो वे दूध देने लगी तो उसकी डायरी चल निकली और एक दिन वह गाँव की अमीर महिला बन कर उभरी।

सावित्री के माध्यम से ग्रामीण समाज को एक संदेश भी देने की कोशिश की है कि यदि वे युक्ति से काम ले तो गरीबी की समस्या को हल किया जा सकता है। सावित्री ने ेयुक्ति लगाई। अपनी ही गाय के लिए अपना ही घास पैसे लेकर खिला दिया। दूध बेचा अलग से। लावारिस गायों को एकत्र कर पाला और उन्हें दूध देने ेयोग्य बनाया।ं यह भी कि दर्शाया कि गांवों में अब लोगों ने काम करना छोड़ दिया है। वे अब पालतु पशुओं को नहीं रखना चाहते। इसलिए समाज में एक परिवर्तन आया है। गाय के प्रकरण में उपन्यासकार ने सामान्य अंधविश्वास को भी उजागर किया है।
उपन्यास में पुलिस व्यवस्था पर भी कटाक्ष करने से गंगाराम राजी नहीं चूके हैं। दशरथ की बेटी दीपा गाँव से भाग गई। भाग गई कि कोई गैंग उसे उठाकर ले गई। ंउसके लापता होने की रिपोर्ट पुलिस में लिखाई गई मगर वे नाकाम रहे। कुछ भी पता नहीं चला न दीपा का ही कोई संदेश आया। प्रायः किसी लड़के के साथ भागी लड़कियों का पता चल ही जाता है मगर जब दीपा का पता नहीं चला तो मान लिया गया कि कोई उसे कहीं ंऐसी जगह ले गया है जहाँ से मुक्ति मुश्किल है। यह हिमाचल प्रदेश में नए औद्योगिकरण और विभिन्न जल परियोजनाओं में बाहरी व्यक्तियों की आमद से पड़ा कुप्रभाव है। कितने सीमेंट के कारखाने और जल विद्युत परियोजनाएं ंयहाँ काम कर रही है। कुल्लू घाटी तो विदेशियों की एक शरण्यस्थली ही बन गई है।

ममता को केंद्र में रखकर लिखा यह उपन्यास एक वृहद सामाजिक परिदृश्य को प्रकट करता है। इस उपन्यास के निरूपण में कुछ चूकें भी महसूस की गई है। उपन्यासकार ने ममता की शिक्षा तो बताई मगर उसके परिवार के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है। यह परिवार का वातावरण ही होता है जहाँ से एक लड़की उन्मुक्तता को प्राप्त होती है। उसकी अच्छी आर्थिक स्तिथि के बारे में भी पता चलना था। प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों को इतनी आजादी नहीं दी जाती जितनी ममता ने प्राप्त की है। उसके साथ जब पहली बार शारीरिक क्रिया-क्लाप हुआ तब वह जाल में नहीं फंसी स्वयं उस ओर लालायित हुई। प्रायः लड़कियाँ छोटी सी मुलाकात में ही यदि ऐसे संसर्ग को प्राप्त होती है तो यह अपवाद ही माना जाएगा। हाँ! उन्होंने सोशल मीडिया के प्रभावों को अच्छा स्थान दिया है।

इसी प्रकार लालचंद ने मधुमती के लिए अपनी दोनों आंखे दान में दे दी।ं यह मेडिकल सिद्धांतों के विरुद्ध है। केवल एक आँख दी जा सकती थी। यह कुछ अतिरंजित सो हो गया। उपन्यास में रानी का शहर जाना और वहाँ व्यभिचार में संलिप्त हो जाना मात्र ही रह गया जबकि वह बच्चे को पढ़ाने के लिए गई थी। यह सब एक प्रक्रिया के तहत होता है। यदि इसे हल्का डिटेल कर देते तो शायद यह उसकी जरूरत की बजाए मजबूरी बन जाती। फिर यह भी कि सेनानियों की घरवालियाँ अपनी जरूरतों के लिए ऐसे कदम भी उठा लेती हैं। इसी प्रकार ममता चंडीगढ़ में जब गई तो पांचतारा होटल में ठहरी। उस कमरे का किराया पहले स्तर पर तो उसने ही उठाया होगा। इतना मंहगा होटल। यदि यह प्रबंध भी सिसोदिया ने किया होता तो ज्यादा उपयुक्त होता।

खैर! उपन्यास या कोई भी बड़ी कृति की रचना में रचनाकार का एक निरूपण उद्देश्य होता है। इस प्रक्रिया उसका लक्ष्य अर्जुन की तरह मछली की आँख ही होती है। वह सहयोगी कथाओं और ग्रामीण संस्कृति को दर्शाते ममता के साथ हुए छल की परिणति को दर्शाने की पुरजोर कोशिश करते हैं। इसमें वे सफल भी हुए हैं।

उपन्यास की भाषा और शैली सहज और सुग्राह्य है। पठनीयता और जिज्ञासा बनी रहती है। घटनाक्रम इस तरह बुना गया है कि ममता, बलिभद्र, मोहर सिंह आदि के वर्णन विभिन्न परिच्छेदों में आए हैं और आपस में गूंथे हुए हैं।
उपन्यास के कवर पृष्ठ चार पर देवेद्र चौबे की यह टिप्पणी पठनीय है कि आर्थि्रक उदारीकरण और भूमण्डलीकरण के बाद स्त्री अब वहीं नहीं रह गई है।ं बाजार में उसका महŸव हो सकता है, या है; ऐसा उन्हें लगता है। परंतु, शायद गाँव-कस्बे की स्त्रियाँ यह नहीं समझ पाती हैं कि बाजार का शास्त्र और संरचना अलग है। समय रहते उसे समझने की जरूरत है।ं

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बद्री सिंह भाटिया जी एक समीक्षा और पढ़िए

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बद्रे सिंह भाटिया
गांव ग्याणा, डाकखाना मांगू,
वाया दाड़लाघाट, तहसील अर्की
जिला सोलन, हि प्र पिन 171102

पुस्तकः छली गई मेनका (उपन्यास
लेखकः गंगाराम राजी
प्रकाशकः नमन प्रकाशन, दिल्ली 11002
मूल्यः550.00       

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