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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

06 जुलाई, 2016

कविता पाठ से एक मिनट का मौन : असद जैदी

नमस्कार मित्रो..  आज आपके लिए प्रस्तुत है हमारे समय की एक महत्वपूर्ण कविता।  आज,  जबकि विश्व भर में कट्टरपंथी ताक़तें उन्माद की हद तक अभिव्यक्ति के मुँह पर मौन का ताला जड़ने पर आमादा हैं,  यह कविता मौन के एक अलग पक्ष को उजागर कर रही है।

कविता:

"कविता पाठ से पहले एक मिनट का मौन"

[एमानुएल ओर्तीज

हिंदी अनुवाद- असद जैदी]

इससे पहले कि मैं यह कविता पढ़ना शुरू करूँ
मेरी गुज़ारिश है कि हम सब एक मिनट का मौन रखें
ग्यारह सितम्बर को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन में मरे लोगों की याद में
और फिर एक मिनट का मौन उन सब के लिए जिन्हें प्रतिशोध में
सताया गया, क़ैद किया गया
जो लापता हो गए जिन्हें यातनाएं दी गईं
जिनके साथ बलात्कार हुए एक मिनट का मौन
अफ़गानिस्तान के मज़लूमों और अमरीकी मज़लूमों के लिए

और अगर आप इज़ाजत दें तो

एक पूरे दिन का मौन
हज़ारों फिलस्तीनियों के लिए जिन्हें उनके वतन पर दशकों से काबिज़
इस्त्राइली फ़ौजों ने अमरीकी सरपरस्ती में मार डाला
छह महीने का मौन उन पन्द्रह लाख इराकियों के लिए, उन इराकी बच्चों के लिए,
जिन्हें मार डाला ग्यारह साल लम्बी घेराबन्दी, भूख और अमरीकी बमबारी ने

इससे पहले कि मैं यह कविता शुरू करूँ

दो महीने का मौन दक्षिण अफ़्रीका के अश्वेतों के लिए जिन्हें नस्लवादी शासन ने
अपने ही मुल्क में अजनबी बना दिया। नौ महीने का मौन
हिरोशिमा और नागासाकी के मृतकों के लिए, जहाँ मौत बरसी
चमड़ी, ज़मीन, फ़ौलाद और कंक्रीट की हर पर्त को उधेड़ती हुई,
जहाँ बचे रह गए लोग इस तरह चलते फिरते रहे जैसे कि जिंदा हों।
एक साल का मौन विएतनाम के लाखों मुर्दों के लिए --
कि विएतनाम किसी जंग का नहीं, एक मुल्क का नाम है --
एक साल का मौन कम्बोडिया और लाओस के मृतकों के लिए जो
एक गुप्त युद्ध का शिकार थे -- और ज़रा धीरे बोलिए,
हम नहीं चाहते कि उन्हें यह पता चले कि वे मर चुके हैं। दो महीने का मौन
कोलम्बिया के दीर्घकालीन मृतकों के लिए जिनके नाम
उनकी लाशों की तरह जमा होते रहे
फिर गुम हो गए और ज़बान से उतर गए।

इससे पहले कि मैं यह कविता शुरू करूँ।

एक घंटे का मौन एल सल्वादोर के लिए
एक दोपहर भर का मौन निकारागुआ के लिए
दो दिन का मौन ग्वातेमालावासिओं के लिए
जिन्हें अपनी ज़िन्दगी में चैन की एक घड़ी नसीब नहीं हुई।
४५ सेकिंड का मौन आकतिआल, चिआपास में मरे ४५ लोगों के लिए,
और पच्चीस साल का मौन उन करोड़ों गुलाम अफ्रीकियों के लिए
जिनकी क़ब्रें समुन्दर में हैं इतनी गहरी कि जितनी ऊंची कोई गगनचुम्बी इमारत भी न होगी।
उनकी पहचान के लिए कोई डीएनए टेस्ट नहीं होगा, दंत चिकित्सा के रिकॉर्ड नहीं खोले जाएंगे।
उन अश्वेतों के लिए जिनकी लाशें गूलर के पेड़ों से झूलती थीं
दक्षिण, उत्तर, पूर्व और पश्चिम

एक सदी का मौन

यहीं इसी अमरीका महाद्वीप के करोड़ों मूल बाशिन्दों के लिए
जिनकी ज़मीनें और ज़िन्दगियाँ उनसे छीन ली गईं
पिक्चर पोस्ट्कार्ड से मनोरम खित्तों में --
जैसे पाइन रिज वूंडेड नी, सैंड क्रीक, फ़ालन टिम्बर्स, या ट्रेल ऑफ टियर्स।
अब ये नाम हमारी चेतना के फ्रिजों पर चिपकी चुम्बकीय काव्य-पंक्तियाँ भर हैं।

तो आप को चाहिए खामोशी का एक लम्हा ?
जबकि हम बेआवाज़ हैं
हमारे मुँहों से खींच ली गई हैं ज़बानें
हमारी आखें सी दी गई हैं
खामोशी का एक लम्हा
जबकि सारे कवि दफनाए जा चुके हैं
मिट्टी हो चुके हैं सारे ढोल।

इससे पहले कि मैं यह कविता शुरू करूँ
आप चाहते हैं एक लम्हे का मौन
आपको ग़म है कि यह दुनिया अब शायद पहले जैसी नहीं रही रह जाएगी
इधर हम सब चाहते हैं कि यह पहले जैसी हर्गिज़ न रहे।
कम से कम वैसी जैसी यह अब तक चली आई है।

क्योंकि यह कविता 9/11 के बारे में नहीं है
यह 9/10 के बारे में है
यह 9/9 के बारे में है
9/8 और 9/7 के बारे में है
यह कविता 1492 के बारे में है।[1]

यह कविता उन चीज़ों के बारे में है जो ऐसी कविता का कारण बनती हैं।
और अगर यह कविता 9/11 के बारे में है, तो फिर :
यह सितम्बर 9, 1971 के चीले देश के बारे में है,
यह सितम्बर 12, 1977 दक्षिण अफ़्रीका और स्टीवेन बीको के बारे में है,
यह 13 सितम्बर 1971 और एटिका जेल, न्यू यॉर्क में बंद हमारे भाइयों के बारे में है।

यह कविता सोमालिया, सितम्बर 14, 1992 के बारे में है।

यह कविता हर उस तारीख के बारे में है जो धुल-पुँछ रही है कर मिट जाया करती है।
यह कविता उन 110 कहानियों के बारे में है जो कभी कही नहीं गईं, 110 कहानियाँ
इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में जिनका कोई ज़िक्र नहीं पाया जाता,
जिनके लिए सीएनएन, बीबीसी, न्यू यॉर्क टाइम्स और न्यूज़वीक में कोई गुंजाइश नहीं निकलती।
यह कविता इसी कार्यक्रम में रुकावट डालने के लिए है।

आपको फिर भी अपने मृतकों की याद में एक लम्हे का मौन चाहिए ?
हम आपको दे सकते हैं जीवन भर का खालीपन :
बिना निशान की क़ब्रें
हमेशा के लिए खो चुकी भाषाएँ
जड़ों से उखड़े हुए दरख्त, जड़ों से उखड़े हुए इतिहास
अनाम बच्चों के चेहरों से झांकती मुर्दा टकटकी
इस कविता को शुरू करने से पहले हम हमेशा के लिए ख़ामोश हो सकते हैं
या इतना कि हम धूल से ढँक जाएँ
फिर भी आप चाहेंगे कि
हमारी ओर से कुछ और मौन।

अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन
तो रोक दो तेल के पम्प
बन्द कर दो इंजन और टेलिविज़न
डुबा दो समुद्री सैर वाले जहाज़
फोड़ दो अपने स्टॉक मार्केट
बुझा दो ये तमाम रंगीन बत्तियां
डिलीट कर दो सरे इंस्टेंट मैसेज
उतार दो पटरियों से अपनी रेलें और लाइट रेल ट्रांजिट।

अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन, तो टैको बैल[2] की खिड़की पर ईंट मारो,
और वहां के मज़दूरोंका खोया हुआ वेतन वापस दो। ध्वस्त कर दो तमाम शराब की दुकानें,
सारे के सारे टाउन हाउस, व्हाइट हाउस, जेल हाउस, पेंटहाउस और प्लेबॉय।

अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन
तो रहो मौन ''सुपर बॉल'' इतवार के दिन[3] 
फ़ोर्थ ऑफ़ जुलाई के रोज़[4]
डेटन की विराट 13-घंटे वाली सेल के दिन[5]
या अगली दफ़े जब कमरे में हमारे हसीं लोग जमा हों
और आपका गोरा अपराधबोध आपको सताने लगे।

अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन
तो अभी है वह लम्हा
इस कविता के शुरू होने से पहले।

( 11 सितम्बर, 2002 )

फ़ुटनोट :

[1] 1492 के साल कोलम्बस अमरीकी महाद्वीप पर उतरा था।
[2] टैको बैल : अमरीका की एक बड़ी फास्ट फ़ूड चेन है।
[3] ''सुपर बॉल'' सन्डे : अमरीकी फुटबॉल की राष्ट्रीय चैम्पियनशिप के फाइनल का दिन।
इस दिन अमरीका में गैर-सरकारी तौर पर राष्ट्रीय छुट्टी हो जाती है।
[4] फ़ोर्थ ऑफ़ जुलाई : अमरीका का ''स्वतंत्रता दिवस'' और राष्ट्रीय छुट्टी का दिन। 4 जुलाई 1776 को अमरीका में ,''डिक्लरेशन ऑफ इंडिपेंडेंस'' पारित किया गया था।
[5] डेटन : मिनिओपोलिस नामक अमरीकी शहर का मशहूर डिपार्टमेंटल स्टोर।

[एमानुएल ओर्तीज़ मेक्सिको-पुएर्तो रीको मूल के युवा अमरीकी कवि हैं। वह एक कवि-संगठनकर्ता हैं और आदि-अमरीकी बाशिन्दों, विभिन्न प्रवासी समुदायों और अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए सक्रिय कई प्रगतिशील संगठनों से जुड़े हैं।

असद जैदी हिंदी के प्रख्यात कवि हैं। उनके काव्य संग्रहों में "सामान की तलाश" और "बहनें तथा अन्य कविताएँ" महत्वपूर्ण हैं।]

(प्रस्तुति :बिजूका)
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टिप्पणियाँ:-

सुषमा सिन्हा:-
बहुत बढ़िया, सशक्त कविता !!
मौन सिर्फ शोक को नहीं, नापसंदगी, अफसोस, दुःख, चिंता, गुस्सा, विद्रोह इत्यादि को भी दर्शाता है।
बहुत खूब। इस मौन कर देने वाली कविता के लिए अनुवादक को बधाई और धन्यवाद दोनों।
बिजूका को धन्यवाद!!

राहुल चौहान:-
ये कविता हमारे सभ्य समाज के साफ़ कपड़ो की तह के पीछे की कालिख़ का एक्स-रे करती है,

अपने निज-सुख में बेहोश हमारे सभ्य होने के पवित्र ढोंग को बड़ी ढिठाई से खोलती है,

ये कविता सारे विश्व के सभ्य कहलाने वाले लोगो के कपडे नोच कर फेंकती है, जिनके पीछे से सभ्यता का मजबूर लोगो के क़त्ल और खून से सना शरीर नंगा दिख पड़ता है।

असद जैदी को धन्यवाद बेहतरीन अनुवाद के लिए,

अमेरिकी कवि, एमानुएल ओर्तीज को प्रणाम सभ्यता के मुँह पर थूकने के लिए,

मनीषा जैन :-
बहुत ही बेहतरीन कविताएं पढ़ी यहां पिछले दिनों से। सर्वेश जी की कविताएं पहली बार पढ़ी और  आज का यथार्थ प्रस्तुत करती कविताएं। बेटी को संबोधित करती इनकी कविता समकालीन विषमताओं को दिखाती चलती है बहुत ही अच्छी लगी सर्वेश जी की कविताएं।
और असद जैदी जी की अनुवादित कविता पहले भी पढी थी लेकिन हर बार नयी लगती है और संसार में फैली घृणा और विद्वेष को चिन्हित करती है। बहुत आभार पढ़वाने का।

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