एक
प्यार
शाम को
मुझे घर आता देख
दूर से ही
मेरी तरफ दौड़ती हुई आयी
पाँच साल की बिटिया
चढ़ गयी गोद में
और चूमने लगी मेरा मुँह
मैंने टोकते हुए कहा-
बाहर से आया हूँ
कपड़े गंदे होंगे
दूर रहो कुछ देर
बिटिया दूसरे गाल पर
प्यार करते हुए बोली-
पापा कभी गंदे नहीं होते।
■
दो
एथिक्स
एक संस्थान ने
मुझसे शैक्षिक बायोडाटा
और साथ में एक फोटो की माँग की
मैंने तैयार कर
बिटिया को ईमेल करने को कहा-
मैंने एक फोटो न भेजकर
चार फोटो भेजना चाहा
जो पसंद होगी
उसका चयन संस्थान वाले कर लेंगे
बिटिया ने कहा-
एक फोटो न भेजकर चार भेजना
एथिक्स के खिलाफ है
जब आप स्वयं
अपनी फोटो का चयन करने में असमर्थ हैं
तो कोई दूसरा कैसे चयन कर सकेगा?
अपना काम और जिम्मेदारी
दूसरे पर डालना
सामने वाले के लिए सुविधा नहीं दुविधा है।
●
तीन
जरूरत
स्कूल से घर लौटते हुए
बेटी ने कहा -
पापा,किसी बूढ़े आदमी के रिक्शा में ही बैठना
मैंने पूछा-क्यों?
वह बोली-
हर किसी को जल्दी है
मंजिल पर पहुँचने की
जवान के रिक्शे पर बैठते हैं ज्यादातर लोग
बूढ़े रिक्शा धीरे खींचते हैं
कम मिलती है सवारी
उन्हें भी पैसों की जरूरत होती होगी
तभी चलाते हैं रिक्शा
वरना किसे अच्छा लगता है
आराम करने की उम्र में काम करना।
●
चार
बेटी की विदाई
वह बेटी की विदाई का
एक लोक गीत था
जिसकी भाषा
हमारी भाषा से भिन्न थी
गीत के बोल
हमारी पकड़ से परे थे
फिर भी
सुनने वालों की आँखें नम थीं
भाषा कोई हो
बेटी की विदाई पर
वह भी
विदा होती हुई दिखती है।
●
पॉंच
स्नेह का संगीत
अपने काम पर जाते हुए
मैं घर के सदस्यों से कहता हूँ-
चलता हूँ
सब अपने-अपने तरीके से
उत्तर देते हैं बारी-बारी
बेटी बोलती है-
जल्दी आना पापा
बेटी के बोल
स्मृतियों के साज पर
सरगम-से बजते हैं
स्नेह का संगीत
मेरी मनुष्यता को बचाये रखता है।
●
छः
पुष्प की ताकत
विश्वविद्यालय में फ्लॉवर शो था
बिटिया अपनी पसंद से
रजनीगन्धा की एक कलम घर ले आयी
लाकर सजा दी फूलदान में
कुछ ही पलों में
सारा घर सुवासित गंध से भर गया
मन बार-बार
पुष्प की ओर ही बंधा चला जाये
निःशब्द रहकर भी
अपनी उपस्थिति से
जीत सकते हैं दूसरों का दिल
यह मैंने
एक पुष्प से सीखा।
●
सात
बिटिया की पसंद
बिटिया ने
मेरे लिए एक शर्ट पसंद की
पत्नी ने कहा-
अगर पापा को पसंद नहीं आयी तो
सुनकर बिटिया बोली-
मुझे अच्छी तरह पता है
अपने पापा की पसंद
बिटिया की पसंद की शर्ट पहनकर
मैं जल भरे बादल-सा
बरसना चाहता हूँ
अपनों के आत्मीयता के आँगन में।
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आठ
डाँट
किसी को भी
किसी की डाँट
अच्छी नहीं लगती
किसी का डाँटना
कभी लाठी की तरह
तो कभी
तीर की तरह चुभता है
यहाँ तक की
कभी-कभी तो
वह गोली की तरह
घायल करता है
दुनिया में
सिर्फ़ बेटी वो संबंध है
जिसकी डाँट खाकर
आदमी ख़ुशी महसूस करता है।
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नौ
पायदान पर चप्पलें
पायदान पर
ढाई साल की बिटिया की
रंग-बिरंगी चप्पलें रखी हैं
देखने वालों को
पायदान पर चप्पलें दिखाई देती हैं
पिता की निगाहों से देखिए
कविता दिखाई देगी।
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दस
पापा-बेटी
बाज़ार जाने को तैयार पापा को
पाँच साल की बिटिया ने कहा-
मेरे लिए चिप्स मत लाना,पापा
घर-वापसी पर
घरेलू सामान के साथ
चिप्स का पैकेट भी निकला
माँ ने पिता से पूछा-
जब बेटी ने चिप्स को मना किया था
तो फिर क्यों लाये आप?
बिटिया ने अपनी बाहें
पापा के गले में डालकर कहा-
मैंने पापा को चिप्स के लिए
मना किया था
ताकि उन्हें लाना याद रहे।
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ग्यारह
विदाई
इकलौती बिटिया
जा रही है विदेश पढ़ने के लिए
पहली बार माता-पिता और बिटिया
इतनी दूर हो रहे हैं एक-दूसरे से
एयरपोर्ट पर छोड़ने आये माता-पिता
हिदायतों से भरी पुस्तिका
रखते हैं बिटिया के ज़ेहन की जेब में
अनाउंसमेंट की आवाज़
खींचती है बिटिया को अपनी ओर
भारी लगती है
छाती पर रखी समय की शिला
जाने से पूर्व
माता-पिता से गले मिलती है बारी-बारी
गले लगते हुए
तीनों की आँखें देखती हैं कहीं किसी सुदूर में
पीठ फेरकर
अलग-अलग राहों पर जाते हुओं की आँखों से
टप-टप गिरता हुआ कुछ
दूर से ही चमकता है
एयरपोर्ट की चमचमाती रोशनी में।
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बारह
बेटियाँ जब विदा होती हैं
बेटियाँ जब विदा होती हैं
उदासी की बारिश में
भीग जाता है समूचा घर
घर के हर कोने में टँगा
बेटियों की अनुपस्थिति का साइनबोर्ड
दूर से ही चमकता है
जैसे रेगिस्तान में चमकता है
दूर-दूर तक
सिर्फ़ रेत ही रेत।
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तेरह
बेटियाॅं
बेटियाँ
मिश्री की डली हैं
हमारी फीकी जिंदगी को
मिठास से भरती हैं।
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चौदह
बेटियों का चेहरा
वह गली-गली घूमकर
साइकिल पर सामान बेचता है
बहुत बार
कभी गरमी,कभी बरसात
और कभी सरदी तेज होती है
फिर भी बिना नागा
सूर्य की तरह काम पर जाता है
हर तरह के मानुष से मुलाकात होती है
बोलना-सुनना भी बिक्री-कला का एक अनिवार्य अंग है
दिन छिपे
जब घर की स्मृति का दीया जगमगाने लगता है
वह साइकिल का हैंडल
घर की ओर घुमा देता है
पत्नी द्वारा मंगाया
घर का जरूरी सामान खरीदता है
पिता को आता देख
तीनों बेटियाँ हरसिंगार की कलियाँ-सी खिलने लगती हैं
बड़ी वाली
दौड़कर पिता की साइकिल थामती है
मंझली खाट बिछा देती है
सबसे छोटी वाली
जल भरा लोटा लेकर आती है
पिता की बगल बेल-सी फैल जाती हैं
सुनती हैं सारे दिन का हाल-चाल
बातचीत के दौरान
तीनों बेटियों में से कोई-सी एक कहती है-
काश हमारी भी छोटी-मोटी दुकान होती
तो हमारी जिंदगी भी दूसरी होती
पिताजी को दिनभर घूम-घूमकर
यूँ खटना तो न पड़ता
फिर उनमें से कोई एक
उदास चेहरा लिए कहती है
गरीब इंसान से तो
धूप बारिश भी मख़ौल करती है
पिता बेटियों की चिंता की चर्चा में
शामिल होने से बचते हैं
और कहते हैं
आजकल दुकान की कीमत की रकम में
हो सकते हैं एक बेटी के पीले हाथ
पिता और बेटियों की चिंताएँ
एक ही नदी की
दो अलग-अलग धाराएँ हैं
दोनों के मूल में है जल
कभी-कभी
तीसरे नम्बर की बेटी पूछती है-
पिताजी साइकिल पर सामान बेचते हुए
आपको धूप भी लगती होगी?
पिता बेटियाँ को गौर से देखते हुए
मुस्कुराकर कहते हैं-
मेरी बच्चियों का चेहरा
मुझे सदा
धूप और धूल से बचाता है।
■
:
पन्द्रह
बाल-डॉक्टर
बदलती ऋतु के बीच
एक दिन बिन बताये ही
आ धमका बुखार
अब आ गया
तो एकदम से जाने को कैसे कहूँ?
न चाहते हुए भी
कुछ आवभगत तो बनती ही थी
मुझे उदास देख
मेरी पाँच साल की बच्ची
ले आयी अपनी टॉयज मेडिकल किट
और पहनकर कोट
बन गयी नन्हीं डॉक्टर
पेंसिल से पर्ची पर
अपनी डॉक्टरी की भाषा में कुछ दवाई लिखीं
दे दिये कई निर्देश
कड़ाई से पालन करने का दिया आदेश
मोबाइल को किया सख्त मना
अपनी टॉफियां और नमकीन की पुड़िया बना
सुबह-शाम
गरम पानी से लेने को कहा
कुछ देर,मेरी ओर निहारकर बोली-
आपको इंजेक्शन भी लगेगा
ध्यान रहे इंजेक्शन लेते समय शोर नहीं करना है
बिटिया बाल-डॉक्टर ने
नयी चिकित्सा प्रेम-पद्धति का परिचय दिया
मेरे गले में अपनी बाहें डालकर
दोनों गालों पर प्यार किया
इस तरह एक बिटिया ने
अपने प्यारे पापा का उपचार किया।
■
सोलह
समुद्र
बीमार बेटी
जिद करती है समुद्र देखने की
मैंने कहा-
पहले ठीक हो जाओ उसके बाद
लेकिन नहीं
उसने खाना बंद कर दिया
मैंने कुछ किताबें दिखाईं
उसने दवाई की शीशी तोड़ दी
फ़िल्म दिखाना चाहा तो
बोलना छोड़ दिया
हार कर मैंने कहा
बेटी झाँक मेरी आँखों में और देख
हर किसी की आँख में
एक नदी बहती है
सीने में समुद्र लहराता है
बस! फर्क इतना है
कोई देख लेता है
कोई देख नहीं पाता है।
■
सभी चित्र: रमेश आनंद
परिचय
शिक्षा: एम.ए,एम.फील,पीएच.डी(दिल्ली विश्वविद्यालय)
सम्प्रति: प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजधानी कॉलेज(दिल्ली विश्वविद्यालय)राजा गार्डन नयी दिल्ली-110015
प्रकाशन: साप्ताहिक हिन्दुस्तान, पहल, समकालीन भारतीय
साहित्य, नया पथ,आजकल, कादम्बिनी,जनसत्ता,हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा,कृति ओर,वसुधा, इन्द्रप्रस्थ भारती, शुक्रवार, नई दुनिया, नया जमाना, दैनिक ट्रिब्यून आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ व लेख प्रकाशित।
अभी भी दुनिया में- काव्य-संग्रह।
कुछ कविताओं का अँग्रेजी, गुजराती,पंजाबी,तेलुगु,मराठी,नेपाली भाषाओं में अनुवाद।
सचेतक और डॉ. रामविलास शर्मा (तीन खण्ड)का संकलन-संपादन।
रामविलास शर्मा के पत्र- का डॉ. विजयमोहन शर्मा जी के साथ संकलन-संपादन।
सम्मान: हिन्दी अकादमी दिल्ली के नवोदित लेखक पुरस्कार से सम्मानित।
संपर्क: WZ-12 A, गाँव बुढेला, विकास पुरी दिल्ली-110018
मोबाइल:9818389571
ईमेल: drjasvirtyagi@gmail.com
सभी कविताएं हृदय को स्पर्श करती हैं। जसवीर त्यागी अलग मिजाज के कवि हैं।वे छोटी-छोटी जगहों से भी कविता तलाश लेते हैं।
जवाब देंहटाएंप्रोफेसर जसवीर त्यागी जी द्वारा बेटी पर केंद्रित सभी कविताएं जीवन के अलग-अलग दृश्य को दर्शाती हैं एवं एक पिता के हृदय से निकले शब्दों को कविता के रूप में बहुत ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत करती हैं!🙏
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर,बेटी पर लिखी गई ये कविताएँ ममता से लबरेज़ हैं इनमें एक ख़ास तरह की आत्मीयता है .बेटी,बहन और माँ में जो अपनत्व होता है जसवीर जी की कविताएँ उसी ममत्व और अपनेपन से भरी हैं-आनंद क्रांतिवर्धन
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार कविताएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविताएँ
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविताएं। कविवर को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर कविताऐं
जवाब देंहटाएंबेहद मर्मस्पर्शी कविताएँ सर!🌼
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविताएँ। पहली, दूसरी, तीसरी और चौथी कविता ने दिल जीत लिया।
जवाब देंहटाएंनायाब कविताएं
जवाब देंहटाएंउमा निझावन