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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

18 अक्तूबर, 2024

डॉ संतोष पटेल की कविताऍं


नगरवधु नहीं बौद्ध भिक्षुणी 


लिच्छ्वियों को आश्चर्य है भारी 

आम्रपाली है आभारी

तथागत ने आमंत्रण स्वीकार किया 

उसका

वैशाली की नगरवधु नाम है जिसका।













नगर के श्रेष्ठीगण कैसे यह सहेंगे

चलो उसको आग्रह छोड़ने को कहेंगे

समूह बना पहुंचे सब आम्रपाली के घर

कैसे भी रखना था अपना सम्मान ऊपर।


आम्रपाली!

तथागत अतिथि है सारे नगर के

आतिथ्य उनका राजमहल ही होगा

जा तू बता दे स्थान परिवर्तन

निरस्त हुआ तेरा अब आमंत्रण।


हे लिच्छ्वियों!

परिवर्तन की बात भूल ही जाओ

उसकी संभावना क्षीण है

तथागत मेरे अतिथि हैं इसका भान हो

मेरे आग्रह का भी मान हो।


ऊंची आवाज में श्रेष्ठि बोले

पहाड़ शिखर जैसा दंभ दिखाते मुंह खोले

तू नगरवधू है!

कैसे भूल जाती हो

हमसे ही तू ज़बान लड़ाती हो।


बोल!

कितनी कोटि स्वर्ण मुद्राएं चाहिए

निमंत्रण का आग्रह छोड़ने के लिए

तथागत को भोजन कराने का

प्रण तोड़ने के लिए।


हे! लिच्छिवियों 

हे! नगर श्रेष्ठियों

रखो अपनी यह एक कोटि स्वर्ण मुद्राएं

नगरवधु के पास जाने कितनी आए

भले ही दे दो तुम वैशाली नगर

लेकिन सब अवगत हो जाओ मगर।


अब हम मुक्त हुए प्रतिदिन के काम से

मुक्ति मिली नगरवधु के नाम से

बुद्ध की शरणागत हूं

बुद्ध भिक्षुणी बन संघ में आगत हूं।

०००


विवाद के मूल


भंते ! 

मैं उपालि शरणागत हूं

आपके चरणों में आगत हूं

किंचित कुछ प्रश्नों में उलझा हूं 

विवाद के मूल पर कुछ बोलें 

उसके भेद को खोलें।


उपालि!

करूणाकर ने बोला

आपत्ति को आपत्ति जानो

अनापत्ति को अनापत्ति

हल्के दोष को हल्का समझो

बड़े दोष को बड़ा ही मानो।


उपालि!

बोले फिर तथागत 

गंभीर दोष को कहना सामान्य 

सामान्य को गंभीर कहना

दोनों ही गलत बात है

हमारे व्यवहार का यह निपात है।


तथागत !

और क्या कारण हो सकते हैं 

उपालि ने जिज्ञासावश पूछा।


बोले शाक्यमुनि 

सुनो उपालि!

असम्पूर्ण दोष को सम्पूर्ण मानना

सम्पूर्ण को असम्पूर्ण 

सामान्य दोष को असामान्य 

असामान्य को सामान्य 

सप्रतिकर्म को अप्रतिकर्म 

और अप्रतिकर्म को सप्रतिकर्म जानना।


विवाद के हैं ये मूल

जो त्याग दे इनको

मिट जाता है हिया का शूल

जीवन में फिर खिल जाता हैं

शांति रूपी एक फूल

०००


आखिर तुम बौने साबित हुए


क्या लगता है तुम्हें

बुद्ध को मिटा दिया 

या बुत को गोलियों से छलनी कर

बुद्ध का नामोनिशान खत्म कर दिया


तुम्हारी बंदूकों से बेशक मूर्तियां 

टुकड़ों में खंडित हो जाएगी

लेकिन विचारों को कैसे मिटाओगे

किस किस के दिलोदिमाग से 

बुद्ध को हटाओगे

कितनों के गर्दन उड़ा दोगे?


ना जाने कितने असलहों का प्रयोग किया

कितने ही बम लगाए

कितने ही डायनामाइट खर्च किए

कितनी कट्टरता पैदा किए होगे तुम

कितनी हिंसा की होगी तुमने

पर अहिंसा, करुणा और दया के समाने

आखिरकार बौने ही साबित हुए तुम


बुद्ध एक विचार हैं

मानवता के संदेशवाहक हैं

तुम्हारी अमनुष्यता में इतनी शक्ति नहीं

जो बुद्धत्व को ध्वस्त करे

बुद्ध और युद्ध दो ध्रुव हैं।

०००


बुद्ध देवता नहीं


कोई देवता नहीं है बुद्ध 

इंसान के रूप में था उन्हें

अनुभव कष्टों का

तभी तो उनके पास

करुणा है, प्रेम है और दया।


मनोवैज्ञानिक है बुद्ध 

करते हैं प्रेरित अपने धम्म से

सुनने, चिंतन करने और स्वयं को जानने के लिए

तब जा के कुछ मानने के लिए।


'श्रद्धावान लब्बते ज्ञानम' 

बुद्ध के शब्दकोश में नहीं 

'एहिपस्सिको' है उनके पास

प्रयोग करो फिर अनुभव करो

अनुभव बदल जाएगा ज्ञान में।


बुद्ध बाहर निकालते हैं 

ईश्वर, आत्मा और पुनर्जन्म के संजाल से

प्रतीत्यसमुत्पाद से देते है एक समझ

जागृत करते हैं वैज्ञानिक सोच

कारण और प्रभाव के नियम से।


कहते हैं बुद्ध कुछ भी नहीं होता शाश्वत सत्य

सब कुछ है परिवर्तनशील

निरंतर और अनवरत

जो जन्मा वह विनाशशील है।


फिर भी सब जानते हुए 

हमने बुद्ध को बदल दिया अवतार में जिसका उन्होंने किया विरोध  जीवन भर

मठ को बदल दिया मंदिर में

दफन कर उनके ज्ञान को

तब्दील कर दिया उनको देवता में।

०००


 लोक की शक्ति


कितनी शक्ति है लोकगीतों में

समझना है तो चित्त शांत कर के सुनो

सेनानीग्राम* की उन महिलाओं का समवेत स्वर में गाये उस गीत को

कितना प्रभावशाली

कितना प्रेरक

बदल कर रख दिया 

जिसने जीवन राग

ला दिया जड़ता में गतिशीलता 

शरीर रूपी वीणा के तार को 

इतना ना कसो कि टूट जाए

इतना भी ना छोड़ो ढीला कि 

उससे सुर ना फूट पाए

गांव की महिलाओं के इस गीत ने 

भर दी एक नई ऊर्जा

सिद्धार्थ गौतम के मन मस्तिष्क में

खोल दिया ज्ञान चक्षु 

महाकारुणिक के

ऊपर से सुजाता का पायस 

ग्रहण कर जान लिया कि 

नहीं होगा उद्धार

मानव का जप तप से 

किसी दार्शनिक विवादों के गप से

ना शरीर सुखाने वाले तप से

तब से गौतम चिंतन मनन में अनुबद्ध हुए

जाग कर ही सिद्धार्थ से बुद्ध हुए।

* आज का बकरौर ग्राम, फल्गु नदी के पार, बोध गया के निकट

०००


 बुद्ध की धरती


श्रावस्ती नगरी के परकोटे के बाहर

 सहेठ के टीलों से ढँका गया

बौद्ध साहित्य का प्रसिद्ध जेतवन विहार 

निकल आया सबके सामने 

खुदाइयों में 

हुई जेतवन की पहचान 

मिला सबसे अकाट्य प्रमाण

सहेठ की खुदाइयों में मिले

एक ताम्रलेख था पहचान

कनौज के गहड़वाल नरेश

गोविन्दचन्द्र द्वारा दिया सम्मान।


दबा दिया गया था इसको

एक सन्दूक़ में रखकर 

एक कमरे की नींव में 

जिसपर है एक अभिलेख 

छह गाँवों की आय का दान

'पवित्र जेतवन' के महाविहार महान

बुद्ध भट्टारक थे जहां भिक्षुसंघ के प्रधान। 


इतिहास है तो अवश्य सामने आएगा 

जिसका कुछ नहीं वह मिथकीय गुण गाएगा

जेतवन का वास्तविक इतिहास है सामने

जिसके हैं कई मायने

कोसल की राजधानी से विख्यात श्रावस्ती का हुआ पुनरुद्धार


परकोटों के बाहर निकल कर

मानो श्रावस्ती के जेतवन में

टीले से बाहर निकल कर बुद्ध बोल रहे हों:

"न हि वेरेन वेरानि, सम्मन्तीध कुदाचन। 

अवेरेन च सम्मन्ति, एस धम्मो सनन्तनो ।।"*


* वैर से वैर कभी शान्त नहीं होता। अवैर से ही वैर शान्त होता है।यह सनातन धर्म है। (धम्मपद से)

०००


कैसे दु:ख हो कम


राजगृह का वेणुवन

तथागत बैठे हैं ध्यानमग्न 

भिक्षु और उपासक 

प्रजा साथ में आये शासक 

घेरा में बैठे उनके सम्मुख

तेज़मय ललाट और 

चमकते मुख पर अदभुत कांति

मन में है अद्वितीय शांति।


पूछा सबने समवेत स्वर में

हे शास्ता! 

कैसे कम हो यह दु:ख हमारा

करुणामय वाणी में शान्यमुनि ने बोला

देशना से अपने इसके भेद को खोला

उपासकों! 

इसके मुख्य स्रोत को जानो

फिर मेरी बातों को मानो


काम भोग और आसक्ति 

विषय -वासना क्षीण करती है शक्ति

यह अग्नि के जैसे जलती है

चित पल पल बदलती है

जैसे जैसे यह बढ़ जाएगी

तृष्णा उपर चढ़ जाएगी

इसके परित्याग का प्रयत्न करो

मन से दूर करने का यत्न करो।


पुण्यों का तुम दान करो

शील समाधि का मान करो

प्रज्ञा शनै: शनै: जाग जाएगी

तृष्णा दूर भाग जाएगी।


राग द्वेष से मुक्त हो जाओगे

संसार में ही स्वर्ग को पाओगे।

दुख का तब होगा अंत

सुख पाओगे तुम अनंत

०००


बुद्ध से सरोकार

       


मानवता के प्रेरणा स्रोत को

कोशिश हुई बर्बरतापूर्वक मिटाने की

सुदूर ग्रीघकूट पर्वत से चट्टान गिरा कर

तो कभी नीलगिरी हाथी को ताड़ी पिलाकर

भरसक कोशिश तब भी की गई बुद्ध मिट जाएं

देवदत्त को क्या पता करुणा का अंत नहीं होता।


श्रमण शिरो दास्यति तस्याहं दीनार शत क्षस्यामि* जैसा दिया गया फतवा 

किये भाँति-भाँति के अत्याचार 

जलवा दिया उनके मठों और संघाराम को

भयानक उत्पीड़न किया बौद्धों का

हत्याएं कराई गईं बौद्ध साधुओं की तुड़वाए गए अनेक बौद्ध विहारों को

पुष्पमित्र शुंग को क्या पता 

नहीं होती है विजय हिंसा की।


वैसे तो हूणों ने नहीं छोड़ी कोई कसर

ना ही तुर्की आक्रमणकारियों ने

कोशिश कम नहीं हुई अफ़गानियों की

तलवार के बल पर सब कुछ मिटा देने की

मिहिरकुल को क्या पता कि जला देने से

बौद्ध विहार और संघाराम

तोड़ देने से स्तूपों को और चैत्यों को 

नहीं खत्म हो जाता है बुद्ध का असीम प्रेम।


बहुत नाश किया गया तब भी यहां

जब कटवा दिया गया बोधगया का बोधिवृक्ष

ताकि नहीं उग सके दुबारा उसपर रखे गए गर्म तावे

बदल दी बुद्ध की प्रतिमा

और तो और भयंकर आगजनी से

कुशीनारा को नक्शे से हटा देने की कोशिश

बेचारे शाशांक को क्या पता

घृणा और द्वेष की उम्र छोटी होती है।


ज्ञान के स्थल में आग किसने लगाई

किसने नालंदा और विक्रमशिला जलाई

तुर्की हों या हो खिलजी

हाथ तो तुम्हारा भी था

क्योंकि कट्टरता में तुम कम थे क्या?

बहुत प्रयत्न किया  'प्रछन्न बौद्ध' बनकर 

लेकिन क्या पता तुमको संवेदना का बीज कभी मरता नहीं

यहां नहीं तो वहां उग आएगा।


क्या सोचते हो तुम

तोप और टैंकों से उड़ा देंगे बुद्ध के संदेशों को

बंदूक की गोलियों से बुद्ध की अहिंसा को

रॉकेट के हमले से बुद्ध की करुणा को

मिट्टी में विलीन कर दोगे बुद्ध की मानवता को

लगा कर बामियान की बुद्ध मूर्ति में विस्फोटक

मूर्ख हो तुम तालिबानियों 

बुद्ध बूत नहीं बुद्धि हैं

प्रेम हैं

करुणा हैं 

मानवता हैं 

दया हैं

जब तक मानव है इस पृथ्वी पर

हमेशा रहेगा हमारा बुद्ध से सरोकार। 

जो व्यक्ति एक श्रमण का सिर काटकर लायेगा उसे मैं सौ दीनारें दूंगा।

०००












बुद्ध उनके लिए

          

बुद्ध उनके लिए

करुणा के सागर करुणाकर नहीं

सम्यक सम्बुद्ध तथागत नहीं

पहले जानो फिर मानो के जनक भी नहीं

तर्क और तथ्य पर बात करने वाले

महामानव भी नहीं 

शील, प्रज्ञा और परिमिता की बात करने वाले शास्ता भी नहीं

ना अष्टांग मार्ग के प्रतिपादक ।


बुद्ध उनके लिए 

हैं मात्र एक वस्तु

जिनकी मूर्ति के सिर में उगाते हैं वे फूल और बोनसाई

बनाकर उसको फ्लावर पॉट

कार्यालय के एक कोने को सजाते हैं

उनकी तस्वीरों को लगाते हैं वे

मसाज पार्लर में और स्पा में

जहां क्या होता है शायद ही छुपा हो किसी से।


बुद्ध उनके लिए

एक बुत भर हैं 

इसलिए उनके बुत को गोलियां से उड़ा देते हैं वे

यह समझ कर कि

इस तरह बुद्ध मिट जाएंगे उनके देश से

क्योंकि बुद्ध मौन हैं

आत्मा और परमात्मा के प्रश्न पर

स्वर्ग और नरक के सवाल पर

फिर उनको तो जन्नत में चाहिए बहत्तर हूरें।


बुद्ध उनके लिए

नास्तिकता के परिचायक हैं

इसलिए आग लगा दिया नालंदा के पुस्तकालय में

नेस्तनाबूत कर दिया तक्षशिला और विक्रमशिला

यज्ञ और वर्ण व्यवस्था को नकारने वाले भंते

कैसे पसंद आते उनको?

इसलिए कर दिया जमींदोज उनको 

कर दिया तब्दील बौद्ध मठों को अपने हिसाब से

बुद्ध की मूर्तियों को बना लिया 

अपना देवी देवता तोड़ मोड़ कर

ताकि बुद्ध सदा के लिए समाप्त हो जाएं।


बुद्ध उनके लिए

एक वैश्विक संदेश भर हैं ' युद्ध के विरुद्ध '

भले उनकी सारी ऊर्जा लगेअपने धर्म प्रचार में

सत्ता सुख भी धर्म को मजबूत कर के मिले

पर जब भी विदेश जाएं वें 

या आए कोई विदेशी मेहमान 

तो कहते नहीं थकते

बुद्ध की एक मूर्ति उन्हें पकड़ाते हुए

हमने दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिया।


बुद्ध उनके लिए

उनकी जाति के नायक हैं

इसलिए उनके ऊपर वे करने लगे हैं सेमिनार

कुछ काव्य गोष्ठी

कुछ गाना बजाना

और करा कर जातीय सम्मेलन

देते हैं संदेश कि बुद्ध की भांति 

हम भी हैं शांतिप्रिय और अहिंसक

मानवता के पोषक,

अनय के उद्घोषक,

लेकिन सब जानते हैं कि सदियों से रहे हैं वे

समाज में सबसे बड़े शोषक।

०००


पूर्णिमा और बुद्ध


नीलमणि के विस्तृत थाल में

स्वर्ण कुसुम सम

अपनी सोलहों कलाओं से उदित

पूर्णिमा का स्निग्ध चांद।


शुक्ल पक्ष का अंतिम दिन

फिर कृष्ण पक्ष 

और रात्रि धीरे धीरे 

निशीथ काल की ओर होगी अग्रसर।


आज तो पूर्णिमा का चांद

सर्वकलाओं से परिपूर्ण

शीतल रश्मियां समभाव से

वितरित हैं धरा पर

मां की तरह चंद्रमा 

शीतलता और वात्सल्य से सराबोर।


पूर्णिमा का चांद 

तब भी हुआ था उदित

समस्त कलाओं के दीप्त

चन्द्रमंडल का प्रकाशपुंज।


जन्म हुआ बुद्ध का

शीतलता और पूर्णता के साथ

पूर्ण छवि और पूर्ण सौंदर्य

सब कुछ पूर्णता के साथ।


पूर्णिमा की ही रात थी जब

ज्ञान को उपलब्ध हुए बुद्ध

उरवेला में निरंजना नदी के तट पर

ज्ञान भी पूर्णता के साथ।


विदा हुआ बुद्ध पूर्णिमा की रात्रि

बुद्ध का परिनिर्वाण पूर्ण है

जैसे उनका जन्म पूर्ण

पूर्णिमा प्रतीक ही है पूर्णता का

सम्बोधि होना पूर्ण है।

०००

चित्र -मुकेश बिजौले 


जन्म - 4 मार्च, 1974,बेतिया, बिहार

पिता : डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना

माता: श्रीमती चिंता देवी

शिक्षा :

पीएच-डी(विषय: भोजपुरी साहित्य में दलित चेतना के स्वर, इग्नू नई दिल्ली)

प्री पीएचडी टॉपर इन भोजपुरी, बीआरए बिहार विवि, मुजफ्फरपुर, बिहार)

एमफिल ( अंग्रेजी, मदुरई कामराज विश्वविद्यालय) 

एमए ( अंग्रेजी), बीआरए बिहार विवि, बिहार)

एमए(हिंदी), पांडिचेरी केंद्रीय विवि 

एम ए भोजपुरी(लब्ध स्वर्ण पदक), नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी, पटना।

एम.ए. (ट्रांसलेशन स्टडीज) अन्नामलाई यूनिवर्सिटी 

और 

एम.ए. (बुद्धिज्म) सुभारती विवि, मेरठ, उत्तर प्रदेश।

स्नातकोतर डिप्लोमा- अनुवाद (हिंदी-अंग्रेजी), इग्नू

सिनिअर डिप्लोमा - गायन (संगीत), प्रयाग संगीत समिति, प्रयागराज।

सर्टिफिकेट कोर्स इन बुद्धिस्ट स्टडीज, संघकाया फाउंडेशन, मुंबई 


संपादक - भोजपुरी ज़िन्दगी, 

सह संपादक - पूर्वांकुर (हिंदी - भोजपुरी ), 

साहित्यिक संपादक - डिफेंडर (हिंदी- इंग्लिश-  भोजपुरी),

 रियल वाच ( हिंदी), 

उपासना समय (हिंदी), 

झेलम न्यूज़।


*** भोजपुरी कविताएँ एम.ए. (भोजपुरी पाठ्यक्रम, जे पी विश्वविद्यालय ) में चयनित " भोजपुरी गद्य-पद्य संग्रह-संपादन - प्रो शत्रुघ्न कुमार 


सदस्य - भोजपुरी सर्टिफिकेट कोर्स निर्माण समिति, इग्नू, दिल्ली।


प्रकाशन - 

भोजपुरी 

1.भोर भिनुसार (भोजपुरी काव्य संग्रह मैथिली भोजपुरी अकादमी, दिल्ली सरकार द्वारा  प्रकाशित),

2.अदहन ( भोजपुरी कविता संग्रह)

3.अछरंग ( भोजपुरी कविता संग्रह)

4. अपने देसवा निक बा ( भोजपुरी कहानी संकलन)

हिंदी 

1.शब्दों की छाँव में (हिंदी काव्य संग्रह),

2.जारी है लड़ाई (हिंदी काव्य संकलन), 

3.नो क्लीन चिट (हिंदी काव्य संग्रह)

4.कारक के चिन्ह (हिंदी काव्य संग्रह)

5.अमीबा ( हिंदी काव्य संग्रह)

आलोचना


छायावाद के प्रवर्तक ( हिंदी आलोचना)


साझा संग्रह-


सरगम tuned (anthology), सन्मति पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नोएडा, 2016

मशाल, प्रकाशक : साहित्य संचय, दिल्ली,2016

मशाल-2, प्रकाशक :साहित्य संचय, दिल्ली,2017

शब्दों की अदालत में, प्रकाशक :साहित्य संचय, दिल्ली,2018

विमर्श के आईने से, संपादक द्वय: अदनान बिस्मिल्लाह, धर्मव्रत चौधरी, नवजागरण प्रकाशन, दिल्ली, 2019

समकालीन साहित्य और दलित।विमर्श, संपादक: पूनम कुमारी, साहित्य संचय, दिल्ली, 2019

समकालीन साहित्य में नारी का स्वरूप, संपादक: कंचन शर्मा, साहित्य संचय, दिल्ली, 2019

भोजपुरी गद्य-पद्य संग्रह,  प्रकाशक : नेपाल, काठमांडू से प्रकाशित 'शब्दों की गूँज',प्रकाशक :  संपादन: डॉ. संजीता वर्मा व गोपाल अश्क

अक्षर अक्षर बोलेगा, संपादक: डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना, प्रकाशक :नवजागरण प्रकाशन, दिल्ली

एक स्वर मेरा भी, प्रकाशक :नवजागरण प्रकाशन, दिल्ली

शब्दों के पथिक, संपादक: डॉ. अनुराधा ओस प्रकाशक : इंक पब्लिकेशन, उत्तर प्रदेश

Lockdown, An international anthology  publisher: Authors Press, New Delhi complied, translated and interviewed by Santhosh Kalluzhathil 

प्रेम तुम रहना, संकलन व संपादन : डॉ. सुमन सिंह, प्रकाशक : सर्वभाषा ट्रस्ट, दिल्ली

शोषण के विरुद्ध, भाग-1 संपादन : आर एस आघात प्रकाशक : कलमकार प्रकाशन, दिल्ली 

शोषण के विरुद्ध, भाग-2 संपादन : आर एस आघात प्रकाशक : कलमकार प्रकाशन, दिल्ली 

जोहार भोजपुरिया माटी, साझा भोजपुरी लघुकथा संग्रह, संपादक: कनक किशोर, प्रकाशक : सर्वभाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली।

जोहार 

सर्वश्रेष्ठ दलित कविताएँ, सम्पादक : डॉ. एन. सिंह, प्रकाशक : लता साहित्य सदन , गाजियाबाद, 2023

नया प्रस्थान -3, कविता विशेषांक में 5 कविताएं शामिल, संपादक: सतीश कुमार राय, विश्वविद्यालय हिंदी विभाग, बाबासाहेब भीमराव अंबेदकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर, बिहार, 2023

युग चेतना, संपादक : अनिल बिडलान, कलमकार प्रकाशन, दिल्ली, 2023

"I Won't Find another You नहीं तुम सा कोई दूजा",संपादक:Misna Chanu & Salil Jain, Authors Press, Delhi, 2023

नेपाल में भोजपुरी : संपादक, डॉ. गोपाल ठाकुर, गोपाल अश्क रितेश त्रिपाठी, भोजपुरी प्रतिष्ठान, वीरगंज, पर्सा, नेपाल, 2023

'सड़क पर मोर्चा :किसान के हक़ में कविता' चयन एवं सम्पादन: रामप्रकाश कुशवाहा राजेन्द्र राजन,

सेतु प्रकाशन प्रा.लि. नोएडा, उत्तर प्रदेश, 2024


मेरी कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद

Silent Echoes: Selected poems of Dr. Santosh Patel, translated by Dr. Kalyani Pradhan, Sarvbhasha Publication, New Delhi, 2023


मेरी कविताओं पर आलोचकों के आलेखों का संग्रह शामिल :

"संतोष पटेल का कवि-कर्म", संपादक: डॉ. मधुलिका बेन पटेल, डॉ. प्रियंका सोनकर, सर्वभाषा पब्लिकेशन, 2023


1.दलित साहित्य और सिनेमा एक नयी दृष्टि, डॉ. ममता, कलमकार पब्लिशर, नई दिल्ली, 2022

2.संस्कृति का समाजशास्त्र,सुशील द्विवेदी, परिकल्पना, दिल्ली,2023


अनुवाद : 


विश्व साहित्य की कविताओं का अंग्रेजी से भोजपुरी।

भारतीय भाषाओं में प्रकाशित कविताओं का भोजपुरी अनुवाद, अंग्रेजी के माध्यम से या इंटर एक्टिव ट्रांलेशन से।


संपादक : भोजपुरी दलित कविताएं।


मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा भारत जन जत्था के प्रकाशित 13 हैंडबुक का अंग्रेजी हिंदी से भोजपुरी अनुवाद। 

हिन्द स्वराज। 

धम्म पद।


सम्मान : 

आयाम, विचार केंद्रीय संस्था गोरखपुर द्वारा सम्मानित, 2023

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान,2023

भोजपुरी समागम, सिताब दियरा द्वारा सम्मान, 2023

भिखारी ठाकुर रंगमंडल प्रशिक्षण एवं शोध केंद्र व कला, संस्कृति और युवा विभाग द्वारा भोजपुरी कलाकार पद्मश्री। रामचंद मांझी जी की याद में कला- संस्कृति मंत्री जितेंद्र राय द्वारा पटना में 14.10.2022 सम्मानित।

परिवर्तन साहित्यिक मंच, दिल्ली द्वारा  आलोचक के रूप में सम्मान, 2022

सम्यक संस्कृति साहित्य संघ, अलीगढ़ द्वारा  प्रथम सुरजपाल चौहान  साहित्य सृजन सम्मान -2021।

फातिमा शेख अवार्ड,2021, बहुजन संस्कृति मंच व एआईएमआईएम कल्चरल विंग, नई दिल्ली द्वारा प्रदत्त।

साहित्य चेतना मंच, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश द्वारा द्वितीय ओम प्रकाश वाल्मीकि सम्मान, 2021।

साहित्य सम्मान,2021, भारतीय भोजपुरी समाज, नई दिल्ली।

कबीर सम्मान, 2021 लोकमंच पत्रिका,दिल्ली द्वारा प्रदत्त।

डॉ व्रजलाल वर्मा सम्मान, 2020, पीपुल फ़ॉर पीपुल संगठन, कानपुर, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रदत्त।

भारतरत्न डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम स्मृति इंडिया ग्रेस इंडिया लिटरेचर अवार्ड, 2018, नई दिल्ली।

परिवर्तन एचीवर अवार्ड 2017, परिवर्तन साहित्य मंच नई दिल्ली।

गुरु गोविंद सिंह 350 वीं जयंती पर राष्ट्र किंकर, राष्ट्रीय समाचार पत्र, नई दिल्ली द्वारा शिरोमणि सम्मान, 2017

स्वाधीन स्वर सम्मान, 2016, द्वराका सिटी दिल्ली द्वारा स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर।

श्री प्रभुनाथ सिंह सम्मान,2015, 8वां विश्व भोजपुरी सम्मेलन, नई दिल्ली में प्रदत।

भोजपुरी भाष्कर सम्मान 2014, जन मीडिया व मार्बल्स द्वारा प्रदत्त।

भोजपुरी कीर्ति सम्मान, 2008, द संडे इंडियन भोजपुरी पत्रिका द्वारा प्रदत्त।


कविता पाठ / पेपर रीडिंग - राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय मंच से । 


सम्प्रति:

सहायक कुलसचिव( असिस्टेंट रजिस्ट्रार), दिल्ली कौशल व उद्यमिता विश्वविद्यालय, दिल्ली सरकार, नई दिल्ली। 


पूर्व सहायक कुलसचिव( असिस्टेंट रजिस्ट्रार), दिल्ली टीचर्स यूनिवर्सिटी, दिल्ली सरकार, नई दिल्ली।


साहित्यिक गतिविधि:


संस्थापक :पुरवइया (रजि.), साहित्यिक, सांस्कृतिक व सामाजिक संस्था, दिल्ली।

संयोजक :दिल्ली शिक्षक विश्वविद्यालय का साहित्यिक, सांस्कृतिक व सामाजिक पहल सम्यक संवाद।

महासचिव : विश्व भोजपुरी सम्मेलन, पूर्वाचल एकता मंच, नई दिल्ली।

महासचिव :अखिल भोजपुरी भोजपुरी लेखक संघ, दिल्ली।

अध्यक्ष : भोजपुरी जन जागरण अभियान, नई दिल्ली।


सदस्य, एडिटोरियल बोर्ड


1.INTERNATIONAL Literary Quest, An International Multidisciplinary Peer Reviewed Refereed Research Journal, ISSN: 2319-7137

2.World Translation An International,Multidisciplinary Peer Reviewed Refereed Research Journal,ISSN No: 2278-0408

3.Shodh, A Triannual Bilingual Peer Reviewed Refereed Research Journal of Arts & Humanities,ISSN: 0970-1745


पता - आर जेड एच 940 राजनगर -2 पालम कॉलोनी नई दिल्ली-110077

संपर्क 9868152874

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7 टिप्‍पणियां:

  1. हार्दिक आभार।

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  2. सभी कविताएं अनूठी

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    1. जी शुक्रिया। संतोष पटेल।

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  3. दस की दस कविताये बहुत सुंदर बन पड़ी है दसदिश. से बुद्धम शरणम् गच्छामि का उद्घोष करते हुए....

    बुद्ध के गावं में जहाँ तक कविता है सत्य ki. संस्थापना का अहम सवाल है उसमे अन्य धर्मो को . गरियाने से बचा जा सकता था या परोक्षतम उल्लेख होता तो और अच्छा होता.....

    बुद्ध के मूर्तियों, किताबों, प्रतीकों, संबद्ध स्थानों को जलाने तोड़ने विध्वंश करनेक से उनके उपदेश विचार जो अजर अमर है, न मरते पर. बुद्ध के नाम पर उग आयी अंध समूहता क्रांति की बात. ज्यादा करती लगती, वैमनस्यता को संबल देती फ़ौज पर कटाक्ष संग खिलजी के सिपहसालार बख्तियार की बात संग कुलीन कुलों. पर. कटाक्ष भी किया वह चुभेगा जरूर.... गाँधीवादी विचार हो या अन्य कोई भी इससे अछूते नहीं आज तथाकथित संवाहको को जो. माय वे या हाई वे ko.पोषित करते अतिवामी अतिदक्षिणी अति बौद्धिक अति अति अति जिहादी बनकर भी... अति सर्वत्र वर्जयेत का सुख ही परम सुख अंत में...

    जीवन वीणा को असाध्यवीणा खुद के साथ. अन्य ko. बनाने वालो को भी. सम्यकता का संदेश. सुजाता की. पायस खीर से निसृत होता रहेगा आजन्म......

    बुद्ध और नानक dono.जुड़े पूर्णिमा से और पूर्णिमा से पूर्णिमा तक पूर्णिमा में ही .बुद्ध की यात्रा. अद्भुत....


    हर कविता अनुकविता अनुभवों को मुखरित करती नजर आती... आभार साधुवाद पटेल जी, बिजूका और एक बात और कवि की निष्णातताओ ki. सूची और प्रशस्ति प्रेरक भी... सम्पर्क सूत्र दें.. साधुवाद पुनश्च...

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