मित्रो,
आज पढ़ते हैं समूह के साथी की कुछ ग़ज़लें व दोहे अपनी प्रतिक्रिया दें जिससे साथी को कुछ हौसला मिल सकें या रचनाओं में कुछ बात खटकती है तब वह भी कहें। इंतजार रहेगा।
1
हो गयी बरसात अच्छी।
लो हुई शुरुआत अच्छी।
आपका किरदार अच्छा,
आपकी हर बात अच्छी।
रेशमी दिन ख़ूबसूरत,
चाँदवाली रात अच्छी।
कँपकँपाती सर्दियों में,
धूप की सौग़ात अच्छी।
जीत अच्छी दुश्मनों से,
दोस्तों से मात अच्छी।
2
दिल ने पीर छुपायी भी।
आँख मेरी भर आयी भी।
यादों की इक भीड़ में हूँ,
क्या शै है तनहाई भी।
झूठ का चेह्रा देखा तो,
सहम गयी सच्चाई भी।
प्यार की दौलत हासिल है,
साथ में है रुसवाई भी।
बस्ती में नादानों की,
भटक गयी दानाई भी।
3
: किसी उलझन में शब भर जागता है।
बताता भी नहीं कुछ क्या हुआ है।
अभी कल तक बहुत वाचाल था वो,
मगर अब तो बहुत कम बोलता है।
नहीं उससे मेरी पहचान लेकिन,
मेरे हर दर्द से वो आशना है।
रिहाई उम्र भर देगा न मुझको,
किसी का आख़िरी ये फ़ैसला है।
नज़र में है नज़र से दूर है वो,
मुहब्बत कैसा तेरा फ़ल्सफ़ा है।
चढ़ा दरिया है और उस पार है वो,
हमारे पास इक कच्चा घड़ा है।
किसी की याद में डूबा है 'सौरभ',
कोई तो है जिसे दिल ढूँढता है।
4
कुछ बेचारे साथ रहे।
ग़म के मारे साथ रहे।
रात कहाँ मैं तन्हा था,
चाँद-सितारे साथ रहे।
मायूसी-तन्हाई-ग़म,
चन्द सहारे साथ रहे।
गुमसुम था वो बच्चा क्यों,
जब ग़ुब्बारे साथ रहे।
उनके साथ ज़माना है,
कौन हमारे साथ रहे।
एक सफ़र था ख़्वाबों का,
सब बंजारे साथ रहे।
5
मुश्किलें हों लाख, नमदीदा न हो।
ज़िन्दगी ही क्या, जो पेचीदा न हो।
जो न मुस्काते रहें,वो लब नहीं,
ज़ख़्म वो कैसा,जो पोशीदा न हो।
ख़ुश न हो इतना ,बहारें देखकर,
गर ख़िज़ाँ आये तो रंजीदा न हो।
जुर्म करने के लिए जब भी उठे,
हाथ वो कैसा जो लरज़ीदा न हो।
होठ हँसने के लिए जायें तरस,
इस क़दर भी कोई संजीदा न हो।
6
सच्ची आँखें, झूठी आँखें।
मोहक, मुखर, अनूठी आँखें।
काली पुतली नग जैसी है,
सुन्दर,श्वेत अँगूठी आँखें।
मन का चैन चुरा लेती है,
तेरी रूठी-रूठी आँखें।
पलकें बन्द किये रख वर्ना,
हो जायेंगी जूठीं आँखें।
बहुत सरल है इन्हें मनाना,
झूठ-मूठ हैं रूठी आँखें।
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दोहे:-
आज राममूर्ति सौरभ जी के कुछ
दोहे प्रस्तुत है
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चन्दा बाँटे चाँदनी,सूरज बाँटे धूप।
क़ुदरत के आदेश पर,पानी बाँटे कूप।।
तू उतार कर फेंक दे ये कपड़े नापाक।
तुझ पर जँचती ही नहीं नफ़रत की पोशाक।।
राजनीति को मत समझ,कोई हँसी मज़ाक।
डूब गये मझधार में बड़े-बड़े तैराक।।
भूखे को भोजन मिले,प्यासे को जलधार।
वहाँ-वहाँ दीपक जले जहाँ-जहाँ अँधियार।।
खेतों में तो श्वेदकण,बोये सदा किसान।
पर काटे आँसू कभी,और कभी मुस्कान।।
बच्चे के सँग बोलती,माँ तोतली ज़ुबान।
इस बचपन पर जाइए सौ यौवन क़ुर्बान।।
बच्चों सँग बच्चे बने,भूले सारा ज्ञान।
बापू को देखो ज़रा पकड़े दोनों कान।।
पराधीन जनता हुई,नेता गण स्वाधीन।
नाच सँपेरे नाच तू,साँप बजाए बीन।।
दोनों मिलकर प्रेम का,आओ फूँकें शंख।
तू भी खोले पाँखुरी,मैं भी तोलूँ पंख।।
क़िस्मत वाली पत्रिका,क़ुदरत के आलेख।
बाँच न पाये आज तक,पंडित हों या शेख।।
000 राजमूर्ति सौरभ
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टिप्पणियाँ:-
सुवर्णा :-
आपका किरदार अच्छा
आपकी हर बात अच्छी।
जीत अच्छी दुश्मनो से
दोस्तों से मात अच्छी।
बढ़िया ग़ज़लें हैं
फ़रहत अली खान:-
वाह, बढ़िया ग़ज़लें कहीं 'सौरभ' जी ने(जैसा कि तीसरी ग़ज़ल के मक्ते में अपना नाम/तख़ल्लुस बताया)।
सरल भाषा में कही गयी छोटी बहर की अच्छी ग़ज़लें।
कितने उम्दा अशआर कहे, वाह:
झूठ का चेहरा देखा
सहम गयी सच्चाई भी
जीत अच्छी दुश्मनों से
दोस्तों से मात अच्छी
यादों की इक भीड़ में हूँ
क्या शै है तन्हाई भी
चढ़ा दरिया है और उस पार है वो
हमारे पास इक कच्चा घड़ा है
मायूसी, तन्हाई, ग़म
चंद सहारे साथ रहे
गुमसुम था वो बच्चा क्यूँ
जब ग़ुब्बारे साथ रहे
जो न मुस्काते रहें वो लब नहीं
ज़ख़्म वो कैसा जो पोशीदा न हो
ख़ुश न हो इतना, बहारें देखकर
गर ख़िज़ाँ आए तो रंजीदा न हो
(ये तो शेर तो तमाम ग़ज़लों का हासिल हो गया)
रेणुका:-
Sabhi ghazalein achi lagi....par sabse achi line lagi......hont hansne ke liye jaatein taras, is Kadar bhi koi sanjeeda na ho...
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