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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

12 अप्रैल, 2020

विदेशी भाषा की कविताएँ : भाग - 3

अनुवाद : पंखुरी सिन्हा





ल्जुबिका कातिक (क्रोएशियन कवयित्री)


प्यार का डर

मैं तुम्हें प्यार करने से डरती हूँ
क्योंकि मैं ने खो दिया है
प्यार में विश्वास
मैं डरती हूँ
तुम्हें चाहने से
क्योंकि अब और नहीं
झेलना चाहती 
प्यार का दर्द
मुझे डर है कि
मैं उसे अब और बर्दाश्त
नहीं कर पाऊँगी
मैं ऐसे रिश्ते को
प्यार बुलाने से डरती हूँ!
मुझे मत मांगो अपने लिए
ज़िद कर!
पहले ही, एक लम्बा वक़्त लगा है
पुराने ज़ख्मो के भरने में
मैं खुद को दिलाना नहीं चाहती
अतीत की याद
जब तुम उठ चुके होते हो
बीते दिनों की राख और खाक से
और बढ़ चुके होते हो आगे
तो एक स्वाभाविक डर लगता है
उस आग से
जो साथ सकती है
किसी नए प्रेम के
और इसलिए
छोटी चिन्गारी का भी ज़रूरी है
दूर रहना

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तिआन यु (चीनी कवि)

   
आईए बोएं मुस्कुराती हुई एक जोड़ी आँखें

हम एक रात में मिले
सुपरिचित था दृश्य
सपना सुबह का
सुनहली उजास का
अपेक्षा करता है
एक दूसरे के प्रति प्रेम की!
आओ, अपने आँसुओं को सुखायें, हंसी के साथ!
आओ, सिर झुका कर करें अभिवादन
और चलते रहें अपनी दिशाओ में
खोल दें अपने हृदय के सारे बन्द कपाट
और भूल जाएं अपनी चोटें
जबकि कभी कभी कहना होता है
अलविदा भी चलते हुए साथ साथ
और दुखता है हमारा दिल भी
लेकिन शायद यही है नियम
इस क्रूर जीवन का!
फिर भी, मनुष्यता का भविष्य
विराट है
हमें बस इतना बहादुर होना है
कि उबर जाएँ
अपने जख्मॉ से
और चल पड़ें मंजिलों की ओर
आने वाला कल
एक बार फिर से चमकदार होगा
मुझे पूरा विश्वास है
जानते हैं हम सब कि यह ज़िन्दगी
जो दरअसल एक सड़क सी है
भरी हुई है बदलावों से घास की तरह!
तुम और मैं परछाई हैं केवल
समुद्र में उठने वाली लहर की !
रख कर तुम्हारे हाथ को
अपनी हथेली पर
मुझे भी सहेज लेने दो
तुम्हारी स्मृतियाँ
आराम पहुंचाते हुए तुम्हें
दिलाते हुए कुछ निजात
उनसे एक मुस्कुराहट के साथ !
वापस मोड़ा नहीं जा सकता
समय को और लौटाए नहीं जा सकते हैं
बीते हुए साल
नहीं रखा जा सकता
सब कुछ जमा कर संचित
जबकि हो सकती है
हमारे दिलों में लगातार
कुछ उदासी
हर बारिश के बाद की नरमी में
इंद्र धनुष की तरह
आओ, रोपें एक जोड़ी मुस्कुराती हुई आँखे!

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यूरी बोतविंकिन (यूक्रेनी कवि)


खिड़की

तुम बाहर निकलते हो
नक्काशीदार फ़ाटकों से
ज्ञान प्राप्त, बुद्धि दीप्त
कि जैसे तुम दुनिया पार से
होकर रहे हो
तुम चूमते हो पक्षी को
उड़ने देते हो उसे
और रोते हो
आँसुयों से देखते हुए
उसे जाते दूर
जैसे कि वह
कोई आज़ाद हुई आत्मा हो
कहीं तेज़ बजती हुई घंटियां
संकेत दे रहीं हैं खतरे का
लेकिन कोई खास फर्क नहीं पड़ता उससे
तुमने खोल दिये हैं अपने बाल
धूप के द्वारा सहलाए जाने के लिए
कोई कैसे विश्वास कर सकता है
कहीं आस पास ही एक जेल है?
जबकि आत्मा एक खिड़की है
अपने ही भीतर झांकती हुई
अग्नि से प्रज्जवलित
वह पहिया नीचे जा रहा है
पानी के भीतर
सोचने दो किसी और को
तुम अब भी बन्दी हो
लेकिन यह ब्रह्मांड
स्वतः सुसज्जित हो रहा है
हथेलियों पर
तुम्हारी एक नाँव के फलीभूत आकार में

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4 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी कविताएँ सुंदर अनुवाद.

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  2. अच्छी है कविताएं
    उतना ही अच्छा अनुवाद भी !
    fluency आपमे अनुवाद में
    सहज है...��⚘

    पंखुरी जी हमें आपकी लिखी
    मौलिक कविताएं भी बहुत
    पसंद है...एक निधी की तरह हमारे
    collection में रहती है कविताएं....
    हमारे पास...

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छी है कविताएं
    उतना ही अच्छा अनुवाद भी !
    fluency आपमे अनुवाद में
    सहज है...🙏⚘

    पंखुरी जी हमें आपकी लिखी
    मौलिक कविताएं भी बहुत
    पसंद है...एक निधी की तरह हमारे
    collection में रहती है कविताएं....
    हमारे पास...

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  4. पंखुरी जी आपकी लिखी हर कविता बहुत अच्छी होती है आपकी कविताओं की एक अलग पहचान है

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