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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

28 अप्रैल, 2020

पुस्तक समीक्षा


'मेरा दोस्त कसाब' :  संवेदना के विविध धरातल स्पर्श का समुच्चय 


कुसुम पांडे

        आतंकवाद खुद मे विनाशकारी विस्फोटक हैं। जो उन्नति के सोपान पर अग्रसर राष्ट्र को जमीन पर घुटनों के बल रेंगने को विवश करने की क्षमता रखता है। इसी आतंकवाद पर केन्द्रित, ऊर्जस्वित व असीम संभावनाओं से भरपूर युवा लेखक कल्याण. आर.गिरी ने "मेरा दोस्त कसाब"उपन्यास लिखकर अपनी उत्कृष्ट लेखकीय क्षमता का प्रमाण दे डाला। आतंकवाद के भीतरी ताप से स्पंदित व बिषय की ताजगी लेकर आए उपन्यास की कथावस्तु सुबह की नमाज के बाद मस्जिद से लौटते रहमत चाचा और भारत के वार्तालाप के दृश्यचित्र के साथ शुरू हुई हैं।  घर लौटते रहमत को दुबई से लौटा अकरम मिलता है। जो उनके पड़ोस में रहा करता है। अकरम का दंगे में घर में हिन्दू लोगों ने आग के हवाले कर दिया था। बाहर से कमाकर लौटे अकरम.को अपनो की जिन्दगी की तबाही और अपना जला हुआ घर प्रतिरोध को उकसाते है। वह बम बनाने का सामान मंगाता है। और भूख और गरीबी की अंधी सुरंगों मे फंसे मुस्लिम युवाओं को पैसे का लोभ देकर बनारस में जगह-जगह विस्फोट की योजना बनाता है। जिसमेंं दुर्योग से भारत भी अनजाने में शामिल हो जाता हैं। वह भारत जिसके पिता कारगिल युद्ध में शहीद होकर परमवीर चक्र पा चुके थे। और चाचा, ईमानदार डाककर्मी रहे। रहमत के ईमानदारी की आभा से दमकते गर्वानुभूत चेहरे पर अकरम की मदद से वो डाक सहकर्मी बेईमानी की कालिख पोतने मे सफल हो जाते है। जिनके खाने कमाने की राह में अवरोधक था। इस सदमे को रहमत सह न सके और हवालात मे दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई। रहमत का सारा सिर से उठ जाने के बाद अहमद खान के परिवार की तंगहाली बढ़ने लगी। बेवा हमीदा और भारत के भूखों मरने की नौबत आ गई। उस पर लेनदारों के तगादे। भारत अपने दोस्त सन्तोष को अपने हिस्से का खाना खिला देता है और खुद भूखा रह जाता है। भूखे पेट वह बाहर निकला तो अखबार में कसाब को जेल में बिरयानी मिलने की खबर से सामना हुआ।


         
            इस घटना ने उसे द्वंद्वात्मक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया। वह सोचने लगा देश के लिए शहीद का परिवार फांकें कसी करने को विवश हैं। और बम व्लास्ट से देश की चूलें हिलाने वाले को बिरयानी। अब कसाब उसके सपनों में आने लगा। और अपनी राह पर चलने को खुद को उसका दोस्त बताते हुए उकसाने लगा। अपनी आर्थिक जरुरतों को 
कल्याण गिरी
देखते हुए भारत अकरम के साड़ी के कारोबार में हाथ बंटाने लगा,जो हाथी के दांत थे। पढाई के साथ-साथ पार्ट-टाईम के बदले भारत को मिले पैसे हमीदा को ज्यादा  तो लगे पर जरुरतों के आगे वह चुप रह गई। पैसो को खुद पर लुटाने वाले का काम तो उसे करना ही था। वह ऐन अपनी मंगनी वाले दिन संकटमोचन मंदिर में एक पैकेट रखता है, यह जाने बगैर कि उसमे क्या है और इस प्रकार वह मन्दिर ब्लास्ट का मुजरिम बन जाता है। इसी विस्फोट में भारत की मां और मिट्ठी के पिता की मौत हो जाती हैं। दु:ख के इन पलों में मिट्ठी भारत की लोक समाज और मर्यादा सबको ठोकर मारकर भावनात्मक स्तर पर संभालती है। मिट्ठी का इस तरह भारत के घर में रहने पर मोहल्ले वालो को एतराज हुआ तो मिट्ठी की सहेली के वकील पिता के सहयोग से दोनों ने शादी कर ली। अब बारी धर्म के ठेकेदारों की आती है उन्हें हिन्दू मिट्ठी और मुस्लिम भारत की शादी कैसे मंजूर होती। उन दोनों के रिश्ते प्यार की कच्ची डोर से बंधे भले ही रहे पर वो सच्चे थे। अतः हारकर सबको लौटना पड़ा।

             इस शहर में पिछले विस्फोटों की कड़ी सुलझाने में लगी पुलिसके हाथ अकरम का एक मोहरा लग जाता है अब पूरी गुत्थी सुलझनी ही थी भारत को भी पुलिस उसके घर से पकड़कर ले गई। वकील प्रवेश अपने सूत्रों से मालूमात करते हैं। वह पोटा के लिए अन्तर्गत पकडे गए भारत का केस लेते हैं। इस भरोसे के आधार पर कि भारत मुजरिम नहीं है लेकिन संकट मोचन मन्दिर मे लगा कैमरा केस कमजोर करता है पर वकील प्रवेश की दलील और भारत की डायरी(मेरा दोस्त कसाब, जिसमें दोस्त कटा है)जो पुलिस के पहुंचने पर हाथ में रही,मे दर्ज कविता से जज साहब भी प्रभावित होते है। भारत को न्यायिक हिरासत दी जाती है। उसी दिन कसाब को मिली फांसी की खबर मिट्ठी को विचलित कर देती है। इस स्थिति को ऋचा संभालती है इसलिए कि उसके गर्भ में पल रहे नन्हे भारत को आतंकवादी के दाग से मुक्त करना है।

       आतंकवाद को साहित्य के सांचे में ढाल पाना सहज नहीं है पर रचनात्मक संघर्ष की कठिन चुनौती को लेखक ने स्वीकारा और इसे गहरी संवेदनात्मक दृष्टि के बलबूते उपन्यास में स्थानांतरित किया। जिसमें लाल लहू से लिखी आतंकवाद की कहानी को स्याह हर्फों मे जीवंत करके बड़ी सफलता प्राप्त की है। उपन्यास का जरूरी पक्ष परिवेश का चित्रण है। जिसे.सौन्दर्य दृष्टि ठेंठ बनारसी भाषा देने का काम करती हैं यह प्रश्नों की अंधियारी गुफा के हवाले जेहन कर जाने की क्षमता रखता है। संक्षेप में देखे तो कुछ सपने जो राख होने से बचे,धूप छांह बनकर पाठक को निराशा बोध से बचा लेता है उपन्यास का निर्णायक अंत। 

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                        उपन्यास :- मेरा दोस्त कसाब
                        लेखक :- कल्याण. आर.गिरी
                        प्रकाशन :- अंजुमन प्रकाशन
                        मूल्य :- 175 रु.


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