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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

24 मार्च, 2019

 कहानी



योजनाएँ

कुसुम पाण्डेय



घनघोर बारिश और गांव की हालत!गांव का नाम कुछ भी हो ,क्या कोई अंतर पड़ता हैं!मान लेते हैं कि गांव का नाम गौरीपुर हैं.बारिश की उदारता गांव के जर्जर घरों को अपना ग्रास बनाने की जिद पर अमादा हैं. लल्लन के घर को भी गांव के दूसरे घरों की तरह किसी तरह 'घर 'कहा तो जा सकता हैं, यदि टूटी फूटी छाजन वाली छत सामान्य दिनों में छत का काम दे देती हैं।आमदनी का न कोई जरिया, न कोई कमाकर लाने वाला।रामरति किसी तरह मेहनत-मजदूरी करके बूढ़े ससुर लल्लन के पेट की आग बुझाने भर का इन्तजाम कर पाती है।बूढ़े लल्लन मे कुछ करने की सामर्थ्य रहा नहीं।टूटी खाट पर पडा दिन भर खांसता रहता है।जाने कौन सी मोह व जिम्मेदारी की लडी है, जो रामरति को यहाँ से जोडें हुए हैं।


कुसुम पाण्डेय



                उसे लल्लन का बेटा ब्याह कर लाया था।रामरति की सुन्दरता के गांव में खूब चर्चे हुए।मैले-कुचैले कपडों मे भी वह आकर्षक लगती।मक्खन कस्बे के बनिये के यहां हिसाब-किताब करता।इससे चार लोगों का गुजारा हो जाता था।कोहरे मे लिपटी उस रात ईश्वर के लेख में इनके सुख भरे दिन पूरे हो गए।दुकान से लौटता मक्खन तेज रफ्तार ट्रक की चपेट में आ गया।मक्खन की नई-नवेली पत्नी विधवा हो गई।साल भर के भीतर जवान बेटे के गम में बूढी सास गुजर गई।दुखों के बोझ से लल्लन पत्थर बन गया।उसे ही कुछ नहीं हुआ।समय की निष्ठुरता ने रामरति के सारे सुख गहरी अंधेरी खाई के हवाले कर दिये।
           उसके रूप को कोई सराहने वाला न रहा।अब सुन्दरता काट खाने को दौडती।मान-सम्मान की फिक्र मे रातें आंखों मे कटतीं।जरा सी आहट सचेत कर देती।उसने भाभी से मन की बात कही।

            "सरकार गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों को घर बनाने के लिए आर्थिक मदद देती हैं-इसे इन्दिरा आवास योजना कहते है"-भाभी ने बताया।

उसने भाई के सहयोग से खुद को उपयुक्त पात्र ठहराते हुए इन्दिरा आवास योजना के अन्तर्गत अनुदान हेतु अर्जी लगाई।जाने कितनी बार ब्लॉक जाकर कर्मचारियों के आगे अपने हालत का रोना रोया,जिसका पीडितों की मदद को बैठे लोगों पर कोई असर न हुआ. कमल-दलों पर पानी की बूदें कब ठहरती हैं।प्रकृति के इसी गुण से प्रेरित सरकारी महकमा गर्वोन्नत खडा हैं, जिस पर जरुरत मंद के दु:ख-दर्द का कोई असर नहीं पडता.इस सच से अनजान रामरति सरकारी नियमों के अन्तर्गत कार्य वाही का आश्वासन पाकर घरघर पाने की एक और उम्मीद नत्थी कर देती.

           उस दिन रामरति घर के कामों में लगी थीं।उसे रिमचरित्तर ने गांव वाले साहब के आने की बात बताई।वह गांव के लड़के के साथ चल पडीं।रास्ते भर अपने टूटे फूटे घर की जगह खूबसूरत घर की मनोरम झांकियां देख डाली।

           सरकारी हैन्डपम्प के पास वाले नीम के नीचे प्रधान जी के घर से आई दो तीन कुर्सियां पडी हैं।एक कुर्सी पर बैठे बडे साहब जी झक सफेद अंगोछे से हाथ के बने पंखे का काम ले रहे है।आसपास जरूरत मंदो व गांव वालों की भीड़ जमा है।सब अपनी समस्या से इसी बार साहब को अवगत करा देना चाहते थे।उसे गांव की वृद्धा से पता चला कि दो तीन लोग सहायता पाने वाले घरों की दशा देखने गए है।
           "साहेब जी राम -राम।गरीब पर भी दया कर दो सरकार,"कहकर विनती की आंखें बरस पडी।


           
           


 मिष्ठान का भोग लगाने में तल्लीन साहब आंसुओं से कितना पिघले,कौन जाने!हां-हूँ के रुप में उनकी प्रतिक्रिया हुई थी।गांव में घर देखने गए लोग लौटे।रामरति ने अपना घर देखने की विनती की ।घर का निरीक्षण नहीं हुआ।पेड के नीचे विश्राम की मुद्रा में पसरे साहब ने उसे आने वाले सोमवार को कार्यालय बुलाया।साहब अपनी मोटर मे बैठे और चले गए।रामरति के चेहरे पर खुशी की चांदनी छिटक गई।उसे लगा कि साहब उसकी स्थिति पर पिघल गए।फिर, पूरे गौरीपुर मे इस सहायता की सही मायने में किसे जरूरत है?मंगरु काका,जगत चाचा, तुलसी बगिया के पास रहने वाले जेठ जी की ताई-सबके घर अच्छी-भली आमदनी है,परन्तु सबकी नजर सरकारी सहायता पर लगी।लाला चमनलाल की दुकान खूब चलती है।हर साल जोरू को जेवर दिलाते हैं।पर,घर बनाने को पैसे नहीं है।झूठी पात्रता के मुखौटे के पीछे सबकी सच्चाई उससे छिपी नहीं है।

              वह धडकते दिल को सहेजती सोमवार को घर से निकली।लाला के बाग के पास वाले शिव-मंदिर में माथा टेका, मनौती मानी।कार्यालय को चल पडी।वह कार्यालय पहुंची।दस सवा दस का समय।इक्का-दुक्का लोग आए थे।कुछ खाली कुर्सियां।लोग जायके दार बातों में व्यस्त है।उसे आवास योजना वाले साहब दिखाई नहीं पडे।
            " इन्दिरा आवास वाले साहब कहां..,"रामरति ने बातचीत में तल्लीन व्यक्ति से पूछा।
             "आगे बायीं तरफ उनका कमरा हैं,"अनमना सा उत्तर मिला।
              वह इंगित की गई दिशा में कमरे तक आई।साहेब जी,मुख्यालय मीटिंग में गए है, एक घंटे के बाद आएंगे,"खैनी मलते चपरासी ने बताया।

              रामरती दस-पंद्रह कदम के फासले पर खडे आम के नीचे बैठकर सुस्ताने लगी।वहां से साहब का कमरा दिखाई देता था, यही इत्मीनान रहा।इंतजार में पूरा दिन गुजर गया।पश्चिमी क्षितिज पर सूर्यास्त के चिन्ह उभरने लगे।अब मुलाकात की कोई आशा नहीं रह गई।वह बुझे मन से लौटने लगी।तभी वहीं गाड़ी आती दिखाई दी,जिससे साहब गांव से आए थे।दिन भर की प्रतीक्षा के बाद रामरति की आंखों में उम्मीद जगी।गाडी कार्यालय के मेनगेट से भीतर आयी।दो तीन लोगों के साथ साहब उतरे।
             "साहेब जी,राम-राम।आप आज बुलाये रहे,"रामरति उसी ओर तेज कदमों से लपकी।
             "कौन हो तुम?साहब दौड-धूप से परेशान हैं।कमबख्त़ चैन की सांस भी नहीं लेने देते,"गाडी से उतरा एक आदमी बोला।
              अरे, अजीब औरत हैं.... एक बार में बात ही नहीं समझती,"वह आदमी झुंझला उठा।
              रामरति निराश होकर लौट पडी।
            " येऔरत शायद गौरीपुर से आयी हैं, जरा रोकना इसे,"रामरति के कानो मे ये आवाज पडी।
              "साहब जी,बुला रहे है,"सुनकर लौट आई।
                साहब ने पारिवारिक स्थिति के बारे में पूछा और स्पष्ट शब्दों में बता दिया कि" शिकायत मिली है, तुम बी.पी.एल.श्रेणी की नहीं हो और न तुम्हारे पास उक्त कार्ड हैं।लिहाजा गांव-पंचायत ने तुम्हारा नाम प्रस्तावित नहीं किया।योजना के धन के लालच में घर को जर्जर स्थिति में रखा है।"
               रामरति के पांवो के तले से जमीन खिसक गई।गौरीपुर मे यदि आवास योजना की किसी को आवश्यकता है, तो वह रामरति हैं।फिर किसने.... योजना वाले साहब को विधाता मानकर असहाय रामरति कदमों में गिर पडी। अरे तुम औरत हो,इसलिए मैंने साफ बता देना मुनासिब समझा ।वरना रोज चक्कर लगाती,"कहकर वह आगे बढ़ गए।
                 रामरति फटी आंखों से उन्हें जाता देखती रही।उसके साथ जो घटा, उस पर यकीन नहीं कर पायी।सूरज पूरी तरह से डूब चुका था,उसी के साथ रामरति की उम्मीद का सूर्य भी।वह बोझिल कदमों से घर लौट आई।
                सरकारी महकमों के फेर में जाने कितनों की हसरतें दम तोड़ देती हैं।रामरति का नाम और जुड़ गया।गौरीपुर गांव में योजना के अन्तर्गत चयनित लाभार्थियों मे उसका नाम शामिल नहीं हुआ।अपने टूटे सपनों की किरचें बुहारती रामरति को पहली बार लगा कि सबल और समर्थ की चाह पूरी होती हैं।हारकर उसे बरसात से पहले अपने घर की मरम्मत करनी पड़ी।इसके लिए उस पर कर्ज भी हो गया।

              गर्मियों के बाद बरसात का आना कोई नयी बात तो नहीं है।चार दिन लगातार बरसात होती रही।रामरति के घर का दालान वाला भाग गिरहर था।उसका कलेजा मुंह को आने लगा।वह बूढ़े ससुर को सहेजे घर के अपेक्षाकृत मजबूत हिस्से में सिमट गई।




             


पांचवें दिन भी बारिश न थमी।घर में रखा खाने पीने का सामान खत्म हो गया।उसने मुट्ठी भर सत्तू घोलकर लल्लन को दिया।रामरति का कुछ खाने का मन न हुआ,सो गुड़ की डली मुंह में डाली, दो घूंट पानी हलक से उतारा।वह जमीन पर पुरानी चादर बिछाकर लेट गयी।आज जाने क्यों मक्खन की बहुत याद आ रही है।एक वहीं तो था, जो उसे कोमल कली सा सहेज कर रखता था।मक्खन के बारे मे सोचते-सोचते आंख भी न लगी होगी, कुछ गिरने की आहट हुई।उठकर देखा पहले मक्खन और अब उसके साथ रिश्ते की गवाह खामोश दीवारे गुजरा कल बनने को हैं।घर के इस भाग से उसकी भावनाएं गहरे से जुड़ी हैं।वह पति की यादों से जुड़ी बची खुची चीजें निकालने लगी।गांव के मेले में खिचाई फोटो,गिलट का मंगलसूत्र।सब मिल गया।भावनाओं के आवेग मे उसे यह भी ध्यान न रहा कि कमरे में रूकना तो दूर कदम रखना भी खतरनाक है।एक दिवार गिर चुकी थी,दूसरी का कुछ हिस्सा गिरकर भी हौसले को डिगा न पाया।अभी सबसे अनमोल चीज विवाह वाली चुनरी बची है।

                ढिबरी बुझ गई।वह बिजली की चमक मे चुनरी तलाशती रही।गोटे की चमक ने चुनरी हाथ लगा दी,तभी छत के रूप में जमीन-आसमान के बीच जो रहा सब भरभराकर गिर पडा।उसने बाहर भागने की कोशिश की लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थीं।रामरति का समूचा शरीर उसी कमरे का होकर रह गया।सिवाय पैरो के।जो बाहर दालान मे निकले थे।,जहां से उसने जीवन की नई शुरुआत की थी।जब-जब बिजली कौधती,रामरति की दायीं कलाई के गोदने समेत चुनरी का कुछ हिस्सा दिखाई दे जाता।
               अगली सुबह बारिश थम चुकी थी।बादलों की ओट से निकले सूरज की कांति मद्धिम जान पडती हैं।इलाके में लल्लन और रामरति की मौत की खबर फैल गयी।मकान के लिए तो सहायता न मिल सकी,सरकारी फाइलों में इनके लिए योजना-अनुदान की कमी नहीं है।कुछ तो होगा जरूर।

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