अनुवाद: सरिता शर्मा
रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 को कोलकाता में जोर सांको भवन में हुआ था। वह
कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार थे। उनकी बाल्यकाल से कविताएं और कहानियाँ लिखने में रुचि थी। रवीन्द्रनाथ टैगोर को प्रकृति से अगाध प्रेम था। वह विश्व के एकमात्र ऐसे साहित्यकार थे जिनकी दो रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनीं। भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांग्ला' गुरुदेव की ही रचनाएं हैं। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की सबसे लोकप्रिय रचना 'गीतांजलि' है जिसके लिए उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने जलियांवाला कांड के विरोध में ब्रिटिश प्रशासन द्वारा प्रदान की गई, 'नाइट हुड' की उपाधि लौटा दी थी। उनका निधन 7 अगस्त, 1941 को कलकत्ता में हुआ था।०००
जब दो बहनों ने पानी भरना शुरू किया
जब दो बहनें पानी भरने जाती हैं, तो वे इस जगह पर पहुंच कर
मुस्कुराती हैं
उन्हें पता होगा कि जब भी वे पानी लाने जाती हैं तब वह
पेड़ों के पीछे खड़ा होता है।
जब दोनों बहनें इस जगह से गुजरती हैं तो आपस में फुसफुसाती हैं।
उन्हें इस रहस्य का अंदाजा होगा कि वे जब भी वे पानी भरने जाती हैं तो कोई पेड़ों के पीछे खड़ा होता है।
जब वे इस जगह पर पहुंचती हैं तो उनके मटके अचानक लुढ़क जाते हैं, और पानी फैल जाता है।
उन्हें पता चल गया होगा कि वे जब भी पानी भरने जाती हैं तो पेड़ों के पीछे खड़े होने वाले आदमी का दिल धड़क रहा होगा।
जब दोनों बहनें इस जगह पर आती हैं तो वे एक- दूसरी को देख कर मुस्कुराती हैं
जब भी वे पानी भरने जाती हैं तो उनके तेज गति वाले पैरों में हँसी है, जो उसके मन को भ्रमित कर देता है, जो पेड़ों के पीछे खड़ा हुआ है।
०००
मैंने इन सबसे प्यार किया
मैंने इन सबसे प्यार किया
पत्तियों पर थिरकती किरणों से
साल के उपवन में
खेलती जंगली हवाओं से
उन सबने पागल किया मुझे
इस लाल धरती के रास्ते पर
गांव के हाट में जाने वाला वह आदमी
मिट्टी पर बैठी छोटी सी लड़की
खेलती अपने खिलौनों के थाल के पास
मैं अपने सामने जो भी देखता हूँ
वे सब मेरी आँखों के लिए संगीत हैं
मेरी बस एक बांस की बांसुरी है
और मैं सिर्फ देहाती धुनें बजाता हूँ
इस धूल भरी धरती के सांसारिक बंधन ने
मेरे मन को बांध लिया है
मैंने अपना विचार उधार लिया है
उन लड़कों के विचारों से
मैंने अपनी धुनें मिलायी हैं
उन लड़कों की धुनों से
जिन्होंने पी ली है
आकाश के नीले रंग से बहती हुई रोशनी।
जब भी मैं कहीं दूर जाना चाहता हूँ
वे मुझे चारों ओर से घेर कर रोक लेते हैं
देहाती फूलों को इशारा करता गाँव का आकाश
मुझे वापस बुला लेता है
मैंने पूरा नहीं जाना है जो मेरे आसपास है
और जो भी मधुर है
इसलिए मैं नहीं भागता उसके पीछे
जो भी दूर है
इन सब छोटी- मोटी चीजों को
मुझे अभी ढूंढना है
उनके अंतिम छोर तक
मुझे अभी पूरे करने हैं अपने गीत
इन साधारण चीजों के बारे में
इसलिए मैं जहाँ भी जाता हूँ
केवल यह गाता हूँ
उन्होंने मुझे कितना खुश किया है
कैसे मुझ पर जादू चलाया है
दिन- रात मेरे पास फुर्सत नहीं है
कुछ और करने के लिए
मेरी आँखें डूब गई हैं
डूब गई हैं मेरे मन में
मुझे मत पुकारो
इसका कोई फायदा नहीं है -
दूसरों को कुछ बड़ा करने दो
उन्हें ज्यादा से ज्यादा संचय करने दो
मुझे घूमने दो
मुझे गाने दो
मैं बड़ा आदमी नहीं होना चाहता
०००
लेखक होना
आप कहती हैं
पिताजी बहुत सारी किताबें लिखते हैं,
लेकिन वह जो लिखते हैं मुझे
समझ नहीं आता।
वह पूरी शाम आपको पढ़ कर सुनाते रहे,
लेकिन क्या सच में
आप समझ पाईं
जो उनका मतलब था?
कितना अच्छा पुस्तक भंडार है,
माँ, क्या आप मुझे बता सकती हैं!
पिताजी इस तरह से
क्यों नहीं लिख सकते हैं,
मैं सोचता हूँ ?
क्या वह अपनी माँ से कभी नहीं सुनते हैं कहानियां
राक्षसों,परियों और राजकुमारियों की?
क्या वह उन सबको भूल गये हैं?
अक्सर जब उन्हें स्नान करने में देर हो जाती है
आप उन्हें सैंकड़ों बार बुलाती हैं।
इंतजार करती हैं और उनके लिए खाना गर्म रखती हैं,
लेकिन वह लिखते रहते हैं और भूल जाते हैं।
पिताजी हमेशा किताबें लिखने में लगे रहते हैं।
अगर मैं कभी पिता के कमरे में खेलने चला जाता हूँ,
आप आकर मुझे आवाज देती हैं,
"कितना शरारती बच्चा है!"
मैं थोड़ा सा भी शोर मचाऊं तो आप कहती हैं,
"क्या तुम्हें दिखता नहीं है कि पिताजी अपना काम कर रहे हैं? "
हमेशा लिखते ही रहने में क्या मजा है?
जब मैं पिताजी का पेन या पेंसिल उठा लेता हूँ और उनकी पुस्तक पर उनकी तरह ए, बी, सी, डी, ई, एफ, जी, एच, आई लिख देता हूँ , तो आप मुझसे नाराज क्यों हो जाती हैं, माँ?
जब पिताजी लिखते हैं तो आप कुछ भी नहीं कहती हैं।
मेरे पिताजी जब ढेरों कागज बर्बाद करते हैं, तो माँ ऐसा लगता है
आप बिलकुल बुरा नहीं मानती हैं।
लेकिन अगर मैं नाव बनाने के लिए एक भी कागज उठा लूँ,
आप कहती हैं,
"बच्चे, तुम कितना परेशान करते हो!"
आप क्या सोचती हैं
जब पिताजी कागजों के पुलिंदों को
दोनों तरफ से पेन से काले रंग के निशानों से खराब कर देते हैं?
०००
दूर से
'मैं' जो समय की लहर पर बहता है,
मैं उसे दूर से देखता हूं
धूल और पानी के साथ,
फल और फूल के साथ,
वह सबको समेटे हुए आगे बढ़ रहा है
वह हमेशा सतह पर रहता है,
खुशी और दुख की
ताल पर उछाला जाता हुआ और
धुन के साथ नाचता हुआ
थोड़े से नुकसान से वह दुखी हो जाता है,
मामूली से घाव से उसे दर्द होता है -
उसे मैं दूर से देखता हूँ
वह 'मैं' मेरा असली स्व नहीं है;
मैं अभी भी खुद में हूँ,
मैं मौत की धारा में नहीं बहता
मैं मुक्त हूँ, इच्छा रहित हूँ,
मैं शांति हूँ, ज्ञानवान हूँ-
मैं उसे दूर से देखता हूँ।
०००
मेरी निर्भरता
मैं हमेशा निर्भर रहना चाहता हूँ, और हमेशा के लिए
मेरी माँ के सौहार्द और देखभाल पर
मेरे पिताजी के स्नेह, चुंबन और गले लगने पर
जीवन जीना चाहता हूँ खुशी से उनके सारे अनुग्रह में।
मुझे निर्भर रहना पसंद है, और हमेशा के लिए
अपने सगे संबंधियों पर, वे सब बौछार करते हैं
खट्टी-मीठी सलाहों, शिकायतों की
एकदम चकित, सच्चे और जानकार दिग्गज
मुझे हमेशा निर्भर होना अच्छा लगता है, और हमेशा के लिए
मेरे दोस्तों पर, जो बात करते हैं और मुझे निकट चाहते हैं
घरेलू, पारिवारिक और रोमांटिक सुझाव देते हैं
साथियों पर भी, जो जोखिम में काम करते हैं।
मैं निर्भर रहना चाहता हूँ, और हमेशा के लिए
अपने पड़ोसियों पर भी, कभी-कभी जो ईर्ष्या करते हैं
मेरे भाग्य के उदय पर, जानना चाहते हैं
मेरी रोजमर्रा की, छोटी- मोटी और अजीब बातें भी।
०००
अनूवादिका का परिचय
सरिता शर्मा (जन्म- 1964) ने अंग्रेजी और हिंदी भाषा में स्नातकोत्तर तथा अनुवाद, पत्रकारिता, फ्रेंच, क्रिएटिव राइटिंग और फिक्शन राइटिंग में डिप्लोमा प्राप्त किया। पांच वर्ष तक नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया में सम्पादकीय सहायक के पद पर कार्य किया। बीस वर्ष तक राज्य सभा सचिवालय में कार्य करने के
बाद नवम्बर 2014 में सहायक निदेशक के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृति। कविता संकलन ‘सूनेपन से संघर्ष, कहानी संकलन ‘वैक्यूम’, आत्मकथात्मक उपन्यास ‘जीने के लिए’ और पिताजी की जीवनी 'जीवन जो जिया' प्रकाशित। रस्किन बांड की दो पुस्तकों ‘स्ट्रेंज पीपल, स्ट्रेंज प्लेसिज’ और ‘क्राइम स्टोरीज’, 'लिटल प्रिंस', 'विश्व की श्रेष्ठ कविताएं', ‘महान लेखकों के दुर्लभ विचार’ और ‘विश्वविख्यात लेखकों की 11 कहानियां’ का हिंदी अनुवाद प्रकाशित। अनेक समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में कहानियां, कवितायें, समीक्षाएं, यात्रा वृत्तान्त और विश्व साहित्य से कहानियों, कविताओं और साहित्य में नोबेल पुरस्कार विजेताओं के साक्षात्कारों का हिंदी अनुवाद प्रकाशित। कहानी ‘वैक्यूम’ पर रेडियो नाटक प्रसारित किया गया और एफ. एम. गोल्ड के ‘तस्वीर’ कार्यक्रम के लिए दस स्क्रिप्ट्स तैयार की।
संपर्क: मकान नंबर 137, सेक्टर- 1, आई एम टी मानेसर, गुरुग्राम, हरियाणा- 122051. मोबाइल-9871948430.
ईमेल: sarita12aug@hotmail.com
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