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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

30 अक्तूबर, 2024

अवधेश प्रीत की कहानी: छोटे सरकार


सेंट्रल जेल के बाहर,भीमाकार गेट के सामने एक बड़ा-सा हुजूम बेचैनी से उन बंद कपाटों पर टकटकी लगाये हुए था, जिसके पीछे से किसी भी वक़्त छोटे सरकार के नमूदार होने के

इमकिनात थे। जेल गेट की लिंक रोड से जुड़ती मुख्य सड़क पर गाड़ियों की लंबी कतार थी। गाड़ियों में बैठे कई लोगों के हाथों में कसकर थामी हुई राइफलें थीं। इन राइफलों की नालें थोड़ा-थोड़ा गाड़ी की खिड़कियों से झांक रही थीं। गाड़ियों के बाहर खड़े लोगों के चेहरों पर कभी तनाव, कभी ऊब और कभी उत्सुकता के मिले-जुले भाव आ-जा रहे थे। प्रतीक्षा की सुई टिक-टिक करती हुई धैर्य की परीक्षा लेने लगी थी। लोग बार-बार अपनी घड़ियां देखते और बेसब्री से जेल के विशालकाय गेट के खुलने की उम्मीद में टकटकी बांधे आंखें गाड़ देते।

इस भीड़ में सबसे आगे थे छोटे सरकार के दाहिना हाथ कहे जानेवाले उनके साले दोनाली सिंह। दोनाली सिंह का असली नाम, जिसे उनके माता-पिता ने दिया था,वह तो था दुलार सिंह, लेकिन उनके जीजा ने उनका नया नामकरण कर दिया था-दोनाली सिंह। दोनाली सिंह बगटूट गालियां देने के अलावा उसी रफ़्तार से हाथ-पैर साथ-साथ चलाने में ज़बरदस्त पारंगत थे। यह दक्षता उन्होंने अपने गाँव में खेत मज़दूरों से काम लेते हुए अर्जित की थी, जो उनकी दीदी के ब्याह के बाद, जीजा जी के साथ रहते हुए, उनके काम आई। उनकी यह विशेषज्ञता देखकर एक सुबह जीजा छोटे सरकार ने सरेमहफ़िल एलान कर दिया था,'ई हमरा दुलरुआ, हाथ-पैर, मुंह सब एक साथ चलाता है, एकदम दोनाली माफ़िक।' 

छोटे सरकार के मुंह से निकला वचन कभी न जाये ख़ाली। छोटे सरकार के दुलरुआ दुलार सिंह जिस दिन दोनाली हुए, उसी दिन से उनके जनक-जननी का नामराशि के अनुसार बड़े सोच-विचार के बाद दिया उनका नाम सदा के लिए लोप हो गया,ठीक उसी तरह जैसे वह ख़ुद छोटे सरकार में लोप हो गये थे.उनके लोप होने की कथा के पीछे भी उनका दुलरुआ होना ही था. हुआ यह कि  इंटर की परीक्षा देकर वह दीदी-जीजा के यहां छुट्टियां बिताने आये थे, पर जीजा माने छोटे सरकार का जलवा देखकर इस कदर प्रभावित हुए कि अपने घर लौटने की इच्छा टालते रहे. इसी बीच इंटर का रिजल्ट आ गया। दोनाली सिंह चार विषय में फेल हो गये थे. छोटे सरकार अपने दुलरुआ का लटका चेहरा देखकर तड़प उठे। उन्हें पास बैठाकर प्यार से झिड़की दी,'धत्त साला, इम्तिहान कुम्भ का मेला है क्या,जो बारह साल बाद आएगा? अबकी साल हमरे गाँव के कॉलेज से इम्तिहान दीजियेगा। देखते हैं, कैसे नहीं पास होते हैं?'

दीदी ने भी अपने छोटे भाई का हौसला बढ़ाया,'तुमरे जीजा जी ठीके कह रहे हैं। तुमको बस फारम भरना है। रिजल्ट तो घरे चल के आएगा।' 

रिजल्ट घरे चल कर आयेगा? बात का मर्म बूझने में मदद की रामा भाई ने,'सब छोटे सरकार का जलवा है। यहां उनकी सरकार चलती है...उनका हुकुम चलता है। पत्ता भी उनके इशारे पर हिलता है।'

जीजा-दीदी के इस लाड़-दुलार से उनका मन थिराया। धीरे-धीरे वह रिजल्ट के ग़म से उबरे। इस बीच दीदी ने बाबू जी को ख़बर भिजवा दी,'छोटका का नाम उसके जीजा जी यहीं लिखवा रहे हैं। आप लोग निफिकिर रहिये। आगे की पढ़ाई यहीं रहके करेगा।'

बेटी का प्यार और दामाद का आदेश सिर आँखों पर। दुलार सिंह खूंटा गाड़कर यहीं के होके रह गये। दुलार सिंह के दुलरुआ और फिर दोनाली होने की इस यात्रा में उनका मन इतना रमा कि पढ़ाई लिखाई,इम्तहान-परीक्षा सब बेमानी हो गये। जीजा जी का जलवा देखकर वह अक्सर सोचने लगते,एक से एक पढ़ा-लिखा लोग छोटे सरकार के दरबार में माथा टेकता है...हुकुम बजाता है... फिर वही पढ़कर क्या तोप बन जायेंगे?' 

इस पर एक दिन रामा भाई ने टोका,'पढ़-लिख के आदमी कुछ बने न बने,अच्छा इंसान ज़रूर बन जाता है।' 

दोनाली सिंह को यह आप्त वचन कुछ जंचा नहीं,असहमति स्वरूप मुंह बिचका दिया था। दोनाली सिंह की इच्छा हुई थी कि पूछें,'रामा भाई, इसीलिए अपने बेटे को पढ़ा लिखा रहे हैं?' 

लेकिन सवाल से पहले रामा भाई जा चुके थे।

दोनाली सिंह इंटर की परीक्षा तो नहीं दे पाये,लेकिन तरह-तरह के हथियार चलाने की हर परीक्षा पास कर गये। एके 47, ऑटोमेटिक मशीनगन, एलएमजी से लेकर पिस्टल, रिवॉल्वर तक उनके यार-दोस्त हो गये। उनकी लगन, मेहनत और खिदमत को देखते हुए आख़िरकार छोटे सरकार ने उन्हें अपना अंगरक्षक बना लिया। वह हर वक़्त अपने जीजा छोटे सरकार के साथ साये की तरह लगे रहते। जीजा-साले के इस प्रेम को देखते हुए एक दिन उनकी दीदी ने एकांत देखकर दोनाली सिंह से कहा,'हमरे सुहाग का रच्छा अब तुमरे ज़िम्मे है।' 

उस दिन दोनाली सिंह ने भी अपनी दीदी को वचन दिया,'प्राण जाय पर वचन न जाई।'

अपने वचन से बंधे दोनाली सिंह छोटे सरकार के हर अच्छे-बुरे काम में सदा साथ रहते।

यही वजह थी कि जिस भोर पुलिस हवेली को घेरकर छोटे सरकार को गिरफ्तार करने के लिए अंदर दाखिल हुई,वह पुलिस के सामने दीवार की तरह अड़ गये थे। उन्हें विरोध करते देख एसपी अनुराधा सिंह ने सीधे उनके ऊपर रिवॉल्वर तान दिया था। अब तक लोकल थाने के दारोगा-सिपाही से निबटते आये दोनाली सिंह एसपी अनुराधा सिंह के हाथ में तनी 32 बोर की पिस्टल का निशाना अपनी छाती पर देखकर सनाके में आ गये थे। होशो-हवास सटककर जाने कहां गुम हो गया था। पटर-पटर चलनेवाली ज़ुबान अंदर ही ऐंठकर रह गई थी। उन्हें महसूस हुआ था कि हथेलियों में पसीना चिपचिपाने लगा है। पांवों पर खड़ा रह पाना मुहाल हुआ जा रहा था। जान पर बनी हो तो सारी हेकड़ी टें बोल जाती है। उस वक़्त वह सूखते गले और गीली आँखों के दरम्यान बेचारा होकर रह गये थे। ठीक उलट एसपी अनुराधा सिंह गालियों की बौछार के साथ उनके कुल-खानदान की मां-बहन एक किये जा रही थी। उसके मुंह से इतनी फाहिश गालियां सुनकर दोनाली सिंह के कान सुन्न पड़ गये थे। आँखें फटी जा रही थीं। एक सुन्दर, जवान और स्मार्ट लड़की को बेछूट गालियां देते देखने का यह अनुभव इतना ख़ौफ़नाक था, कि उनकी रूह फ़ना हो गई थी। घर के मुख्य दरवाज़े के सामने उन्हें जड़ देखकर दो दरोगाओं ने बाज़ की तेज़ी से झपट्टा मारकर उन्हें दीवार से लगा दिया था। इसी तेज़ी के साथ दो सिपाहियों ने दरवाज़ा तोड़ने के लिए राइफल के कुंदों से पीटना शुरु कर दिया था। बमुश्किल तीन-चार चोट पड़ी थी कि दरवाज़ा अंदर से खुला और ठीक सामने छोटे सरकार दोनों हाथ ऊपर उठाये खड़े थे। वह पुलिस के सामने... वह भी महिला एसपी अनुराधा सिंह के सामने आत्मसमर्पण की मुद्रा में थे। इस अघटित को घटता देखकर दोनाली सिंह की आँखों पर पड़ा परदा चर्र से फट गया था। कोई तिलिस्म था जो बेसाख्ता टूटकर बिखर गया था, कि अपने जीजा को, छोटे सरकार को इतना बेबस लाचार देखने की कभी न की गई कल्पना का असर था कि दोनाली सिंह के भीतर अपने जीजा के लिए एकाएक धिक्कार पैदा हुआ था। सारा तमाशा वह असहाय मन देखते रह गये थे।

पलक झपकते पुलिस के जवान हवेली के अंदर भरभराकर घुस गये थे। चप्पे-चप्पे की तलाशी लेने के दौरान एक कमरे से एके 47, एके 56, ऑटोमेटिक मशीनगन,एसॉल्ट राइफल जैसे तमाम हथियार,सैकड़ों मैगज़ीन और हज़ारों जीवित कारतूस बरामद हुए थे। आनन-फानन जब्ती सूची बनाकर, पुलिस छोटे सरकार को बख्तरबंद जीप में बैठाकर रवाना हो गई थी। इस दौरान रिज़र्व पुलिस,रैपिड एक्शन फोर्स और ज़िला पुलिस के हथियारबंद जवानों ने पूरे गाँव को घेरे रखा था। परिंदों के भी पर मारने की ज़ुर्रत नहीं थी। जब तक गाँव को इस दबिश की भनक लगती, लोग कुछ ठीक से समझ पाते, पुलिस पलटन धूल-धुआँ उड़ाती निकल गई थी। पीछे जो भीड़ जुटी थी, वह निंदियाई हुई भौंचक थी कि यह अजगुत हुआ तो हुआ कैसे? 

'थाना वाला कोई ख़बर ना दिया क्या?'

दोनाली सिंह,उनकी दीदी, यहां तक कि रामा भाई को भी थाने से इस दबिश की कोई सूचना नहीं मिली थी। हवेली के बाहर गाँव वालों की जमा भीड़ को इस बार अपने छोटे सरकार का जलवा देखना नसीब नहीं हुआ। गाँव वालों को यक़ीन नहीं आ रहा था कि हर बार की तरह छोटे सरकार इसबार पुलिस वालों को नाक क्यों नहीं रगड़वा पाये? यह पहला मौका नहीं था, जब हथियारबंद पुलिस जवानों ने छोटे सरकार की हवेली को घेरा था, लेकिन छोटे सरकार कभी पुलिस के हाथ नहीं आये, तो इसलिए कि पुलिस की छापेमारी से पहले उन्हें पुलिस वालों से ही भनक मिल जाती थी और वह पलक झपकते ग़ायब हो जाते। एकाध बार पुलिस से मुठभेड़ की नौबत आई भी तो, वही भारी पड़े। उन्हें घिरा देखकर पहले से ही तैनात आसपास की छतों से पुलिस पर अंधाधुंध फायरिंग शुरु हो जाती। ऐसे में ख़ुद को घिरा पाकर पुलिस अपना मिशन बीच में ही छोड़कर लौट जाती थी। एक बार तो ऐसी ही मुठभेड़ में एएसपी श्रीनिवास सुब्रह्मण्यम बाल-बाल बचा था,जब दोनाली सिंह की बंदूक से निकली गोली उसकी टांग में जा लगी थी। बाद में छोटे सरकार ने उन्हें धिक्कारा था,'हमको बिस्वास नहीं था कि तुम्हारा निशाना चूक जायेगा!'

दोनाली सिंह को ख़ुद पर शर्म आई थी, माथा अपमान से झुक गया था। वह छोटे सरकार से आँखें मिलाने के काबिल नहीं रह गये थे। एकतरह से उस दिन वह छोटे सरकार की नज़र से गिर गये थे। रामा भाई ने समझाया था,'दोनाली सिंह, इस धंधा में रिश्तेदारी नहीं, वफ़ादारी काम आती है।' 

यह नसीहत उन्होंने गांठ बांध ली थी, हालांकि रिश्तेदारी की कसक़ हमेशा चुभती रहती। 

पुलिस पर गोली चलाने के मामले में दोनाली सिंह का नाम पहली बार किसी एफआईआर में दर्ज़ हुआ था। पहली बार उन पर किसी अपराध का आरोप लगा था। रामा भाई ने ठिठोली की थी,' अब जाके बपतिस्मा हुआ है।'

'माने?'

'छोटे सरकार के दरबार की पक्की मेम्बरी मिली है।' दोनाली सिंह के चेहरे पर पसरी उदासी कुछ और गहरा गई थी।दिल डूबने को हो आया था। थानेदार त्रिभुवन तिवारी ने ख़बर भिजवाई थी, 'दोनाली सिंह को कुछ दिन अंडरग्राउंड रहने को कहिये। पुलिस पर गोली चलाने से मामला बहुत गरम है। पुलिस के हत्थे चढ़े तो एनकाउंटर भी हो सकता है।' 

एनकाउंटर के नाम से दोनाली सिंह के प्राण सूख गये थे। काफी दिनों तक रात में नींद नहीं आई...कभी आँख लगी भी तो लगता एक गोली सनसनाती हुई उनकी ओर आ रही है। वह चीख़ मारकर उठ बैठते। जाड़े की रात में भी पसीने में भीगे होते। उनकी यह हालत देखकर एक दिन रामा भाई ने टोका,'छोटे सरकार को पता चला तो बड़ी भद्द पिटेगी तुमरी। ऐसा डरपोक छोटे सरकार के किसी काम का नहीं।' 

रामा भाई की समझाइश से ज़्यादा उनकी आँखों में जो हिकारत थी, उसने दोनाली सिंह को छलनी कर दिया था। वह मन मज़बूत करके ख़ुद को संभालते रहे। धीरे-धीरे ख़ौफ़ कम होता गया, उनकी हिम्मत बढ़ती गई। उसी हिम्मत का नतीजा था कि छोटे सरकार की गिरफ्तारी वाले दिन वह पुलिस के सामने डट कर खड़े हो गये थे। उन्हें लगा था, उनकी इस दिलेरी से उनपर डरपोक होने की तोहमत का धब्बा धुल जायेगा और रामा भाई को ज़वाब भी मिल जायेगा। लेकिन उस दिन एसपी अनुराधा सिंह के आगे छोटे सरकार ने बिना हील-हुज्जत जिस कायरता से समर्पण कर दिया, वह उन्हें हैरान किये हुए था। छोटे सरकार के जिस रुतबे के वह क़ायल रहे ... जिस दमखम पर नाज़ था,वह सब इतना फुस्स निकलेगा, यह सोचते हुए वह शर्म से गड़े जा रहे थे? 

भांय-भांय करती हवेली में डाकिनी-सी डोलती उनकी दीदी ने ख़ुलासा किया था,'समर्पण ना करते तो अनुराधा सिंह एनकाउंटर कर देती।' 

'किसका एनकाउंटर कर देती...छोटे सरकार का?' 

दीदी उनके चेहरे पर आँखें गड़ाए हुए थी। वे आँखें नहीं दहकते हुए दो शोले थे,'पुलिस जब हवेली घेर ली थी तब छोटे सरकार के पास थानेदार तिवारी का मोबाइल आया था,'पुलिस पर गोली चलाने वाले दोनाली सिंह से बदला लेने आई है एसपी अनुराधा सिंह।आप सरेंडर कर दीजिये नहीं तो वह  दोनाली सिंह का एनकाउंटर कर देगी।' 

'क्या?' दोनाली सिंह का मुंह खुला का खुला रह गया था...रीढ़ में ठंडी लहर रेंग गई थी। दीदी ने बड़े रहस्यमय अंदाज़ में ख़ुलासा,'तुमरे चलते छोटे सरकार को जेल जाना पड़ा है... अब तक मज़ाल ना हुआ जो पुलिस उनको हाथ लगा दे।'

दोनाली सिंह पर जैसे वज्र टूटा हो। एकबारगी हृदय फट पड़ा था। गहरे अपराधबोध में धंसे वह बेतरह फफ़क़ पड़े थे,'कहां तो हम छोटे सरकार का दाहिना हाथ बनने चले थे, कहां हम उनके लिए फांस बन गये। दीदी, जीजा जी को ऐसा नहीं करना चाहिए था। हो जाता मेरा एनकाउंटर... जीजा जी को तो आंच न आती।दीदी, तुम जीजा जी को काहे ना रोकी?' 

'छोटे सरकार किसी की सुनते हैं क्या? ' दीदी के ज़वाब में मायूसी थी... शायद अफ़सोस भी।

'दीदी, हम यहां से चले जाते हैं...न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।' दोनाली सिंह ने गहरे ग़म में निर्णय सुनाया था।

दीदी ने ठंडी आह भरी थी,'तुमरे जीजा के पीछे इतना सब तामझाम हम अकेले कैसे संभालेंगे?'

दोनाली सिंह के सामने भक्क से कोई लौ कौँधी थी और उनकी आँखें झपझपाने लगी थीं। उन्होंने सुझाया था,'रामा भाई हैं न?' 

'गोतिया... गोतिया होता है... अपना अपना।' दीदी ने सूत्र वाक्य में मन की बात कह दी थी।


छोटे सरकार के सरेंडर वाले दिन एसपी अनुराधा सिंह ने लोकल थानेदार त्रिभुवन तिवारी को अर्जेंट मीटिंग के लिए अपने ऑफिस बुला लिया था। थानेदार तिवारी एसपी के बुलावे की प्रतीक्षा में दिन भर इस कोना,उस टेबल डोलते रहा, लेकिन न मीटिंग के आसार दिखे और न कोई आदेश मिला, न स्टेशन छोड़ने का संदेश। देर रात एसपी अनुराधा सिंह ने उन्हें अपनी जीप में बैठाया और आगे- पीछे अमला-दस्ता लेकर दबिश देने निकल पड़ी। थानेदार त्रिभुवन तिवारी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थीं। उसे समझते देर न लगी कि यह चढ़ाई छोटे सरकार पर है। एसपी अनुराधा सिंह ने इस मिशन की भनक न उसे लगने दी थी, न उसके थाने को। इस ख़याल के कौँधते ही उसकी सांसें सीने में अंटक गईं। रंगे हाथ पकड़ लिए जाने की घबराहट से चेहरा फक्क पड़ गया था। एसपी अनुराधा सिंह ने ऐन हवेली के पास पहुँच कर थानेदार तिवारी को निर्देश दिया था,'छोटे सरकार को कॉल करो, सरेंडर करे वरना उसके साले दोनाली सिंह का यहीं एनकाउंटर कर दूंगी।' 

यह झूठी धमकी थी, लेकिन स्पष्ट था कि एसपी अनुराधा सिंह के पास छोटे सरकार के बाबत काफी जानकारी थी। तिवारी के पास हुक्म की तामील के अलावा कोई चारा न था। उसने छोटे सरकार के निजी मोबाइल नंबर पर कॉल कर के सरेंडर कर देने की ख़बर दे दी थी। उधर से कुछ पूछा गया था,जिसके ज़वाब में तिवारी ने कहा था,'हमरा कहना मानिये, इसी में सबकी भलाई है।' वह एकहैरतअंगेज़ रात थी, जब छोटे सरकार ने बिना लड़े...बिना प्रतिरोध किये...समर्पण कर दिया था। क्या कोई चमत्कार हुआ था...क्या हृदय परिवर्तन हो गया था? या कोई ऐसा रहस्य था,जिसे छोटे सरकार के सिवा और कोई नहीं जानता? और बड़ा प्रश्न यह था कि पुलिस दोनाली सिंह को छोड़ कर सिर्फ छोटे सरकार को ही क्यों पकड़कर ले गई? 


इस वक़्त जेल गेट की ओर टकटकी लगाये दोनाली सिंह के चेहरे पर बदहवासी इस कदर चस्पां थी, कि गमछे से बार-बार पोंछने के बावज़ूद उसका एहसास मिटने का नाम नहीं ले रहा था। उनके बाल बिखरे हुए थे, जिसे सुबह की हवा छितराये दे रही थी। क़ुरता मुड़ा-तुड़ा था गोया रात का पहना सुबह बदलने तक का ख़याल न रहा हो।

'दोनाली सिंह, काहे इतना देरी हो रहा है हो?' रामा भाई ने व्यग्रता से टोका।

'फॉर्मेलिटी में टाइम लगता है रामा भाई... थोड़ा धीरज धरिये।' दोनाली सिंह ने ख़ुद को भी समझाया।

'पचास से ऊपरे गाड़ी जुट गई है। आदमी का तो ठिकाना नहीं है।' रामा  भाई ने हुजूम की ओर मुड़कर देखा,' सगरे गाँव उठ के आने वाला था, बड़ी मुश्किल से रोके हैं हम।'

'फूल माला सब तैयार है न?' 

'मुखिया जी का जिम्मा था.... देख लेते हैं हम।' रामा भाई पीछे चले गये।

उधर रामा भाई गये, इधर मुखिया जी भीड़ में लोगों को माला बांटते हुए दोनाली सिंह के क़रीब आये,' दोनाली, तुमरे लिए गुलाब का स्पेशल माला बनवाये हैं... छोटे सरकार के दुलरुआ जो हो!' 

दोनाली को यह मज़ाक भीतर तक चुभ गया। हमरा महत्व बस यही है कि हम छोटे सरकार के साला हैं? भीतर उठी कुफुत दबाकर बोले,'मुखिया जी, हमछोटे सरकार के ख़ाली साला ही नहीं हैं, उनका दाहिना हाथ भी हैं।'

'दाहिना हाथ इसीलिए हैं कि छोटे सरकार का दुलरुआ है।'

'आप मुखिया हैं, यह कृपा भी तो छोटे सरकार की ही है।'

'कौन है, जिस पर छोटे सरकार की कृपा नहीं है?' मुखिया ने ताल-सा ठोंका,'थाना, पुलिस, कोर्ट कचहरी किस पर कृपा नहीं है, बताइये भला?'

मुखिया की बात सही थी। फिर भी पुलिस ने छोटे सरकार को गिरफ्तार कर लिया था...अवैध और प्रतिबंधित हथियार रखने के जुर्म में। काफी दिनों तक ज़मानत नहीं मिली। कोर्ट में पुलिस की ओर से सरकारी वक़ील कोई न कोई पेंच लगाकर ज़मानत याचिका का विरोध करता और उनकी अगली सुनवाई महीनों टल जाती। दोनाली सिंह जब जेल में छोटे सरकार से मिलने गये थे तो उन्होंने बताया था,'सब मुख्यमंत्री के इशारे पर हो रहा है।'

छोटे सरकार के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी, लेकिन आवाज़ में थकान भरी थी। कितने ही केस उन पर थे, पर वह कभी इतने हताश नहीं दिखे थे। कई केस की जाँच पेंडिंग थी, तो किसी की चार्जशीट भी फ़ाइल नहीं हुई थी...कुछ केस झूठे क़रार दिये गये थे, तो कई केस वापस ले लिए गये थे। मर्डर के दो केस थे। एक भूलोटन पहलवान का और दूसरा पकरांवा के गुलाटी मुखिया का। लेकिन उनके चश्मदीद गवाहों की हत्या हो गई थी। इन गवाहों की हत्याओं के आरोप भी छोटे सरकार पर ही लगे, लेकिन किसी ने एफआईआर में उनका नाम दर्ज़ नहीं कराया। उनके वक़ील का दावा है कि छोटे सरकार गवाहों के अभाव में हत्याओं के सभी आरोप से मुक्त हो जायेंगे।

छोटे सरकार की पार्टी जब तक सरकार में रही पुलिस की मज़ाल नहीं थी कि उन्हें हाथ लगा दे... लेकिन सरकार बदलते ही उनका सारा शिराजा बिखर गया। उपचुनाव में छोटे सरकार ने जिस उम्मीदवार शंकर प्रसाद को जिताने में बढ़-चढ़ कर मदद की, वह एक तो जात भाई था, दूसरे पार्टी आला कमान का रिश्तेदार भी था, इसलिए ना करते नहीं बना। फिर अपने रसूख का जलवा दिखाने का अवसर वह कैसे छोड़ देते? उनके रौब, उनके ख़ौफ़ और उनकी रणनीति के चलते शंकर प्रसाद उपचुनाव जीत गया। जीत के बाद शंकर प्रसाद ने छोटे सरकार के दरबार में आकार एलान किया,'छोटे सरकार, हम आपका अहसान कभी नहीं भूलेंगे। कोई कुर्बानी देने से नहीं हिचकेंगे।'

शंकर प्रसाद ने जिस उम्मीदवार को हाराया था, उससे सत्तारुढ़ पार्टी की प्रतिष्ठा तो धूमिल हुई ही थी, मुख्यमंत्री का करीबी दोस्त होने के कारण उसकी हार से मुख्यमंत्री को व्यक्तिगत तौर पर गहरा झटका लगा था। तभी से छोटे सरकार मुख्यमंत्री की नज़र पर चढ़ गये थे। उन्हें जाल बिछाकर फंसाया गया था। उनकी गिरफ्तारी के लिए एसपी अनुराधा सिंह को खुली छूट दी गई थी।

एसपी अनुराधा सिंह की जीप मोड़ काटकर जैसे ही लखनहिया की ओर मुड़ी थी। एसपी अनुराधा सिंह ने ठंडे स्वर में टोका था,'तिवारी क्या हुआ... परेशान लग रहे हो?' 

' न... न... नहीं सर...!' थानेदार तिवारी का हलक सूख गया था,'वो क्या है कि...।'

'तुम्हारा इलाका है और तुम्हें कुछ ख़बर नहीं?' व्यंग्य से हंसी थी एसपी अनुराधा सिंह।

थानेदार अनुभवी था...अफसर की स्ट्रेटजी समझते देर न लगी...माथे पर पसीना चुहचुहा आया था।

'तुम्हे लाइन हाज़िर कर दिया है।' एसपी अनुराधा सिंह का ठंडा स्वर थानेदार त्रिभुवन तिवारी को सिहरा गया था,'कल से पुलिस लाइन में रिपोर्ट करोगे।'

किसी चमत्कार की तरह आठ महीने बाद छोटे सरकार को ज़मानत मिल गई। इस बार सरकारी वक़ील ने उनकी ज़मानत का विरोध नहीं किया।

जेल में मिलने आये विधायक शंकर प्रसाद ने सारी बिसात सेट की थी।

'छोटे सरकार, हम सत्ता पार्टी ज्वाइन कर लिए हैं?' 

'क्या?' छोटे सरकार चौंके।

'मुख्यमंत्री जी लोकसभा चुनाव में टिकट देने का वादा किये हैं।'

छोटे सरकार चिंहुके,'तो आप पार्टी बदल दिये?'

'छोटे सरकार, सरकार के इक़बाल को तो मानना ही पड़ता है। विपक्ष में कब तक धक्का खाते रहेंगे?'

छोटे सरकार चुप थे। उन्हें चुप देख शंकर प्रसाद ने पहलू बदला।

'तो अब आप क्या चाहते हैं?' एक विराम के बाद छोटे सरकार ने पूछा।

'छोटे सरकार, अगर आप पार्टी ज्वाइन कर लें तो मुख्यमंत्री जी विधानसभा का टिकट आपको देने को तैयार हैं।' 

'मुख्यमंत्री इतने कृपालु कैसे हो गये?'

'छोटे सरकार, ताली दोनों हाथ से बजती है।' विधायक शंकर प्रसाद अर्थपूर्ण अंदाज़ में मुस्कुराये।

छोटे सरकार ने व्यंग्य किया,'चुनाव क्या हम जेल से लड़ेंगे?' 

और अगली सुनवाई में ही ज़मानत मिल गई। कोर्ट का ऑर्डर देर शाम आया था, इसलिए रिहाई सुबह तक के लिए टल गई थी।


जेल गेट पर संतरियों की हलचल बढ़ते ही दोनाली सिंह का दिल धक-धक बजने लगा। रामा भाई साथ आ गये थे। मुखिया जी भी बग़लगीर थे। अचानक रहस्यलोक का पट खुला और लहीम- शहीम छोटे सरकार नमूदार हुए। उनके चेहरे पर अवसाद की मलिनता थी,बावज़ूद इसके वह मुस्कुरा रहे थे। सामने दोनाली सिंह, रामा भाई और मुखिया जी को देखकर उन्होंने हाथ लहराया। ऐन इसी वक़्त नारा गूंज गया,'छोटे सरकार : जिंदाबाद... जिंदाबाद।'

छोटे सरकार दोनों हाथ जोड़े आगे बढ़े। दोनाली सिंह ने लपक कर उनके गले में माला डाल दी। फिर तो एक-एक कर माला पहनाने वालों का ताँता लग गया। अपने इतने भव्य एवं आत्मीय स्वागत से अभिभूत छोटे सरकार दोनों हाथ जोड़े सबका अभिवादन स्वीकारते अपने लिए लाई गई खुली जीप में सवार हो गये। वह पूर्ववत हाथ जोड़े जीप से आगे बढ़ रहे थे। उनके कारवां के आगे -पीछे पुलिस की गाड़ियां चल रही थी। 'छोटे सरकार :जिंदाबाद' के नारों का शोर देखते-देखते रोड शो में बदल गया। सड़क के दोनों तरफ जितने लोग खड़े थे,उससे ज़्यादा लोग अपनी छतों और बारजों से उनके जलवे का दीदार कर रहे थे। यह एक शानदार रिहाई थी। गाँव तक के पूरे रास्ते में लोग जगह-जगह छोटे सरकार का स्वागत करने को खड़े थे। पुलिस जीप उन्हें स्कॉर्ट करते हुए गाँव तक आई। इस कारवां के गाँव में दाखिल होते ही राइफलों से हवाई फ़ायर शुरु हो गये... धाँय...धाँय... धाँय। आज लखनहिया ही नहीं,ज़िला-जवार के कई गाँवों से लोग उमड़े चले आये थे। हवेली के सामने रामा भाई की देख-रेख में मंच बनाया गया था।उसे फूलों से सजाया गया था। यह सारा तमाशा पुलिस चुपचाप देख रही थी। रामा भाई मुस्कुरा रहे थे,'दोनाली, देख रहे हैं न छोटे सरकार का जलवा?'

दोनाली सिंह चमत्कृत थे। कुछ बोलते नहीं बन रहा था।

छोटे सरकार जैसे ही जीप से उतरे विधायक शंकर प्रसाद छोटे सरकार का स्वागत करने के लिए आगे आये। वह आधा घंटा पहले ही लखनहिया पहुँच गये थे।

'छोटे सरकार : जिंदाबाद... जिंदाबाद' के अनवरत नारे के साथ सैकड़ों हाथ हवा में लहरा रहे थे। इस रोमांच भरे दृश्य में दोनाली सिंह और रामा भाई गौण हो गये थे। विधायक शंकर प्रसाद ने एकबारगी सब कुछ अपने हाथ में ले लिया था... केंद्र में छोटे सरकार थे, लेकिन केंद्रीय भूमिका में विधायक शंकर प्रसाद थे। वह छोटे सरकार को लिए दिये मंच पर आये और बिना देरी किये भीड़ से मुख़ातिब हो गये,'भाइयों... बहनों, मैं आज माननीय मुख्यमंत्री जी का संदेश लेकर यहां आया हूं। मुख्यमंत्री जी की ओर से मैं छोटे सरकार का उनकी पार्टी में स्वागत करने के लिए हाज़िर हुआ हूं। छोटे सरकार के बारे में मुख्यमंत्री जी को ग़लत जानकारी देकर जो ग़लतफहमी पैदा की गई थी, उसे हमने उनसे मिलकर दूर कर दी है। उन्हें बता दिया है कि छोटे सरकार जनता के हृदय सम्राट हैं। बिना उनकी मदद के हम चुनाव नहीं जीत सकते। छोटे सरकार हमारे साथ रहेंगे तो हमारी पार्टी मज़बूत होगी। आज यहां हम मुख्यमंत्री जी के आदेश से आये है। हम छोटे सरकार का पार्टी में स्वागत करते हैं।' 

तालियां बज रही थीं। नारे गूंज रहे थे। हुजूम छोटे सरकार के लिए भाव विह्वल हुआ जा रहा था। छोटे सरकार ने दोनों हाथ उठाकर भीड़ का अभिवादन किया। लोग ख़ुशी के मारे चीख़ पड़े। छोटे सरकार ने सबको चुप कराते हुए एलान किया,'विधायक शंकर प्रसाद जी हमरे सगे भाई से बढ़कर हैं...हम इनकी बहुत इज़्ज़त करते हैं...हम मुख्यमंत्री जी को भरोसा दिलाते हैं कि तन... मन.. धन से हम उनके साथ हैं...।'

'छोटे सरकार : जिंदाबाद' के शोर से दसों दिशाएं गूंज गईं।


दोनाली सिंह को गुमशुम देख रामा भाई ने झकझोरा,'कहां खो गये?'

'रामा भाई, छोटे सरकार  की चलती देखिए... गाँव-जवार उमड़ा तो उमड़ा... विधायक... मुख्यमंत्री सब लहालोट।'

'छोटे सरकार ऐसे ही छोटे सरकार नहीं हैं। छोटे सरकार बनने के लिए उन्होंने बड़ी कुर्बानी दी है।' रामा भाई भीतर भरी अपनी भावना को दबा नहीं पाये।

जिस कुर्बानी की बात रामा भाई कर रहे हैं वह दोनाली सिंह को खूब याद है। बच्चा-बच्चा जानता है वह किस्सा... भूलोटन पहलवान अपनी पहलवानी के बूते ज़िला जवार में काफी नाम कमा चुका था, लेकिन उसकी एक ख़्वाहिश पूरी नहीं हो पाई थी... बड़े सरकार को पटखनी न दे पाने की। यह कचोट उसे हमेशा सालती। बड़े सरकार का रुतबा ऐसा कि कभी उनका शुमार सूबे के नामी पहलवानों में होता था। कई इनाम जीते थे...कई तमगे हासिल किये थे। शीर्ष पर पहुंचकर एक दिन अचानक उन्होंने कुश्ती से सन्यास ले लिया था। फिर भी उनकी शोहरत और इज़्ज़त में कोई कमी नहीं आई थी। लोग अक्सर उनकी पहलवानी की मिसाल दिया करते। वह कुश्ती के सिरमौर बने हुए थे। उनके इस प्रभामंडल के आगे भूलोटन की पहलवानी निष्प्रभ थी। यह फांस उसके अंदर लगातार कसकती रहती। उसे लगता बड़े सरकार को पटखनी दिये बिना बड़ा रुतबा हासिल नहीं हो सकता। इसी हिरिस में वह कई बार बड़े सरकार को ललकार चुका था,पर बड़े सरकार हंसकर टाल देते,'पहलवानी में अहंकार ठीक नहीं।'

भूलोटन पहलवान हंसी उडाता,'लड़े की औकात नहीं, फुटानी आसमान पर। किस बात के बड़े सरकार?'

आख़िर एक दिन बड़े सरकार ने भूलोटन की चुनौती स्वीकार कर ली। नागपंचमी के दिन दोनों अखाड़े में उतरे। एक तरफ भूलोटन के चेले चपाटे और समर्थक तो दूसरी ओर बड़े सरकार के साथ लखनहिया का बच्चा-बच्चा। छोटे सरकार तब छोटे सरकार नहीं हुए थे, बल्कि बउआजी थे...पढ़निहार बउआजी। उस दिन बाईस साल के जवान बउआजी भी बड़े सरकार का जलवा देखने को उत्सुक दर्शक की तरह दम साधे खड़े थे। कुश्ती शुरु हुई। पहले राउंड में ही बड़े सरकार ने भूलोटन को बुरी तरह छकाया। कब धोबिया पाट मारा कि भूलोटन की अक़्ल गुम हो गई। बड़ी मुश्किल से संभल पाया वह। उसे आभास हो चुका था कि बड़े सरकार उस पर भारी पड़ रहे हैं। बस इसी वक़्त उसने मौका देखकर बड़े सरकार को लंगड़ी मारकर गिराया और झपट्टा मारकर उनकी छाती पर चढ़ गया। यह नियम विरुद्ध था... चारों ओर हाहाकार मच गया। रेफरी सीटियां बजाता रहा, लोग चिल्लाते रहे...लेकिन भूलोटन पर जैसे शैतान सवार था। चीख़... पुकार और बढ़ते शोर के बीच भी वह बड़े सरकार के सीने पर हुमचता रहा। भीड़ उग्र हो चुकी थी। तभी भूलोटन के चेले-चपाटों ने हवा में गोलियां चलानी शुरु कर दीं। भूलोटन इसी अफरा-तफरी में निकल भागा।

अखाड़े में पस्त पड़े बड़े सरकार उठ सकने की स्थिति में नहीं थे। उनके सीने में असह्य दर्द की चिलकारी उठ रही थी। बउआ जी, रामा भाई और गाँव के अन्य लोग उन्हें आनन-फानन जीप में डालकर अस्पताल भागे। एक्सरे में सीने की दो हड्डियां टूटी पाई गईं। बड़े सरकार को अपनी पीड़ा से ज़्यादा अपना अपमान साल रहा था। वह एकदम गुमशुम हो गये थे... सूनी आँखों की कोरों पर आँसू आ-आ कर अंटक जा रहे थे। बउआजी अपने पिता की इस हालत पर तड़प उठते। उनके भीतर भूलोटन का वह हंसता हुआ विकृत चेहरा बार-बार घुमड़ता और बेतरह तड़प उठते। रामा भाई उन्हें धीरज बंधाते,'बड़े सरकार को ठीक हो जाने दें,उसके बाद ही कुछ सोचियेगा।'

लेकिन बड़े सरकार ठीक नहीं हुए। अंदर की गुम चोट ऐसी थी कि वह उससे उबर नहीं पाये। इलाज़... दवाई... डॉक्टर सब नाकाम हो गये...आख़िर बड़े सरकार की लाश ही गाँव लौटी। 

जिस दिन बड़े सरकार का श्राद्ध था, उस दिन बड़ी गहमा गहमी रही। श्राद्धभोज देर रात तक सम्पन्न हुआ। उसी रात की भोर होते-होते... भूलोटन पहलवान भूलोक छोड़ गया। उसके सीने में आधा दर्ज़न गोलियां धंसी थीं। वह अपने ही अखाड़े में चारों खाने चित्त पड़ा था... गोलियों की आवाज़ से अखाड़े में जाग हो गई थी... जब तक कोई कुछ समझता अंधाधुंध फायरिंग करते बउआजी ने ललकारा था,'कोई आगे बढ़ा तो भून कर रख दूंगा।'

बउआजी के सिर पर ख़ून सवार था। इससे पहले कि वह अपना आपा खोते रामा भाई ने आवाज़ दी,'काम हो गया... चलिए अब।' 

रामा भाई ने मोटरसाइकिल स्टार्ट रखी थी। बउआजी हवा में फायरिंग करते हुए छलांग लगाकर पिछली पर बैठे थे और मोटरसाइकिल हवा से बातें करने लगी थी। 


दोनाली सिंह समझ नहीं पाते कि रामा भाई इतने निर्विकर... इतने निस्पृह कैसे रह लेते हैं? छोटे सरकार के प्रति उनके भक्तिभाव को देखकर लगता है, रामा भाई का जन्म शायद इसी निमित्त हुआ है... छोटे सरकार जब जेल में थे, रामा भाई दीदी का हुक्म उसी भक्ति भाव से बजाते रहे। दीदी कहती,'रामा भाई पर छोटे सरकार का बहुत एहसान है... ई जनम भर ना चुका पाएंगे।'

वाक़ई रामा भाई दूसरी मिट्टी के बने थे... कर्म और कर्तव्य से बंधे...उन्हें देखकर मन वितृष्णा से भर जाता... इतना बेरीढ़ आदमी भी कोई हो सकता है क्या? लेकिन रामा भाई ऐसे ही थे।

छोटे सरकार हवेली के मुख्य द्वार पर खड़े थे। दीदी आरती उतार रही थीं। भीड़ जयकारे लगा रही थी... हवाई फायर मुतवातिर जारी थे...छोटे सरकार का ये रुतबा देखकर दोनाली सिंह चौड़े हुए जा रहे थे गोया उसमें अपनी भी प्रतिछाया देख रहे हों। यह अकारण नहीं था। छोटे सरकार के जेल में रहने के दौरान उनके साम्राज्य को दीदी ने संभाला था। वही हुक्म देती, निर्णय लेती। लेकिन वह जैसे छोटे सरकार होने के मुग़ालते में जीते रहे। अब छोटे सरकार लौट आये थे... दुगुनी शक्ति के साथ... दुगुने प्रभाव के साथ। इस ख़याल के आते ही दोनाली सिंह के भीतर गहरा सन्नाटा पसर गया... चेहरा बेरंग हो आया... लगा वह सरेराह लुट गये हों।अगल-बगल देखा, रामा भाई  कहीं नहीं दिखे। मुखिया जी भी भीड़ में कहीं खो गये थे। इस भीड़ में वह अकेले हैं या भीड़ ने उन्हें अकेला कर दिया है? इस प्रश्न के साथ ही भीतर कुछ कचक कर रह गया। कमतरी का अहसास टीस गया। सहसा, किसी ने कंधे पर हाथ रखा। चिंहुक कर पीछे देखा, यह रामा भाई का बेटा जयवीर था। सुदर्शन कद काठी का शानदार नौजवान। कॉलेज में पढ़ने वाला जहीन लड़का। वह जब इंटर में अव्वल आया था, तब रामा भाई का सिर गर्व से तन गया था। छोटे सरकार ने भी उसकी खूब तारीफ की थी। रामा भाई से हुलक कर कहा था,'रामा भाई, जयवीर को खूब पढ़ाइये। देखिएगा एक दिन वह गाँव का नाम रोशन करेगा।' 

जयवीर को इस भीड़ में देखकर दोनाली सिंह को आश्चर्य हुआ,'तुम यहां क्या कर रहे हो?'

'छोटे सरकार का जलवा देखने आये हैं।' जयवीर उत्साह से भरा हुआ था। उसकी आवाज़ में गज़ब की उत्तेजना थी।

दोनाली सिंह अवाक थे। समझ नहीं पा रहे थे कि जयवीर के इस रोमांच का क्या अर्थ लगायें? मन मसोस कर रह गये। 

तभी जयवीर ने ठंडी आह भरते हुए उन्हें टोका,'स्साली जिंदगी हो तो ऐसी हो! क्या कहते हैं, दोनाली जी?'

दोनाली सिंह के भीतर एकाएक उदासी का रंग कहीं ज़्यादा धूसर हो आयाथा। वह जयवीर के सवाल से बचते हुए रामा भाई के लिए अफ़सोस से भर गये थे।

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परिचय 

शिक्षा :एमए( हिन्दी) कुमायूं विश्वविद्यालय नैनीताल । प्रकाशित पुस्तकें: हस्तक्षेप, नृशंस, हमजमीन, कोहरे में कंदील, चांद के पार एक चाभी,अथ कथा बजरंग बली,मेरी चुनी हुई कहानियां (कहानी संग्रह) प्रकाशित।

उपन्यास :अशोक राजपथ, रुई लपेटी आग प्रकाशित 

 दैनिक हिन्दुस्तान( पटना) में दैनिक व्यंग्य काॅलम लेखन। सैकड़ों लेख , रिपोर्ट, टिपण्णियां और समीक्षाएं विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित ।

संप्रति : दैनिक हिन्दुस्तान, पटना से सहायक संपादक के पद से सेवानिवृति के बाद स्वतंत्र लेखन।

सम्मान: बनारसी प्रसाद भोजपुरी कथा सम्मान( हिन्दी) ,अ.भा. विजय वर्मा कथा सम्मान, मुबंई, सुरेन्द्र चौधरी कथा सम्मान, फणीश्वरनाथ रेणु कथा सम्मान ( राजभाषा विभाग,बिहार) ।

स्थाई निवास : कृष्णा निवास, सुमति पथ, रानीघाट, महेंद्रु, पटना -800006

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