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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

05 सितंबर, 2010

कश्मीर की घाटी-दक्खन का पठार



वरवर राव


घायल दिल ही देख पाता है जिसे
ऎसे गहरे दिलों की घाटी
सिर उठाए संघर्ष कर सकते हैं जो
उन जैसी दिलेर घाटी

स्वर्ग और नरक ने शायद झाँककर देखा भी हो
पर सूरज और चँदा के
अँधेरे उजालों की आँख मिचौली
आकाश कुसुम ही है वहाँ

देवदार वृक्षों की देह दृढ़ता
गुलमोहर फूलों की कोमलता
बर्फ-सा पिघलने वाला मन
नदियाँ-सी बहने वाली जीने की चाह

कश्मीर नींद से वंचित लोगों का है दिवास्वप्न
जागती संघर्षरत शक्तियों का है
अधूरा सपना

सिर से पैर तक आज़ादी की चाह लिए
पार कर लोहे के कंटीले बाड़
करके कर्फ्यू का सामना
सैनिकों के घेरे में बदन को ही हथियार-सा घुसाकर

गोली खाकर धराशाही होने वाले
चिड़ियों का झुँड बन जाते हैं
आँसुओं का बर्फ पिघलकर
बहता है लहू बनकर
भारत का मन मोहने वाला शासन
कर लेता है जब परमाणु अणुबंध अमेरिका से
आइनस्टीन का डर सच हो जाता है
वहाँ के लोगों के हाथ तो
पत्थर ही आए अपनी सुरक्षा के लिए

दूधमुँहें बच्चे, नौजवान, औरतें
बन गए आज़ादी की जीती जागती ज्वालाएँ
कश्मीर आज बना केसर के फूलों का गुलशन
सुलगने से रोम-रोम में आज़ादी
छितरने लगे हैं ख़ून के छींटे

सहानुभूति मत दिखाइए
उनमें से एक बन जुड़ जाइए उनके साथ

भारत में ही अलग होने की बात सुन
देशद्रोही कहने वाले फासिस्ट
भारत के कब्जे में फँसी जनता का
क्या हाल कर सकते हैं कल्पना कीजिए

पुलिस कर्रवाई के नाम पर
सेना से आक्रमण कराने वाला यूनियन
सात आदमी के लिए एक सैनिक के हिसाब से
दमन काण्ड कर रहा है कितने सालों से सोचिए

कश्मीर की घाटी और दक्खन के पठार का
दुश्मन तो है एक

वह दिल्ली में बैठा
अमेरिका के हाथों की कठपुतली
श्रीनगर गोल्फ में
और हैदराबाद के सचिवालय में
दलाल नियुक्त है उसके

मनुकोटा में हमसे फेंका गया पत्थर
कश्मीर में उनसे फेंका गया पत्थर
उसी दुश्मन को निशाना बनाए हुए हैं
उस पर आइए मिलकर हमला करें

अनुवादः आर. शान्ता सुन्दरी

6 टिप्‍पणियां:

  1. उत्‍तर भारतीय राज्‍य के मसले पर एक दक्षिण भारतीय कवि की उम्‍दा कविता

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  2. कश्मीर नींद से वंचित लोगों का है दिवास्वप्न
    जागती संघर्षरत शक्तियों का है
    अधूरा सपना

    sachmuch........

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  3. As usual Mr.Varavara a Naxal sympathiser has presented one sided view.Unable to understand what message he is trying to send

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