हालीना पोस्वियातोव्स्का की कविताएं
रूसी से अनुवाद — अनिल जनविजय
कविताएँ
कितनी बार मरा जा सकता है प्रेम में
कितनी बार मरा जा सकता है प्रेम में
पहली बार लगती है धरती कटु
कड़वा-सा स्वाद
कसैला रंग
और आग-सा लाल गुडहल
दूसरी बार— स्वाद कुछ खाली-सा
श्वेत तरल
ठंडी हवा
अघोष गूँजते पहियों के स्वर
फिर तीसरी बार, चौथी बार, पाँचवी बार
दिनचर्या गुम हुई, पहले से कम बुलन्द
चारों तरफ़ दीवार है
और मेरे ऊपर छा रही है परछाईं तुम्हारी
जब मैं मर जाऊँगी, प्रिय
जब मैं मर जाऊँगी, प्रिय
जब छोड़ दूँगी यह दुनिया
बन जाऊँगी चीज़ वह बेचारी, जिसे सँभाल नहीं पाए तुम ।
तुम मुझे हथेली पर उठा लोगे
और इस पूरी दुनिया से छुपा लोगे
पर क्या तब बदल सकोगे तुम भाग्य को ?
मैं तुम्हारे बारे में सोचती हूँ
मैं तुम्हें पत्र लिखती हूँ
मेरी भोली बातों में रहता है मेरा प्यार ।
सारे ख़त मैंने वे छुपा रखे हैं चूल्हे में
हर पंक्ति में उनकी आग छुपी है
जब तक मैं सो नहीं जाती इस अकेलेपन की राख में ।
प्रिय, देखती हूँ लपट को और सोचती हूँ
क्या होगा मेरे इस बेचैन मन का
जो चाहता है तुझे ?
तुम मुझे मेरे प्रिय
मरने नहीं दो इस दुनिया में
जो इतना ठंडी है, काली है, मेरे दर्द की तरह ।
मैं अंकों के जादू पर क्यों मोहित हूँ?
अकों के जादू पर क्यों मोहित हूँ मैं ?
अंकों से आँक सकती हूँ मैं अनंत और अपार
अपनी यह उदासी और अपना प्यार
अंकों से बाँध सकती हूँ मैं उसे
ताकि दिन मेरे फिसलें वैसे ही
जैसे हीरे पर फिसलती है धूप
ताकि जीवन चले वैसे ही चुपचाप
औ’ उदासी की उस पर पड़े न कोई छाप ।
हमारा प्यार मुज़रिम है
हमारा प्यार मुज़रिम है
मौत की सज़ा मिल चुकी है उसे
मर जाएगा
बस्स, दो ही महीनों में
बहुत जगह है दुनिया में
समय है बहुत
अब तुम छोड़ दो मुझे
दुनिया बहुत कमज़ोर है
मज़बूर है
चूम कर भी
अब मैं रोक नहीं सकती तुम्हें
क्या दुनिया भी मर जाएगी कुछ
क्या दुनिया भी मर जाएगी कुछ
जब मरूँगी मैं ?
देख रही हूँ मैं
दुनिया चल रही है अपनी गति से
लोमड़ी की खाल में लिपटी
लोमड़ी की खाल का एक रोआँ भर हूँ बस्स
कभी यह सोच भी न पाई थी मैं
मैं हमेशा यहीं रही
और वह रहा वहाँ पर
लेकिन फिर भी
यह सोचना अच्छा लगता है
कि दुनिया भी मर जाएगी कुछ
जब मर जाऊँगी मैं
मेरी बर्बर भाषा में
मेरी बर्बर भाषा में
फूलों को फूल कहा जाता है
और हवा को हवा
सड़क की हड्डियों को रौंदते हुए
मेरी जूतियों की एड़ियाँ
ठकठकाती हैं ठक-ठक
इतनी कोमलता से कहती हूँ — पत्थर
मानो वह पत्थर नहीं मखमल का टुकड़ा हो
अपना सिर तेरी गोद में छिपाती हूँ
जैसे बिल्ली गर्म फ़र में छिपाती है मुँह
मुझे पसन्द है
अपनी यह बर्बर भाषा
कहती हूँ — पसन्द है यह भाषा
एक ग्रह है पूरा अकेलेपन का
मेरा यह नक्षत्र है एकाकी
औ’ एक नन्हा रेतकण तेरी हँसी का
एक समुद्र है पूरा एकान्त का
औ’ यह सेवा तुम्हारी
समुद्र पर आकाश में भटकती कोई चिड़िया
सारा आकाश एकाकी है मेरा
बस्स, एक देवदूत है वहाँ
तेरे शब्दों के पंखों पर उड़ता हुआ
उदास होना मुझे पसन्द है
मुझे पसन्द है उदास रहना
रंगों और आवाज़ों के जंगले पर चढ़ना
अपने खुले होठों से
सरदी की गंध को पकड़ना
मुझे पसन्द है अकेलापन
लटका है जो
उस ऊँचे पुल से भी ऊपर
बहुत-बहुत ऊपर
आकाश को अपनी बाहों में बाँध|
पोलिश कविता में हालीना पोस्वियातोव्स्का का महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने जीवनभर दुख झेला और अपने जीवन का अधिकांश समय अस्पतालों में बिताया। 9 मई 1935 को पोलैण्ड के चेंस्तख़ोवा शहर में जन्म लेने वाली हालीना मीगा ने क्राकोव विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एम० ए० किया। लेकिन उन्हें अस्थमा हो गया और जब इस बीमारी का पता चला, तब तक बीमारी ने उन्हें बुरी तरह से घेर लिया था। इसके बाद अस्पताल ही जैसे उनका घर बन गया था। 11 नवम्बर 1967 को लम्बी बीमारी के बाद 32 वर्ष की उम्र में ही उनका देहान्त हो गया। उनके तीन कविता संग्रह प्रकाशित हुए थे — आज का दिन (1963), हाथों का गीत (1966), एक और स्मृति (1967) । इसके अलावा उन्होंने एक आत्मकथात्मक लघु उपन्यास भी लिखा है, जिसका शीर्षक है — दोस्त के लिए एक कहानी।
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
रूसी से अनुवाद — अनिल जनविजय
हालीना |
कविताएँ
कितनी बार मरा जा सकता है प्रेम में
कितनी बार मरा जा सकता है प्रेम में
पहली बार लगती है धरती कटु
कड़वा-सा स्वाद
कसैला रंग
और आग-सा लाल गुडहल
दूसरी बार— स्वाद कुछ खाली-सा
श्वेत तरल
ठंडी हवा
अघोष गूँजते पहियों के स्वर
फिर तीसरी बार, चौथी बार, पाँचवी बार
दिनचर्या गुम हुई, पहले से कम बुलन्द
चारों तरफ़ दीवार है
और मेरे ऊपर छा रही है परछाईं तुम्हारी
जब मैं मर जाऊँगी, प्रिय
जब मैं मर जाऊँगी, प्रिय
जब छोड़ दूँगी यह दुनिया
बन जाऊँगी चीज़ वह बेचारी, जिसे सँभाल नहीं पाए तुम ।
तुम मुझे हथेली पर उठा लोगे
और इस पूरी दुनिया से छुपा लोगे
पर क्या तब बदल सकोगे तुम भाग्य को ?
मैं तुम्हारे बारे में सोचती हूँ
मैं तुम्हें पत्र लिखती हूँ
मेरी भोली बातों में रहता है मेरा प्यार ।
सारे ख़त मैंने वे छुपा रखे हैं चूल्हे में
हर पंक्ति में उनकी आग छुपी है
जब तक मैं सो नहीं जाती इस अकेलेपन की राख में ।
प्रिय, देखती हूँ लपट को और सोचती हूँ
क्या होगा मेरे इस बेचैन मन का
जो चाहता है तुझे ?
तुम मुझे मेरे प्रिय
मरने नहीं दो इस दुनिया में
जो इतना ठंडी है, काली है, मेरे दर्द की तरह ।
मैं अंकों के जादू पर क्यों मोहित हूँ?
अकों के जादू पर क्यों मोहित हूँ मैं ?
अंकों से आँक सकती हूँ मैं अनंत और अपार
अपनी यह उदासी और अपना प्यार
अंकों से बाँध सकती हूँ मैं उसे
ताकि दिन मेरे फिसलें वैसे ही
जैसे हीरे पर फिसलती है धूप
ताकि जीवन चले वैसे ही चुपचाप
औ’ उदासी की उस पर पड़े न कोई छाप ।
हमारा प्यार मुज़रिम है
हमारा प्यार मुज़रिम है
मौत की सज़ा मिल चुकी है उसे
मर जाएगा
बस्स, दो ही महीनों में
बहुत जगह है दुनिया में
समय है बहुत
अब तुम छोड़ दो मुझे
दुनिया बहुत कमज़ोर है
मज़बूर है
चूम कर भी
अब मैं रोक नहीं सकती तुम्हें
क्या दुनिया भी मर जाएगी कुछ
क्या दुनिया भी मर जाएगी कुछ
जब मरूँगी मैं ?
देख रही हूँ मैं
दुनिया चल रही है अपनी गति से
लोमड़ी की खाल में लिपटी
लोमड़ी की खाल का एक रोआँ भर हूँ बस्स
कभी यह सोच भी न पाई थी मैं
मैं हमेशा यहीं रही
और वह रहा वहाँ पर
लेकिन फिर भी
यह सोचना अच्छा लगता है
कि दुनिया भी मर जाएगी कुछ
जब मर जाऊँगी मैं
मेरी बर्बर भाषा में
मेरी बर्बर भाषा में
फूलों को फूल कहा जाता है
और हवा को हवा
सड़क की हड्डियों को रौंदते हुए
मेरी जूतियों की एड़ियाँ
ठकठकाती हैं ठक-ठक
इतनी कोमलता से कहती हूँ — पत्थर
मानो वह पत्थर नहीं मखमल का टुकड़ा हो
अपना सिर तेरी गोद में छिपाती हूँ
जैसे बिल्ली गर्म फ़र में छिपाती है मुँह
मुझे पसन्द है
अपनी यह बर्बर भाषा
कहती हूँ — पसन्द है यह भाषा
एक ग्रह है पूरा अकेलेपन का
मेरा यह नक्षत्र है एकाकी
औ’ एक नन्हा रेतकण तेरी हँसी का
एक समुद्र है पूरा एकान्त का
औ’ यह सेवा तुम्हारी
समुद्र पर आकाश में भटकती कोई चिड़िया
सारा आकाश एकाकी है मेरा
बस्स, एक देवदूत है वहाँ
तेरे शब्दों के पंखों पर उड़ता हुआ
उदास होना मुझे पसन्द है
मुझे पसन्द है उदास रहना
रंगों और आवाज़ों के जंगले पर चढ़ना
अपने खुले होठों से
सरदी की गंध को पकड़ना
मुझे पसन्द है अकेलापन
लटका है जो
उस ऊँचे पुल से भी ऊपर
बहुत-बहुत ऊपर
आकाश को अपनी बाहों में बाँध|
पोलिश कविता में हालीना पोस्वियातोव्स्का का महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने जीवनभर दुख झेला और अपने जीवन का अधिकांश समय अस्पतालों में बिताया। 9 मई 1935 को पोलैण्ड के चेंस्तख़ोवा शहर में जन्म लेने वाली हालीना मीगा ने क्राकोव विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एम० ए० किया। लेकिन उन्हें अस्थमा हो गया और जब इस बीमारी का पता चला, तब तक बीमारी ने उन्हें बुरी तरह से घेर लिया था। इसके बाद अस्पताल ही जैसे उनका घर बन गया था। 11 नवम्बर 1967 को लम्बी बीमारी के बाद 32 वर्ष की उम्र में ही उनका देहान्त हो गया। उनके तीन कविता संग्रह प्रकाशित हुए थे — आज का दिन (1963), हाथों का गीत (1966), एक और स्मृति (1967) । इसके अलावा उन्होंने एक आत्मकथात्मक लघु उपन्यास भी लिखा है, जिसका शीर्षक है — दोस्त के लिए एक कहानी।
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
अनिल जनविजय |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें