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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

07 मार्च, 2019


कहानी

पत्नी वही जो पति मन भावे 


 अमित कुमार मल्ल



अमित कुमार मल्ल  


रागनी दीदी  ,वाकई रानी थी खूबसूरती की , प्रसन्नता की और खिलखिलाने की ।हम लोग रागिनी दीदी के जबरजस्त प्रशंसक थे - उनके पहनावे के , उनके स्टाइल के , उनके बात चीत के तरीके के , उनके रहन सहन के ढंग के ,उनके औरा के । जिस कमरे में  हम लोग रह कर , पाइथागोरस का सिद्धांत , न्यूटन के नियम पढ़ रहे थे , उसी कमरे के सामने के बिल्डिंग के मालिक की इकलौती बेटी थी, रागिनी दीदी । उनका मकान तीन तल्ला था , जिसमे पहले तल्ले पर वह, अपने दो भाइयों व माँ पिता के साथ रहती थी। बाकी के तल्ले पर किराएदार रहते थे । हम लोगो  के कमरे व उनके  मकान के बीच  9 फ़ीट की खडंजा वाला रास्ता था , जिस पर सभी प्रकार के वाहन चलते थे।
       हम तीन लोग एक गांव के थे । गांव के प्राइमरी पाठशाला से पांच तक और जूनियर हाइ स्कूल से आठ पढ़ने के बाद हाई स्कूल करने के लिए , गांव से 90 किलोमीटर दूर के इस शहर आये थे। रागिनी दीदी  के घर के सामने के एक कमरे को किराए पर लेकर हम रहते थे , और शहर के हिंदी मीडियम वाले  सबसे प्रतिष्ठित स्कूल में पड़ते थे। रात का खाना , हम तीनों लोग मिलकर बनाते  । सामान्यतः रोटी सब्जी।  सुबह, बारी बारी से एक लड़का  परांठा बनाता , जिसे खाकर हम स्कूल जाते। गांव से आटा  , चावल , दाल , आलू , प्याज आता था  , बाकी सब्जी ,मसाला आदि हम लोग यहाँ खरीद लेते।
पढ़ते पढ़ते  जब बहुत बोर हो जाते या थक जाते तो , बाहर चबूतरे  पर खड़े हों जाते। अक्सर शाम को,  रागिनी दीदी ,अपने माता- पिता -भाइयो के साथ  अपनी बालकनी में खड़ी रहती । उसका एक छोटा भाई था , जो हम लोग के क्लास में था ,लेकिन दूसरे स्कूल में पढ़ता  था।उसी के माध्यम से रागिनी दीदी के परिवार से बोलचाल शुरू हुआ ।पता चला रागिनी दीदी तो बी 0 ए 0 प्रथम वर्ष ,  में है।

रागिनी  दीदी  का परिवार  सुखी व समृद्ध दिखता था। उनक कपड़ा , रहन सहन अच्छा था । त्योहारों पर हम लोग को रागिनी दीदी के यहाँ लजीज त्योहार वाले पकवान  मिलता था - दीपावली , होली , दशहरा आदि के दिन । उस दिन ,रागिनी दीदी ,उनके भाई , माता पिता - बहुत आत्मीयता से मिलते , हाल चाल पूछते , परेशानी पूछते और खाना  खिलाते । जैसे ही उनके पिताजी , इधर उधर होते , किसी न किसी बात पर रागिनी  दीदी की खिलखलाती हँसी सुनने व देखने को मिलती।

       वहाँ से लौटने के बाद , केवल पकवान याद रहता और रागिनी दीदी की खिलखिलाहट वाली हँसी। पकवान की याद तो, कुछ की दिन में  रोटी - सब्जी -  पराठे के टेस्ट से भूल जाती , लेकिन रागिनी दीदी की हँसी तो भूलती नही । हर चार छ दिन में , रागिनी दीदी दिख ही जाती या खिलखिलाहट वाली हंसी सुनाई पड़ ही जाती ।
हम तीन लोग , एक  कमरे में रहते थे। कमरे के ताले की 2 ही  चाभियाँ  थी । अमूनन हम तीनों लोग एक साथ ही जाते , स्कूल या सब्जी लाने या छोटा मोटा समान लाने। अगर तीनो अलग जाते , तो पहला वाला एक चाभी ले जाता ,  तीसरा जब जाता तो चाभी रागिनी के घर दे जाता , ताकि दूसरा या तीसरा जब लौटे तो उसे  चाभी मिलने में परेशानी न हो । चाबी लेने जाने पर यदि रागिनी दीदी की माँ मिलती तो वह जरूर कुछ खिलाती और खूब पढ़ने का आशीर्वाद देती। यदि रागिनी दीदी मिलती तो वह पढ़ाई के बारे में पूरा पूछती और कुछ खिलाती  जरूर।







छमाही परीक्षा में फस्ट क्लास नंबर आने पर हम तीनों ने , हनुमान जी को पाव भर लड्डू चढ़ा कर प्रसाद लेकर रागिनी दीदी  के घर पुहंचे । प्रसाद दिया। रागिनी जी की माँ ने आशीर्वाद दिया और रागिनी जी ने बधाई देते हुए कहा,
- मुझे तो मालूम था , तुम लोग फस्ट क्लास पास होंगे।
पढ़ाई के साथ साथ थोड़ा बहुत खेला भी करो। अभी तुम लोगो की खेलने की  उम्र है।
- जी ।
तीनो एकसाथ बोले।
- तुम लोग घुमा  टहला भी करो । दोस्तो के साथ भी जाया करो । यह कोई बात हुई .....,कमरे से स्कूल ,स्कूल से कमरा।
कहते हुए रागिनी दीदी  हँसी -खिलखिलाहट वाली हँसी।
- कभी कभार टी वी देखने का मन हो तो यहाँ आ जाया करो।
रागिनी दीदी बोली ।
फिर माँ की तरफ देखते हुए बोली .....
- माँ , इतने अच्छे नंबर लाये , इनको मिठाई खिलाइये।
और हम लोग पुनः मंत्र मुग्ध होकर , मिठाई खा कर अपने  कमरे में आ गये।
रागिनी दीदी ने कहा था - खेला करो , दोस्तो से मिला जुला करो। इसलिये हमने पड़ोस के मैदान में जाकर खेलना शुरू किया। मोहल्ले के लड़कों ने बहूत मान  मनोव्वल के बाद खिलाना शुरू किया।दो - तीन दिन  बाद , खेलने के बाद , बात होने लगी । बात चीत से हमे लगा, मोहल्ले के लड़के ,हम लोगो से चिढ़ते है क्योंकि उन्हें लगता है कि हम लोग रागिनी दीदी के परिवार में आते जाते हैं, उनसे बात चीत करते हैं ।एक दिन रागिनी दीदी  के परिवार के बारे में , बात शुरू हुई ,
हम लोगो ने एक साथ बोला,
-वे लोग  बहुत अच्छे लोग हैं।
 उस दिन बात खत्म हो गयी।
अगले हफ्ते फिर , रागिनी दीदी के बारे में , बात शुरू हुई ,
- रागिनी दीदी अच्छी नही है।
- वह बहुत फैशन करती है।
- वह बहुत स्टाइल मारती है ।
- वह कई लड़को से मिलती है।
-वह कई लड़को के साथ घूमती है।
-उनका एक लड़के से चक्कर चल रहा।
- वह फलाने लड़के के साथ फलाने सिनेमाहाल में दिखाई पड़ी थी।
यह बातें, लड़को ने अलग अलग कहा , लेकिन हम तीनों ने एक साथ बोला,
- रागिनी दीदी बहुत अच्छी लड़की है। बात करती हैं , लेकिन सलीके से। उनके बात व्यवहार में, एक स्टाइल जरूर रहता है , लेकिन उनका आचरण हरदम मर्यादित रहता है।
- तुम लोगो का ऑब्जरवेशन गलत है।
लड़के बोले।
- तुम लोगो की सोच गलत है।
हम लोग बोले।
उस दिन तो बात खत्म हो गई लेकिन कुछ दिनों बाद उन लड़को  ने  हमे ,गेम खिलाना  बंद कर दिया। हम लोग की फाइनल परीक्षा की डेट घोषित हो गयी थी , अतः हम लोग , सब कुछ भूल , पढ़ाई में लग गए।

उस दिन , शायद मई का ही कोई दिन था। सुबह के 5 बज रहे होंगे और हम लोग फिजिक्स के के फार्मूलों से जूझ  रहे थे। तभी आवाज आई ,
- मार डाला !      मार डाला जल्लादों ने !!
हम लोगो ने दरवाजा खोला,तो फिर यही आवाज आई
- मार डाला !!

आवाज की  पहचान हुई कि यह रागिनी दीदी के माताजी जी की आवाज है । हमे लगा कि बदमाशों ने रागिनी दीदी के परिवार पर हमला कर दिया है , पहले तो  हम लोग थोड़ा डरे , फिर रागिनी दीदी की हँसी ने हिम्मत दी और हम लोग उनके घर पर जाने के लिये सीढ़ियों पर चढ़ने लगे ।हम लोग ऊपर चार पांच सीढ़ी ही चढ़े होंगे कि मार पीट व किसी लड़की की रोने की आवाज सुनाई पड़ी । लगा , बदमाश रानी दीदी को पीट रहे हैं। हम लोगो ने अपनी गति बढ़ाई ही थी कि देखा , हमारे पीछे पीछे मोहल्ले के कई पुरुष महिलाये आ रही है।

ऊपर बरामदे में पहुचते ही हम लोग हतप्रभ हो गए। रागिनी दीदी को उनके दोनों भाई मार रहे थे और उनके पिता ललकार रहे थे।उनकी माँ, रागिनी दीदी को बचा रही थी ,लेकिन दोनों भाई पीटने से बाज नही आ रहे थे।रागिनी दीदी केवल रो रही थी ।जब चोट ज्यादे लगता तो रुलाई ज्यादे बढ़ जाती । रानी दीदी के सुंदर गोरे मुख पर मार पीट के  काले निशान दूर से दिखाई दे रहे थे।उनका चेहरा मुरझाया था । उनके कपड़े मैले दिख रहे थे । उनके बालो को पकड़ कर छोटा भाई खिंच रहा था, मैंने उसे पकड़कर, वहाँ से पीछे खिंचा। मोहल्ले वालों ने बड़े भाई को हटाया। अब रागिनी दीदी केवल सुबक रही थी
- क्या हुआ?
-, क्यो दोनों भाई मार रहे हैं?,
सब लोग पूछ रहे थे।
- आंटी , दीदी को भीतर ले जाइए।
मैं बोला।
बड़ा भाई फिर पीटने को आगे बढ़ा, लेकिन लोगो ने पकड़ लिया। आंटी , रागिनी दीदी को लेकर भीतर गई । रागिनी दीदी के पिता सिर  नीचे कर बैठे रहे। दोनों भाई भी , चुप चाप नीचे देखते रहे।
लोग बार बार पूछते रहे लेकिन कोई नहीं बोला। थक हार कर जब लोग नीचे उतरने लगे तब पड़ोसी महिलाओं के बात चीत से यह बात निकली कि रागिनी दीदी किसी लड़के के साथ एक दिन पूर्व , किसी दूसरे शहर भाग गई थी । दोनों भाई वहाँ जाकर ,रागिनी दीदी को पकड़ कर अभी अभी लाये थे  , इसीलिये वे गुस्से में रागिनी दीदी को पीट रहे थे।
फिर रागिनी दीदी न तो बालकोनी में दिखाई देती थी , न बरामदे में। इस घटना के बाद रागिनी दीदी का परिवार ही बदल गया।चाभी लेने कभी घर जाने पर देखता कि रागिनी  दीदी खामोश रहने लगी  । आंटी जी भी कम बोलने लगी ।
दो माह बाद ,पता चला कि रागिनी दीदी की हिमाचल में , कही शादी हो गयी । उनके पति अच्छे पद पर तैनात है ,  पति सुंदर है , स्मार्ट है , पैसे वाले हैं, आदि ।

11वी क्लास के पीसीएम ग्रुप की कठोर पढ़ाई
में धीरे धीरे रागिनी दीदी विस्मृत हो गई।  अब तो अलजेब्रा , त्रिगनोमिट्री  को जीतने में समय व दिमाग लग रहा था। यदा कदा  ,उनके दोनों भाइयों से मुलाकात होती थी ।उनका व रागिनी दीदी के परिवार का व्यवहार अब नार्मल हो गया था ।अब फिर , पुराने समय की भांति कभी कभार नाश्ता मिलने लगा। पास पड़ोस के लोग , रागिनी दीदी के परिवार के बारे में कानाफूसी तो  करते किन्तु  हम लोग से लोग कुछ नही कहते , क्योकि उन्हें लगता कि हम लोग रागिनी दीदी के परिवार से जुड़े हैं।

इस बार दीपावली पर छुट्टियां कुछ अधिक थी , अतः हम लोग , दीपावली के पहले अपने  गांव चले गए। दीपावली के तीसरे दिन अर्थात रविवार की सुबह 10 बजे  रूम पर पहुचे ही थे कि रागिनी का छोटा भाई आया कि उनकी माताजी ने हम लोगो को लंच पर बुलाया है। हमने अपने भाग्य को सराहा कि दीपावली पर न रहने पर भी , दीपावली का पकवान छूटा नही । आज मिल रहा है।
लगभग 1 बजे हम तीनों रागिनी दीदी के घर पहुंचे। डाइनिंग टेबल पर , हम लोग के बैठने के  बाद , एक नया स्मार्ट व हैंडसम  बंदा आया । परिचय होने पर पता चला कि यह रागिनी दीदी के पति है।टेबल पर उनके दोनों भाई , पति व हम तीनों बैठे। उनके पति ने हम लोग की पढ़ाई के बारे में पूछा ,
- किस क्लास में हो?
- 11वी में
- कौन ग्रुप है
-, पीसीएम
- इंजिनीअर बनना है।
तब तक रागिनी दीदी मुस्कराती हुई डाइनिंग टेबल तक पहुची।हम लोगो ने नमस्कार किया। अभिवादन का उत्तर देते हुए रागिनी दीदी ने , हम लोगो के हाल चाल पूछी ,पढ़ाई के बारे में पूछा ।
-  बहुत अच्छे लड़के है। सिन्सियर स्टूडेंट है।






रागिनी दीदी ,अपने पति से बोली ।
- अपने काम से काम रखते है। सामने के मकान में एक कमरा किराए पर लेकर रहते हैं। बहुत कठिन स्थितियों में पढ़ रहे है , अपना खाना  खुद बनाते हैं । कमरे से स्कूल व स्कूल से कमरा - यही इनकी दुनिया है।
रागिनी दीदी ने और जानकारी दी।
- अभी इन लोगो से .....( सालो से ) बात चीत हो रही थी । अगली छुट्टी में तुम लोग भी  शिमला आओ।
उनके पति बोले।
 - बिल्कुल , तुम लोग जरूर आओ।
रागिनी दीदी बोली।
तब तक रागिनी दीदी के छोटे भाई ने खाना सर्व करना शुरू किया । आंटी जी भी मदद कर रही थी । खुशनुमा माहौल में भोजन शुरू हुआ। रागिनी दीदी रोटी लेने के लिये किचन में गई। और इधर छोटे भाई ने रागिनी दीदी की तारीफ शुरू की।
- दीदी बहुत मेहनत करती थी , बहुत अच्छी है , बहुत पढ़ती  है।बहुत समझदार है।बहुत व्यवहार कुशल है।
- जी , बिल्कुल।
मैं बोला।
- पूरा घर सम्हाले थी ।
बड़े भैया बोले।
-अब आंटी के ऊपर सब बोझ आ गया।
मैं बोला।
आंटी जी मुस्कराते हुए हम लोग की बाते सुन रही थी।
- तुम लोगो का कहना सही है, लेकिन तुम लोगो की रागिनी दीदी में  ...एक कमी है , जो आप लोगो की है , मम्मी  जी बुरा मत मानियेगा......रागिनी  दीदी के पति बोले।
- बताइए।
आंटी बोली।
-यह बाहर निकलने में बहुत संकोच करती है।लोगो से , भीड़ से  बचती है।  जिसके कारण बैंक , दुकानों पर का कोई काम यह नही कर पाती ...
उनके पति बोले।
तब तक रागिनी दीदी टेबल तक पहुची।बोली
- क्या बात है?
आंटी बोली ।
-  हम  लोगो की कमी बताई जा रही है , यह कहकर आंटी जी ने पूरी बात बताई।
- मैं भी सुनू  , अपनी कमी।
रागिनी दीदी इठलाते हुए बोली।
- इसको बाहर निकलने , जाने , घूमने , शॉपिंग करने की ट्रेनिंग आप लोगो ने नही दी, ... इसको भीड़ से , आदमियों से डर लगता है ।  जिससे इसमें बाहर जाने का आत्म विश्वास ही नही है।बहुत कठिनाई होती है। न तो यह बाहर का कोई काम करती है और न अकेले शॉपिंग करती है , न घूमती है। न लोगो से मिल पाती है।बहुत ही शर्मीली है । हर समय , इसके साथ कोई न कोई चाहिये।
उनके पति बोले।
यह सुनते ही हम सभी लोग  ,एक दूसरे को देखकर , नजर  खाने में गड़ाकर खाने लगे  और तभी ,रागिनी दीदी की पुरानी खिलखिलाहट वाली हँसी सुनाई पड़ी।
  ०००

अमित कुमार मल्ल की एक कहानी और नीचे लिंक पर पढ़िए

https://bizooka2009.blogspot.com/2019/01/5-12-5-10-4-8-10.html?m=1




परिचय
1.नाम  - अमित कुमार मल्ल
2  जन्मस्थान - देवरिया
3 शिक्षा - एम 0 ए 0, (हिंदी ), एल 0 एल 0 बी0
4  पद -  सेवारत
5  रचनात्मक उपलब्धियां- 

प्रथम काव्य संग्रह - लिखा नहीं एक शब्द , 2002 में प्रकाशित ।
प्रथम लोक कथा संग्रह - काका के कहे किस्से , 2002 मे प्रकाशित ।वर्ष 2018 में इसका  , दूसरा व पूर्णतः संशोधित  संस्करण प्रकाशित। 
दूसरा काव्य संग्रह - फिर , 2016    में प्रकाशित ।
2017 में  ,प्रथम काव्य संग्रह - लिखा नही एक शब्द का अंग्रेजी अनुवाद not a word was written प्रकाशित ।
काव्य संग्रह - फिर , की कुछ रचनाये , 2017 में ,पंजाबी में अनुदित होकर पंजाब टुडे में प्रकाशित ।
तीसरा काव्य संग्रह - बोल रहा हूँ , बर्ष 2018 के जनवरी  में प्रकाशित ।
कविताये , लघुकथाएं व लेख , देश के प्रमुख समाचारपत्रों व पत्रिकाओं में प्रकाशित ।

6, पुरस्कार / सम्मान -
राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान , उत्तर प्रदेश द्वारा 2017 में ,डॉ शिव मंगल सिंह सुमन पुरस्कार , काव्य संग्रह , फिर , पर दिया गया ।
सोशल मीडिया पर लिखे लेख को 28 जन 2018 को पुरस्कृत किया गया ।

8,मोब न0 9319204423
इ मेल -amitkumar261161@gmail.com

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