बहुत पसंद घर
जहाँ भी होता हूँ
पहुँच जाना चाहता हूँ रास्ते पूछता हूँ
वाहन बदलता हूँ
या पैदल ही चलूँ टापते टापते
तब भी
उधर रूख करता हूँ जिधर है घर
चित्र मुकेश बिजौले
मैंने कई बार सुपर फास्ट ट्रेनें लीं
मेट्रो में सफर किया
जहाजें बदलीं ट्रामें लीं
मोटरबोट रोप-वे से चला हवाई यात्राएं कीं
हर हाल में
हर वक्त यही सोचा
पहुँचूं सही सलामत आधा अधूरा
भीग कर पसीने में नहाकर तरबतर
लू में , ठंड में
अपने घर में
मुझे याद नहीं
उम्र क्या रही होगी पहली बार जब हूक उठी थी
कि जल्दि पहुँचूं घर
यह नहीं है कि
पाब्लो नेरूदा की पुस्तक रेसिडेन्स ऑन अर्थ पढ़कर
या
बाबा नागार्जुन की कविता
अकाल और उसके बाद सुनकर हूक उठी हो घर की
वैसे ही पुराने शब्दों में कहूँ
पीढ़ियों जन्मजन्मांतरों से जरामरण के पार से
कामना रही है
घर की
भले ही भोजन न बना हों
भले ही खुद ही सांकल खोलनी पड़ी हों
भले ही प्रतीक्षा में न रहा हों कोई
भले ही पूर्णिमा की रात हो
शरद का खुला आकाश
ग्रीष्म की भरी दुपहरी हों
भले ही चीजें न खरीदी हों
पर हर हाल में नंगे पॉंव
चलकर या दौड़कर राह ली घर की
कभी राह चलते टोका भी किसी ने :
क्या जल्दि है इतनी
पहुँचने घर
आखिर कहाँ भागा जा रहा है घर
मैंने परवाह नहीं की
ऑंधी की
तूफान की भूकंप की
भूत की
न पलीत की
अर्जुन की ऑंख में समाई चिड़िया की तरह
समाई रही मेरी पुतलियों में
घर की राह
यह वह कृत्य है
घर पहुँचने का
जिसे बार बार किया मैंने
यही वह राह है जिस पर
सहस्र शताब्दियों से
चलता रहा मैं
यह अपने बारे में कह रहा हूँ
आप संभवत:
कहीं और रह कर ज्यादा दिनों तक
रह सकते हैं
ज़िन्दा
आप संभवत: कहीं और रह कर
पूरी कर सकते हैं
अधूरी नींदें
आप संभवत: बेपरवाह रह सकते हैं प्रतीक्षा में बिछी
ऑंखों से
आप संभवत:
नहीं सुनना चाहते हों संगीत
आप को संभवत:
नहीं लिखनी हों कविताएं
आपने संभवत:
न कोई चिट्ठी लिखी
या पढ़ी है
आप संभवत:
ऊल-जलूल चीजों से भरे हुए हैं
उचाट हो चुका है मन
या
राख हो चुका है
मैं अभी भी
चिड़ियों
पशुओं
जानवरों
आदिमानवों की तरह
ढूंढता खोजता फिरता हूँ
टोलों टकारों में
सिर छिपाने की जगह
फिर पुराने शब्दों मे कहूँ :
अभी भी असंख्य योनियों में
भटकता फिरूंगा इसी तरह
इच्छा लिये घर लौटने की
इसीलिए पसीज जाता हूँ
जब भी कोई कहे :
कहॉं जाऊंगा कहॉं रहूंगा कोई ठिकाना नहीं
ठिया नहीं
न मेरा डेरा
न बसेरा
आँखों में खुब जाती है बांस
जब कोई मलिन नज़रों से कहे :
मेरा घर नहीं
भाई,यह घर का प्रश्न है
गारे
मिट्टी ज़मीन
और
कुछ बॉंस की बात नहीं हैं !
०००
हमारी उपस्थिति से
उबलते दूध को गिरने से बचाया जा सकता है
खुद को खिलाफ हवाओं से गुजरते बचाया जा सकता है
बीमार को रक्त दिया जा सकता है
रोशनी में नहाया जा सकता है
गुलदाउदी को लगाया जा सकता हैं
देर तक नीले अंबर को निहारा जा सकता है
किसी को ध्रुव तारा समझाया जा सकता है
ऐसा क्या है जो संभव नहीं हमारी उपस्थिति से !
०००
गंध और कवि
(अग्रज कवि मलय जी को दिनांक 9 जनवरी 2024 को उनके अवसान दिन पर उन्हें याद करते हुए )
किताबों से निकलकर
सामने आता है कोई
यह कोई
उस किताब का हो सकता है कवि
रजनीगंधा से निकलकर आती हुई गंथ सरीखा
अदृश्य महकता रह सकता है कवि भी देर तक
सांसें बची नही हो उसकी तब भी
मिलते जुलते हैं
किताब में बैठा हुआ कवि और
रजनीगंधा की गंध
०००
मेरी कविता
मुझसे पहले
मेरी कविता उठ खड़ी होती है
आने वाले के लिए दरवाजा खोल देती है
मुझसे पहले खरगोश और लोगों से
प्रेम करने लग जाती है
आगे आगे चले मुझसे हमेशा मेरी कविता
ऐसी ही बनी रहे
और गलती होने पर मुझे
मारे पीटे गरियाए
घर से तक निकाल दे मुझे
ऐसी ही बनी रहे हमेशा
मेरी कविता
०००
ठीक उसी समय याद आया
कनाड़ा की सड़क पर
पिछली रात की
पिघली नही थी स्नो-परतें
चल रहा था सुबह की सैर पर मैं
मेपल के पत्ते टूटे पड़े मिले
कुछेक लोग दिखे
शीत लहरें गर्दनें ऊंची किए हुए
बोलती जा रही थी ऊंचे स्वर में
कुछ का कुछ
ठीक उसी समय याद आया भारत
पतंगों से भरा आकाश लिये
कतारबद्ध पेड़ गुलमोहर के साथ
और नाशपाती के स्वाद से भरा
याद आया भारत
०००
कवि का परिचय
कविता-संग्रह
(1) बातचीत की उड़ती धूल में (2002) सारांश प्रकाशन दिल्ली
(2) बहुत नर्म चादर थी जल से बुनी (2004) परिकल्पना प्रकाशन लखनऊ
(3) अभी जो तुमने कहा (2015) ज्ञानपीठ प्रकाशन दिल्ली
(4) लौट चुकी बारिशें (चयनित कविताएं) (2021) नोशनल प्रेस,दिल्ली
(5) सुनाई देती थी आवाज़ (चयनित कविताएं) (2023 ) न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन ,दिल्ली
(6) नए शब्द सुनूँगा (2024 ) न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन ,दिल्ली
(7 ) सहित्य की रचना-प्रक्रिया (1995) पार्श् प्रकाशन अहमदाबाद
(8) चली के जंगलों से पाब्लो नेरुदा का गद्य (2007) संवाद प्रकाशन,मेरठ
(9) जनबुद्धिजीवी एडवर्ड सईद का जीवन व रचना-संसार (2022) संवाद प्रकाशन,मेरठ
(10) कागज़ पर लिखी बातचीत (2023 ) न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन ,दिल्ली
(11) कुछ कवि कुछ किताबें (2023 ) लोकमित्र प्रकाशन ,दिल्ली
०००
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