मध्य प्रदेश के जबलपुर से ताल्लुक रखने वाली कनकने राखी सुरेंद्र एक प्रतिष्ठित मीडिया प्रोफेशनल और सम्मानित लेखिका हैं। उनकी शैक्षणिक यात्रा जितनी अद्वितीय है, उतनी ही प्रेरणादायक भी—इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद जनसंचार के
क्षेत्र में कदम रखते हुए उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई।राखी की लेखन शैली की सबसे बड़ी ताकत उसकी सहजता और भावनात्मक गहराई है, जिसने उन्हें कविता प्रेमियों के बीच खास स्थान दिलाया है। उनका पहला हिंदी कविता संग्रह 'तुम्हारी मेरी बातें', जो जनवरी 2018 में प्रकाशित हुआ और नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में लॉन्च किया गया, ने साहित्य जगत में उनकी प्रभावशाली शुरुआत को चिह्नित किया।
हिंदी कविता में अपनी सफलता के साथ ही, राखी ने अंग्रेजी साहित्य में भी उल्लेखनीय योगदान दिया है। उनकी तीन अंग्रेजी किताबों में दो लघु कथा संग्रह और एक कविता संग्रह शामिल हैं। जनवरी 2021 में प्रकाशित 'द लेमनेड' लघु कथा संग्रह को पाठकों से व्यापक सराहना मिली, जिसके बाद जनवरी 2022 में इसका दूसरा भाग '2nd सर्विंग ऑफ द लेमनेड' जारी हुआ। जुलाई 2022 में प्रकाशित उनका कविता संग्रह 'द सिटी स्पैरो एंड इट्स टेल्स' ने शहर के जीवन को गौरैया की आँखों से दर्शाते हुए उनकी लेखकीय विविधता को और मजबूत किया।
कनकने राखी सुरेंद्र की रचनाएँ नियमित रूप से कई प्रिंट और ऑनलाइन माध्यमों में प्रकाशित होती रहती हैं, और वह विभिन्न साहित्यिक मंचों की सक्रिय सदस्य हैं। उनके साहित्यिक योगदान को उज्जैन की मालवा रंग मंच समिति द्वारा ‘हिंदी सेवा सम्मान 2016’ से सम्मानित किया गया है।
अपने संवेदनशील लेखन और गहरे विचारों के साथ, कनकने राखी सुरेंद्र आज भी साहित्य प्रेमियों को प्रेरित और प्रभावित करती रहती हैं। उनका लेखन न केवल भावनाओं को छूता है बल्कि जीवन के प्रति एक नई दृष्टि भी प्रदान करता है।
कविताऍं
एक
रोशनी की दरारें
यूँ ही कभी-कभी
ज़िंदगी मुट्ठी से रेत सी फिसलती है
जैसे बेमौसम बारिश की बूंदें
ज़मीन में समा जाती हैं
हम सोचते हैं कि हम टूट रहे हैं
पर शायद वो गिरना नहीं
नये रास्तों पर बिखरना है
कहीं और बह जाना है
दरारें यूं ही नहीं बनतीं
वो रास्ते खोलती हैं
जहाँ से सुबह की पहली किरण
चुपके से दाखिल हो
हर बिखरा टुकड़ा
अपनी नयी शक्ल की तलाश में होता है
एक नया चाँद
एक नई दिशा
कभी-कभी टूटने का मतलब
वापस जुड़ना नहीं
बल्कि कुछ और होना है
हम बिखरते नहीं
हम एक दरार से गुज़र रहे होते हैं
रौशनी का नया चेहरा लिए
०००
दो
कहानियाँ जो गुमसुम रह गईं
कभी तो हम बैठते थे
आग के पास
रात के सन्नाटे में
लफ्ज़ों की रौशनी से
दिलों को गर्माते हुए
अब शहर चमकता है
पर बातों का अंधेरा गहरा है
टीवी की स्क्रीन में छिपे
फिल्मों के पर्दों के पीछे
हम खो गए हैं अपने ही घरों में
कभी रिश्ते नज़रों में थे
अब बस आवाज़ें सुनते हैं
पर एक-दूसरे को नहीं
सुनने का हुनर खोया है
जैसे कोई भूला हुआ गीत
कहानी वही है
पर अब वो आग कहाँ
जहां लोग कहानियाँ कहते थे
सुनते थे
०००
तीन
अंदर का मैदान
कब समझ में आएगा
कि जो जंग हम बाहर लड़ते हैं
वो असल में
अंदर ही छिड़ी रहती है
हर तर्क, हर आरोप
सिर्फ़ सामने वाले से नहीं
अपने ही अंदर किसी हिस्से से होता है
जो शोर हम दुनिया में मचाते हैं
वो हमारे भीतर के सन्नाटे को तोड़ने की कोशिश है
हम तलवारें दूसरों पर चलाते हैं
मगर उनके घाव हमें भी लगते हैं
हर चोट, हर वार
दरअसल अपनी ही आत्मा को लगता है
जब तक अंदर की जंग नहीं थमेगी
बाहर का युद्ध बस एक परछाईं रहेगा
जो हर मोड़ पर वापस आएगा
०००
चार
बेआबरू ईमान
हर रोज़ देखती हूँ
लोग नैतिकता का ख़ूबसूरत मुखौटा पहनते हैं
जैसे चाँदनी रात में
छिपे बादल
उनके शब्द फूल से महकते हैं
पर हाथ काँटों से लहूलुहान
सिद्धांतों की चादर ओढ़े
वो छल की बारिश में भीगते हैं
ईमानदारी तो हवा है
जिसे कोई दीवार रोक नहीं सकती
वो बेपरवाह बहती है
बिना किसी क़ायदे के
सच्चाई किसी दरवाज़े से नहीं गुजरती
वो खिड़की से अंदर आती है
और वहीं बस जाती है
जहाँ दिल खुला हो
०००
पॉंच
अधूरी पेंटिंग
दीवार पर टंगी वो अधूरी पेंटिंग
जिसमें रंग बिखरे हुए हैं
पर तस्वीर अब भी साफ़ नहीं
कैनवास पर उभरे चेहरे
जैसे पूछते हैं सवाल
क्या हम कभी पूरे होते हैं
या हमारी ज़िंदगी भी
इसी पेंटिंग की तरह अधूरी रह जाती है?
०००
छः
सूखा पत्ता
वो सूखा पत्ता
जो एक बेंच पर गिरा था
किसी ने उठाया नहीं
वो अकेला था
पर हवा के हर झोंके के साथ
कुछ और दूर हो जाता था
क्या पत्ते भी
हमारी तरह दूरियों में खो जाते हैं
या वो वापस पेड़ से मिलने की कोशिश करते हैं?
०००
सात
सड़क पर चलते हुए
जब मैं सड़क पर चलती हूँ
गाड़ियों का शोर और लोगों की आवाज़ें
कभी-कभी धुंधली लगती हैं
हर कदम पर
मैं सोचती हूँ
कितने अनजान चेहरे
कितनी कहानियाँ हैं
हर किसी की अपनी राह है
लेकिन हम सब एक साथ हैं
इस जीवन के एक बड़े सफर में
हर टकराहट
हर मुस्कान
एक अज्ञात बंधन की याद दिलाती है
०००
चित्र फेसबुक से साभार
बहुत उम्दा सभी कविताएं.. कंडवाल मोहन मदन
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