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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

04 अक्तूबर, 2024

हरिनारायण सिंह 'हरि' के नवगीत



एक

हम मछली हैं
जल में ही
किल्लोल करेंगे
राजा जी के प्यादे
ऐसा सोच रहे हैं

आँटे की गोली फेकेंगे
इतरायेंगे
हमें तड़पता देख
तनिक वे घबरायेंगे
रहो धैर्य से पार करो
संकट के ये दिन
उड़नखटोला पर उड़कर
वे समझायेंगे

जाल चाँदनी लेकर
हल्लबोल करेंगे
राजा जी के प्यादे
ऐसा सोच रहे हैं

जलप्लावन के दिन आये
मस्ती ही मस्ती
चाहे कागज पर तैरे
किश्ती-दर-किश्ती
चहल-पहल है
चार दिनों की सुखद चाँदनी
हासिल कर लो माल
यहाँ बिकती है सस्ती

किस हिसाब से कैसे
हिस्सा गोल करेंगे
राजा जी के प्यादे
ऐसा सोच रहे हैं

उठो मछलियो!
अपने हक का पानी माँगो
न्याय करेंगे राजा जी
शक अपना त्यागो
दीनबंधु, परजावत्सल
एसी में बैठे
अब निकलेंगे, अब निकलेंगे
भागो-भागो

रुको घोषणा अबकी
वे अनमोल करेंगे
राजा जी के प्यादे
ऐसा सोच रहे हैं
 ०००
     















दो 

नींद बहुत गहरी दिल्ली की,
अभी इसे सोने दो
बच्चा गर रोता भी है तो
अभी उसे रोने दो

बरस सैंकड़ों बाद
इसे यह मीठी नींद मिली है
बरस सैंकड़ों बाद
चैन की सोयी कली खिली है
बरस सैंकड़ों बाद
निकंटक राज मिला भारत का
बरस सैंकड़ों बाद
राजसी इच्छा जगी दिली है

होता है गर उथल-पुथल कुछ
अभी उसे होने दो
नींद बहुत गहरी दिल्ली की
अभी इसे सोने दो

लड़ते-लड़ते श्लथ दिल्ली को
है आराम जरूरी
जन-मन को सहलाने खातिर
अल्ला-राम जरूरी
राजसिंहासन सोच रहा है
सब ही तो अपने हैं
इनको मीठा लगने खातिर
लँगड़ा आम जरूरी

बीज-प्रीत बोती है दिल्ली
अभी इसे बोने दो
नींद बहुत गहरी दिल्ली की
अभी इसे सोने दो

अनुभव बहुत मिला है इसको
राज करेंगे कैसे
मुगलों-अँगरेजों से सीखी
ताज रहेंगे कैसे
दिल्ली बहुत सयानी है अब
नहीं इसे समझाओ
दिल्ली को सब पता गगन में
बाज उड़ेंगे कैसे

दिल्ली कब से भूखी-प्यासी
भरे-भरे दोने दो
नींद बहुत गहरी दिल्ली की
अभी इसे सोने दो
  ०००
        
तीन 


राजा जी की चली सवारी
जयजयकार करो जी
ऊँचे-ऊँचे चढ़ जायेगी
बस ललकार भरो जी

अँगरेजों ने बहुत सिखाया
काम वही आयेगा
पीठ पोछ दो संख्याबल की
अनुगत हो जायेगा
और निबल संख्याबल को
आगे दुत्कार बढ़ो जी

खेल रहे जो राजा खेला
उसको झाँपो-झाँपो
राजा का इकबाल बहुत है
इसे सोचकर काँपो
तुम में उनकी शक्ति समाहित
कर हुंकार लड़ो जी

तुम ही ईश्वर,तुम ही अल्ला
महापुरुष अवतारी
आराधन कर जोड़ खड़े हैं
हम जनता संसारी
नीलकंठ,विषपायी विषधर का
सत्कार करो जी
    ०००         

         
चार 


कम सेवा, कुछ अधिक दिखावा
अखबारों में नाम छपे
यह दस्तूर बढ़ा जाता है
प्रजातंत्र की माया है
इंस्ट्राग्राम, फेसबुक,
सोशल मीडिया छाये रहते हैं
ओछे- बड़े सभी तबकों ने
ऐसे नाम कमाया है

आत्मश्लाघा, विज्ञापन का दौड़
सजा बाजार बड़ा
राजनीति का यह चमकीला यों ही
क्या व्यापार खड़ा
यह इन्भेस्ट मुनाफा वाला
एक लगा सोलह पाओ
इसी राह चलकर यारों ने
ऊँचा महल बनाया है

आपत्काल सुनहरा अवसर
सेवादारों को मिलता
काले बादल घिर जाने पर
मन-मयूर तत्क्षण खिलता
भँजा रहे सब रिश्तेदारी
जात-धरम सब देख रहे
यों ही नहीं अडिग-अविचल
यह खड़ा कीर्ति का पाया है

उजला कोट पहनकर
काला दिल वाला है चढ़ धाया
चूहे सौ-सौ खाकर बिल्ली ने
यह नुस्खा अपनाया
कहते ऐसी ही राहों से
हिम्मत वाले चढ़ जाते
लालकिलों पर किस्मत वालों ने
झंडा फहराया है
   ०००        

 

     












पाँच 


सब बेटे जब आपस में
बतियाते रहते हैं
फिकर छोड़कर पिता
जहाँ सुस्ताते रहते हैं
सब बहुएँ जब
हँसी-ठिठोली करतीं आपस में
ऐसा घर-परिवार मिले तो
अच्छा लगता है

अग्रज अपने अनुजों का जब
ख्याल किया करते
छोटे बढ़कर अग्रज का
सत्कार किया करते
पास-पड़ोसी से झंझट का
नाम नहीं होता
ऐसा गाँव-जबार मिले तो
अच्छा लगता है

पढ़ने-लिखने में दिलचस्पी
दिखा रही पीढ़ी
उन्नत शिखरों पर चढ़ने की
बना रही सीढ़ी
आपस में सौहार्द-भाव के
पंख फड़कते जब
ऐसा नभ-संसार मिले तो
अच्छा लगता है

हैं अशीषते आगे बढ़कर
नव जेनरेशन को
मिलजुलकर गर बढ़ा रहे हों
अपने नेशन को
शत्रु-देश से
भर ताकत भर लोहा लेने को
जन-जन से हुंकार मिले तो
अच्छा लगता है
 ०००       
सभी चित्र फेसबुक से साभार 
०००


संक्षिप्त परिचय  


• मूल नाम  : हरिनारायण सिंह
• जन्म : 2 जनवरी , 1958, जौनापुर (राजपुर) , जिला-समस्तीपुर (बिहार) ।
• शिक्षा : एम ए (राजनीति विज्ञान)
• मानद उपाधि: विद्यावाचस्पति
• लेखन :  हिन्दी व बज्जिका में ।

पत्रकारिता : दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान में।
प्रकाशित कृतियाँ  : 
•प्रबंधकाव्य  : चक्रव्यूह , अभिमन्यु ,राधेय ( हिन्दी ) और कर्ण (बज्जिका ) ।
• कविता संग्रह : मन नही थिर आजकल  , आज का यक्षप्रश्न , राष्ट्रमन, अजब यह वक्त (हिन्दी) और 'बिहान के बात करऽ' ( बज्जिका)।
• गीत/नवगीत संग्रह : हुआ कठिन अब सच-सच लिखना  , समय के थपेड़े , मुक्त मन के गीत,  बुद्ध रहे चीत्कार और मेरे राम ।
• ग़ज़ल/गीतिका संग्रह :  जमाना खाक बदलेगा ।
•दोहा संग्रह : 'सिमट गये संवाद ।
• लघुकथा संग्रह  : 'मेरी लघुकथाएँ।
• समीक्षा : किताब के बहाने
• संपादित कृतियाँ    : यथार्थ के धरातल पर (काव्य संकलन) और रक्तबीज (लघुकथा संकलन), कई पत्रिकाओं के संपादन से संबद्ध।
• प्रसारण : आकाशवाणी, दूरदर्शन,अन्य टीवी चैनलों व राष्ट्रीय मंचों से हिन्दी व बज्जिका में प्रसारण।
• सम्मान: कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित।
• सम्प्रति  : • केएसएस काॅलेज, मोहिउद्दीन नगर (समस्तीपुर) में राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष पद से अवकाश प्राप्त ।
• पता : ग्राम  : जौनापुर, पोस्ट-जौनापुर
            भाया- मोहिउद्दीन नगर ; जिला समस्तीपुर (बिहार) , पिन- 848501
मोबाइल            : 9771984355
ईमेल                : hindustanmohanpur@gmail.com
                                                      •

संलग्न- हरिनारायण सिंह 'हरि' की तस्वीर
घोषणा- स्वरचित,अप्रकाशित व अप्रसारित। 

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