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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

27 जनवरी, 2025

फांग फांग की डायरी

  

सारा शहर उनके लिए रो रहा है और मेरा दिल टूट गया है।

अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद: रंजना मिश्र 

१९५५ में यांग्शु प्रांत के नानजिंग में जन्मीं फांग फांग ने २ बरस की उम्र से कमोबेश अपना अभी तक का जीवन वुहान में व्यतीत किया है। वुहान यूनिवर्सिटी में शिक्षित फांग फांग चीन की प्रतिष्ठित लेखक हैं, जिन्हें  २०१० में चीन के  प्रतिष्ठित ‘लू शुन’

साहत्यिक पुरस्कार से नवाज़ा गया।  जनवरी २०२० से वे अपनी कोरोना डायरी के कारण चर्चा में आईं, जब उन्होंने चीन सरकार पर कोरोना के सॅंक्रमण और मृत्यु से सम्बंधित ऑंकड़े छुपाने का आरोप लगाया और इससे निपटने की उनकी नीतियों की निंदा की।  यह डायरी कोरोना के शुरूआती दौर में मौत का सामना करती जनता के प्रति असंवेदनशील रुख, स्वास्थ्यकर्मियों के मौत से सम्बंधित ऑंकड़े छुपाने, सरकारी मीडिया तंत्र की ग़लत बयानी और अति वाम नीतियों की असफ़लता के बयान है जिसकी वज़ह से उन्हें लगातार धमकियाॅं दी जाती रहीं। उनका वेइबो अकाउंट लगातार बंद किया जाता रहा । मौत की धमकियों के साथ उनके घर का पता इंटरनेट पर पोस्ट किया जाता रहा, पर फांग फांग ने लगातार लिखने का क्रम जारी रखा, जिस पर चीन की ओर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान गया और इसके अंग्रेज़ी और जर्मन अनुवाद हुए।  

 यह एक प्रखर स्त्री द्वारा बेहद कठिन समय में पूरी सरकार, उसकी मशीनरी और विचारधारा को चुनौती देने सरीखा था, जिसने चीन की कट्टर वामपंथी नीतियों और नौकरशाही असफ़लता का ख़ुलासा अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने कर दिया । साथ ही, यह हर देश के प्रबुद्ध वर्ग के सामने संकट के समय जनपक्षधरता के उदाहरण का लेखाजोखा है, जिसने अंततः सरकार को अपनी ग़लतियाॅं दबे छुपे ढॅंग से ही सही, स्वीकार करने पर मज़बूर कर दिया । यह डॉयरी क्रमवार तारीख़ के साथ इंदराज़  होते हुए वहाॅं के रोज़मर्रा जीवन का आइना है,  जिसे आनेवाले समय में कोरोना की त्रासदी और सरकारों का ढुलमुल और अमानवीय रवैया पूरी तरह दर्ज़ हुआ।  भविष्य में जब भी कोरोना महामारी के त्रासद और भीषण  रूप की चर्चा होगी यह  डॉयरी उसका सबसे ईमानदार दस्तावेज़ मानी जाएगी।   यह इसका भी उदाहरण है कि डॉयरी जैसी विधा जिसे मुख्यतः व्यक्तिगत अभिव्यक्ति से जोड़ा जाता है  कैसे व्यक्तिगत होते हुए भी अपने शहर, देश और अंत में पूरी मानवता के संकट का बयान बन जाती है।     

इस किताब के प्रॉक्क्थन में वे कहती हैं " जब मैंने साइना वेइबो अकाउंट में अपने रोज़मर्रा के जीवन के विषय में लिखना शुरू किया तो मैं नहीं जानती थी कि अपनी डॉयरी में ५९ रोजनामचे इंदराज करुँगी।  मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि मेरे पाठक रोज़ देर रात तक जागकर इस डॉयरी कि अगली किश्त का इंतज़ार करेंगे, न ही मुझे इसका आभास ही था कि यह डॉयरी एक दिन किताब कि शक्ल में प्रकाशित होगी”।  

इसकी शुरुआत २० फ़रवरी से हुई, जब चीनी सॅंक्रमण रोग विशेषज्ञ डॉक्टर झांग नान्शेन ने कहा कि कोरोना विषाणु का सॅंक्रमण  इंसान से इंसान को होता  है।  (इसके पहले चीनी सरकार यह दवा कर रही थी कि यह जानवरों से आया सॅंक्रमण है )  साथ ही यह भी ख़बर आई कि १४ स्वास्थ्यकर्मी सॅंक्रमण का शिकार हो चुके हैं।  मेरी पहली प्रतिक्रिया दहशत की थी, जो बाद में ग़ुस्से में बदल  गई।  यह नया समाचार उस सूचना के विरुद्ध था, जो सरकारी मीडिया लगातार फैला रहा था कि यह जानवरों से होनेवाला सॅंक्रमण है।  इस बीच ऐसी अफ़वाहें भी थीं कि यह कोई भिन्न क़िस्म का सार्स सॅंक्रमण है। "

इस पृष्ठभूमि पर फांग फांग ने अपनी डॉयरी लिखने की शुरुआत की जिसके कुछ अंश यहाँ अंग्रेजी से अनुवादित हैं,  जिनका चीनी से अंग्रेजी अनुवाद माइकल बेरी ने किया है, जो यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, लॉस एंजेल्स (UCLA) में एशियाई भाषा एवं सॅंस्कृति विभाग में प्रोफेसर हैं। यह डॉयरी हार्पर कॉलिंस ने ब्रिटेन में प्रकाशित की। अनुवादक माइकल बेरी किताब के प्रॉक्क्थन में कहते हैं - ' 1.4 करोड़ लोग, सैटलाइट टेलीविजन स्टेशनों, अख़बारों, अनगिनत वेबसाइट्स और देश की आधिकारिक मीडिया चैनल की भीड़ के शोर और हलचल में जो सक्रिय आवाज़ शुरू से अंत तक वुहान की भयंकर त्रासदी में लोग की पीड़ा की आवाज़ बनकर लगातार उभरती रही वह थी फांग फांग की आवाज़।  यह मानो  निराशा के अँधेरे में मशाल की तरह थी, जिसमें करुणा, सच्चाई, दुःख और कभी कभी नफ़रत के स्वर भी थे, जो हर रोज़ इंटरनेट पर उभरते रहे।  वे अपने पीछे लाखों सन्देश और  टिप्पणियॉं लेकर आते, जो हर तरह के थे, जिसमें वाहवाही और विरोध दोनों ही शामिल थे, जिनसे बिना प्रभावित हुए वे लगातार अपना काम करती रहीं।'

०००

रंजना मिश्र 

एक

‘तकनीक कभी-कभी विषाणु से ज्यादा ख़तरनाक है। '

२५ जनवरी  २०२० 

‘नहीं जानती मैं अपने वेइबो अकाउंट में कुछ भी अपलोड कर पाउंगी या नहीं।  अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, जब मेरा वेइबो अकाउंट बंद कर दिया गया था । जब मैंने सड़क पर राष्ट्रभक्ति के नाम पर उपद्रव करने वाले कुछ लोग की कड़े शब्दों में निंदा की थी  । (मैं अब भी अपनी राय पर कायम हूँ कि राष्ट्रभक्त होने में कोई बुराई नहीं, अगर यह दूसरों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन नहीं करता।  यह मूल अधिकारों के ख़िलाफ़ है )  मैंने साइना (वह कंपनी जो वेइबो अकाउंट चलती है) से शिकायत की पर दरअसल उन तक पहुँचने का कोई रास्ता नहीं है।  निराश होकर मैंने वेइबो अकाउंट का उपयोग बंद कर दिया।  लेकिन उस समय मैं नहीं जानती थी, जल्द ही वुहान शहर को ऐसी मुसीबत का सामना करना पड़ेगा।  यहाँ जो कुछ हुआ, उसके बाद पूरे देश की नज़रें वुहान पर हैं, शहर पूरी तरह बंद कर दिया गया, वुहान के  लोग पक्षपातपूर्ण रवैये का शिकार हुए, उन्हें शक की दृष्टि से देखा गया और मैं भी शहर में  कैद हूँ। आज सरकार ने एक और आदेश जारी किया है कि आधी रात से वुहान के पुराने हिस्से में वाहनों का चलना निषिद्ध होगा।  मैं यहीं रहती हूँ।  बहुत से लोग मुझे सन्देश भेज रहे हैं, वे मेरा हाल जानना चाहते हैं। हर कोई चिंतित है, वे अपनी शुभकामनाएं भेज रहे है।  हमारे लिए ये सन्देश राहत की सांस हैं।  

अभी-अभी हार्वेस्ट पत्रिका के संपादक शेंग यांगज़िन का सन्देश आया कि मैं इस पूरी स्थिति पर क्रमवार लेखन शुरू करूँ जिसे ' वुहान डायरी' या 'एक बंद शहर की डायरी' का नाम दिया जा सकता है।  मेरी पहली प्रतिक्रिया - अगर मेरा वेइबो अकाउंट अब भी प्रतिबंधित नहीं है और मैं अब भी वहां पोस्ट कर सकती हूँ तो मुझे यह ज़रूर करना चाहिए।  यह लोग को यह समझने में मदद  करेगा कि यहाँ वुहान  में दरअसल क्या स्थिति है।  लेकिन मैं नहीं जानती, मैं कुछ पोस्ट कर पाउंगी या नहीं।  अगर मेरे मित्र इसे ऑनलाइन देख सकते हैं तो कृपया अपने कमेंट में बताएं कि पोस्ट हुआ।  वेइबो में ऐसे टूल्स हैं, जो यह भ्रम पैदा करते हैं कि चीज़ें पोस्ट हुईं, पर वे किसी को दिखाई नहीं देतीं।  एक बार प्रोग्रामिंग से संबधित यह तिकड़म समझने के बाद मुझे अहसास हुआ कि तकनीक भी उतनी ही शैतानी हो सकती है, जितनी यह विषाणु। 

देखूं, मैं यह पोस्ट कर पाती हूँ या नहीं !      

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दो

एक बंद शहर की डायरी

२६ जनवरी २०२०  

वुहान में संक्रमित - ६९८, मृत - ६३

‘सरकारी तंत्र  का जो रवैया आप हूबेई में देख रहे हैं, कमोबेश सारे अधिकारी ऐसा ही व्यवहार करते हैं।'

आप सभी की चिंता और संवेदना के लिए धन्यवाद। 

वुहान के लोग अब भी कठिन परिस्थितियों से गुज़र रहे हैं हालांकि वे अपने शुरूआती डर, असहायता, चिंता और तनाव से आगे आ चुके हैं, पहले से अधिक शांत और संयमित हैं, पर उन्हें अब भी दिलासे और उत्साह की ज़़रुरत है।  जैसा नज़र आता है, वुहान के अधिकतर लोग अब इस झटके से स्तब्ध नहीं हैं ।  मैंने सोचा था, इसकी शुरुआत ३१ दिसंबर से करूँ, मेरे चौंकने की शुरुआत से थोड़ा सहज होने तक और तब से अब तक की अपनी मानसिक स्थिति के बारे लिखने से,  पर उसमें बहुत समय लगता, इसलिए मैं हालिया वास्तविकताओं की अपनी समझ को दर्ज़ करने तक ही सीमित रहूंगी, धीरे धीरे , 'एक बंद शहर की डायरी' संकलित करते हुए ।  

कल चीनी नव वर्ष का  दूसरा दिन था।  बाहर काफी ठण्ड है और तेज़ हवा चल रही है,  बारिश भी काफी है।  कुछ अच्छे समाचार हैं,  पर बुरे समाचारों की संख्या अधिक है।  अच्छी  ख़बर यह है कि सरकार ने विषाणु जनित  संक्रमण को रोकने के प्रयास शुरू कर दिए हैं।  काफी मात्रा में स्वास्थ्यकर्मी वुहान की  और रवाना किये गए हैं।  यह वुहान के लोग के लिए राहत की बात  है और निश्चित तौर पर आप सब  भी ये जानते हैं ।  

व्यक्तिगत तौर पर, मेरे लिए अच्छा समाचार यह  है कि मेरे किसी मित्र रिश्तेदार को अब तक विषाणु संक्रमण  नहीं हुआ है। मेरे दूसरे नंबर के भाई बीमारी के अभिकेंद्र के बिल्कुल नज़दीक रहते हैं।  उनका अपार्टमेंट हुनान सीफूड बाजार और वुहान केंद्रीय अस्पताल के बीचोबीच है।  मैं ईश्वर की आभारी हूँ कि वे और उनकी पत्नी दोनों बिलकुल ठीक हैं।  

बुरे समाचार आते ही रहते हैं।   

कल मेरी बेटी ने बताया उसकी एक मित्र के पिता जिन्हें पहले से ही लिवर कैंसर था, संक्रमित पाए गए और अस्पताल ले जाए गए।   पर वहां कोई उन पर ध्यान देने के लिए उपलब्ध नहीं था और तीन घंटे के भीतर उनकी मृत्यु हो गई ।  फ़ोन पर बात करते हुए वह बेहद टूटी हुई लगती थी। 

कल हुबेई में हुई प्रेस कांफ्रेंस इंटरनेट पर चर्चा की विषय है।   लोग ऑनलाइन उन तीनों सरकारी अधिकारियों की  खिल्ली उड़ा रहे हैं।  तीनों बुरी तरह थके हुए, परेशान लग रहे थे और बार बार गलतियाॅं कर रहे थे।  उनका व्यवहार बता रहा था  कि चीज़ें उनके लिए भी कितनी अराजक,  उलझी हुई और अस्पष्ट हैं।  मुझे उनके लिए बुरा लगा।  निश्चित तौर पर उनके परिवार के सदस्य भी  वुहान में हैं और जब  उन्होंने बदहाली और  ख़राब इंतज़ाम का आरोप अपने सर लेने की कोशिश की तो वे ईमानदार दिखाई दे रहे थे।  पर चीज़ें यहाँ तक पहुंची कैसे ? अपने दिमाग में चीज़ों पर व्यवस्थित ढंग से सोचते हुए मैं इस नतीजे पर पहुंची हूँ कि विषाणु संक्रमण के शुरूआती दौर में  वुहान के सरकारी अधिकारियों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।  संगरोध के पहले और बाद में आनेवाली स्थितियों का वे ठीक से जायज़ा नहीं ले पाए और रोज़ ब रोज़ सामने आती गंभीर रूप से भयावह स्थितियों से भौचक रह गए,  जिसके कारण लोग को भय, असुरक्षा और अंततः  दुःख का सामना करना पड़ रहा है।  ये वे सारी स्थितियाॅं हैं,  जिनके हर पक्ष पर मैं विस्तार से लिखना चाहती हूँ,  पर अभी मैं सिर्फ़ यही कहूँगी कि  हुबेई में जैसा व्यवहार उन अधिकारियों का नज़र आया,  कमोबेश ऐसे ही व्यवहार की अपेक्षा आप चीनी अधिकारियों से कर सकते हैं। वे सभी मूलतः एक ही स्तर के हैं, एक जैसे।  इन तीनों को बस अधिक उलझी हुई स्थितियों का सामना करना पड़ा ।  चीनी अधिकारियों को सिर्फ़ लिखित आदेशों के अनुसार काम करने की आदत रही है।  जैसे ही आप उनसे वह कागज़ का टुकड़ा ले लेते हो, वे बुरी तरह बौखला कर दिशाहीन हो जाते हैं।  अगर संक्रमण किसी दूसरे शहर या प्रान्त में भी हुआ होता, तो भी ये ऐसा ही व्यवहार करते।  जब नौकरशाही सामान्य सूझबूझ और  प्राकृतिक समझ की उपेक्षा कर  अपनी नकली आदर्श राजनितिक छवि बचाने की चिंता करती है, तो एक के बाद एक  ऐसी ही भयावह स्थितियाॅं पैदा होती हैं ।  लोग को सच कहने से रोकना,  मीडिया को सच दिखाने से रोकने के कारण ही ऐसी स्थितियाॅं उत्पन्न हुई, जिनका शिकार आज हम हैं।  वुहान को हर क्षेत्र में अग्रणी होना पसंद है और अब हम दुःख झेलने में भी अग्रणी हैं।  

( डायरी का यह हिस्सा २७ जनवरी को पूरा किया गया )

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तीन 

‘हमारे पास पर्याप्त मात्रा में मास्क नहीं हैं’


२७ जनवरी २०२० 

...एक चीज़ जिसके बारे लोग चिंतित हैं, वह है मास्क की कमी । मैंने एक ऑनलाइन विडियो देखा, जिसमें एक व्यक्ति शंघाई के किसी दवा विक्रेता के पास मास्क ख़रीदने गया और उसने पाया मास्क की कीमतें सामान्य कीमत से ३५ गुना अधिक हो गई हैं । वह व्यक्ति इतने ग़ुस्से में था कि उसने इस पूरी घटना और दुकान के कर्मचारियों से अपनी पूरी बातचीत फ़ोन पर रिकॉर्ड कर इन्टरनेट पर अपलोड का दी, हालाँकि दवा विक्रेता ने तब भी उसे बढ़ी हुई कीमत की रसीद नहीं दी। मैं उसकी हिम्मत की दाद देती हूँ । अगर मैं उसकी जगह होती, तो मुझे ऐसा करने का ख़याल भी न आया होता ।

वीचैट (ऑनलाइन चैट ऐप) पर अब हर कोई मास्क की कमी का रोना रो रहा है । आखिरकार हर किसी को कभी न कभी दवा, सब्जियाॅं या दूसरे घरेलू समान लेने घर से बाहर निकलना ही पड़ता है। एक सहयोगी को उसके किसी मित्र ने मास्क का एक डब्बा भेजा जो उस तक पहुॅंचा ही नहीं । दूसरों के पास इसके सिवा कोई चारा नहीं कि वे नकली मास्क का इस्तेमाल करें, जो विषाणु से बचाव में असमर्थ हैं । ऑनलाइन लोग ऐसी भी बातें कर रहें कि मुनाफ़ाख़ोर उपयोग में लाए गए मास्कों को दोबारा उपयोग में लाए जाने के लायक बनाकर बेच रहे जिससे संक्रमण का ख़तरा और बढ़ रहा है ।

इन्टरनेट पर यह मज़ाक़ भी बेहद प्रचलित हो गया है कि इस चीनी नव वर्ष में मास्क पोर्क से अधिक मूल्यवान वस्तु है ।

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चार

३० जनवरी २०२० 

आसमान साफ़ है, धूप खिली हुई और यह सर्दियों का बेहद सुन्दर दिन है. ऐसे ही दिनों में सर्दियों की सुन्दरता अपने उरूज़ पर होती है पर इस दिन की सुन्दरता का आनंद लेने के लिए बाहर कोई नहीं है।

क्रूर वास्तविकता अपने त्रासद रूप में हमारे सामने है। जागने के बाद एक समाचार पढ़ा कि एक किसान, जो कहीं जाने के लिए निकला था, को बीच रास्ते खुले आकाश के नीचे रात बिताने को मज़बूर होना पड़ा, क्योंकि लोग ने मिट्टी की दीवारों से सड़क जाम कर दिए हैं और पहरा दे रहे हैं ताकि उनकी सीमा में  कोई परिंदा भी पर न मार सके । इतनी रात को वह कहाँ जाता ?

विषाणु संक्रमण को रोकने के लिए सरकार ने जो नियम बनाए वे अपनी जगह ठीक हैं, पर उन्हें इतनी कठोरता से लागू करने के क्रम में अमानवीय कैसे हुआ जा सकता है ? ऐसा क्यों है कि सरकारी कागज़ के एक टुकड़े को विभिन्न पदों पर तैनात चीनी अधिकारियों ने इतना कट्टर और अटल बना दिया कि मानवता की आत्मा ही कराह उठे ! क्या एक मास्क लगाकर कोई उस किसान को एक कमरे में संगरोध में नहीं रख सकता था ? इसमें क्या गलत था? मैंने यह भी पढ़ा कि एक विशेष ज़रूरत वाले बच्चे के पिता को संगरोध में रख कर उस बच्चे को पाॅंच दिन के लिए अकेला छोड़ दिया गया। पाॅंच दिन में भूख के कारण उस बच्चे की मृत्यु हो गई । 

बीमारी ने कई नंगी सच्चाइयों से हमारा सामना करवाया है । इसने चीनी अधिकारियों की बेहद निचले स्तर की सोच और कार्यक्षमता को उघाड़ कर रख दिया है । इसने हमारे समाज के ताने-बाने में छिपी उस घटिया और शैतानी प्रवृत्ति का भी पर्दाफाश कर दिया है, जो कोरोना से भी अधिक घातक है और इसका कोई इलाज नज़र नहीं आता, क्योंकि कोई चिकित्सक इसकी चिकित्सा को तैयार नहीं. इसके बारे सोचते ही मेरा मन अव्यक्त उदासी से भर जाता है । 

लोग ने चाइना न्यूज़ एजेंसी को मेरे दिए गए इंटरव्यू की प्रशंसा में सन्देश भेजे हैं, हालाँकि उस इंटरव्यू का काफी अंश सम्पादित कर दिया गया है। उसमें मैंने कहा है – इस समय मदद की सबसे अधिक ज़रुरत उन लोग को है,  जो संक्रमित हैं या उनके परिवार के किसी सदस्य की संक्रमण से मृत्यु हुई है । वे ऐसे समूह हैं जिन्होंने सबसे अधिक खोया है और अब गहरे दुःख में हैं। उनमें से कई उस दुःख से कभी उबर नहीं पाएंगे’ । मैं उस किसान के बारे सोचती हूँ जिसे एक रात के लिए किसी ने जगह नहीं दी, उस बच्चे के बारे सोचती हूँ जो अकेला भूख से मर गया, वे अनगिनत असहाय लोग जो मदद की गुहार लगा रहे हैं, वुहान के वे लोग जिनके साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार हो रहा है, जिन्हें सड़क पर असहाय मवेशियों की तरह छोड़ दिया गया है और इसमें बच्चे भी शामिल हैं। मैं यह कल्पना करने में भी ख़ुद को असमर्थ पा रही हूँ कि उनके घाव सूखने में कितना समय लगेगा या वे कभी सूखेंगे भी या नहीं और इसकी तो चर्चा ही नहीं करनी चाहिए कि राष्ट्रीय स्तर पर हमने कितना खोया है !

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पाॅंच

३१ जनवरी 

 "क़रीब-क़रीब निर्जन, बारिश से धुली सड़क को  एक सफाई कर्मचारी अब भी ध्यान से बुहारता नज़र आ रहा था "

संक्रमित - ३२१५, मृत - १९२ 

विश्व सैन्य खेलों के समय मुख्य सड़क के मकानों को बिजली की बत्तियों से सजाया गया था, एक समय में एक कतार की जलती बुझती बत्तियाॅं।  उस समय वे आँखों और दिमाग़ को बुरी लगती थीं।  वे स्नायुतंत्र पर बोझ डालती थीं।  अब ठंडी खाली सड़कों पर गाड़ी चलाते समय वे जीवंत और चमकदार, ढाॅंढस बॅंधाती सी लगती हैं।  सचमुच, वह तब की बात थी,  यह अब की बात है।  

छोटे सुपरमार्केट अब भी खुले हैं और सब्ज़ी विक्रेता सड़क के किनारे अब भी नज़र आ रहे हैं ।  मैं फुटपाथ से कुछ सब्ज़ियाॅं और सुपरमार्केट से दूध और अंडे ख़रीद लाई।   तीन दुकानों पर रुकने के बाद एक में मुझे अंडे मिल पाए।  मैंने उनसे पूछा- क्या दूकान खुले रखने के कारण उन्हें संक्रमित होने की आशंका नहीं ? उनका जवाब तर्कसंगत था - हमें इसे झेलकर आगे जाना होगा और आपको भी।  सच हैं, उन्हें भी जीते जाना है और हमें भी।  यही उपाय है।  मैं अक्सर इन कामकाजी लोग की मन ही मन प्रशंसा करती हूँ।  कभी कभी उनके साथ की संक्षिप्त बातचीत मुझे रहस्यमयी ढॅंग से शांत कर देती है।  जिन दिनों वुहान के दिन और रात जड़ कर देने वाले आतंक,  ठण्ड, तेज़ हवा और बारिश की चपेट में थे, अक्सर ऐसा होता था।  क़रीब-क़रीब सभी निर्जन , बारिश से धुली सड़क को कोई सफाई कर्मचारी अब भी ध्यान से बुहारता नज़र आता।   उन्हें देखकर मैं अपनी घबराहट पर शर्मिंदा हो जाती और एकाएक शांत और स्थिर महसूस करने लगती।  

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छः 

२ फरवरी २०२० 

(इस तिथि को डायरी में संक्रमित और मृत लोग कि संख्या का ख़ुलासा यहीं मिलता)

' एक पूरे युग की धूल के एक कण का निशान वैसे तो कुछ नहीं होता, पर यह पहाड़ सा मालूम होता है, जब सर पर गिरता है '

यह चीनी नव वर्ष से नवां दिन है और अधिकतर लोग दिनों की गिनती भूल गए हैं। यह भी आश्चर्य ही है कि मुझे यह दिन याद है। 

मौसम उदासी से भरा है। दोपहर के समय बरसात  हुई ।  संक्रमित लोग के लिए, जो विभिन्न अस्पतालों में चिकित्सा के लिए भाग दौड़ कर रहे हैं, यह अधिक कठिन समय है।  अगर आप बाहर जाऍं तो सब कुछ व्यवस्थित और सामान्य लगता है, सिवा इसके कि घरों की बत्तियाॅं जली हुई हैं।  अधिकतर लोग के पास खाने पीने का सामान है तो तब तक स्थिति सामान्य रहती है जब तक परिवार में कोई संक्रमित नहीं होता।  पर जैसे ही कोई संक्रमित हो जाता है, स्थितियाॅं पूरी तरह बदल जाती हैं। 

मैंने एक व्यथित करने वाला वीडियो देखा, जिसमें एक लड़की अपनी माँ को ले जा रहे शव वाहन के पीछे रोती चीख़ती चली जा रही थी।  वह लड़की अपनी माँ का अंतिम संस्कार करने से हमेशा के लिए वंचित हो गई।  वह संभवतः यह भी जान नहीं पाएगी कि उन्होंने उसकी माँ के शरीर के साथ क्या किया, उसे कैसे दफ़न किया।  चीनी संस्कृति में मृत्यु संस्कारों का अत्यधिक महत्त्व है और दरअसल यह बताता है कि हम और हमारा मूल, जीवन और मृत्यु के प्रति हमारा दृष्टिकोण क्या है ? यह उस लड़की के लिए और हम  सबके लिए कठिन  है और हम कुछ नहीं कर सकते।  पहले कभी मैंने लिखा था - एक पूरे युग की धूल का एक कण वैसे तो कुछ नहीं होता पर जब यह सर पर गिरता है तो पहाड़ सरीखा होता है।  जब मैंने यह लिखा था तब मैं इसकी गहराई से अपरिचित थी, पर अब मेरे शब्द मुझे शूल की तरह चुभते हैं. 


 सात

 ‘कुछ लोग अब सतर्क हो रहे हैं’

४ फरवरी २०२०

संक्रमित - ८३५१, मृत - ३६२

शत्रु सिर्फ़ विषाणु नहीं है।  हम भी अपने शत्रु और अपराध में भागीदार हैं।  ऐसा सुनने में आ रहा है कि लोग अभी चेत ही रहे हैं और यह जानकर भौचक्के हैं कि अपने देश की महानता के खोखले नारे रोज़ ब रोज़ लगाना कितना अर्थहीन है, उन अधिकारियों की अयोग्यता को समझना जो अपना दिन राजनीतिक सिद्धांतों की विवेचना और बड़ी-बड़ी बातें करने में गुज़ार देते  है, बजाय असली काम करने के ।  

यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण सीख हो सकती थी, अगर २००३* में हुए अनुभव को हमने जल्दी ही भुला न दिया होता।   अब उसमें २०२० की सीख भी जोड़ लीजिये।  क्या हम इसे भी भुला देंगे ? शैतान हमें हमेशा धर दबोचने की फ़िराक में रहता है और अगर हम चौकन्ने नहीं रहे तो वह एक और तारीख़ इसमें जोड़ देगा जहाँ हम बुरी तरह पीड़ित हो जायेंगे।  सवाल यह है कि क्या हम सचेत होना चाहते हैं ?

(*२००३ के अपने एक साक्षात्कार में फांग फांग ने सार्स महामारी के लिए अधिकारियों के उपेक्षापूर्ण रवैये को जिम्मेदार ठहराया था और वास्तविक समस्याओं पर ध्यान देने के बजाय उनकी राजनीतिक जुमलेबाजी की प्रवृत्ति की निंदा की थी। उन्होंने कहा था की यह सच है कि चीन में लोग सामान्य व्यवहार बुद्धि के बजाय राजनीतिक जुमलेबाज़ी और एजेंडे को तरजीह देते हैं )

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आठ

६ फरवरी २०२० 


फिर से बारिश होने लगी है। तेज़ हवा और बारिश के साथ आसमान धुॅंधला और सलेटी है। यह ठीक वैसा मौसम है, जिसमें लोग ठंड और उदासी महसूस करते हैं।  मैं बाहर गई थी।  ठंडी हवा जैसे ज़िस्म में सुइयाॅं चुभो रही है।  

आज कुछ अच्छे समाचार हैं।  कुछ तो दरअसल बेहद ख़ुश करने वाले जैसा पिछले काफी समय में नहीं हुआ है।  रेडियो में , संभवतः ; कोई विशेषज्ञ बता रहे हैं कि संक्रमण पर काबू पाया जा सकता है।  उनके कहे पर मुझे विश्वास होता है।  दूसरी ख़बर जो इंटरनेट पर ख़ूब चर्चा में हैं कि अमेरिकन दवा कंपनी जीलीड साइंसेज ने एक नई दवा बनाई है जिसका नाम रैमडीसीवीर है (चीनी विशेषज्ञ इसे 'लोग कि आशा' कह रहे हैं ) और इसका परीक्षण वहाॅं यूनिवर्सिटी के झियाॅंगटैंग अस्पताल में शुरू कर दिया गया है।  कहा जा रहा है कि यह अत्यंत प्रभावी है।  

 जैसे ही मैंने अपना आज का लिखना ख़त्म किया यह समाचार मिला कि डॉक्टर ली वैनलियाॅंग की आज थोड़ी देर पहले संक्रमण से मृत्यु हो गई है।  वे वहाॅं सेंट्रल हॉस्पिटल के उन आठ डॉक्टरों में से एक थे जिन्हें संक्रमण और विषाणु के बारे सच बोलने के कारण अफ़वाह फैलाने के जुर्म में सज़ा दी गई थी और लिखित माफीनामे में उनसे दस्तख़त करवाए गए थे।  बाद में वे स्वयं संक्रमण का शिकार हो गए।  

सारा शहर उनके लिए रो रहा है और मेरा दिल टूट गया है।  

( डायरी का यह हिस्सा ७ फरवरी की सुबह पूरा किया गया )


नौ

'इस गहरी काली रात में डॉक्टर ली वानलियाँग ही हमारी रौशनी हैं '

७ फरवरी २०२० 

शहर को बंद हुए १६ दिन बीत चुके हैं, कल रात डॉक्टर ली की मृत्यु हो गई और मैं जैसे टूट गई हूँ।  जैसे ही मैंने वह समाचार सुना मैंने एक सन्देश अपने दोस्तों के चैट ग्रुप में भेजा - ' आज पूरा वुहान शहर डॉक्टर ली वानलियाँग के लिए रो रहा  है।  मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि पूरा देश उनके लिए रोएगा।  लोग के द्रवित करते पोस्ट मानों पूरे इंटरनेट को ऑंसुओं की बाढ़ में डुबो रहे हैं।  आज की रात डॉक्टर ली उन्हीं ऑंसुओं में की लहरों पर सवार दूसरी दुनिया के लिए विदा हो जाऍंगे '।  

मौसम गुमसुम और उदासी से भरा है।  क्या प्रकृति भी उदास होकर डॉक्टर ली को अंतिम विदा दे रही है ? दरअसल हमारे पास प्रार्थना या किसी उच्चतर सत्ता को समर्पित करने को कोई शब्द नहीं बचे और जैसे स्वर्ग भी असहाय है।  

दोपहर किसी को चिल्लाते सुना गया ' वुहान के लोग डॉक्टर ली के परिवार का दायित्व लेंगे ।  कई  लोग इस संवेदना से भरे हुए हैं।  आज की रात डॉक्टर ली की स्मृति में, उनके सम्मान में वुहान के लोग ठीक उस समय अपने-अपने घरों की बत्तियाॅं बुझा देंगे जिस समय कल रात उनकी मृत्यु हुई थी।  सभी लोग अपने-अपने फ़ोन की फ़्लैश लाइट्स चमका कर अँधेरे आकाश को उजाले से भर देने की कोशिश करेंगे।  इस गहरी काली रात में डॉक्टर ली वानलियाँग ही  हमारी रौशनी होंगे।  संगरोध का यह समय इतना लम्बा चल चुका कि वुहान के  लोग के पास अपना दुःख, निराशा, उदासी और ग़ुस्सा व्यक्त करने का और क्या तरीका बचा है ? शायद हम यही कर सकते हैं।  

दस

‘ नए जीवन का आगमन ही हममें भविष्य के प्रति आशा जगाए रखता है। '

११ फरवरी २०२०

मौसम कल सा ही है, उदासी से भरा लेकिन बादल कल से कम घिरे हुए हैं।  आज देर सुबह मैंने जापान से आई सहायता सामग्री की एक तस्वीर देखी।  एक डिब्बे के ऊपर एक बहुत पुरानी चीनी कविता की पंक्तियाँ लिखी हुई थीं :

'पर्वत हमारे बीच दीवार उठाते हैं 

हमारे बादल और हमारी बारिशें एक सी हैं 

चमकता चाँद हमारे गाँवों का साझा है '


यह देखकर मैं उद्वेलित हो गई। 

ऑस्कर पुरस्कार समारोह में वाकिन फीनिक्स को बोलते सुनकर लगा कि वे बड़ी मुश्किल से अपने ऑंसू रोक पा रहे हैं। इस अवसर का उपयोग उन्होंने उन लोग की पीड़ा को स्वर देने के लिए किया जिनकी आवाज़ कोई नहीं सुन रहा।  यह मुझे छू गया।  

आज मैंने विक्टर ह्यूगो की एक पंक्ति पढ़ी -  चुप रहना तब आसान नहीं है, जब आप जानते हैं, यह चुप्पी झूठी है।' इस बात पर मैं उद्वेलित नहीं हुई , बल्कि मुझे शर्म आई।  यह सच है कि मुझे इस शर्म के साथ ही आगे जाना होगा। और भी कई वीडियो हैं जिनमें लोग मदद के लिए बिलखते दिखाई दे रहे हैं और यह देखकर मेरा चीख़ने को मन हो रहा है।  अब मैं उन्हें देखने में ख़ुद को असमर्थ पा रही हूँ।  मैं मानसिक  रूप से जितनी भी मज़बूत बने रहने की कोशिश करूँ यह सच है कि मेरी भी सीमाएं हैं।  पर अभी यह सबसे महत्त्वपूर्ण  है कि हम चारों  ओर देखें कि कहाँ से मदद मिल सकती है।  

 …….  मैं इस शहर वुहान में साठ वर्षों से भी अधिक समय से रह रही हूँ।  यह शहर उस समय से मेरा घर रहा है, जब मेरे माता -पिता दो वर्ष की अवस्था में मुझे नानझिंग से यहाँ लेकर आए थे और फिर मैंने यह शहर कभी नहीं छोड़ा।  इसी शहर में मैंने किंडरगार्टन में दाखिला लिया, शुरूआती स्कूली शिक्षा, मिडिल स्कूल, हाई स्कूल, यूनिवर्सिटी और स्नातक होने के बाद जीविका के लिए भी यहीं रही ।  इस शहर में मैंने कुली रिपोर्टर, संपादक और लेखक की तरह काम किया ( मैं बाईबूटिंग में थी )  ।  अब मैं ३० वर्षों से अधिक समय से यांग्त्ज़ी नदी के उत्तर हानकाऊ  में रहती हूँ ।  मैंने यहीं पर विभिन्न सेमिनारों में अलग-अलग  हैसियत से भाग लिया है।  मेरे पडोसी , सहपाठी, सहकर्मी और समकालीन लेखक इस  शहर के हर कोने में बसे  हुए हैं।  जब मैं बाहर जाती हूँ , यही लोग मुझे मिलते हैं।  एक  लड़की ऑनलाइन अपने पिता को बचाने के लिए मदद की गुहार लगा रही है और अचानक मुझे याद आया इस लड़की के  पिता को मैं जानती हूँ।  वे  एक लेखक हैं।  

दो दिन पहले एक इंटरनेट मित्र ने मुझे एक डाक्यूमेंट्री सीरीज 'एक व्यक्ति - एक शहर' का एक  छोटा हिस्सा भेजा, जिसकी वुहान से सम्बंधित  स्क्रिप्ट मैंने बरसों पहले लिखी थी ।  मैंने लिखा था - 'कभी-कभी मैं ख़ुद से पूछती हूँ, दुनिया के  अन्य शहरों की तुलना में वुहान में रहना इतना कठिन क्यों है ? शायद यहाँ के बुरे मौसम की वजह से है।  और इस शहर में ऐसा क्या है जो मुझे बेहद पसंद है !  क्या शहर की संस्कृति और इतिहास इसकी वजह है ? या स्थानीय जगहें और परम्पराऍं , या फिर प्राकृतिक सुंदरता ! दरअसल, इनमें से कुछ भी नहीं।  वुहान से प्रेम करने का सबसे पहला कारण है कि मैं इस शहर को जानती  हूँ।  अगर दुनिया के  सभी शहर कतार में मेरे सामने हों तो मैं कह सकती हूँ कि वुहान ही वह शहर है जिसे मैं सचमुच जानती हूँ ।  यह ऐसा है मानों आपकी ओर चली आ रही अपरिचित लोग की भीड़ में एक  चेहरा है जो आपकी ओर देखकर मुस्कुरा रहा हो ।  वुहान मेरे लिए वही चेहरा है।   

आज मैंने अपने लिए चार डिशेज़ पकाईं। जब मैं खाना पका रही थी तो मेरी एक सहकर्मी ने फ़ोन किया कि उसकी सहपाठी ने साढ़े चार किलो के एक बच्चे को ऑपरेशन से जन्म दिया है। उसने कहा नए जीवन का आगमन कैसी ख़ुशी लेकर आता है ! 

यह आज का सबसे अच्छा समाचार है जो मैंने सुना। सच है, नए जीवन का आगमन ही हममें भविष्य के प्रति आशा जगाए रखता है।  

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ग्यारह 

'वुहान, आज की रात मुझे मूर्खों की नहीं तुम्हारी परवाह है'

१५ फरवरी २०२०

कठिन समय में ही मानव स्वाभाव के अच्छे या बुरे मूल्य उभरकर सामने आते है। इन्हीं अनुभवों से आपका ध्यान उन चीज़ों पर जाता है जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की थी। आप अचम्भे , उदासी और ग़ुस्से से भर जाते हैं।  

बर्फ गिर रही है। कल रात से तेज़ हवाऍं चल रहीं थीं और आज सुबह से बर्फ गिरनी शुरू हो गई।  

मैं आज सचमुच बुरे मूड में हूँ।  भोर के समय मैंने देखा वेइबो अकाउंट में एक व्यक्ति जिसका नाम झियांग लियाँग है, ने मेरे नाम के साथ एक पोस्ट और तस्वीर डाली है।  पोस्ट में लिखा है 'शवदाह गृह के बाहर मृत लोग के फ़ोन।  इस अधेड़ व्यक्ति का कहना है कि यह मैं हूँ जिसने यह पोस्ट डाली है और मुझपर अफ़वाहें फैलाने का इलज़ाम लगाया है।  मेरी डायरी हमेशा से सिर्फ़ शब्दों में होती है, तस्वीरें मैं कभी नहीं पोस्ट करती , एक व्यक्ति ने उसे यह बताने की कोशिश की जिसका उसने कोई जवाब नहीं दिया।  यह एक अधेड़ व्यक्ति है जिसका अकाउंट सत्यापित है और जिसके एक लाख के ऊपर सत्यापित फॉलोवर्स हैं ! मेरा मन कह रहा इसे दिमागी तौर पर असंतुलित और मूर्ख घोषित कर दूँ ! पर कौन मेरा विश्वास करेगा ? आश्चर्य है कि इस तरह के व्यक्ति के एक लाख से ऊपर फॉलोवर्स हैं ! 

एक और युवा जो खुद को वुहान का फ़ोटोग्राफ़र कहता है उसने मुझे एक लम्बा अपशब्दों से भरा  सन्देश भेजा है और मेरे घर आकर मुझे मारने की धमकी दी है।  वह क्या है जो इनमें इतनी घृणा भर देता है, ख़ासकर उस व्यक्ति के प्रति जिन्हें व्यक्तिगत तौर पर ये जानते भी नहीं, न ही उसके विषय में कोई समझ ही है।  इस तरह के लोग संभवतः घृणा के वातावरण में बड़े हुए होते हैं।

ये सारी चीज़ें मुझे हाइ ज़ी (एक चीनी कवि) की कविता की पंक्तियाँ याद दिलाती हैं, जिसे थोड़े फेर बदल के साथ मैंने यहाँ पोस्ट किया है – 'वुहान, आज मुझे मूर्खों की नहीं, सिर्फ तुम्हारी परवाह है '

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बारह

१७ फरवरी २०२०

एक पाठक ने मुझसे सवाल किया है कि मैं रोज़मर्रा चीज़ों, घटनाओं के बारे ही क्यों लिख रही हूँ ।  महत्त्वपूर्ण चीज़ें जैसे जन मुक्ति सेना का शहर में आना, चीन के लोग का वुहान के लोग के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया, हुशेनशेन और लीशेनशेन  अस्पतालों का त्वरित निर्माण, पूरे हुबेई प्रान्त से वुहान आए लोग की सामयिक और निस्वार्थ मदद के बारे में क्यों नहीं लिखती ? मैं इसका क्या जवाब दूँ ? जहाँ तक चीज़ों को लिखने की बात है हर किसी की भूमिकाऍं भिन्न हैं। क्या आप यह जानना चाहेंगे ? 

पूरे चीन में आधिकारिक न्यूज़ एजेंसियाॅं, वेबसाइट और अख़बार वही लिख रहे हैं जो आप चाहते हैं।  वे एक बड़ी तस्वीर दिखाते हैं जो बड़े -बड़े कारनामों के युवा  जोश से भरी होती हैं , जिसमें संक्रमण से सम्बंधित बड़ी -बड़ी रिपोर्ट्स, बड़े आश्वासन होते हैं।  उनमें ऐसे कई  रिपोर्ट्स होते हैं, जिन्हें मैं बमुश्किल पढ़ती हूँ।  जबकि मैं, एक लेखक होने के नाते अपने नज़रिये की बात करती हूँ, जिन चीज़ों पर मैं ध्यान दे सकती हूँ, जो मेरे आस पास घट रही होती हैं, उन लोग के बारे जिनसे मैं वास्तविक जीवन में मिल रही होती हूँ।  मैं उन्हीं के बारे लिख सकती हूँ।  मैं उन छोटी चीज़ों को, घटनाओं को दर्ज़ करती हूँ।  मैं जीवन के विषय में अपनी भावनाऍं, प्रतिक्रियाऍं और विचार ही व्यक्त कर सकती हूँ ताकि मैं अपने जीवन के अनुभवों का हिसाब किताब रख सकूॅं।  और मेरा काम ही लिखना है, मैं पेशेवर लेखक हूँ।  पहले भी मैं अपने विचार अपने उपन्यासों और साहित्य में दर्ज़ करती आई हूँ।  उपन्यासकार अधिकतर हारे हुए, अकेले और कमज़ोर लोग से जुड़कर  लिखते हैं , हम हाथों में हाथ लिए साथ चलते  हैं और एक-दूसरे की मदद के लिए बनी बनाई सीमाओं से आगे भी जाते हैं।  साहित्य में मानवता को उसकी पूरी समग्रता में गले लगाने की क्षमता है।  कभी-कभी मैं ख़ुद को उस बूढ़ी बत्तख-सा महसूस करती हूँ' जिसे उन लोग और चीजों को बचाने का दायित्व सौंपा गया है, जिन्हें इतिहास ने विस्मृत कर दिया और समाज जिन्हें नज़रअंदाज़ कर आगे बढ़ गया। मेरा काम उनके साथ समय बिताना है , उन्हें गर्माहट देना , प्रोत्साहित करना। या शायद मेरा साहित्य उस वातावरण से पर्दा उठता है जिनकी किस्मत इन हारे हुए लोग-सी है।  इस दुनिया के शक्तिशाली लोग को साहित्य की ज़रुरत नहीं, उनमें से अधिकतर को इसकी परवाह भी नहीं।  साहित्य उनके लिए फूलों की सजावट के अतिरिक्त कुछ नहीं।  पर कमज़ोर और हारे हुए लोग के जीवन में साहित्य एक रौशनी की तरह है।  यह उस तिनके की तरह है जिसके सहारे वे जीवन के तेज़ बहाव में धार कि उलटी दिशा तैर सकते हैं।  यह उस आश्वासन की तरह है जिसे आप उस समय आशा भरी नज़रों से देख सकते हैं, जो आपसे कहता है पीछे छूट जाने में कोई बुराई नहीं, और भी कई हैं जो पीछे छूट गए हैं।  सिर्फ़ आप ही अकेले नहीं, कई और भी हैं जो अकेले रह गए हैं, सिर्फ़ आप ही पीड़ा में नहीं, कई और भी हैं, जो पीड़ा में हैं , सिर्फ़ आप ही परेशान और कमज़ोर नहीं कई और भी हैं।  जीने के बहुत से तरीके हैं।  सफ़ल होना अच्छा है, पर असफल होना हमेशा बुरा नहीं।  

मुझे देखिये - एक उपन्यास लेखक जो रोज़मर्रा के जीवन की मामूली बातें अपनी डायरी में दर्ज़ करते हुए अपने साहित्य सम्बन्धी विचार, चिंताएं, अनुभव और दिशा दर्ज़ कर रही हूँ, जो अंततः कागज़ पर चीज़ों को दर्ज़ करने की ओर ही जाता है।  क्या आप समझते हैं, यह गलत है ? 

कल की वीचैट पोस्ट फिर से मिटा दी गई है।  

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तेरह 


'एक ही सच्ची कसौटी है वह यह कि आप अपने समाज के सबसे कमज़ोर और असुरक्षित लोग का कैसे ख्याल रखते हैं'

२४ फरवरी २०२०


शुरूआती दौर में संक्रमित हुए लोग को डॉक्टर अब भी बचाने कि चेष्टा में लगे हैं।  उनकी सॅंख्या बढ़ी है और स्थितियाॅं बदतर हुई हैं।  मृत्यु दर भी बढ़ी है और यह स्पष्ट है कि अंततः व्यक्ति की अवरोधक क्षमता ही एक सीमा के बाद विषाणु  से लड़ने का एकमात्र उपाय रह जाती है।  स्वास्थ्यकर्मी उन लोग को सफलतापूर्वक बचा ले रहे हैं जिनका संक्रमण अभी शुरूआती दौर में है और वे किसी क़िस्म की गंभीर बीमारी से नहीं जूझ रहे। 

मैंने सुना कि अस्थायी अस्पतालों में भर्ती कई मरीज़ इलाज के बाद भी अपने-अपने घरों को वापस जाना नहीं चाह रहे, क्योंकि इन अस्पतालों में पर्याप्त खुली जगहें हैं, इतनी कि वहाॅं नृत्य किया जा सके। भोजन, मनोरंजन और स्वास्थ्य सुविधाऍं इतनी बढ़िया कि वे निश्चिंत होकर समूहों में वहाॅं रहना चाह रहे बनिस्बत अपने घरों के जहाँ उन्हें अकेले और बंद रहना पड़ेगा और सबसे अच्छी बात ये सारी सुविधाऍं मुफ्त हैं ! 

काइझिन मीडिया की एक रिपोर्ट कहती है कि 'कल कुछ परिवारों को, जिनके वृद्ध सदस्य वृद्धाश्रमों में हैं, फ़ोन पर सूचित किया गया उनके परिवार के वृद्ध सदस्य संक्रमित पाए गए हैं।  परिवार के सदस्यों ने उनकी इस जानकारी के जवाब में प्रश्नों की झड़ी लगा दी 'हम उन्हें अपने घरों में संगरोध में कैसे रख पाएंगे? उनकी देखरेख संगरोध में कौन करेगा? संक्रमण के किस स्तर पर उन्हें संगरोध की सारी सुविधाऍं दी जाऍंगी ? क्या वृद्धाश्रम के अन्य सदस्य भी संक्रमित हैं? क्या उन्हें समुचित सुविधाऍं मिल रही हैं? क्या आप उनके रिपोर्ट्स हमारे साथ साझा करते नहीं रह सकते? क्या सरकार वहाॅं उनकी देख-रेख के लिए और स्वास्थ्यकर्मियों को नियुक्त नहीं कर सकती?

जो मैं समझ पाती हूँ, चूँकि सरकार ने उन सबकी ज़िम्मेदारी ले रखी है तो यथासंभव उनका ध्यान रखा जाएगा, पर उनका ध्यान रखनेवाले भी आखिर इंसान ही हैं ! 

…..जो सचमुच कहने की इच्छा होती है, वह यह कि किसी भी देश और समाज की सज्जनता का उदाहरण लम्बी ऊॅंची इमारतें, चमकीली कारें, अत्यधिक विकसित सुरक्षा प्रणाली और मजबूत सेना नहीं है।  न ही यह कि आपकी कलात्मक रुचियाँ कितनी परिष्कृत हैं।  यह भी कोई मायने नहीं रखता कि आपके सरकारी समारोह और उनमे होनेवाली आतिशवाजी कितनी भव्य और शानदार  है और न ही यह कि दुनिया के किस महॅंगे हिस्से में आपके देश के लोग ज़मीन ख़रीद रहे हैं, इसकी एक ही सच्ची कसौटी है कि आप अपने कमज़ोर और असुरक्षित लोग के साथ कैसा व्यवहार करते हैं ?

आज की अंतिम बात जो मैं कहना चाहती हूँ - कुछ दिनों पहले उन्होंने मेरा वेइबो अकाउंट खोल दिया है।  पहले पहल मैं उसका  उपयोग नहीं करना चाह रही थी, कह सकते हैं कि मैं उनसे निराश हो गई थी।  वेइबो में भी कई हरामखोर हैं और मेरे साथियो ने वेइबो से दूर और सुरक्षित रहने की सलाह दी है।  पर थोड़ा सोचने के बाद मैंने अपने अकाउंट का उपयोग फिर से शुरू कर दिया है।  कुछ दिनों पहले मैंने एक रिकॉर्डिंग सुनी थी जिसकी अंतिम पंक्ति थी - इस सुन्दर दुनिया को हरामखोरों के हाथों मत छोड़ो ।  बस इसी तर्ज़ पर मैंने अपना वेइबो अकाउंट हरामखोरों के हाथों न छोड़ने का निर्णय लिया है।  वेइबो में ऐसे लोग  को ब्लॉक और ब्लैकलिस्ट करने की सुविधा है।  तो मैं हर उस व्यक्ति को ब्लैकलिस्ट और रिपोर्ट कर सकती हूँ, जो मुझे परेशां करेगा।  यही मेरा बायोसूट और एन ९५ मास्क होगा।  

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चौदह 


'भविष्य में लोगों को जानना चाहिए वुहान किस दौर से गुज़रा '

२ मार्च २०२० 

इन दिनों मैं देर रात तक जागती और दिन चढ़े तक सोती रहती हूँ।  संगरोध के ४० दिनों बाद लोग में मनोवैज्ञानिक स्तर पर बहुत बदलाव आया है।  एक ही शब्द से उनकी मानसिक स्थिति की व्याख्या की जा सकती है 'अवसादग्रस्त'।  इस बात की चिंता मुझे संगरोध के शुरूआती दिनों से थी।  ऑनलाइन और ऑफलाइन काउंसिलिंग की सुविधाऍं उपलब्ध हैं, पर मुझे नहीं लगता कि वे लोग की मूल समस्या तक पूरी तरह पहुँच भी पा रहे हैं।  अधिकतर सुखी परिवार एक से हैं, पर हर दुखी परिवार के निजी दुःख हैं।  एक  आलेख पढ़ा जिसका शीर्षक था - अलग-अलग तरीके से टूटे नौ लाख दिल'। यह आलेखों की एक ऑनलाइन सीरीज है जिसमें संक्रमण से सम्बंधित उन अनुभवों का संकलन है जिसमें लोग ने अपने निजी दुःख के अनुभव साझा किये है।  अपने कठिन उदास अनुभवों को बोलकर या लिखकर व्यक्त करना दरअसल मानसिक चिकित्सा की ओर बढ़ा पहला कदम है।  यही कारण है कि मैं अपनी डायरी नियमित रूप से लिखना बंद नहीं करती।  हालाँकि 'सकारात्मक ऊर्जा' के  झटके उन लोग को भी आते रहते हैं जिन्हें लिखकर या बोलकर अपना दुःख व्यक्त करना चाहिए।  'सकारात्मक ऊर्जा' अच्छी  अवधारणा है।  यह ऐसी अवधारणा है जिसे लोग अपनाते या इसकी बड़ाई करते नहीं थकते, पर वहीं अगर आप अपना दुःख बोलकर या लिखकर व्यक्त करने लगे, तो वे तुरंत आप पर ज़रुरत से अधिक बवाल करने का आरोप लगाने से नहीं हिचकते और आप 'नकारात्मक ऊर्जा' का हिस्सा साबित कर दिए जाते हैं! हे भगवान ! अगर यह दुनिया अपने आस-पास चीज़ों का इतना सामान्यीकरण और उनकी सरल व्याख्या से चलती है, तो मैं इस दुनिया में बेकार ही आई ! 

किसने कहा बिलखने और ऑंसू बहाने के बाद हम दोबारा अपने पैरों पर खड़े आगे नहीं जा सकते ?


पन्द्रह 

‘कौन जानता था एक दूसरी विपत्ति वुहान का इंतज़ार कर रही है !’

७ मार्च २०२० 

आज सुबह मेरे डॉक्टर ने आनंदित करनेवाला एक सन्देश भेजा। मार्च ६ को यानि कल पहली बार नए संक्रमित करने वाले मरीज़ों की संख्या १०० से नीचे हुई है। पिछले चार दिनों से ये आंकड़ा १०० पर टिका  हुआ था।  आखिरकार हम सबने मिलकर संक्रमण  को उस स्तर पर ला दिया, जहाँ उससे मुठभेड़ आसान होती नज़र आती है।  

यह बेहद चमकीला और सुन्दर दिन है।  हर किसी ने संक्रमण से मुकाबला करने में अपनी भूमिका निभाने की कोशिश की है।  महीने के अंत तक शायद हम संक्रमण की संख्या शून्य तक ला पाऍं।  दूर कहीं रौशनी की एक किरण दिखाई देती है।  

एक मनोवैज्ञानिक मित्र ने बताया अभी लोग संगरोध के लम्बे दौर से गुज़रते हुए तनाव में हैं  पर चीज़ें गंभीर तब होंगी  जब ये दौर बीत जाएगा । इस दौर में हमें पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस से जूझते मरीज़ों की बढ़ी हुई संख्या पर विचार करना होगा।  कई परिवारों ने एक झटके में अपने परिजनों को खो दिया है । वे न तो उनसे मिल  पाए, न उनकी कोई मदद कर पाए, न ही उनका उचित तरीके से दाह संस्कार कर पाए । यह निश्चित रूप से अपने पीछे गहरे घाव छोड़ जाएगा।  फिर उन लोग की बड़ी सॅंख्या होगी, जो इस संक्रमण के दूसरे दौर के डर से अत्यधिक भयभीत दूसरे तरह के मनोवैज्ञानिक दबाव में होंगे, उनके मन में गुज़रे समय की पुनरावृत्ति होगी, जो एक बुरे सपने की तरह होगा।  

मैं जहाँ आशा कर रही हूँ, यह संगरोध जल्द से जल्द ख़त्म हो, भीतर ही भीतर उस दिन से भयभीत हूँ, जब वुहान के कई परिवार अपने मृत परिजनों के अंतिम संस्कार से जुडी औपचारिकताऍं पूरी करेंगे जो वे नहीं कर पाए थे । क्या हमारे पास उस स्तर की मनोवैज्ञानिक सहायता और सुविधाऍं हैं, जो इन लोग की मदद कर सके ? 

आज इंटरनेट पर एक शब्द बार-बार उभरकर सामने आ रहा है ' आभार'। राजनितिक नेताओं ने वुहान के लोग से सार्वजनिक तौर पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और देश को आभार जताने की अपील जारी की  है।  उनकी समझ सचमुच विचित्र है ! सरकार लोग की सरकार है। इसका अस्तित्व लोग की की सेवा के लिए है। सरकारी कर्मचारी जनता के सेवक हैं।  जनता उनकी सेवक नहीं।  ये सरकारी अधिकारी जो अपना बहुत-सा समय राजनीतिक सिद्धांतों के अध्ययन और उनकी  विवेचना में बिताते  हैं, उन्होंने इसे उल्टा कैसे कर दिया ? 

यह सही है कि संक्रमण अब नियंत्रण में है और हमें उसके लिए आभारी होना चाहिए पर यह सरकार को  चाहिए कि वह आभार ज्ञापन करे और यह काम वह उन परिवारों से शुरू करे जहाँ संक्रमण से मौतें हुई हैं।  जिनके परिवार के सदस्य इस भयंकर विपत्ति का शिकार हुए हैं,  जो अपने परिजनों को विदा भी नहीं कह पाए, न ही उनका सम्मानपूर्वक दाह संस्कार हुआ।  वे असहाय अपने दुःख को अपने भीतर जज़्ब किये बिना शिकायत सरकार से सहयोग करते रहे।  सरकार को उन ५०००  का आभारी होना चाहिए , जो अब भी भिन्न-भिन्न अस्पतालों में मृत्यु से संघर्ष कर रहे हैं। यह उनके भीतर जीने कि अदम्य इच्छा है जिसने मृत्यु के आंकड़ों में कमी की है।  सरकार को  उन ४०,००० स्वास्थ्यकर्मियों का आभारी होना चाहिए जो विभिन्न प्रांतों से वुहान  आए और मृत्यु की परवाह किये बगैर लगातार सरकार से सहयोग करते रहे।  सरकार को उन मज़दूरों और कर्मचारियों का आभारी होना चाहिए जिन्होंने इस कठिन दौर में मृत्यु की परवाह किये बगैर शहर को सुचारू रूप से चलाने में मदद की।  

इसके बाद सरकार को लोग से क्षमा माॅंगनी चाहिये।  यह अपने भीतर झाँकने और ज़िम्मेदारी लेने का समय है । एक ज़िम्मेदार सरकार लोग तक  पहुँच कर उन्हें सांत्वना देने का काम करती है।  सरकार को स्वतंत्र और निष्पक्ष समितियाॅं बनाकर इस बात की  जाॅंच करनी चाहिए कि क्या चीज़ें बेहतर तरीके से नहीं सम्भाली जा सकती थीं ? 

शाम के समय एक प्रसिद्द लेखक ने मुझे सन्देश भेजा - ' किसने कल्पना की थी कि चीनी भाषा पर दूसरी तरह कि विपत्ति आन पड़ेगी '? 

आभार एक  सुन्दर शब्द है, पर मुझे डर है कि यह अब हमेशा के लिए मैला हो गया।  लगता है भविष्य में यह 'संवेदनशील शब्द' के रूप में अपनी जगह बना लेगा और हम इसका उपयोग भी नहीं कर पाऍंगे।   

०००










सोलह

'वे सारे सवाल जो अनुत्तरित हैं '

२३ मार्च  २०२०

आज संगरोध का ६१वाँ दिन है मैंने चीनी  नव वर्ष (२५ जनवरी) से यह डायरी पोस्ट करनी शुरू की।   तब से आज तक  ५९ दिन हैं।  इन ५९  दिनों तक यथासंभव मैंने यह डायरी लिखी और पोस्ट की। 

यह एक  चमकीला धूप से भरा दिन है और तापमान सुखद है।  बाहर सड़कों पर वे सार्वजनिक वाहनों की जाॅंच, सड़कों और गलियों की सफाई में व्यस्त हैं,  विषाणु रोधक दवाओं का छिड़काव किया जा रहा है ।  जीवन पहले की तरह सामान्य होने के क़रीब है और हम सब जीवन के दोबारा पटरी पर लौटने  की ख़ुशी की  सूचनाओं का आदान प्रदान कर रहे हैं। हमारे चैट ग्रुप में मेरे भाई का सन्देश है कि वुहान सेन्ट्रल अस्पताल के क़रीब किसी ने '१० मिनट में बाल काटने' की दुकान लगाईं है और वहाॅं लोग लम्बी कतार में एक-एक मीटर की दूरी बनाए खड़े अपने बाल काटे जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।  कुछ दिनों पहले वह जगह वुहान की सबसे संक्रमित जगह मानी जा रही थी।  मेरे भाई अपने घर पर पूरे साठ दिन पूरी तरह बंद रहे  पर आज वे आश्वस्त लगते हैं।  मेयर झाऊ के अनुसार नए वर्ष के पहले क़रीब पाॅंच लाख लोग ने वुहान छोड़ा था।  कुछ दिनों पहले एक आदेश जारी हुआ कि उनमें से जिनके पास हेल्थ क्यू आर कोड है, वे दोबारा शहर में प्रविष्ट हो सकते हैं।  मुझे बताया गया है  कि इस समय वुहान में आना आसान है,  बाहर जाना मुश्किल।  

कल से ऐसे समाचार मिल रहे हैं कि बीजिंग में हुबेई प्रान्त के लोग का प्रवेश रोका जा रहा है।  यह अविश्वसनीय है ।  मैं यह समझने में असमर्थ हूँ कि हुबेई के स्वस्थ व्यक्ति और बीजिंग के स्वस्थ व्यक्ति में क्या अंतर हो सकता है भला! अगर बीजिंग सचमुच ऐसा कर रहा है हुबेई के लोग ज़रूर तक़लीफ में आ जाऍंगे पर वे शर्मिंदा क्यों महसूस करें ! शर्मिंदा तो दरअसल बीजिंग के लोग को होना चाहिए।  वे लोग जो ऐसी पक्षपातपूर्ण नीतियाॅं बना रहे है उन्हें शर्मिंदा होने की ज़रुरत है।  यह पूरी मानवता के लिए शर्म की बात है।  एक दिन हम पीछे मुड़कर देखेंगे और २०२० में मानवता के इस निचले और घृणित रूप को देखकर शर्मिंदा होंगे ।  मैं प्रार्थना करती हूँ कि यह रिपोर्ट सच न हो पर यह मेरी डायरी का हिस्सा ज़रूर बनेगी।  

मेरे कई दोस्त जो बहुत से चीज़ें भेजते रहते है उनमें से प्रोफेसर दुजुनफेई का एक लेख मुझे मिला है।  वे नानझिंग यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफेसर है और उनके लेख बेहद प्रासंगिक होते है।  उन्होंने सात सवाल पूछे हैं :

1.  शुरूआती दौर में जब उन मुख्य अस्पतालों को जब संक्रमण का पता लगा तो यह  बात उन्होंने  ऑनलाइन क्यों नहीं बताई ?

2.  जब विशेषज्ञों की टीम वुहान आई तो क्या वे सचमुच इस बात का पता नहीं लगा  पाए कि यह मनुष्यों से मनुष्यों को होने वाला संक्रमण है ?

3.  जब संक्रमण का समाचार लोग के बीच आया तो क्या सरकारी अधिकारी तथ्यों को छुपाने में अधिक और संक्रमण से बचाव की तैयारी में कम ऊर्जा नहीं लगा रहे थे ?

4.  झांग नान्शेन के सिवा कोई अन्य अधिकारी ज़िम्मेदारी लेने, आधिकारिक व्यक्तव्य देने को तैयार नहीं थे, क्या इसका मतलब यह है कि  झांग नान्शेन ही एकमात्र व्यक्ति हैं, जिन पर आधिकारिक व्यक्तव्य देने की ज़िम्मेदारी थी ?

5.  जब संक्रमण गंभीर रूप लेने लगा तो क्या अस्पतालों के सरंजाम बेहतर तरीके से नहीं किये जा सकते थे ? क्या दवाओं, चिकित्सा सुविधाओं, मास्क, और अन्य उपकरणों के इंतज़ाम बेहतर तरीके से नहीं हो सकते थे ?

6. जैसे ही संक्रमण फैलने लगा और लोग के बीच भय और असुरक्षा बढ़ने लगी क्या पूर्ण संगरोध ही इसे रोकने का एकमात्र तरीका था ?

7.  संगरोध शुरू होने के बाद संक्रमित मरीज़ों को क्या उन अस्पतालों में नहीं भेजा जा सकता था जहाँ कम मरीज़ थे, जहाँ उन्हें बेहतर सुविधाएं मिल सकती थीं ?  

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अनुवादक का परिचय 

जमशेदपुर, झारखंड में जन्मी रंजना मिश्र बेहतरीन अनुवादक

और अपने समय, समाज, संस्कृति के प्रति प्रतिबद्ध कवियत्री हैं। उनका कविता संग्रह ' पत्थर समय की सीढ़ियॉं ' चर्चित व संग्रहणीय है। उन्होंने वाणिज्य और शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त की है। वे लम्बे अर्से तक आकाशवाणी, पुणे में कार्यरत रही है। आजकल प्रसार भारती, मुंबई में कार्यरत हैं।


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