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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

13 जनवरी, 2025

अंकिता रासुरी की कविताऍं

 




चित्र 

रमेश आनंद 








एक

चित्रलेखा


रंगमंच से उतरती चित्रलेखा

लौट आयी है धरती पर

प्रेम और प्रेम से जूझते हुए

जिंदगी और जिंदगी से जूझते हुए

अंतर्द्वंद से गुजरती हुई चित्रलेखा

आज पाप और पुण्य की प्रयोगशाला नहीं

बल्कि खुद ही पाप और पुण्य से परे

उलझती हुई सुलझा रही है

जिंदगी और मौत के फासले को

और तलाश रही है

शराब और नृत्य की दुनिया में जीवन की नयी परिभाषा

पर आधी रात गुजर जाने के बाद

उसके प्रेमियों के महल और झोपड़े बदल जाते हैं खंडहरों में

और सुबह होते ही फिर से

गुनगुनाने लगते हैं हिलांस उसकी मुंडेरों पर

लेकिन वह जानती है 

इन तमाम घुटन भऱे रास्तों को वह अकेले नहीं जीती है

उसमें शामिल होते हैं चारो दिशाओं के साथ-साथ

तमाम रात्रि पक्षी भी

अपने तमाम संतापों के साथ।


दो


अहंकार


ये कैसा अहंकार है

सेक्स करता हुआ हर पुरुष

समझता रहा खुद को सर्वश्रेष्ठ 

जबकि वह तो बस चाहती रही

एक प्रेमिल सा दैहिक प्रेम।


तीन 

देह और प्रेम


अपने स्तनो में छुपाये तुम्हें

पोंछ लिया करती हूँ अपने हिस्से के आँसू

देह और प्रेम में अंतर करते-करते

भूल जाती हूँ कि मन की गति

और विचारों की उड़ान कभी एक नहीं होती।


चार


पुरुष वैश्यालय 


तुम कहीं नहीं हो

मेरे अन्तर्मन पर तुम्हारी छाया भी नहीं है

मैं हर रोज तलाशती हूँ

एक पुरुष वैश्यालय 

पर देवदास की तरह गलती से नहीं।




चित्र मुकेश बिजौले









पांच 

एक स्त्री का हरम


वह हर रोज सजाती है अपना हरम

एक खाली पड़ा हरम

जिसमें उसे इंतजार है

इतिहास में दबे पड़े बादशाहों के आने का

जिनके खुद के थे कभी बड़े-बड़े हरम।


छः 

 किसी करीबी का जाना


किसी करीबी की मौत से ज्यादा तकलीफदेह है

उसका बार बार जिक्र किया जाना

जितनी मौत

उससे ज्यादा है ज़िन्दगी

लम्बी, बेहद लम्बी

किसी की याद में

ज़िंदा आदमी बार बार करता है याद अंतिम सांस तक

मरा हुआ आदमी सब कुछ छोड़ देता है ठीक उसी वक्त 

जिस वक्त वह छोड़ देता है देह।


सात 

शोकाकुल


पिता के नहीं रहने से लगा

जैसे कुछ भी बचा नहीं अपने हिस्से का इस घर में

छपे हुए कार्ड के शोकाकुल में भी अनुपस्थित रही मैं

मेरी माँ भी अनुपस्थित रही उस औपचारिक शोक सन्देश से

जबकि सबसे ज्यादा दुख में मेरी माँ थी।

आखिर क्यों 

हमारे ही दुख-सुख सदियों से यूं ही दबे-छुपे रहे।


आठ

तेरहवीं क्या है?


तेरहवीं क्या है?

मौत के 13वें दिन शोक में डूबा उत्सव सा

लोग आते गए

शोक संवेदना के साथ 

13वें दिन मौत और उससे जुड़े दुख थोड़ा पीछे हो गए

लोग कर्मकांड और उससे जुड़े निपटान में लग गए

बेटियां अनुपस्थित रहीं औपचारिक शोक सन्देश से 

हमें कुछ कपड़े पैसे देकर निबटा दिया गया

हमारे हिस्से कुछ भी नहीं रहा

सिवा एक लिपचिपी सहानुभूति के। 


नौ

नौकरीशुदा लोग


जल्दी से सैलरी आ जाए

इसी आस में हम नौकरीशुदा लोग

दिनों को जीते नहीं 

उनके तेजी से गुजर जाने की दुआ करते हैं

30 तारीख आते ही गुलजार हो जाते हैं दिन

फिर पहला हफ्ता बीतते-बीतते 

अगली तीस के इंतजार मेंं गुजार देते हैं जिंदगी


दस

दुखों को बोझ


अपने दुखों का बोझ

किसी और के कंधों पर डालना इतनी भी अच्छी बात नहीं

ठीक है असंख्य हैं पीड़ाएं

लेकिन किसी से यह सब कुछ कह देना

उसके हिस्से ऐसे दुख बांध देना है

जो उसके हैं ही नहीं।




परिचय

मोबाइल नं.- 8319320157,  मेल- ankitarasuri@gmail.com, 5 मई 1991 टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड में जन्म।

वागर्थ, पक्षधर, अहा जिंदगी, तहलका, अमर उजाला जैसी कई पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।

जनसंचार में एमए एवं एमफिल

‘देहात’ एग्रीटेक कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर-कंटेट के तौर पर कार्यरत।

फिलहाल गुरुग्राम में निवास।

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3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रो हरीश अरोड़ा13 जनवरी, 2025 09:13

    अच्छी कविताएं। दैहिक प्रेम और पुरुष वेश्यालय जैसी कविताएं अभिव्यक्ति के नए आयाम स्थापित करती हैं। बधाई।

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  2. अच्छी कवितायेँ है। लिखते रहिये, और अच्छा लिखिए।

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