image

सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

08 नवंबर, 2015

ग़ज़ल : शायर मुनव्वर राना साहब

'माँ' पर बहुत से बेहतरीन शेर कहने वाले देश के बेहद मशहूर और संजीदा शायर मुनव्वर राना साहब(जन्म-1952) उत्तर प्रदेश के रायबरेली से ताल्लुक़ रखते हैं। आसान ज़ुबान में दिल में उतर जाने वाली शायरी कहने के साथ-साथ, ये अपनी बे-बाक-बयानी के लिए भी जाने जाते हैं। अभी हाल ही में इन्होंने भी उर्दू साहित्य के लिए 2014 में मिला साहित्य अकादमी पुरुस्कार लौटाया है। आज पढ़ते हैं इनकी तीन उम्दा ग़ज़लें:

1.
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए
आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए

आप दरिया हैं तो फिर इस वक़्त हम ख़तरे में हैं
आप कश्ती हैं तो हम को पार होना चाहिए

ऐरे-ग़ैरे लोग भी पढ़ने लगे हैं इन दिनों
आप को औरत नहीं अख़बार होना चाहिए

ज़िन्दगी तो कब तलक दर-दर फिराएगी हमें
टूटा-फूटा ही सही, घर-बार होना चाहिए

अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दें मुझे
इश्क़ के हिस्से में भी इतवार होना चाहिए

2.
मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
अब इससे ज़ियादा मैं तेरा हो नहीं सकता

दहलीज़ पे रख दी हैं किसी शख़्स ने आँखें
रौशन कभी इतना तो दिया हो नहीं सकता
(दहलीज़ - चौखट)

बस तू मेरी आवाज़ में आवाज़ मिला दे
फिर देख कि इस शहर में क्या हो नहीं सकता

ऐ मौत! मुझे तूने मुसीबत से निकाला
सय्याद समझता था रिहा हो नहीं सकता
(सय्याद - शिकारी)
           
इस ख़ाक-ए-बदन को कभी पहुँचा दे वहाँ भी
क्या इतना करम बादे-सबा हो नहीं सकता
(ख़ाक-ए-बदन - बदन की ख़ाक; बाद-ए-सबा - सुबह की ठंडी हवा)

पेशानी को सजदे भी अता कर मेरे मौला
आँखों से तो यह क़र्ज़ अदा हो नहीं सकता
(पेशानी - माथा; अता करना - देना)

दरबार में जाना मेरा दुश्वार बहुत है
जो शख़्स क़लन्दर हो गदा हो नहीं सकता
(दुश्वार - मुश्किल; क़लन्दर - आध्यात्मिक पुरुष; गदा - भिखारी)

3.
बादशाहों को सिखाया है क़लन्दर होना
आप आसान समझते हैं मुनव्वर होना
(मुनव्वर - नूरानी/ऊँचे दर्जे का)
 
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना

सिर्फ़ बच्चों की मुहब्बत ने क़दम रोक लिए
वरना आसान था मेरे लिए बे-घर होना

हमको मालूम है शोहरत की बुलंदी, हमने
क़ब्र की मिट्टी का देखा है बराबर होना
(शोहरत - प्रसिद्धि; बुलंदी -ऊँचाई; बराबर होना - समतल होना)

इसको क़िस्मत की ख़राबी ही कहा जाएगा
आप का शहर में आना, मेरा बाहर होना

सोचता हूँ तो कहानी की तरह लगता है
रास्ते से मेरा तकना, तेरा छत पर होना

मुझ को क़िस्मत ही पहुँचने नहीं देती वरना
एक एज़ाज़ है उस दर का गदागर होना
(एज़ाज़ - सम्मान; दर - दरवाज़ा/द्वार; गदागर - भिखारी)

सिर्फ़ तारीख़ बताने के लिए ज़िंदा हूँ
अब मेरा घर में भी होना है कैलेंडर होना

प्रस्तुति:- फरहत खान
----------------------------
टिप्पणियाँ:-

आशीष मेहता:-
तसल्ली / सुकून/ प्यार वाले अशआर। मुनव्वर साहब तो बाकायदा 'मुनव्वर' हैं, फरहत भाई के चयन का मुरीद होता जा रहा हूँ।

पहली ग़जल का दूसरा शेर खूब जिन्दा और पैना मिला।
'मुनव्वर' होते हुए भी जनाब, कई बार दक्षिणपंथी (यह शब्द काफ़ी चलन में है आजकल, सो मन ललचा गया) नुमाया होते हैं (खास तौर पर स्त्री विमर्श मसलों में)। पहली ग़ज़ल का तीसरा शेर, कुछ ऐसी ही टीस दे गया ।

है दुश्वार उनका 'मुनव्वर' होना। वो बुलाएँ 'चाय' पर मुझे, मिरा न होना।
(मुनव्वर - नूरानी / ऊँचे दर्जे का)

प्रदीप मिश्र:-
मुनव्वर जी से वैचारिक रचनाओं की अपेक्षा उनपर ज्यादती होगी। वे जीवन को कला के चश्मे से देखते हैं और नाजुक तरीके से बरतते हैं। उनको मंचों से सम्प्रेषित होना है तो वाह निकलनेवाली रचनाएँ चाहिए। जिसके वे उस्ताद हैं। बधाई।

आशीष मेहता:-
On lighter note, Devilalji. कलाकारों के अंगूठे (इशारों) अपवाद स्वरूप सहर्ष स्वीकार होंगे उन्हें। आप जारी रखें। मेरा इशारा सिर्फ मेरी सहमति (प्रदीप जी एवं आप से) वाली पोस्ट से था।

प्रदीप मिश्र:-
This is not fair if any human being expecting same vichar dhara from other rather this is not possible also. But if you are in any kind of creativity you should have political vision along with the form. If this vision belongs to mass and able to become their voice than fine.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें