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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

24 अक्तूबर, 2024

तेजेन्द्र शर्मा की कविताऍं


एक

रिश्तों को समझना चाहता हूं।


रिश्तों को समझना चाहता हूं।

प्रयास जारी है

रिश्ते फिसल जाते हैं

रेशम से होते हैं।

खुरदरे इन्सान के हाथों से

निकल जाते हैं, हो जाते हैं गुम रिश्ते




चित्र 

संदीप राशिनकर








कुछ रिश्ते मेरे अपने थे 

जन्म से भी पहले

अपने थे मेरे

कुछ बना लिये

चाहा कि मेरे रहें

अपने कहां रह पाते हैं

रिश्ते


चुभते हैं, दुख भी देते हैं

अपना कहते हैं

मानते नहीं अपना

रुलाते हैं, भूल जाते हैं

कष्टों का आदी बना देते हैं

रिश्तें



कुछ रिश्ते थे

सर्दी में गरम कम्बल से

बिजली बन्द, तपती दोपहरी में

चलती पुरवाई से

अचानक कहां खो गये, वो

रिश्ते।


रिश्तों को समझना चाहता हूं।



दो


हम ऐसे क्यों हो जाते हैं?


हम ऐसे क्यों हो जाते हैं?

है दिल में बसाया जिसका दिल

दिल क्यों उसका तड़पाते हैं?

हम ऐसे क्यों हो जाते हैं?


चाहें जिनको तन से मन से

बस अहं से दुःख दे जाते हैं

हम ऐसे क्यों हो जाते हैं?


जिसकी ख़ातिर सबको छोड़ें

उसके भी नहीं बन पाते हैं

हम ऐसे क्यों हो जाते हैं?


जिससे चाहें मिलना हर पल

तक़लीफ़ उसे पहुंचाते हैं

हम ऐसे क्यों हो जाते हैं?


जिन आंखों में पाते जन्नत

उनमें ही आंसू लाते हैं

हम ऐसे क्यों हो जाते हैं?


जब जानते हैं, वो ही सच है

फिर उसको क्यों झुठलाते हैं

हम ऐसे क्यों हो जाते हैं?

०००


तीन 


ज़रा रफ़्तार अपनी कम करो तो 


तुम्हारे साथ चल कर थक गया हूँ 

ज़रा रफ़्तार अपनी कम करो तो 


न नित अखबार में आया करो तुम 

बनाना दुश्मनों को कम करो तो 


तुम्हारे नाम से जलते हैं सब ही 

दिखाना चेहरा अपना कम करो तो 


सभी इन्सान इक जैसे नहीं हैं  

कभी आलोचना कुछ कम करो तो 


बदल ना पाओगे फ़ितरत किसी की 

ये अपनी कोशिशें तुम कम करो तो



चार 



क्यों स्थाई नहीं होते सम्बन्ध...


आज आँखें भारी हैं

पलकें खुल नहीं रही

तुम्हारे होंठों से निकले शब्द

मेरी पलकों पर आ कर बैठ गए हैं.

 

तुम जो कहती हो

और जो नहीं कहती हो

कुछ व्यर्थ नहीं जाता है

शब्दों का सच उनका यथार्थ है

 

संबंधों का बनना

टूटना, बिखरना नष्ट होना

होता है महसूस

क्यों स्थाई नहीं होते सम्बन्ध...

 

चमकती धूप

गहराते बादल सोच रहे हैं

क्षितिज पर जा कर क्या होगा

बादलों में समां जाएगी धूप



पॉंच 


कविता लिखने से क्या होगा...


नहीं लिखनी मुझे कोई कविता

कविता लिखने से नहीं बदलते इतिहास

न ही कभी बदली हैं प्रथाएं।


मुझे नहीं है कोई अपराध बोध!

अपने कुल में जन्म लेने का

नहीं है कोई अपराध बोध !

जन्म लेना मेरा निर्णय नहीं था।

क्या तुम्हारा या उनका था?

जो मैंने किया नहीं, भला

उसका अपराध बोध क्यों लूं

अपने कांधों पर?


उन्होंने किया,

जो ठीक समझा, वही किया

मुझे ठीक नहीं लगा...

मैं नहीं कर सकता जो उन्होंने किया

वैसे कविता उन्होंने ने भी नहीं लिखी

और,

नहीं लिखूंगा मैं भी कोई कविता।


कविता लिखने से केवल निकलेगी

मेरे मन की भड़ास 

नहीं बदलेगी उनकी नियति 

जिनकी छाया से मेरे पुरखे

हो जाते थे अपवित्र।

बातें, बातें ही रह जाती हैं 

नहीं बदल पाती हैं भाग्य।


मुझे करनी होगी मेहनत

जा कर बैठना होगा उनके बीच

नहीं मांगूँगा उनसे माफ़ी

मांगूंगा उनसे रिश्ता

जीवन भर का। 

दांत काटे की रोटी का स्वाद

करूंगा महसूस। 


उनकी बस्ती में जाऊंगा

समझूंगा मानसिकता उनकी

उनके छूने से नहीं होऊंगा अपवित्र

बैठ कर उनके संग

बिताऊंगा अपनी शामें।

किसी आरक्षण कोटे के तहत नहीं

दिल से बनेंगे यह रिश्ते।


मुझे नहीं लिखनी है कविता

क्योंकि मुझे बदलना है इतिहास।

०००


परिचय 

जन्मः 21 अक्तूबर 1952 (जगराँव) पंजाब। शिक्षा: दिल्ली विश्विद्यालय से एम.ए. अंग्रेज़ी, कम्पयूटर कार्य में डिप्लोमा ।प्रकाशित कृतियां: तू चलता चल (2021), मृत्यु के इंद्रधनुष (2019), स्मृतियों के घेरे (समग्र कहानियां भाग-1) (2019),

नयी ज़मीन नया आकाश (समग्र कहानियां भाग-2) (2019), मौत... एक मध्यांतर (2019), ग़ौरतलब कहानियां (2017); सपने मरते नहीं (2015); श्रेष्ठ कहानियां (2015); प्रतिनिधि कहानियां (2014); प्रिय कथाएं (2014); तेजेन्द्र शर्मा – पांच कहानियां (2013) दीवार में रास्ता (2012); क़ब्र का मुनाफ़ा (2010); सीधी रेखा की परतें (2009); बेघर आंखें (2007); यह क्या हो गया! (2003); देह की कीमत (1999); ढिबरी टाईट (1994); काला सागर (1990) सभी कहानी संग्रह ।   

ये घर तुम्हारा है... (2007 - कविता एवं ग़ज़ल संग्रह); मैं कवि हूं इस देश का (2014 - द्विभाषिक कविता संग्रह); टेम्स नदी के तट से (2020) । 

अपनी बात (खण्ड-1) – 2022, अपनी बात (खण्ड-2) – 2022 पुरवाई पत्रिका में प्रकाशित संपादकीय संग्रह। 

अनूदित कृतियां:

1.English - Grave Profits (English) – 2013, Publishers: Yash Publications, Darya Ganj, New Delhi-110002; 2. ढिबरी टाइट (पंजाबी) – 2004, प्रकाशक – सदीनामा प्रकाशन, कोलकाता।; 3. ईंटों का जंगल (उर्दू) – 2009,  प्रकाशकः एशियन कम्यूनिटी आर्टस, लंदन।  4. कल फेर आवीं – पंजाबी - 2011, प्रकाशक शिलालेख प्रकाशन, शाहदरा, नई दिल्ली। 5. पासपोर्ट का रङहरू (नेपाली) – 2006, प्रकाशक – साहित्य संचार समूह, इटहरी। अनुवाद – कुमुद अधिकारी। 6. निर्वाचित काहिनी – बांग्ला – 2015, प्रकाशक – सप्तऋषि प्रकाशन, कोलकाता। अनुवाद – प्रसित दास। 

* कहानी क़ब्र का मुनाफ़ा मुंबई विश्वविद्यालय की बी.ए. के पाठ्यक्रम में शामिल; कहानी अभिशप्त चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के एम.ए. हिन्दी के पाठ्यक्रम में शामिल। और कहानी ‘पासपोर्ट का रंग’ गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, नोयडा के एम.ए. हिन्दी के पाठ्यक्रम में शामिल। कहानी ‘कोख का किराया’ कलकत्ता विश्वविद्यालय, राजीव गांधी विश्वविद्यालय, अरुणाचल प्रदेश।

पुरस्कार/सम्मान: 1) ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय द्वारा एम.बी.ई. (मेम्बर ऑफ़ ब्रिटिश एम्पायर) की उपाधि 2017; 2) केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा का डॉ. मोटुरी सत्यनारायण सम्मान – 2011. 3) यू.पी. हिन्दी संस्थान का प्रवासी भारतीय साहित्य भूषण सम्मान 2013. 4) हरियाणा राज्य साहित्य अकादमी सम्मान – 2012. 5) मध्य प्रदेश सरकार का साहित्य सम्मान, 6) ढिबरी टाइट के लिये महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार - 1995 तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों । 7) भारतीय उच्चायोग, लन्दन द्वारा डॉ. हरिवंशराय बच्चन सम्मान (2008), 8) टाइम्स ऑफ़ इण्डिया समूह एवं आई.सी.आई.सी.आई बैंक द्वारा एन.आर.आई ऑफ़ दि ईयर 2018 सम्मान। 9) भारत गौरव सम्मान 2016 (ब्रिटेन की संसद में)। 

विविधः

- लंदन से प्रकाशित एकमात्र पत्रिका पुरवाई का संपादन

- कथा यू.के. संस्था द्वारा भारतीय उच्चायोग लंदन, नेहरू सेंटर लंदन, ब्रिटेन की संसद के हाउस ऑफ़ कॉमन्स एवं हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में निरंतर हिन्दी कार्यक्रमों का आयोजन।

- अंतरराष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान का पिछले 25 वर्षों से लगातार आयोजन। 

तेजेन्द्र शर्मा के लेखन पर उपलब्ध आलोचना ग्रन्थः    तेजेन्द्र शर्मा – वक़्त के आइने में (2009), हिन्दी की वैश्विक कहानियां (2012), कभी अपने कभी पराये (2015), प्रवासी साहित्यकार श्रंखला (2017), मुद्दे एवं चुनौतियां (2018), तेजेन्द्र शर्मा का रचना संसार (2018), कथाधर्मी तेजेन्द्र (2018), वैश्विक हिन्दी साहित्य और तेजेन्द्र शर्मा (2018) प्रवासी कथाकार तेजेन्द्र शर्मा (2019), प्रवासी साहित्य एवं तेजेन्द्र शर्मा (2019), भारतेतर हिन्दी साहित्य और तेजेन्द्र शर्मा (2019)। वाङ्मय पत्रिका का प्रवासी कथाकार तेजेन्द्र शर्मा विशेषांक (जुलाई-दिसम्बर 2020), वैश्विक संवेदना के कथाकार तेजेन्द्र शर्मा - 2022 (संपादक – अनुज पाल, नेहा देवी)। 

शोध – विभिन्न विश्वविद्यालयों से तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों पर अब तक दो पीएच. डी. और दस एम. फ़िल. की डिग्रियां हासिल की गयी हैं। 

संप्रतिः ब्रिटिश रेल (लंदन ओवरग्राउण्ड) में कार्यरत।

संपर्क: 33-A, Spencer Road, Harrow & Wealdstone,Middlesex HA3 7AN (U. K.).

Mobile: 07400313433, E-mail: tejinders@live.com, kathauk@gmail.com

5 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन से भी बेहतर सब

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  2. अपने आप से जूझती, अंतर्मन टटोलती दर्द और सुकून के बीच दोलती शोभित रचनायें

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  3. वाह तेजेन्द्र जी बहुत ही भावनात्मक कविताएँ रची है वाह बहुत ही सुंदर शब्द और भाव। आप हमेशा ऐसे ही लिखते रहे और हमेशा मुस्कुराते रहे वाह जी.......

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  4. मुझे लगता है कि अगर किसी इंसान का दिमाग परखना है तो उसके लिखे गद्य को पढ़ना चाहिए और हृदय को परखना है तो उसके द्वारा लिखे गए पद्य को पढ़ना चाहिए। मैंने तेजेन्द्र सर की कुछ कहानियां पढ़ी हैं। अभी पांच संपादकीय पढे हैं। कहानी तथा संपादकीय में उनकी बौद्धिकता से परिचित हुआ हूं। वे श्रेष्ठ कहानीकार और संपादक हैं। लेकिन आज कविताएं पढ़ी तो तेजेन्द्र सर का अलग ही रूप दिखाई दिया। जो बात या पीड़ा गद्य में न कह सके उनकी कविताओं में वह पीड़ा झलकती है। इन कविताओं में हृदय की ऐसी कोमलता है कि बस लगता है कि पढ़ते ही रहें। हम ऐसे क्यों हो जाते हैं, क्यों स्थाई नहीं होते संबंध, इन कविताओं में उन्होंने अपना दिल ही निकाल कर रख दिया है। सर इन कविताओं का कोई जोड़ नहीं है। बढ़िया कविताएं सर। बहुत बहुत बधाई आपको।

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  5. विचारों के साथ भावना का अनमोल खजाना है तेजेन्द्र जी की कविताएं।कहानियों की तरह खुद से बात करती हुई सहज अभिव्यक्ति है ।
    Dr Prabha mishra

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