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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

13 दिसंबर, 2015

कविता : अर्पण कुमार

॥अधूरी कविता ॥

लिखी गई कविता

हो जाती है बेमानी अक्सर हाँ 

कई बार लिखे जाने के चंद

क्षणों बाद ही

रह जाते हैं भाव अधूरे

समय के झोंके में हिलते-डुलते

साया-मात्र भर  

अंदर बैठा गवाह

बगैर स्खलित हुए

कुछ-न-कुछ

रख नहीं पाता कदाचित

अपनी बात

एक बार भी ।


॥ नींद की तैयारी ॥

सैंकड़ों चेहरों से

अटी-पड़ी आँखों को

पानी से धोकर रिक्त किया है

साबुन से रगड़-रगड़ कर

चेहरे से दिनभर की

खीझ और ऊब को

बड़ी और महान

शख्सियतों के समक्ष  

सुबह से लेकर शाम

तक की जानेवाली

अपनी मिमियाहट को और

उनके आगे अक्सरहाँ 

शुरू हो जानेवाली

अपनी हकलाहट को

हटाया है

इस जीवन में कभी पूरा न हो

सकनेवाले अपने सपनों के

गर्द-गुबार को झाड़कर 

अपने शरीर को हल्का किया है

नए-पुराने सारे मुखौटों को

एक किनारे कर बिस्तर में

धँस गया हूँ

अब मुझे सो जाना चाहिए

एक उद्वेग-रहित नींद की

पूरी तैयारी

कर ली है मैंने।

.........

॥ट्यूटर

महानगर में पढ़नेवाला

सातवीं का बच्चा

उसका ट्यूटर उसके गाल पर

हलकी चपत लगाता है

बच्चा शीघ्र ही

अपनी कलम की नोंक

ट्यूटर की कलाई पर

दे मारता है

शिक्षक-शिष्य का संबंध

उसके लिए

कोई मायने नहीं रखता

वह इतना ही सोच पाता है

‘किसी ने उसे थप्पड़ मारा है

और वह उसका प्रत्युत्तर देगा’।

॥ प्यार ॥

प्यार

मन की अतल गहराईयों से

किया गया प्यार

जब अस्वीकृत होता है

लगता है जैसे

एक बेहद कष्टदायक  

प्रसव-पीड़ा के बाद

कोई स्त्री

किसी मरे हुए बच्चे को

जन्म दी हो ।

...............

॥कसती हथेली ॥

हथेली

जो महसूस हो रही है तुम्हें

कंधे पर अपने

कभी भी बन सकती है मुट्ठी

और कस सकती है

तुम्हारे गले के चारों ओर

चौंको मत

उँगलियों के दबाव से

बदल जाती है दुनिया

प्रेम के शब्द

गढ़ लेते हैं परिभाषा

हिंसा की ।

000 अर्पण कुमार
...........................
टिप्पणियाँ:-

सुषमा अवधूत :-
सभी कवितायें अच्छी लगी,लेकिन ट्युटर,प्यार,कसती हथेली और अच्छी लगी ,मन को छुने वाली कविता ,

आभा :-
सभी कवितायें मन में धांय करके लगती हैं। छोटी और संवेदनशील। कसती हथेली, ट्यूटर, और नींद ख़ास पसंद आईं।

नयना (आरती) :-
सभी कविताए अपना-अपना प्रभाव छोडती .कसती हथेली और ट्युटर खास पसंद आई

रेणुका:-:
Adhoori kavita achchi nahi...pyaar kavita Mein Ki gayi tulna theek nahi lagi

मनीषा जैन :-
कल की कविताएँ समूह एक के साथी अर्पण कुमार की हैं। आज भी कविताओं पर चर्चा जारी है। उम्मीद है और साथी अपनी बात रखेंगे। आप सबको प्रतिक्रियाओ का धन्यवाद।

फ़रहत अली खान:-
अच्छी कविताएँ हैं। नींद की तैयारी और ट्यूटर सबसे ज़्यादा पसंद आयीं। बाक़ी भी प्रभावित करती हैं।

परमेश्वर फुंकवाल:-
इन कविताओं पर और काम करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए मुट्ठी का गले पर कसना ठीक प्रयोग नहीं जान पड़ता। नींद कविता इस दृष्टि से बेहतर है। कवि को शुभकामनाएं।

विदुषी भरद्वाज:-
सभी कविताएं अच्छी.  अधूरी कविता वाणी की सीमा को व्यंजित करती है...गिरा अनयन नयन बिनु बानी..दूसरी कविता में मजबूरी ने हताश नहीं किया है,वह कमजोरी नहीं बनी है बल्कि उसे मुखौटे की तरह ओढ़ा गया है़  .ट्यूटर में मूल्यों का विघटन चित्रित है

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