कभी-कभार सात
हार्लेम पुनर्जागरण की सांस्कृतिक नायिकाएं
विपिन चौधरी
एलिस मूर डनबर-नेल्सन (1875-1935)
एलिस डनबर-नेल्सन का नाम पुनर्जागरण की पीढ़ी के अश्वेत कवयित्रियों की संरक्षक कवियत्रियों के रूप में लिया जाता है. गृहयुद्ध के पश्चात दक्षिण में जन्म लेने वाली पहली पीढ़ी के बीच, एलिस हार्लेम पुनर्जागरण के कलात्मक उत्कर्ष में शामिल प्रमुख अफ्रीकी अमेरिकियों कवयित्रियों में से एक थीं.
एलिस डनबर-नेल्सन |
उन्होंने अफ़्रीकी समाज में व्याप्त उत्पीड़न के कई रूपों को अपनी राजनीतिक सक्रियता में समाहित किया: कविताओं के अलावा कथा-लेखन और पत्रकारिता के अलावा उन्होंने महिलाओं के मताधिकार, शांति-संगठनों और एंटी-लिंचिंग अभियानों में योगदान दिया।
संयुक्त राज्य अमेरिका के नीग्रो किसानों से
ईश्वर अपने पसंदीदा लोग
जिनकी पीठ झुकी हुई है पृथ्वी की तरफ
की आत्माओं और हृदयों को करता है साफ़
उनपर आरोपित की गई अनिच्छा जो चुका रही है बदला कठिन परिश्रम से
शांत तौर-तरीकों और सही बिनाई से
परमेश्वर की रख दी है तुम्हारे हाथों में दी है
मीठी मेहनत
विफलता के लिए तुम्हारा श्रेष्ठ उपहार
जीवन की कर्मठता में नग्न-दांत की भूख रुपी लोमड़ी की वास्ते
फिर भी सभी बहुत कम
तुम्हारी शानदार टोली
प्रकृति के हृदय से साफ कूदा हुआ
हजारों भूखों की उम्मीद, जिनके हृदय में
बसाती है डर कि होना चाहिए तुम्हे असफल
ईश्वर ने तुम्हारे हाथों में नहीं रखी युद्ध की कोई बर्छी
मगर एक शिखा में बंधे हुए
आँसू, प्रशंसा, प्रेम, आनंद, को शुरू करने की शक्ति
प्रतापी, बहादुर तुम्हें पहनाने को ताज
बैठ मैं कर रही हूँ सिलाई
बैठी मैं सिलाई कर रही हूँ, जान पड़ता है यह बेकार सा काम
मेरे हाथों में बढ़ रही है थकन, मेरा सिर सपनों के भार से थक गया है
युद्ध के आड़ में, पुरुषों की जंगी प्रवृति
निर्दयी- चेहरे, कड़ी- नज़रों, पहुंच से परे कमतर उन आत्माओं पर टकटकी लगाना
जिनकी आँखों ने देखी नहीं है मृत्यु
न ही सीखा है उन्होंने अपने जीवन को
बस एक सांस की तरह थामना
लेकिन - मेरे लिए अनिवार्य है बैठना और सिलाई करना
मैं आराम से करती हूँ सिलाई- कामनाओं से दुखता है मेरा हृदय
यह भयावह तमाशा, वह जमकर लगने वाली आग बर्बाद हो चुके खेतों पर,
और झटपटाती हुई विचित्र आग
एक दफा इंसान, मेरी आत्मा हाथ बढाती है करुणा की तरफ
रोती है करती है याचना, तड़पती है जाने के लिए
वहां नरक के उस प्रलय में जाने के लिए, शोक के उन इलाकों में
लेकिन-मुझे बैठना और सिलाई करना चाहिए
थोड़ी निरर्थक सी सीवन, बेकार सा यह पैबंद
मैं क्यों देखती हूँ सपने अपने घर के छप्पर नीचे
जब वे वहां रहते हैं सीली मिट्टी और बारिश में
करुणापूर्वक रूप से बुलाते हुए मुझे, फुर्तीले और मारे गए लोग?
आपको मेरी ज़रूरत है, यीशु ! यह कोई गुलाबी सपना नहीं है
वह बुलाती है मुझे इशारे से- यह सुंदर निरर्थक सिलाई
यह मेरा गला दबाती है - भगवान, क्या मुझे बैठ कर सिलाई करने की जरुरत है
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एंजेलिना वेल्ड ग्रिमके (1880-1958)
एंजेलिना वेल्ड ग्रिमके |
एंजेलिना वेल्ड ग्रिमके का जन्म 27 फरवरी को बोस्टन में हुआ. हार्लेम पुनर्जागरण पहली अश्वेत लेखिका थी जिनके नाटक का सार्वजनिक प्रदर्शन किया गया था. अपनी कविताओं में प्रकृति को वे प्रतीक के तौर पर प्रयोग करती थी. हार्लेम पुनः जागरण शुरू होने से पहले ग्रिमके की रचनाएँ प्रकाशित होती रही थी. उन्हें रचनात्मक जागरण के अग्रदूत के रूप में देखा गया. आने वाली पीढ़ियों के लिए वे एक रचनात्मक अग्रणी पथवाहक के रूप में वे सदा मौजूद रही. अपने समलैंगिक रुझान के चलते उन्होंने इस विषय पर कई कविताएं लिखी।उस दौर में इस तरह की कामुकता की बात खुले तौर पर नहीं कि जाती थी क्योंकि इस तरह के संबंध स्वीकार्य नहीं थे. 'अप्रैल में' शीर्षक इस कविता में वक्ता का स्त्री-देह के प्रति आसक्ति और होमोसेक्सुअल कामुकता दर्शाने के लिए खिले हुए फूलों के रूपक का सहारा लिया गया है.
अप्रैल में
ठेल दो अपने समलैंगिक सिर
भूरी लड़की पेड़
उछाल दो अपने समलैंगिक प्यारे सिर
हिलाओ अपनी भूरी पतली देह
खींचों अपनी भूरी छरहरी देह को
फैला दो अपने भूरे दुर्बल पाँव
अपनी काली, गहरी देह के संग
हम से बेहतर कौन जानता है
इसका क्या अभिप्राय है
जब अप्रैल आता है एक हंसी और एक रुदन के साथ
एक बार फिर
हमारे हृदयों में?
क्षणभंगुरता
नीले वसंत की शाम
तुम हो
एक पीले बैंगनी फूल की मानिंद
तुम पीले तारे से
उदीयमान और बहते हुए
खूबानी आकाश में
तुम आवाज़ की खूबसूरती
याद किया जाता है जिसे
मृत्यु -पश्चात
तुम
गिरते हुए
और
बहते हुए नीचे
सफ़ेद, सुन्न बेज़ुबान मेरी आत्मा पर
अँधेरा और सूनापन
दिन से, एक पेड़ है वहाँ
कि रात को है उसकी परछाई
लंबी ऊंगलियां के साथ एक काला विशाल हाथ
लगातार अंधियारे में
श्वेत व्यक्ति के घर के विपरीत
हलकी चलती हवा में
काले हाथ तोड़ते और बीनते जाते हैं
ईंटों पर
ईंटों का रंग है लहू के रंग सा
और हैं वे बहुत छोटी
क्या यह काले हाथ हैं
या यह है एक छाया
*छोटा, गोल, एक सदाबहार शंकुधारी पेड़
०००
विपिन चौधरी कभी-कभार की पिछली कड़ी नीचे लिंक पर पढ़िए |
21 फ़रवरी, 2019 कभी-कभार छः पुनर्निर्माण काल (1865-1900) में एफ्रो-अमेरिकी स्त्री-कविता का परिदृश्य विपिन चौधरी संयुक्त राज्य अमेरिका में कई जातीय समूहों में से सबसे बड़े समूह में से एक अफ्रीकी अमेरिकी समुदाय पुनर्निर्माण युग 1863 से 1877 तक की अवधि के बाद, कई लेखकों ने अपनी मौखिक बोलियों को उनके साहित्य में विलय करके लेखन को विकसित करने की कोशिश की. इसी समय अफ्रीकी अमेरिकी गुलामों को आज़ादी मिली। वे शिक्षा का लाभ उठाने ;लगे और अपने नाम पर ज़मीन भी खरीद सकते थे. स्त्री कविता को भी कई नए आयाम मिले और सृजना का फलक और साफ़ और सुंदर हुआ जब एक साथ कई अश्वेत रचनाकारों ने अपनी कलम को पैना किया और अमेरिका के नस्लीय भेदभाव के खिलाफ लेखकीय एकता को साझा किया। शेष नीचे लिंक पर पढ़िए https://bizooka2009.blogspot.com/2019/02/1865-1900-1863-1877.html?m=1
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