'मेरा दोस्त कसाब' : संवेदना के विविध धरातल स्पर्श का समुच्चय
कुसुम पांडे
आतंकवाद खुद मे विनाशकारी विस्फोटक
हैं। जो उन्नति के सोपान पर अग्रसर राष्ट्र को जमीन पर घुटनों के बल रेंगने को
विवश करने की क्षमता रखता है। इसी आतंकवाद पर केन्द्रित, ऊर्जस्वित व असीम
संभावनाओं से भरपूर युवा लेखक कल्याण. आर.गिरी ने "मेरा दोस्त
कसाब"उपन्यास लिखकर अपनी उत्कृष्ट लेखकीय क्षमता का प्रमाण दे डाला। आतंकवाद
के भीतरी ताप से स्पंदित व बिषय की ताजगी लेकर आए उपन्यास की कथावस्तु सुबह की
नमाज के बाद मस्जिद से लौटते रहमत चाचा और भारत के वार्तालाप के दृश्यचित्र के साथ
शुरू हुई हैं। घर लौटते रहमत को दुबई से
लौटा अकरम मिलता है। जो उनके पड़ोस में रहा करता है। अकरम का दंगे में घर में
हिन्दू लोगों ने आग के हवाले कर दिया था। बाहर से कमाकर लौटे अकरम.को अपनो की
जिन्दगी की तबाही और अपना जला हुआ घर प्रतिरोध को उकसाते है। वह बम बनाने का सामान
मंगाता है। और भूख और गरीबी की अंधी सुरंगों मे फंसे मुस्लिम युवाओं को पैसे का
लोभ देकर बनारस में जगह-जगह विस्फोट की योजना बनाता है। जिसमेंं दुर्योग से भारत
भी अनजाने में शामिल हो जाता हैं। वह भारत जिसके पिता कारगिल युद्ध में शहीद होकर
परमवीर चक्र पा चुके थे। और चाचा,
ईमानदार डाककर्मी रहे। रहमत के
ईमानदारी की आभा से दमकते गर्वानुभूत चेहरे पर अकरम की मदद से वो डाक सहकर्मी
बेईमानी की कालिख पोतने मे सफल हो जाते है। जिनके खाने कमाने की राह में अवरोधक था।
इस सदमे को रहमत सह न सके और हवालात मे दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई। रहमत
का सारा सिर से उठ जाने के बाद अहमद खान के परिवार की तंगहाली बढ़ने लगी। बेवा
हमीदा और भारत के भूखों मरने की नौबत आ गई। उस पर लेनदारों के तगादे। भारत अपने
दोस्त सन्तोष को अपने हिस्से का खाना खिला देता है और खुद भूखा रह जाता है। भूखे पेट
वह बाहर निकला तो अखबार में कसाब को जेल में बिरयानी मिलने की खबर से सामना हुआ।
कल्याण गिरी |
इस शहर में पिछले
विस्फोटों की कड़ी सुलझाने में लगी पुलिसके हाथ अकरम का एक मोहरा लग जाता है अब
पूरी गुत्थी सुलझनी ही थी भारत को भी पुलिस उसके घर से पकड़कर ले गई। वकील प्रवेश
अपने सूत्रों से मालूमात करते हैं। वह पोटा के लिए अन्तर्गत पकडे गए भारत का केस
लेते हैं। इस भरोसे के आधार पर कि भारत मुजरिम नहीं है लेकिन संकट मोचन मन्दिर मे
लगा कैमरा केस कमजोर करता है पर वकील प्रवेश की दलील और भारत की डायरी(मेरा दोस्त
कसाब, जिसमें दोस्त कटा है)जो पुलिस के पहुंचने पर हाथ में रही,मे दर्ज कविता से
जज साहब भी प्रभावित होते है। भारत को न्यायिक हिरासत दी जाती है। उसी दिन कसाब को
मिली फांसी की खबर मिट्ठी को विचलित कर देती है। इस स्थिति को ऋचा संभालती है
इसलिए कि उसके गर्भ में पल रहे नन्हे भारत को आतंकवादी के दाग से मुक्त करना है।
आतंकवाद को साहित्य के सांचे में ढाल
पाना सहज नहीं है पर रचनात्मक संघर्ष की कठिन चुनौती को लेखक ने स्वीकारा और इसे
गहरी संवेदनात्मक दृष्टि के बलबूते उपन्यास में स्थानांतरित किया। जिसमें लाल लहू
से लिखी आतंकवाद की कहानी को स्याह हर्फों मे जीवंत करके बड़ी सफलता प्राप्त की है।
उपन्यास का जरूरी पक्ष परिवेश का चित्रण है। जिसे.सौन्दर्य दृष्टि ठेंठ बनारसी
भाषा देने का काम करती हैं यह प्रश्नों की अंधियारी गुफा के हवाले जेहन कर जाने की
क्षमता रखता है। संक्षेप में देखे तो कुछ सपने जो राख होने से बचे,धूप छांह बनकर पाठक
को निराशा बोध से बचा लेता है उपन्यास का निर्णायक अंत।
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उपन्यास :- मेरा दोस्त कसाब
लेखक :- कल्याण. आर.गिरी
प्रकाशन :- अंजुमन प्रकाशन
मूल्य :- 175 रु.
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