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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

06 नवंबर, 2024

सुधा अरोड़ा की कविताऍं

Translated from Hindi by C S Lakshmi Ambai

सातवें दशक में सामने आईं कथाकार और कवयित्री सुधा अरोड़ा का जन्म 4 अक्टूबर, 1946 को अविभाजित भारत के लाहौर में हुआ

उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की, फिर बतौर प्राध्यापक कार्यरत हुईं। बाद में स्वयंसेवी संस्था ‘हेल्प’ के साथ संबद्धता रही और फिर स्वतंत्र लेखन की ओर उन्मुख हुईं।

‘रचेंगे हम साझा इतिहास’ और ‘कम से कम एक दरवाज़ा’ उनके काव्य-संग्रह हैं। उन्होंने कथा-लेखन अधिक किया है जिस क्रम में उनके एक दर्जन से अधिक कहानी-संग्रह प्रकाशित हैं, जिनमें ‘महानगर की मैथिली’, ‘काला शुक्रवार’, ‘रहोगी तुम वही’ आदि चर्चित रहे हैं। उनका उपन्यास ‘यहीं कहीं था घर’ शीर्षक से प्रकाशित है। ‘आम औरत ज़िंदा सवाल’ और ‘एक औरत की नोटबुक’ में उनके स्त्री-विमर्श-संबंधी आलेखों का संकलन हुआ है। ‘औरत की कहानी’, ‘मन्नू भंडारी सृजन के शिखर’, ‘मन्नू भंडारी का रचनात्मक अवदान’ आदि उनके संपादन में प्रकाशित कृतियाँ हैं। उनके संपादन में तैयार ‘दहलीज को लाँघते हुए’ और ‘पंखों की उड़ान’ कृतियों में भारतीय महिला कलाकारों के आत्म-कथ्यों का संकलन किया गया है। 

उनकी कहानियाँ लगभग सभी भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, फ्रेंच, पोलिश, चेक, जापानी, डच, जर्मन, इतालवी तथा ताजिकी भाषाओं में अनूदित और इन भाषाओं के संकलनों में प्रकाशित हुई हैं। 

उन्होंने स्तंभ-लेखन भी किया है और इस क्रम में सारिका में 'आम आदमीः ज़िंदा सवाल', जनसत्ता में 'वामा' कथादेश में ‘औरत की दुनिया’ और फिर ‘राख में दबी चिनगारी’ चर्चित स्तंभ रहे हैं।

उनका योगदान रेडियो नाटक, टी.वी। धारावाहिक तथा फ़िल्म पटकथाओं में भी रहा है जिनमें भँवरी देवी के जीवन पर आधारित 'बवंडर' फ़िल्म का पटकथा-लेखन उल्लेखनीय है। इसके साथ ही वह विभिन्न महिला संगठनों और महिला सलाहकार केंद्रों के सामाजिक कार्यों से जुड़ी रही हैं। 

उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के विशेष पुरस्कार, भारत निर्माण सम्मान, प्रियदर्शिनी पुरस्कार, वीमेन्स अचीवर अवॉर्ड, महाराष्ट्र राज्य हिंदी अकादमी सम्मान, वाग्मणि सम्मान आदि से सम्मानित किया गया है।


कविताऍं


 यात्रा में औरत

यात्रा पर निकलने से पहले 
जी हौल कर ऊपर आता है 
कुछ तो है, जिसे रखना भूल गयी हूँ 
अफरा तफरी में दस बार टटोलती हूँ - 
टिकट, अपना आई डी प्रूफ, मफलर, मोज़े .... 
सभी कुछ है आँखों के सामने 
फिर भी कुछ तो है ... 
जो छूटा जा रहा है !

एक औरत ही ऐसी शै है 
जो तीन चौथाई ही जाती है यात्रा पर 
अपना एक चौथाई हिस्सा 
घर की दीवारों के बीच छोड़ आती है !

कौन कहता है 
ईंट गारे की दीवारों से भला कैसा राग 
औरत ही कर सकती है प्रेम 
दीवारों से, सांकलों से,

जाते जाते कहती है 
अपने उस एक चौथाई से 
जो उढ़के हुए दरवाज़े के बीच 
सहमा सा बैठा है, 
राह तकना ! 
लौट कर मिलती हूँ.....

अंग्रेजी में अनुवाद - सी एस लक्ष्मी 'अम्बई' 

Woman on a Journey

Before embarking on a journey
One's heart is in one's mouth
There is something I've forgotten to pack 
In total confusion I fumble ten times –
Ticket, my I D card, muffler, sox….
Everything is there before me
But there is something
That is missing…
 
Only a woman is the kind  
Who'd take only three quarters of herself on a journey  
And leave a quarter of herself behind
Within the four walls of her house!

Who says 
One can’t be attached to brick walls
Only a woman can love walls , love chains 

While leaving 
She tells the quarter of herself
Which is sitting calmly within closed doors
Wait for me!
Will meet you when I return….
 

कंधे

औरत है ?
सोचती भी है ?
अपनी बिरादरी के हक में खड़ी होती है 
और हमारे कंधे भी नहीं मांगती ? 

क्या खूब !
ऐसे देखो इसे
जैसे है ही नहीं यहां
जैसे रोड़े पत्थर पड़े होते हैं रास्तों में

फिर भी इतरा रही है
अब भी झुकती नहीं

तो चलो,
बुलाओ इसकी ही बिरादरी
ढेरों मिलेंगी 
इसपर हंसेंगी
इसे कुचलेंगी

आखिर यह कहां जाएगी
कब तक लड़ेगी
किस किससे भिड़ेगी 
एक दिन
अपनी मौत
खुद ही मरेगी 

आखिर तो
हमारे ही कंधे चढ़ेगी !


Shoulders

A woman, are you ?
And with a mind too?
And you Stand withe the rights given by sisterhood
And You don’t need our shoulders to lean on? 

Very good!
Look at her 
As if she does not exist
Like blocks of stones lying on the way

Still, She is so arrogant? 
Unbending even now? 

So, Let it be
Call people of her own sisterhood 
Many must be there 
To laugh at her
To suppress her 

After all, where will she go?
How long will she fight?
With how many will she be angry?

One day
She has to die 
Her own death

Finally
She’ll be borne on our shoulders only! 
०००



Translater 

C.S.Lakshmi ‘Ambai’ (Lakshmi Chitoor Subramaniam ‘Ambai’) Born in 1944, in Coimbatore, C S Lakshmi has been an independent researcher in Women's Studies for

the last more than forty years. She has a Ph.D from Jawaharlal Nehru University, New Delhi. She writes under the pseudonym Ambai in Tamil about love, relationships, quests and journeys and her short story collections have been published in Tamil and also translated into English.  She was given the Sahitya Akademi Award in 2021 for her book Sivappuk Kazhuththudan Oru Pachaip Paravai.She is currently the Director of SPARROW (Sound & Picture Archives for Research on Women)

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