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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

09 नवंबर, 2024

आन्ना आख़्मातोवा की कविताऍं

 

अनुवाद: सरिता शर्मा 

आख़्मातोवा आन्ना अन्द्रीवना गोरेन्को का साहित्यिक छद्म नाम है। उनका जन्म 1889 में हुआ था। वह अग्रणी एकमिस्ट कवियों में से एक थी जिनका उद्देश्य कविताओं में प्रतीकों के स्थान पर स्पष्टता लाना था। उन्हें उनकी कविताओं की दूसरी पुस्तक, बीड्स (1914) से प्रसिद्धि मिली। उनके शुरुआती दौर की

अंतरंग और बोलचाल की शैली धीरे - धीरे क्लासिकी गंभीरता में बदल गयी जोकि उनके बाद के काव्य संकलन वाइट फ्लोक (1917) से स्पष्ट है। आन्ना आख़्मातोवा की कविता में व्यक्तिगत और धार्मिक तत्वों की मौजूदगी से सोवियत अफसरशाही में बढ़ रही अरुचि और रोष के चलते उन्हें लंबे अरसे तक चुप्पी साधने के लिए मजबूर होना पड़ा। उनकी अंतिम वर्षों की श्रेष्ठ काव्य कृतियां ए पोएम विदाउट ए हीरो और रेक्विम विदेश में प्रकाशित की गयी थी। अख़्मातोवा ने विक्टर ह्यूगो, रवीन्द्रनाथ टैगोर, गियाकोमो और अनेक अर्मेनियाई और कोरियाई कवियों की कृतियों का अनुवाद किया और प्रतीकवादी लेखक अलेक्सांद्र ब्लोक, कलाकार अमेदियो मोदिगिलियाना, और एक्मिस्ट साथी ओसिप माँदेलश्ताम के संस्मरण लिखे हैं। उन्हें 1964 में एटना-ताओरमिना पुरस्कार और 1965 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। मृत्यु से दो वर्ष पूर्व 76 साल की उम्र में अख़्मातोवा को राइटर्स संघ का अध्यक्ष चुना गया था। उनकी मृत्यु 1966 में हुई थी।  

०००

कविताऍं



सच्ची कोमलता



सच्ची कोमलता चुप्पी है

और इसे कुछ और नहीं माना जा सकता है।

व्यर्थ ही उद्दाम इच्छा से तुम 

ढंक रहे हो मेरे कंधों को फर से;

व्यर्थ में तुम कोशिश करते हो 

पहले प्यार की खूबियों पर यकीन दिलाने की।

अर्थ जानती हूँ मगर मैं अच्छी तरह 

तुम्हारी निरंतर जलती निगाहों का।

०००


काले लिबास में विधवा


काले लिबास में एक विधवा – रोने लगती है

एक निराशाजनक बादल के साथ

ढांप देती है सब दिलों को एक निराशा के कोहरे से ...

जब याद किये जाते हैं उसके पति के शब्द साफ- साफ 

उसका ऊंचे स्वर में विलाप बंद नहीं होगा।

चलेगा यह रुदन तब तक, जब तक बर्फ के गोले 

दुखी और थके लोगों को सुकून नहीं देंगे।

पीड़ा और प्रेम की विस्मृति का मोल 

हालांकि जीवन देकर चुकाया गया। 


इससे ज्यादा क्या चाहा जा सकता था ?

०००



सब कुछ


सब कुछ लूटा गया, धोखा और सौदेबाजी थी 

काली मौत मंडरा रही है सिर पर।

सब कुछ डकार गयी है अतृप्त भूख 

फिर क्यों चमकती है एक प्रकाश किरण आगे?


दिन के वक्त, शहर के पास रहस्यमय जंगल, 

सांस से छोड़ता है चेरी, चेरी का इत्र।

रात के समय जुलाई के गहरे और पारदर्शी आसमान पर, 

नये तारामंडल को पटक दिया जाता है।


और कुछ चमत्कारपूर्ण प्रकट होगा

अंधेरे और बर्बादी जैसा 

कुछ ऐसा, कोई नहीं जानता जिसे 

हालांकि हमने इंतज़ार किया है उसका लडकपन से ।

०००



प्रस्थान



हालांकि यह धरती मेरी अपनी नहीं है,

मुझे याद रहेगा इसका अंतर्देशीय समुद्र 

और जल जो इतना शीतल है 

झक्क सफेद रेत

मानो पुरानी हड्डियां हों, हैरानी है देवदार के पेड़

वहां सूर्ख लाल होते हैं जहां सूरज नीचे आता है।


मैं नहीं बता सकती यह हमारा प्यार है

या दिन, जो खत्म हो रहा है।

०००



थेबिस में अलेक्जेंडर 


मुझे लगता है  राजा युवा मगर दुर्दांत था, 

जब उसने घोषणा की, 'तुम थेबिस को मिटटी में मिला दो।'

और बूढ़ा प्रमुख इस शहर को गौरवमय मानता था 

उसने देखा था वह वक्त जिसके बारे में कवि गाया करते थे।

सब कुछ जला डालो! राजा ने एक सूची और बनायी

मीनार, द्वार, मंदिर - संपन्न और पनपते हुए...

मगर  विचारों में खो गया, और चेहरे पर चमक लाकर कहा,

'तुम बस महाकवि के परिवार के जीवित लोगों के नाम दे दो।'

०००



इस शाम की रोशनी कुछ सुनहरी है


इस शाम की रोशनी कुछ सुनहरी है

अप्रैल की ठंडक कितनी कोमल है

हालांकि तुम आये हो बहुत बरसों की देरी से, 

आओ मैं फिर भी तुम्हारा स्वागत करती हूँ। 


क्यों नहीं बैठते तुम मेरी बगल में 

और खुश होकर देखो चारों ओर।

इस छोटी सी नोटबुक में 

मेरे बचपन में लिखी कविताएं हैं ।


मुझे माफ कर दो कि मैं जिन्दा रही और विलाप किया 

और सूरज की किरणों के लिए आभारी नहीं थी...

कृपया मुझे माफ कर दो, मुझे माफ कर दो क्योंकि 

मैंने तुम्हें कोई और समझ लिया ...

०००












बोरिस पास्तरनाक के लिए


बंद हो गयी अनूठी आवाज यहां,

झुरमुटों का साथी बिछुड़ गया हमसे हमेशा के लिए 

बन गया है वह शाश्वत श्रोता ...

बारिश में जिसने  कई बार गाया था।


और आकाश के नीचे उगने वाले सभी फूल,,

पनपने लगे –जाती हुई मौत से मिलने के लिए ...

मगर अचानक उसे शांत व्यक्ति मिल गया और दुखी हो गया -

वह ग्रह, जिसका  सादा सा नाम  पृथ्वी था।

०००


और पुश्किन का निर्वासन 


और पुश्किन का निर्वासन, यहीं शुरू हुआ था

और लेरमोंतोव का निष्कासन 'रद्द' कर दिया गया 

राजमार्ग पर आम घास की खुशबू फैली है।

झील के पास, जहां विमान और पेड़ों की छायायें मंडराती हैं 

उस कयामत की घड़ी में शाम होने से पूर्व 

बस एक बार मिला संयोग मुझे इसे देखने का

इच्छा से भरी आँखों की तेज रोशनी

तमारा के हमेशा जीवित रहने वाले प्रेमी की।

०००












पत्थर सा सफ़ेद 



कुंए की शांत गहराई में पड़े एक सफेद पत्थर सी,

मुझमें बसी है एक अद्भुत याद।

इसे भुला नहीं पा रही हूँ और न ही ऐसा करना चाहती हूँ:

मेरी यातना और अथाह ख़ुशी है यह।

मुझे लगता है, जिसकी भी नजरें झांकेंगी 

मेरी आँखों में, वह  देख लेगा इसे सम्पूर्णता में एकबारगी। 

सोच में डूब जायेगा और उदास हो 

किसी की जीविका भत्ते की कहानी सुनने से कहीं ज्यादा।


मैं जानती थी: ईश्वर ने एक बार पागलपन में बदल दिया था,

लोगों को वस्तुओं में, उनकी चेतना छीने बिना 

तुमने मुझे मेरे संस्मरण बना दिया है

अलौकिक उदासी को शाश्वत बनाने के लिए।

०००


मुझे फूल पसंद नहीं है 


मुझे फूल पसंद नहीं है - वे अक्सर मुझे याद दिलाते हैं

अंत्येष्टियों, शादियों और नृत्यों की;

मेज पर उनकी मौजूदगी रात्रि भोज के लिए बुलाती है।


मगर एक क्षणभंगुर गुलाब का शाश्वत सरल आकर्षण

जो मेरे लिए सांत्वना था बचपन में 

अनेक बीते बरसों  से 

बन गया है - मेरी विरासत 

सदा सुनाई देते मोजार्ट के संगीत की गुंजन की तरह।

०००


अनूवादिका का परिचय 

सरिता शर्मा (जन्म- 1964) ने अंग्रेजी और हिंदी भाषा में स्नातकोत्तर तथा अनुवाद, पत्रकारिता, फ्रेंच, क्रिएटिव राइटिंग और फिक्शन राइटिंग में डिप्लोमा प्राप्त किया। पांच वर्ष तक

नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया में सम्पादकीय सहायक के पद पर कार्य किया। बीस वर्ष तक राज्य सभा सचिवालय में कार्य करने के बाद नवम्बर 2014 में सहायक निदेशक के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृति। कविता संकलन ‘सूनेपन से संघर्ष, कहानी संकलन ‘वैक्यूम’, आत्मकथात्मक उपन्यास ‘जीने के लिए’ और पिताजी की जीवनी 'जीवन जो जिया' प्रकाशित। रस्किन बांड की दो पुस्तकों ‘स्ट्रेंज पीपल, स्ट्रेंज प्लेसिज’ और ‘क्राइम स्टोरीज’, 'लिटल प्रिंस', 'विश्व की श्रेष्ठ कविताएं', ‘महान लेखकों के दुर्लभ विचार’ और ‘विश्वविख्यात लेखकों की 11 कहानियां’  का हिंदी अनुवाद प्रकाशित। अनेक समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में कहानियां, कवितायें, समीक्षाएं, यात्रा वृत्तान्त और विश्व साहित्य से कहानियों, कविताओं और साहित्य में नोबेल पुरस्कार विजेताओं के साक्षात्कारों का हिंदी अनुवाद प्रकाशित। कहानी ‘वैक्यूम’  पर रेडियो नाटक प्रसारित किया गया और एफ. एम. गोल्ड के ‘तस्वीर’ कार्यक्रम के लिए दस स्क्रिप्ट्स तैयार की। 

संपर्क:  मकान नंबर 137, सेक्टर- 1, आई एम टी मानेसर, गुरुग्राम, हरियाणा- 122051. मोबाइल-9871948430.

ईमेल: sarita12aug@hotmail.com

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