कथा/कहानी में आज श्री अमिताभ मिश्र की कहानी "नया प्रशिक्षण " प्रस्तुत है । सभी मित्रों से अनुरोध है कि वे अपनी प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत करायें ।
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सुबह बस होने को थी। सूरज आसमान में लाली भरने को था। सड़क किनारे बसे मजूरों की टपरियों से धुआं उठ रहा था। यह समय दिन भर का खाना बनने का था। कचरे से काम की चीजें बीनने वाले कचरे के ढेरों तक पहुंचने लगे थे। सेहत के लिए सतर्क लोग घूम कर लौटने को थे। माहौल में ठंडक थी, चिड़ियों की चहचहाहट थी। लोग इस माहौल में घूमने जाना स्वास्थ्यवर्ध्दक मानते हैं और सो भी अगर चढ़ाई पर जाया जाय तो सोने में सुहागा। तो पहाड़ी भी मौजूद है, ठंडक भी और चिड़ियों की चहचहाहट भी। अगर रोडवेज के डिपो से ऊपर चढ़ लिया जाए तो चढ़ाई भी है, सड़क भी है यानी घूमने जाने का आदर्श स्थान। सुबह घूमने जाने वालों की संख्या अब इतनी बढ़ चली है कि अकसर वहाँ मेले का दृश्य पैदा हो जाता है। इसके साथ ही पहाड़ी के दायीं ओर मन्दिर होना तो तय ही था। दरअसल पहाड़ी के एक ओर पुलिस कालोनी है, वहीं एक निस्तारी तालाब है, एक मैदान है। पीछे की ओर फायरिंग रेंज है। जहाँ से सुबह-सुबह चाँदमारी की आवाजें आती रहती हैं। तो जब इतना सब माहौल हो तो मन्दिर होना तो तय ही था बल्कि मन्दिर परिसर था, जहाँ सार्वाधिक लोकप्रिय भगवान स्थापित थे।, मुख्य मन्दिर शंकर का, फिर हनुमान जी का। देवी का भी मन्दिर था। जिसको जिससे काम हो, जिस पर श्रद्धा हो, वह वहाँ जाए। घूमने वाले लोग भी घूम कर लौटने में दर्शन कर पुण्य कमा लेते।
कानों में लाउडस्पीकर से आते हुए फिल्मी गानों की तर्ज पर भजनों को सुनते हुए धन्य हो लेते थे। मन्दिर का पुजारी पुलिस का ही था। उसे सुबह-सुबह विशेष दर्जा प्राप्त था। जिन्हें वह दिन भर सैल्यूट मारता नहीं थकता था वे बहुत से अफसर उसके सामने नतमस्तक रहते। अकसर एक मोटरसाइकिल जिस पर ओम पुलिस लिखा है, को ईपीएफओ मन्दिर के ठीक सामने रखा हुआ देख सकते हैं। मेरी बेटी ने उस पुजारी था नाम ओम पुलिस ही रख दिया है। वह रोज सुबह आरती पूजा कर शाम को चौराहे पर लोगों की माँ बहन एक करने का काम एक ही निष्ठा से करता है।
तो वह सुबह भी वैसी ही थी। मन्दिर के नीचे निस्तारी तालाब से लगा जो मैदान है, वहां भी सुबह-सुबह खासी चहल पहल रहती है। कुछ लड़के क्रिकेट खेलते रहते हैं, कुछ लोग दौड़ लगाते रहते हैं। जानवर भी वहां तालाब से पानी पीते रहते हैं।
एक और बात जो उस मैदान को खासियत देती है वह है वहां मौजूद कुत्ते , जो बहुत खास कुत्ते है। पुलिस के कुत्ते जासूसी कुत्ते।लोग कहते हैं कि इन कुत्तों में से एक-एक पर जो खर्च होता है वह उस घुमाने वाले के पूरे परिवार पर हुए खर्च से अधिक होता है। आखिर वे पुलिस के प्रशिक्षित जासूसी कुत्ते हैं। वे बम या विस्फोटक पदार्थों की पहचान करने वाले कुत्ते हैं। वे सूंघकर चोर को पकड़ने वाले कुत्ते हैं । ये कुत्ते आकार में लगभग गधे जितने बड़े होते हैं और उनकी पूंछ सीधी या तिरछी करने वाला कोई मुहावरा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता क्योंकि वे पूंछ कटे होते हैं। बिना सींग पूंछ के जानवर हैं । उनके लिए बकायदा खास प्रशिक्षण केन्द्र है जहां उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है। उस प्रशिक्षण से उनका पद तय होता है। तो इस तरह से तीन चार कुत्तों को घुमाने पिलाने का काम इस मैदान में सम्पन्न होता है।
वे चूंकि प्रशिक्षित हैं इसलिए उनके घुमाने वालों को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती। वे सब घुमाने वाले और लोगों के साथ एक जगह पर बैठकर गप्पें हांकते हैं, तंबाकू खाते हैं, अफसरों का मजाक उड़ाते हैं, दुनिया जहान की चर्चा करते हैं। कुत्ते अपने आप घूम फिर कर फारिग होकर उनके पास आ जाते हैं। यह रोज होता है। उस दिन भी यही सब हो रहा था। उन लोगों की बातचीत में अमरीका का प्रधान मंत्री का दौरा और अमेरिका की प्रतिक्रिया से लेकर मोहल्ले में बढ़ते चूहों, मच्छरों की संख्या तक शामिल था। उनकी बहस के मुद्दे में कल ही हुई एक रैली भी थी जो किसानों के मुआवजे को लेकर थी, बिजली की दरों को लेकर थी,पर मुद्दा मंहगाई नहीं था, क्योंकि ऐसी रैलियां दरअसल शक्ति प्रदर्शन के लिए होती हैं, यह सबको पता था। उस रैली में आई एक मेटाडोर से हुए एक्सीडेंट पर सब अफसोस जाहिर कर रहे थे। जिसमें रैली के ही दस लोगों ने दम तोड़ दिया था। सब लोग रैली को,भीड़भाड़ को कोस रहे थे। बहस गरमागरम थी पर उसमें एकदम व्यवधान उत्पन्न हुआ। सारे घूमने वालों,मन्दिर के दर्शनार्थियों, कचरा बीनने वालों, काम पर निकलने वाले मजूरों का ध्यान एकदम वहाँ खिंचा जहाँ उन प्रशिक्षित बिना पूछ वाले कुत्तों में से एक तालाब पर पानी पीने आई गाय पर झपट पड़ा था। यह एक खतरनाक दृश्य था। वह गाय पूछ उठाकर भागी और वह कुत्ता उसके पीछे। वह उसे जगह जगह काट रहा था। उस गधे बराबर कुत्ते के आगे उस निरीह गाय की क्या बिसात। यूँ वह सामान्य आवारा या पालतू कुत्ता होता तो लोग यह न होने देते और कुत्ते को मार मार कर अलग कर देते पर वह एक जासूसी कुत्ता था,पुलिस का कुत्ता था,बल्कि अफसर कुत्ता था। उसे रोकने का मतलब था पुलिस के काम में दखल देना। तो पुलिस के कुत्ते द्वारा होता हुआ गाय पर यह अत्याचार सब भौंचक देख रहे थे। इस कृत्य को एक ही व्यक्ति रोक सकता था और वह था रामप्रसाद तिवारी, वह तिलकधारी पुलिस का जवान जो उस कुत्ते को घुमाता था, पर असमंजस में था। आखिर वह उस कुत्ते का मातहत जो था। फैसले की घड़ी थी यह। वह क्या करे क्या न करे यह मुश्किल थी, पर तभी उसकी नज़र मन्दिर पर पड़ी और वह शंका से उबर गया। उसने एक हाथ में बेंत ली और जोर से चीखा -"सोल्जर "। सोल्जर एक पल को ठिठका पर फिर वह गाय के पीछे था। वह उसे छोड़ नहीं रहा था। उसके मुँह में गाय का पैर था। तिवारी जी दौड़ पड़े सोल्जर के पीछे। लोगों की उत्सुकता बढ़ रही थी। सभी दिल थाम कर उस दृश्य के चश्मदीद गवाह बनना चाहते थे।
मन्दिर से लेकर हाथी द्वार तक,मैदान से लेकर क्वार्टर्स तक सब जगह सन्नाटा खिंच गया था। समय की रफ्तार बहुत धीमे हो गई थी। हर पल घण्टा जान पड़ता था। तिवारी जी सोल्जर के पकड़ने को भागे। सोल्जर ने एक बार उन्हें छका दिया, वह गाय को छोड़कर दूर भाग गया।
तिवारी जी ने राहत की साँस ली और वापस लौटने लगे। वे ज्यों ही लौट रहे थे कि सोल्जर फिर गाय पर झपट पड़ा। तिवारी जी का पृष्ठ भाग शिला से टिका ही था कि वह खतरनाक दृश्य फिर उनके सामने था। लोग भी वापस जाते जाते ठिठक गए। तिवारी जी ने बेंत उठाई और दौड़ पड़े। सोल्जर को यह खेल लग रहा था। वह गाय को छोड़कर दूसरी तरफ भागा। तिवारी जी को उस तरफ पहुंचा कर, झपटकर फिर गाय पर लपक पड़ा। इस बार उसने गाय को बुरी तरह घायल कर दिया था। तिवारी जी के क्रोध की सीमा नहीं थी अब। उनके मुँह से गालियाँ निकलने लगी थी। बहुत कठिन परिश्रम के बाद उन्होंने सोल्जर को धर दबोचा। तिवारी जी ने लपक कर सोल्जर को पट्टे से पकड़ लिया। उसे अलग किया यानि गाय को छुड़वाया और उस पर बेंत बरसाना शुरू कर दिया। हालांकि वह कुत्ता उनका अफसर था पर गाय पर यह अत्याचार उन्हें कतई बर्दाश्त नहीं हुआ। धर्म की यह हानि उन्हें बिलकुल सहन नहीं हुई। उन्होंने सोल्जर की बेरहमी से धुनाई की। वह गाय भाग कर तालाब किनारे खड़ी हो गई। कई जगह से खून निकल रहा था उसका, तिवारी जी ने उस गाय को देखा, लोगों की भीड़ को देखा जो उन्हें देख रही थी और फिर वे सोल्जर को पट्टे से पकड़ कर घसीटते हुए उस गाय के नजदीक ले गए। पट्टा पकड़े पकड़े गाय को प्रणाम किया। गाय भागने को हुई कि उन्होंने गाय को भी पकड़ लिया और उसे पकड़ कर खड़ा कर सोल्जर को उसके सामने झुकाया, वह झुक नहीं रहा था। उन्होंने उस पर फिर बेंत बरसाना शुरू कर दिया और तब तक वे उसे मारते रहे जब तक वह दण्डवत नहीं हो गया। माँ बहन की गालियों की अजस्र धारा इस दौरान उनके मुँह से पूरे समय बह रही थी। वह कुत्ता जो सोल्जर नाम का अफसर कुत्ता था, गौमाता के सामने प्रायश्चित स्वरूप पिट रहा था। वह अधमरा हो चला था। यह एक अद्भुत और विलक्षण दृश्य था,अधर्म पर धर्म की विजय का। अन्य कोई युग होता तो आसमान से देवता फूल बरसाते। वहां जितने लोग थे तिवारी जी की सराहना कर रहे थे। काफी देर बाद तिवारी जी ने गाय को प्रणाम किया, सोल्जर को दण्डवत कराया और उसे पकड़ कर वापस ले चले। उनका चेहरा गर्व से चमक रहा था, वे अपने पीछे प्रभामण्डल की गर्मी महसूस कर रहे थे। सोल्जर को यह सब कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह बकरियों के पीछे दौड़ता तो ये सब वाह वाह करते,सुअर के तो कई बच्चे उसने मार डाले थे। भैसों को भगाना उसका शगल था। फिर अब भला यह क्या हुआ कि इस जानवर के पीछे भागने पर उसे यह सजा मिली। वह गाय पर गुर्राया। तिवारी जी ने बेंत फटकारी, गाय सहमी सी खड़ी थी। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। पर वहां खड़ी भीड़ को सब समझ आ रहा था और सबसे समझदार थे श्री रामप्रसाद तिवारी जो इस वक्त सबके आदर्श थे।
तभी उन्होंने अपने आपको ऊँचे स्थान पर महसूस किया। दरअसल वे एक टेकरी पर थे सो अवसर भाँप कर उन्होंने बोलना प्रारंभ कर दिया।
" अब है तो कुत्ता ही न,इसे क्या मालूम कि क्या धर्म है और क्या अधर्म। सो आज हम इसे धार्मिक तरीके से समझा दिए हैं। अब यह केवल मात्र कुत्ता तो नहीं है। यह तो है पुलिस का जासूसी कुत्ता। सो इसे समझ में भी आ गया होगा। गली मोहल्ले का आवारा या पालतू कुत्ता होता तो हम उसे नहीं न समझाते पर यह तो खास कुत्ता है और इसे हमने धर्म द्वारा ही समझा दिया है और यह समझ भी गया है। आखिर धर्म की रक्षा करना इसका और हमारा परम कर्तव्य है। "
वे इसके बाद देर तक यही बात बोलते रहे। लोग खिसकने लगे और अब भीड़ छंट चुकी थी।
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सुबह बस होने को थी। सूरज आसमान में लाली भरने को था। सड़क किनारे बसे मजूरों की टपरियों से धुआं उठ रहा था। यह समय दिन भर का खाना बनने का था। कचरे से काम की चीजें बीनने वाले कचरे के ढेरों तक पहुंचने लगे थे। सेहत के लिए सतर्क लोग घूम कर लौटने को थे। माहौल में ठंडक थी, चिड़ियों की चहचहाहट थी। लोग इस माहौल में घूमने जाना स्वास्थ्यवर्ध्दक मानते हैं और सो भी अगर चढ़ाई पर जाया जाय तो सोने में सुहागा। तो पहाड़ी भी मौजूद है, ठंडक भी और चिड़ियों की चहचहाहट भी। अगर रोडवेज के डिपो से ऊपर चढ़ लिया जाए तो चढ़ाई भी है, सड़क भी है यानी घूमने जाने का आदर्श स्थान। सुबह घूमने जाने वालों की संख्या अब इतनी बढ़ चली है कि अकसर वहाँ मेले का दृश्य पैदा हो जाता है। इसके साथ ही पहाड़ी के दायीं ओर मन्दिर होना तो तय ही था। दरअसल पहाड़ी के एक ओर पुलिस कालोनी है, वहीं एक निस्तारी तालाब है, एक मैदान है। पीछे की ओर फायरिंग रेंज है। जहाँ से सुबह-सुबह चाँदमारी की आवाजें आती रहती हैं। तो जब इतना सब माहौल हो तो मन्दिर होना तो तय ही था बल्कि मन्दिर परिसर था, जहाँ सार्वाधिक लोकप्रिय भगवान स्थापित थे।, मुख्य मन्दिर शंकर का, फिर हनुमान जी का। देवी का भी मन्दिर था। जिसको जिससे काम हो, जिस पर श्रद्धा हो, वह वहाँ जाए। घूमने वाले लोग भी घूम कर लौटने में दर्शन कर पुण्य कमा लेते।
कानों में लाउडस्पीकर से आते हुए फिल्मी गानों की तर्ज पर भजनों को सुनते हुए धन्य हो लेते थे। मन्दिर का पुजारी पुलिस का ही था। उसे सुबह-सुबह विशेष दर्जा प्राप्त था। जिन्हें वह दिन भर सैल्यूट मारता नहीं थकता था वे बहुत से अफसर उसके सामने नतमस्तक रहते। अकसर एक मोटरसाइकिल जिस पर ओम पुलिस लिखा है, को ईपीएफओ मन्दिर के ठीक सामने रखा हुआ देख सकते हैं। मेरी बेटी ने उस पुजारी था नाम ओम पुलिस ही रख दिया है। वह रोज सुबह आरती पूजा कर शाम को चौराहे पर लोगों की माँ बहन एक करने का काम एक ही निष्ठा से करता है।
तो वह सुबह भी वैसी ही थी। मन्दिर के नीचे निस्तारी तालाब से लगा जो मैदान है, वहां भी सुबह-सुबह खासी चहल पहल रहती है। कुछ लड़के क्रिकेट खेलते रहते हैं, कुछ लोग दौड़ लगाते रहते हैं। जानवर भी वहां तालाब से पानी पीते रहते हैं।
एक और बात जो उस मैदान को खासियत देती है वह है वहां मौजूद कुत्ते , जो बहुत खास कुत्ते है। पुलिस के कुत्ते जासूसी कुत्ते।लोग कहते हैं कि इन कुत्तों में से एक-एक पर जो खर्च होता है वह उस घुमाने वाले के पूरे परिवार पर हुए खर्च से अधिक होता है। आखिर वे पुलिस के प्रशिक्षित जासूसी कुत्ते हैं। वे बम या विस्फोटक पदार्थों की पहचान करने वाले कुत्ते हैं। वे सूंघकर चोर को पकड़ने वाले कुत्ते हैं । ये कुत्ते आकार में लगभग गधे जितने बड़े होते हैं और उनकी पूंछ सीधी या तिरछी करने वाला कोई मुहावरा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता क्योंकि वे पूंछ कटे होते हैं। बिना सींग पूंछ के जानवर हैं । उनके लिए बकायदा खास प्रशिक्षण केन्द्र है जहां उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है। उस प्रशिक्षण से उनका पद तय होता है। तो इस तरह से तीन चार कुत्तों को घुमाने पिलाने का काम इस मैदान में सम्पन्न होता है।
वे चूंकि प्रशिक्षित हैं इसलिए उनके घुमाने वालों को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती। वे सब घुमाने वाले और लोगों के साथ एक जगह पर बैठकर गप्पें हांकते हैं, तंबाकू खाते हैं, अफसरों का मजाक उड़ाते हैं, दुनिया जहान की चर्चा करते हैं। कुत्ते अपने आप घूम फिर कर फारिग होकर उनके पास आ जाते हैं। यह रोज होता है। उस दिन भी यही सब हो रहा था। उन लोगों की बातचीत में अमरीका का प्रधान मंत्री का दौरा और अमेरिका की प्रतिक्रिया से लेकर मोहल्ले में बढ़ते चूहों, मच्छरों की संख्या तक शामिल था। उनकी बहस के मुद्दे में कल ही हुई एक रैली भी थी जो किसानों के मुआवजे को लेकर थी, बिजली की दरों को लेकर थी,पर मुद्दा मंहगाई नहीं था, क्योंकि ऐसी रैलियां दरअसल शक्ति प्रदर्शन के लिए होती हैं, यह सबको पता था। उस रैली में आई एक मेटाडोर से हुए एक्सीडेंट पर सब अफसोस जाहिर कर रहे थे। जिसमें रैली के ही दस लोगों ने दम तोड़ दिया था। सब लोग रैली को,भीड़भाड़ को कोस रहे थे। बहस गरमागरम थी पर उसमें एकदम व्यवधान उत्पन्न हुआ। सारे घूमने वालों,मन्दिर के दर्शनार्थियों, कचरा बीनने वालों, काम पर निकलने वाले मजूरों का ध्यान एकदम वहाँ खिंचा जहाँ उन प्रशिक्षित बिना पूछ वाले कुत्तों में से एक तालाब पर पानी पीने आई गाय पर झपट पड़ा था। यह एक खतरनाक दृश्य था। वह गाय पूछ उठाकर भागी और वह कुत्ता उसके पीछे। वह उसे जगह जगह काट रहा था। उस गधे बराबर कुत्ते के आगे उस निरीह गाय की क्या बिसात। यूँ वह सामान्य आवारा या पालतू कुत्ता होता तो लोग यह न होने देते और कुत्ते को मार मार कर अलग कर देते पर वह एक जासूसी कुत्ता था,पुलिस का कुत्ता था,बल्कि अफसर कुत्ता था। उसे रोकने का मतलब था पुलिस के काम में दखल देना। तो पुलिस के कुत्ते द्वारा होता हुआ गाय पर यह अत्याचार सब भौंचक देख रहे थे। इस कृत्य को एक ही व्यक्ति रोक सकता था और वह था रामप्रसाद तिवारी, वह तिलकधारी पुलिस का जवान जो उस कुत्ते को घुमाता था, पर असमंजस में था। आखिर वह उस कुत्ते का मातहत जो था। फैसले की घड़ी थी यह। वह क्या करे क्या न करे यह मुश्किल थी, पर तभी उसकी नज़र मन्दिर पर पड़ी और वह शंका से उबर गया। उसने एक हाथ में बेंत ली और जोर से चीखा -"सोल्जर "। सोल्जर एक पल को ठिठका पर फिर वह गाय के पीछे था। वह उसे छोड़ नहीं रहा था। उसके मुँह में गाय का पैर था। तिवारी जी दौड़ पड़े सोल्जर के पीछे। लोगों की उत्सुकता बढ़ रही थी। सभी दिल थाम कर उस दृश्य के चश्मदीद गवाह बनना चाहते थे।
मन्दिर से लेकर हाथी द्वार तक,मैदान से लेकर क्वार्टर्स तक सब जगह सन्नाटा खिंच गया था। समय की रफ्तार बहुत धीमे हो गई थी। हर पल घण्टा जान पड़ता था। तिवारी जी सोल्जर के पकड़ने को भागे। सोल्जर ने एक बार उन्हें छका दिया, वह गाय को छोड़कर दूर भाग गया।
तिवारी जी ने राहत की साँस ली और वापस लौटने लगे। वे ज्यों ही लौट रहे थे कि सोल्जर फिर गाय पर झपट पड़ा। तिवारी जी का पृष्ठ भाग शिला से टिका ही था कि वह खतरनाक दृश्य फिर उनके सामने था। लोग भी वापस जाते जाते ठिठक गए। तिवारी जी ने बेंत उठाई और दौड़ पड़े। सोल्जर को यह खेल लग रहा था। वह गाय को छोड़कर दूसरी तरफ भागा। तिवारी जी को उस तरफ पहुंचा कर, झपटकर फिर गाय पर लपक पड़ा। इस बार उसने गाय को बुरी तरह घायल कर दिया था। तिवारी जी के क्रोध की सीमा नहीं थी अब। उनके मुँह से गालियाँ निकलने लगी थी। बहुत कठिन परिश्रम के बाद उन्होंने सोल्जर को धर दबोचा। तिवारी जी ने लपक कर सोल्जर को पट्टे से पकड़ लिया। उसे अलग किया यानि गाय को छुड़वाया और उस पर बेंत बरसाना शुरू कर दिया। हालांकि वह कुत्ता उनका अफसर था पर गाय पर यह अत्याचार उन्हें कतई बर्दाश्त नहीं हुआ। धर्म की यह हानि उन्हें बिलकुल सहन नहीं हुई। उन्होंने सोल्जर की बेरहमी से धुनाई की। वह गाय भाग कर तालाब किनारे खड़ी हो गई। कई जगह से खून निकल रहा था उसका, तिवारी जी ने उस गाय को देखा, लोगों की भीड़ को देखा जो उन्हें देख रही थी और फिर वे सोल्जर को पट्टे से पकड़ कर घसीटते हुए उस गाय के नजदीक ले गए। पट्टा पकड़े पकड़े गाय को प्रणाम किया। गाय भागने को हुई कि उन्होंने गाय को भी पकड़ लिया और उसे पकड़ कर खड़ा कर सोल्जर को उसके सामने झुकाया, वह झुक नहीं रहा था। उन्होंने उस पर फिर बेंत बरसाना शुरू कर दिया और तब तक वे उसे मारते रहे जब तक वह दण्डवत नहीं हो गया। माँ बहन की गालियों की अजस्र धारा इस दौरान उनके मुँह से पूरे समय बह रही थी। वह कुत्ता जो सोल्जर नाम का अफसर कुत्ता था, गौमाता के सामने प्रायश्चित स्वरूप पिट रहा था। वह अधमरा हो चला था। यह एक अद्भुत और विलक्षण दृश्य था,अधर्म पर धर्म की विजय का। अन्य कोई युग होता तो आसमान से देवता फूल बरसाते। वहां जितने लोग थे तिवारी जी की सराहना कर रहे थे। काफी देर बाद तिवारी जी ने गाय को प्रणाम किया, सोल्जर को दण्डवत कराया और उसे पकड़ कर वापस ले चले। उनका चेहरा गर्व से चमक रहा था, वे अपने पीछे प्रभामण्डल की गर्मी महसूस कर रहे थे। सोल्जर को यह सब कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह बकरियों के पीछे दौड़ता तो ये सब वाह वाह करते,सुअर के तो कई बच्चे उसने मार डाले थे। भैसों को भगाना उसका शगल था। फिर अब भला यह क्या हुआ कि इस जानवर के पीछे भागने पर उसे यह सजा मिली। वह गाय पर गुर्राया। तिवारी जी ने बेंत फटकारी, गाय सहमी सी खड़ी थी। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। पर वहां खड़ी भीड़ को सब समझ आ रहा था और सबसे समझदार थे श्री रामप्रसाद तिवारी जो इस वक्त सबके आदर्श थे।
तभी उन्होंने अपने आपको ऊँचे स्थान पर महसूस किया। दरअसल वे एक टेकरी पर थे सो अवसर भाँप कर उन्होंने बोलना प्रारंभ कर दिया।
" अब है तो कुत्ता ही न,इसे क्या मालूम कि क्या धर्म है और क्या अधर्म। सो आज हम इसे धार्मिक तरीके से समझा दिए हैं। अब यह केवल मात्र कुत्ता तो नहीं है। यह तो है पुलिस का जासूसी कुत्ता। सो इसे समझ में भी आ गया होगा। गली मोहल्ले का आवारा या पालतू कुत्ता होता तो हम उसे नहीं न समझाते पर यह तो खास कुत्ता है और इसे हमने धर्म द्वारा ही समझा दिया है और यह समझ भी गया है। आखिर धर्म की रक्षा करना इसका और हमारा परम कर्तव्य है। "
वे इसके बाद देर तक यही बात बोलते रहे। लोग खिसकने लगे और अब भीड़ छंट चुकी थी।
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टिप्पणियाँ:-
पूर्णिमा पारिजात मिश्र:-
पूर्णिमा पारिजात मिश्र:-
एक जानवर को माध्यम बना ,धर्मान्धता पर किया गया सीधा कटाक्ष ......अच्छी रचना।
मनचन्दा पानी:-
आज के समय में जब एक नयी समस्या आ कड़ी हुई। बहुत ही सटीक कहानी। धर्म मनुष्यों से बढ़कर मंदिरों से आगे जाकर जानवरों पर लागू हो चला है। जानवरों के धर्म-जात बनने लगे हैं। धर्मान्धता प्रकृति के उस नियम को भूल रही है की संतुलन बनाये रखने के लिए भैंस गाय बकरी सांप कछुवे कुत्ते कीड़े मकोड़े सब चाहिए। सबका अपना अपना महत्त्व है और सबकी अपनी अपनी उपयोगिता। असल में बंटवारा करने वाले आदमी आदमी का बंटवारा कर चुके, आदमी औरत का बंटवारा कर चुके। अब खाली बैठे थे तो सोचा जानवरों पर ही प्रैक्टिस करते है। इसलिएअब गौशाला, सूअरशाला, कुत्ताशाला आदि में भी धार्मिक फ़ोटोस्टेट लगानी पड़ रही हैं।
आज के समय में जब एक नयी समस्या आ कड़ी हुई। बहुत ही सटीक कहानी। धर्म मनुष्यों से बढ़कर मंदिरों से आगे जाकर जानवरों पर लागू हो चला है। जानवरों के धर्म-जात बनने लगे हैं। धर्मान्धता प्रकृति के उस नियम को भूल रही है की संतुलन बनाये रखने के लिए भैंस गाय बकरी सांप कछुवे कुत्ते कीड़े मकोड़े सब चाहिए। सबका अपना अपना महत्त्व है और सबकी अपनी अपनी उपयोगिता। असल में बंटवारा करने वाले आदमी आदमी का बंटवारा कर चुके, आदमी औरत का बंटवारा कर चुके। अब खाली बैठे थे तो सोचा जानवरों पर ही प्रैक्टिस करते है। इसलिएअब गौशाला, सूअरशाला, कुत्ताशाला आदि में भी धार्मिक फ़ोटोस्टेट लगानी पड़ रही हैं।
बढ़िया कहानी के लिए बधाई।
अरुणेश शुक्ल :-
भाई गाय अगर किसी की पालतू रही हो और पानी पिने चली आई हो गलती से ।ऐसा हो जाता है की मालिक की जानकारी के बगैर हो और मालिक बाद में पहुचे। कुत्ता बकरी मारे या गाय या सुवर उनका मालिक उन्हें छुड़ाने की कोशिश करता है ही। कोई वाह वाह नहीं करता सामान्य लोग भी निरीह जानवर को छुडाते हैं।इसमें वह गाय है इसका राजनैतिक निहितार्थ नहीं होता। पुलिससांप्रदायिक है हम सब जानते पर उसे दिखाने की युक्ति दूसरी हो सकती।
गाय के मुद्दे पर यह कहानी बनी नहीं ठीक से। वो दूसरा मसला है गौ वध पर प्रतिबन्ध या रास्ट्र माता घोषित करने का।
भाई गाय अगर किसी की पालतू रही हो और पानी पिने चली आई हो गलती से ।ऐसा हो जाता है की मालिक की जानकारी के बगैर हो और मालिक बाद में पहुचे। कुत्ता बकरी मारे या गाय या सुवर उनका मालिक उन्हें छुड़ाने की कोशिश करता है ही। कोई वाह वाह नहीं करता सामान्य लोग भी निरीह जानवर को छुडाते हैं।इसमें वह गाय है इसका राजनैतिक निहितार्थ नहीं होता। पुलिससांप्रदायिक है हम सब जानते पर उसे दिखाने की युक्ति दूसरी हो सकती।
गाय के मुद्दे पर यह कहानी बनी नहीं ठीक से। वो दूसरा मसला है गौ वध पर प्रतिबन्ध या रास्ट्र माता घोषित करने का।
अंजू शर्मा :-
मुझे भी अच्छी लगी कहानी। प्रतीकों के माध्यम से जो कहने की कोशिश की वह संप्रेषित हुआ। अंत में किंकर्तव्यमूढ़ तिवारी जी के जागने और तथाकथित धर्म को बचाने का दृश्य भी खूब है।
मुझे भी अच्छी लगी कहानी। प्रतीकों के माध्यम से जो कहने की कोशिश की वह संप्रेषित हुआ। अंत में किंकर्तव्यमूढ़ तिवारी जी के जागने और तथाकथित धर्म को बचाने का दृश्य भी खूब है।
बी एल पाल:-
अभिताभ की यह लघु कथा भले ही प्रतिमानों पर भले ही खरी न हो पर भरेपूरे भरपूर दृश्यों के बीच अपनी बात कहने में जरूर सफल हुई है।यह अलग बात है पुलिस के कुत्ते भी लंबाई चौड़ाई ऊंचाई में गधे के बराबर नहीं होते कुत्तों के यह डील डौल कहानी में अवरोध की तरह है।कहानी के घटनास्थल उसके आसपास के चित्र जिवंत हैं।कहानी एक कौतुक के रूप में है। जो इसी के बीच समय को समझने में जरूर मदद करती है।
अभिताभ की यह लघु कथा भले ही प्रतिमानों पर भले ही खरी न हो पर भरेपूरे भरपूर दृश्यों के बीच अपनी बात कहने में जरूर सफल हुई है।यह अलग बात है पुलिस के कुत्ते भी लंबाई चौड़ाई ऊंचाई में गधे के बराबर नहीं होते कुत्तों के यह डील डौल कहानी में अवरोध की तरह है।कहानी के घटनास्थल उसके आसपास के चित्र जिवंत हैं।कहानी एक कौतुक के रूप में है। जो इसी के बीच समय को समझने में जरूर मदद करती है।
आशा पाण्डेय:-
कहानी का शिल्प बहुत सुन्दर है .रोचकता और कुतूहल दोनों इसकहानी को पूरा पढ़ने के लिये विवश करते हैऔर आज की राजनीतिक चाल को (मैं इसे समाज की सोच या समाज के धर्म से नही जोड़ पा रही हूं.संवेदनायें अब भी बची हैं और हर सम्प्रदाय में बची हैं) यह कहानी पूरी तरह उजागर करती है अच्छी कहानी के लिये अमिताभ जी को बधाई।
कहानी का शिल्प बहुत सुन्दर है .रोचकता और कुतूहल दोनों इसकहानी को पूरा पढ़ने के लिये विवश करते हैऔर आज की राजनीतिक चाल को (मैं इसे समाज की सोच या समाज के धर्म से नही जोड़ पा रही हूं.संवेदनायें अब भी बची हैं और हर सम्प्रदाय में बची हैं) यह कहानी पूरी तरह उजागर करती है अच्छी कहानी के लिये अमिताभ जी को बधाई।
गणेश जोशी:-
अमिताभ जी की कहानी मूल विषय से अधिक माहौल को दर्शाती है। फिर भी कहानी खत्म होने तक जिज्ञाषा पैदा करती है। अच्छी कहानी के लिए बधाई।।
अमिताभ जी की कहानी मूल विषय से अधिक माहौल को दर्शाती है। फिर भी कहानी खत्म होने तक जिज्ञाषा पैदा करती है। अच्छी कहानी के लिए बधाई।।
अरुण आदित्य :-
रात 12:50 पर कहानी खत्म की।
सरकारी कुत्ते का कद देखा और आदमी की कुत्तई भी।
साफ-साफ पता चला कि सोल्जर के गले में पडा सरकारी चर्म-पट्टा ज्यादा मजबूत है या तिवारी जी के गले में पडा धर्म-पट्टा।
गौ माता की पीडा पर उनका द्रवित होना दया-करुणा वगैरह की श्रेणी में दर्ज हो चुका था पर अगली पंक्तियों में जब पता चला कि कुत्ते द्वारा बकरी, भैंस आदि दूसरे जानवरों को दौडाने पर तिवारी जी गदगद हो जाते थे, तो करुणा की थ्योरी हवा हो गई और बाकी जो बचा वह धर्म-पट्टा था, जिसकी गुलामी अलौकिक आनंद देती है।
संभवतः यह कहानी का पहला ड्राफ्ट है। अंत में कुछ काम की गुंजाइश लगती है।
बी एल पाल:-
मुझे लगता है इस कहानी का ऊपरी पटल साम्प्रदायिकता से है ऐसा लगता है पर यह कहानी अपने निहितार्थ में उससे आगे मानव की पूर्णता को खोजते हुए रूप में है
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जवाब देंहटाएंAn Thái Sơn chia sẻ trẻ sơ sinh nằm nôi điện có tốt không hay võng điện có tốt không và giải đáp cục điện đưa võng giá bao nhiêu cũng như mua máy đưa võng ở tphcm địa chỉ ở đâu uy tín.