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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

31 जनवरी, 2018

प्राथमिक जांच रिपोर्ट: बवाना प्लास्टिक कारखाना में आग

20 जनवरी 2018 को बवाना इंडस्ट्रीयल क्षेत्र, सेक्टर पांच, नई दिल्ली में एक फैक्टरी में आग लगने से मजदूरों की जलकर हुई दर्दनाक मौत 




दिल्ली से लगभग 23 किमीे उत्तरी-पश्चिम इलाके में बसा बवानाक्षेत्र इस सदी के शुरू होने के पहले तक राजधानी का अंतिमग्रामीण क्षेत्र माना जाता था। 1999 में इस इलाके को उद्योगिकविकास के अंतर्गत लाया गया और इसके लिए लगभग 778 हेक्टेयर जमीन को विभिन्न सेक्टर में विभाजित किया गया।इसके बाद से यहां उद्योगिक क्षेत्र के फैलाव में तेजी आई।आॅटोमोबाईल, इंजिनियरिंग, टूल्स, प्लास्टिक, टैक्सटाइल्स आदिके उद्योग पर जोर दिया गया। इस क्षेत्र में उद्योगिक विकास केठीक पहले से यानी 1995 और उसके बाद के समय में दिल्ली मेंमजदूर बस्तियों को उजाड़ने का दौर चलाकर मजदूरों को बवानामें ‘बसाने’ का दौर शुरू हो चुका था। लेकिन जितने मजदूरों कोउजाड़ा जा रहा था उसके चंद हिस्से को ही इस ‘बसावट’ मेंजगह मिली। शेष मजदूर स्थानीय निवासियों के जैसे तैसे बनायेघरों में रहने के लिए विवश हुए। बहरहाल, इस उद्योगिक विकासकी गति तेजी से बढ़ी। कुल पांच सेक्टर बसाई गई बवानाइंडस्ट्रीय एरिया में आज लगभग 6 लाख मजदूर काम करते औररहते हैं। ‘2016 में 18,000 उद्योगिक इकाईयां थी जो अब51,697 इकाईयों तक पहुंच चुकी हैं। लेकिन दिल्ली राज्यउद्योगिक और अधिरचना विकास निगम लिमिटेड, एमसीडी औरफायर विभाग के पास इसका सही आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। -हिन्दुस्तान टाइम्स पोर्टल न्यूज,21जनवरी 2018।’ अवैधफैक्टरियों का चलन मानों उद्योगिक विकास का हिस्सा हो चुकाहै जिसमें राज्य के प्रशासनिक संस्थानों और यहां तक सत्ताशालीपार्टियों और स्थानीय दबंगों की भागीदारी मुख्य रहती है। ये हीलोग मजदूरों की रिहाईश ही नहीं बल्कि उनके काम, हालात औरमजदूरी तक भी तय करते हैं जो सरकारी मानकों कत्तई मेल नहींखाते।

20 जनवरी 2018 की शाम को बवाना के सेक्टर पांच जिसमेंमुख्यतः प्लास्टिक की फैक्टरियां काम करती हैं, की एफ-83 नम्बर की एक फैक्टरी में आग लगी। इस फैक्टरी में पटाखें बनतेथे। बारूद के धमाकों और तेजी से आग फैलने, एक ही निकासीहोने की वजह से वहां काम कर रहे मजदूर भयावह मौत केशिकार हो गये। लगभग सारे ही अखबारों ने खबर लगाई किआग लगने के समय फैक्टरी में कम से कम 30 मजदूर काम परथे जिसमें से 17 मजदूर जलकर मर गये।

23 जनवरी 2018 को हम पांच सदस्यीय टीम ने इस मामले कीतहकीकात करने के उद्देश्य से बवाना के उद्योगिक इलाका केसेक्टर पांच में गये। टीम सदस्य रोहित (छात्र, दिल्लीविश्वविद्यायल), जयगोबिन्द (संयोजकः मजदूर एकता मंच, दिल्ली), अभिनव (मजदूर वर्ग अध्ययन केंद्र, डीयू), अविनाश(छात्र, दिल्ली विश्वविद्यालय) और खालिद(संयोजकः दरख्त, सांस्कृतिक संगठन) थे। हमने आग लगी फैक्टरी और आसपासकी फैक्टरीयों को देखा। आसपास के मजदूरों और चाय कीरेहड़ी लगाने वाले, ट्रांसपोर्ट में काम करने वाले और फैक्टरी मेंआग लगने से प्रभावित हुए कुछ लोगों से बातचीत किया। इसइलाके के मजदूरों से बात करते समय यह साफ था कि मजदूरडरे हुए हैं और बात करते हुए अपने नाम का उल्लेख करने सेबच रहे थे। लेकिन लगभग सभी लोगों का कहना था कि फैक्टरीमें आग लगने से मजदूरों की मौत की संख्या 17 से अधिक है।और, यह आग एक ऐसी जानीबूझी घटना है जो मुनाफा कीहवस में इन मजदूरों को वहां झोंक दिया गया।

फैक्टरी के आसपास रह रहे लोगों ने बताया:

1.            शाम साढ़े चार बजे 46 चाय का आर्डर मिला थाजिसे मैंने फैक्टरी में पहुंचा दिया था। फैक्टरी में बाहर से तालाबंद रहता है इसलिए चाय हमें एक जगह रख देनी होती थी। फिरशाम को पांच बजे इतनी ही चाय का आर्डर आया। लेकिन मुझेदुकान बंद करनी थी इसलिए मैंने चाय नहीं दी। एक अन्य चायवाले ने यह आर्डर लिया। (आग लगी फैक्टरी में चाय बनाकरपहुंचाने वाले)। नोटः फैक्टरी में आग लगभग साढ़े सात लगी थी।

2.            आग बुझाने के लिए 15 के आसपास दमकल थे।आग विस्फोट के साथ लगी। इसमें बारूद था और आग एकदमसे पकड़ लिया। आग बुझने के बाद मैंने लाश निकलते हुए देखा।हमने खुद 29 लाश को निकलते हुए देखा है। (फैक्टरी माल ढोनेवाला एक ड्राइवर)।

3.            इस दौरान कुछ फैक्टरीयों में होली के त्योहार से जुड़ेहुए सामानों का उत्पादन होता है। यह फैक्टरी भी इसी तरह केमाल बनाने के नाम पर आई। हम लोगों को नहीं पता था कि यहांपटाखे बन रहे हैं। इस सेक्टर में तो प्लास्टिक का ही उत्पादनहोता था। बीच बीच में फैक्टरी के भीतर कुछ छोटे विस्फोट कीआवाजें तो आती थीं लेकिन हम लोगों ने इतना ध्यान नहीं दिया।(पास की फैक्टरी में काम करने वाला मजदूर)।

4.            आमतौर पर शनीवार को फैक्टरी बंद रहती है लेकिनइस फैक्टरी का मालिक पूरे हफ्ते 12 घंटे के शिफ्ट पर कामकराता था और इसके बदले 5000 हजार रूपये देना तय था।मेरी रिश्तेदार भी काम पर गई थी और उसी में जलकर मर गई।फैक्टरी में आग लगने की सूचना हमें रात लगभग दस बजेमिली। हम भागकर फैक्टरी पहुंचे फिर अस्पताल पहुंचे। वहांहमने मदीना (मृत महिला मजदूर) की शिनाख्त किया। परिवार मेंएकमात्र वही कमाती थी जिससे बच्चों का खर्च चलता था।(अख्तर, साईकल बनाने की दुकान चलाने वाले और मदीना केरिश्तेदार और फिरोज, मदीना का बेटा; मेट्रो विहार कालोनी केनिवासी)।

5.            मेरी बहन रीता वहां काम करती थी। वह फैक्टरीआग में जलकर खत्म हो गई। उसकी उम्र फैक्टरी में काम करनेवाली थी। वह 18 वर्ष से कम की थी। घर की आर्थिक हालतखराब होने की वजह से वह भी काम करती थी। फैक्टरी में 13-14 साल के और भी बच्चे काम करते थे। (दीपू, रीता का भाई)।

6.            मुझे पता था कि वहां पटाखे बनते हैं। मैंने अपने बेटेको कई बार मना किया लेकिन फैक्टरी का मालिक उसे दारू कीलत लगा दिया था और उससे काम कराता रहता था। पैसा भीअधिक नहीं देता था।(मृतक मजदूर अविनाश के पिता)।

7.            पांच सदस्यीय एक परिवार फैक्टरी में काम करताथा। वह पूरा परिवार उसमें जलकर मर गया है। यह फैक्टरी यहांपर 15 दिन पहले से ही काम करना शुरू किया था लेकिन इसकेपहले वह दूसरे सेक्टर में काम किया। वहां पर भी आग लगने कीवजह से उसे भगा दिया गया था। फिर यहां आया। यह हमेशाफैक्टरी में बाहर से ताला लगा देता था। कभी फैक्टरी के बाहरबोर्ड नहीं लगाया जाता कि यहां पर क्या बन रहा है, किस तरहकी सावधानी रखनी है, आदि। (मेट्रो विहार काॅलोनी के कईमजदूर)।

फैक्टरी में आग लगने और मजदूरों की मौत के बाद मीडिया मेंखबर तेजी से फैली। आमतौर पर रिपोर्ट प्रशासन के हवाले सेदिया गया। फैक्टरी में आग लगने के बाद दिल्ली सरकार औरएमसीडी के पार्टी नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलाऔर एक दूसरे को दोषी ठहराने का क्रम जारी रहा। हालांकिदिल्ली में इस तरह आग लगने और मजदूरों के मरने की पहलीघटना नहीं थी। लेकिन यह घटना बहुत तेजी से राजनीतिकपरिदृश्य से गायब हो गया। आईए, एक नजर इन औपचारिकरिपोर्ट पर डालते हैंः

1.            हिन्दुस्तान टाइम्स, न्यूज पोर्टल, 21 जनवरी 2018, श्वेता गोस्वामी की रिपोर्ट के अनुसार वहां कम से कम 30 लोगघटना के समय काम कर रहे थे। और फैक्टरी के भीतर सिर्फ दोआग बुझाने वाले बाॅक्स थे। रिपोर्टर के अनुसार, ‘कायदे से वहांप्रत्येक फ्लोर पर धुंआ डिटेक्टर, अलार्म और पानी छिड़कनेवाला संयत्र होना चाहिए था। लेकिन इस बिल्डिंग में ऐसा कुछभी नहीं था। (अतुल गर्ग, अतिरिक्त निदेशकः दिल्ली फायरसर्विस)’।

2.            उपरोक्त रिपोर्ट के अनुसार फैक्टरी बेसमेंट, ग्राउंडऔर प्रथम तल पर काम करती थी। ‘बेसमेंट में एक और ग्राउंडफ्लोर पर तीन लोग मिले। 13 लोग प्रथम तल में थे। मृतकों में सेकुछ एक दूसरे को पकड़कर लेटे या बैठे हुए थे। (अतुल गर्ग, अतिरिक्त निदेशकः दिल्ली फायर सर्विस)।’

3.            ‘अब तक की जांच में उसने बताया है कि हरिद्वार, उत्तर प्रदेश और अन्य जगहों से विस्फोटक और विस्फोटकसामग्री, कच्चा माल यहां रखता था। उसे इस तरह का सामानरखने की लाइसेंस नहीं था। (पुलिस अफसर का कोर्ट में 23 जनवरी 2018 को बयान)।’

4.            ‘फैक्टरी मालिक मनोज जैन को पुलिस के अनुसारशनिवार की शाम को गिरफ्तार कर लिया गया। उस पर इंडियनपीनल कोड की धारा 285, 304, 337 के तहत बवाना पुलिसस्टेशन में मामला दर्ज किया गया है। (इंडियन एक्सपे्रस, 21 जनवरी 2018)।‘

5.            22 जनवरी 2018, इंडियन एक्सप्रेसः ‘यहां ज्यादातरफैक्टरीयां अवैध है इसके चलते हमें कोई सुरक्षा कार्ड उपलब्धनहीं है। आमतौर पर हमारी तनख्वाह में से 150 रूपये काटलिया जाता है, ...जो हमारे स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए है लेकिनचूंकि फैक्टरी कागज पर होता नहीं इसलिए हमें कोई लाभ भीनहीं मिलता। (जौनपुर से आया एक मजदूर)।’ ‘यह जमीन एकआदमी को डीएसआईआईडीसी से मिली। इसने एमसीडी से एकखास फैक्टरी के लिए लाईसेंस लिया। लेकिन यह होता नहीं है।अस्सी प्रतिशत फैक्टरीयों के मालिक इसे बंद कर देते हैं औरफिर किसी किराये पर उठा देते हैं। यह नया आदमी नया लाईसेंसनहीं लेता। लेकिन वह वही पैदा करने में लग जाता है जिसकाउत्पादन वह चाहता है। इसलिए यहां असली बंदा नहीं मिलेगाक्योंकि जो रिकार्ड बुक में है वह नहीं बल्कि कोई और फैक्टरीचला रहा है। (गोरखपुर से आया हुआ एक मजदूर।)’ नोटःफैक्टरी चलाने वाला मनोज जैन है लेकिन इस फैक्टरी कोकिराया पर उठाने वाला ललित गोयल है, वह भी अबसहअभियुक्त है। इस फैक्टरी आग में मरने वाले सबसे अधिकमहिला और बच्चे हैं।

6.            ‘फैक्टरी आग से बच निकलने वाले दो लोगों में सेएक 40 साल की सुनिता हैं। उन्हांेने बताया कि वह वहां दो दिनसे काम कर रही थीं। ‘मुझे 6000रूपये प्रति महीने ...200 रूपये प्रतिदिन मिल रहा था। ...मैं पटाखों में बारूद भरने काकाम कर रही थी तब मुझे दिखा कि धुंआ उठ रहा है। किसी नेभाग निकलने के कहा और मैं सबसे ऊपरी तल पर चली गई।तब तक लोग चीखने चिल्लाने लगे थे। वे बोल रहे थे कि कूदने केअलावा कोई रास्ता नहीं है। इस तरह मैं कूद गई और बेहोश होगई। जब मैं उठी तो मैं अस्पताल में थी और मेरा पैर टूटा हुआथा। (21 जनवरी 2018, इंडियन एक्सपे्रस)।’ इसी रिपोर्ट मेंऔर लोग इतने सौभाग्यशाली नहीं थे। अब भी लोग ‘गायब’ हैंऔर उनके बच्चे इस उम्मीद में हैं कि ‘उन्हंे’ हम खोज लेंगे।देखेंः 21 जनवरी 2018, इंडियन एक्सपे्रस, अभिषेक अंगदऔर आनंद मोहन की रिपोर्ट।

7.            घोषित मृतकों की संख्या 17 है जिसमें से 10 महिलाएं हैं।

हमारी टीम फैक्टरी इलाका और मजदूर बस्ती के एक हिस्से में23 जनवरी 2018 को छह घंटे तक जांच-पड़ताल किया।निश्चित रूप से यह जांच-पड़ताल सीमित स्तर तक ही हो पाया।हम प्रभावित परिवारों और उस क्षेत्र लोगों से मिले जो निश्चय हीतकलीफ, डर और संशय से गुजर रहे थे। इस दौरान हमअखबारों में छप रही खबरों पर नजर रखे हुए थे। अन्य मजदूरइलाकों और आमतौर पर मजदूरों के काम के हालात की खबरें, लेखों से रूबरू होने पर यह साफ था कि यहां भी हालात अन्यजगहों जैसे ही बदतर हैं। हम अपनी ओर से फैक्टरी में आग, मृतकों की संख्या और अन्य मसलों पर अपनी राय रख रहे हैंः

1.            फैक्टरी में काम के हालात अत्यंत खराब हैं।फैक्टरीयों में आमतौर पर निकासी गेट और प्रवेश गेट एक ही है।फैक्टरी के बाहर सुरक्षा निर्देश, फैक्टरी के बारे में जानकारी केबोर्ड हमें कहीं नहीं दिखे। जिस फैक्टरी में आग लगी थी उसफैक्टरी में काम करते वक्त बाहर से ताला लगा दिया जाता था।यह भी फैक्टरीयांें में मालिकों द्वारा बंधक बनाकर काम लेने काएक तरीका है। फैक्टरीयों के भीतर रजिस्टर, मजदूरों कापंजीकरण नही ंके बराबर होता है। ठेका प्रथा ने इस स्थिति कोऔर भी बदतर बना दिया है। प्रवासी मजदूर आमतौर पर अकेलेही काम करने आते हैं। उनकी रिहाईश की स्थिति भी बदतरस्थिति में होने और नियमित काम न होने से यह जान सकना भीमुश्किल रहता है कि मजदूर किस फैक्टरी में कब काम कर रहाहै। इस हालात में फैक्टरी के भीतर आग लगने पर होने वालीमौतों की संख्या निर्धारित करना एक कठिन काम है। ज्यादातरअखबारों ने फैक्टरी के भीतर काम करने वालों की संख्या 30 निर्धारित किया है। आमतौर पर वहां के मजदूर लोग यह संख्या40 या उससे ऊपर बता रहे हैं। हमारा मानना है कि बताई गईमृतकों की संख्या संदिग्ध है। इस संदर्भ में एक जांच कमेटीबननी चाहिए।

2.            दिल्ली सरकार ने मृतकों को पांच लाख और घायलोंको एक लाख मुआवजा देने की घोषणा किया है। इस रिपोर्ट कोआप के सामने पेश करने तक अखबारों ने खबर दी है कि यहरकम चेक द्वारा प्रभावित लोगों को दिया जा चुका है। हमारामानना है कि यह रकम एक परिवार को आर्थिक और सामाजिकरूप से खड़ा करने के लिए अत्यंत कम है। यह रकम कम से कम20 लाख रूपये होनी चाहिए।

3.            दिल्ली सरकार के श्रम मंत्री और एमसीडी मेयर दोनोंही अवैध तरीके से चल रही फैक्टरी और उसमें लगी आग मेंमजदूरों की मौत के लिए जिम्मेदार हैं। उन्हें अपने पद पर बनेरहने का कोई अधिकार है। हम उनसे उनकी इस्तिफे की मांगकरते हैं। पुलिस और एमसीडी कर्मचारियों की फैक्टरी मालिकके साथ मिलीभगत साफ है। हम मांग करते हैं कि दोषी लोगों केखिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाय।

4.            फैक्टरीयों में काम के जो हालात हैं उसमें मजदूरों कीमृत्यु या दुर्घटना ग्रस्त होने संभावना कहीं ज्यादा है। फैक्टरीयों केभीतर न तो न्यूनतम सुविधाएं हैं और न ही न्यूनतम मजदूरी दियाजाता है। ऐसे में मजदूरों और उसके परिवार की जीवन सुरक्षाकी गारंटी दिल्ली और केंद्र की सरकार को लेनी चाहिए।

5.            जिसके नाम से फैक्टरी पंजीकृत था उसने उसे बंदकर दिया था और इसे वह मनोज जैन नाम के व्यक्ति को फैक्टरीचलाने के लिए किराये पर उठा दिया था। यह वहां सारे नियमोंका उलंघन कर विस्फोटक इकठ्ठा करने और पटाखा बनाने आदिका काम कर रहा था। ऐसे में एमसीडी मेयर और दिल्ली सरकारके मंत्री के बीच आरोप-प्रत्यारोप से इतना साफ है कि फैक्टरीचलाने वाले पैसे और पहुंच का इस्तेमाल कर मजदूरों की जिंदगीदांव पर लगाकर मनमाने तरीके से मुनाफा कमाने में लगे हुए हैं।ऐसे में दोषी अधिकारियों और पार्टियों के पदाधिकारियों केखिलाफ भी मामला दर्ज करना चाहिए।

6.            मनोज जैन इस फैक्टरी को लगाने के पहले अन्यजगहों पर फैक्टरी लगाया था। ऐसा लगता है कि वह अपनीफैक्टरी किराये पर चलाता आया है। लोगों ने बताया कि इसकेपहले भी उसकी फैक्टरी में दुर्घना हो चुकी है। ऐसे में नये जगहपर फैक्टरी लगाते समय पुलिस को जानकारी न हो, ऐसा नहीं होसकता। खासकर, बारूद मंगाना, उसे रखना, उसका प्रयोगकरना आदि पुलिस की जानकारी के बिना संभव नहीं है। पुलिसकी संदिग्ध भूमिका और इसे नजरअंदाज करने वाले अफसरों केखिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।

7.            मनोज जैन और ललित गोयल पर जिन धाराओं केतहत मुकदमें दर्ज हुए हैं वह नाकाफी हैं। उसने फैक्टरी के गेटपर ताला लगाकर मजदूरों से काम कराया जबकि ये मजदूरबारूद के साथ काम कर रहे थे और फैक्टरी के अंदर सुरक्षा कीकोई गारंटी नहीं थी। ऐसे में इन पर मुकदमा इसके अनुरूपधाराओं के तहत दर्ज होना चाहिए। यहां हम मारूती सुजुकी मेंएक प्रबंधक की मौत पर सैकड़ों मजदूरों को हत्या के मामलों मेंपकड़ा गया, कई सालों तक मजदूरों को जेल में रखा गया औरअंततः न्यायाधीश ने 13 मजदूरों को आजीवन कारावास कीसजा दी। जबकि प्रबंधक की मौत संदिग्ध हालत में हुई थी औरकिसी एक मजदूर या मजदूरों के समूह पर आरोप तय सकना भीमुश्किल था। वस्तुतः यह पुलिस की भूमिका थी जिसने एकप्रबंधक की मौत पर सैकड़ों मजदूरों को जेल में डाला और कुल17 मजदूरों को सजा तक पहुंचा दिया। यह पुलिस ही है जोबवाना में फैक्टरी मालिक की वजह से कम से कम 17 लोगों कीमौत को मालिक के ‘लापरवाही’ तक सीमित कर देना चाहता है।हम मांग करते हैं कि मनोज जैन और ललित गोयल के खिलाफमजदूरों की इरादतन हत्या करने की धाराओं के तहत मामलादर्ज किया जाय। और, साथ ही उन पर बंधुआ मजदूर निवारणअधिनियम 1976 के तहत भी मुकदमा दर्ज किया जाय।

8.            हम मांग करते हैं कि दिल्ली में मजदूरों के काम केहालात, न्यूनतत मजदूरी, नियुक्ति, नियमितिकरण, सुरक्षा, जीवनबीमा नीति, संगठन और रिहाईश जैसे मसलों का अध्ययन केलिए कमेटी गठित करे और इसे ठीक करने के लिए तुरंत कदमउठाये। मजदूर परिवारों की सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिएतुरंत कदम उठाये। दोषी फैक्टरी मालिकों के खिलाफ सख्तकदम उठाया जाय।

9.            हम छात्रों और बुद्धिजीवी समुदाय से अपील करते हैंकि वह मजदूर वर्ग के पक्ष में खड़े हो। मजदूर वर्ग को संगठितहोने में अपनी भूमिका दर्ज करे और देश में जनवाद को बनाने केलिए उनके साथ खड़े होकर एकजुटता प्रकट करे।
००
प्राथमिक जांच दल के साथी:
रोहित कुमार(08743803045), जयगोबिन्द(08802903407),
अविनाश(07836816345),              खालिद(07838624792),
अभिनव(08789234469)
 जारी; दिनांक: 29 जनवरी 2018,
दिल्ली



परिशिष्टः दिल्ली और एनसीआर में आग लगने और उसमें हुईमौतों का एक छोटा सा विवरण-

2018

Jan 16: Factory gutted in fire in west Delhi’s Peeragarhi

Jan 15: Four people were critically injured after a fire broke out at a plastic factory in Sriniwaspuri

2017

Nov 18: A massive fire broke out in a plastic scrap market in Mundka

Oct 24: A major fire gutted numerous shops and godowns in Kamla Market area. No casualties

Oct 16: Close shave for six firemen as a building on fire collapsed in Mansarovar Garden

Sept 7: One dead after fire engulfed Haldiram’s factory in Noida

May 26: A 50-year-old man died in a fire at a plastic factory in Narela

May 22: A major fire in Chandni Chowk area gutted over 50 shops

March 26: One man was killed in a fire at a plastic factory in Narela

April 19: Six killed as a fire broke out in a Noida electronic goods unit

Feb 24: Two firemen killed in a fire at a restaurant in Vikaspuri

2016

Sept 30: Three killed when a plastic factory on fire collapsed in the middle of rescue ops in Narela

April 26: A huge collection at the National Museum of Natural History was destroyed in a fire

April 12, 2013: Two kids died when a fire broke out in Bawana slums

Nov 20, 2013: Fourteen dead when a fire broke out in Nandnagari

April 28, 2011: 10 labourers charred to death in a major fire in Peeragarhi

June 22, 2009: Two killed in a fire at a slum in Karkardooma

May 31, 1999: 57 persons were killed when a fire broke out at Lal Kuan chemical market complex

June 13, 1997: 59 people were killed and 103 wounded when Uphaar cinema in Green Park caught fire

1992: Fire in Naya Bazar. Three houses collapsed. Three dead

1996: Three dead after transformer catches fire in Khari Baoli

1987: Four dead after fire in chemical godown in Gandhi Gali, Tilak Bazar

January 1986: A fire broke out at The Siddharth Hotel in Vasant Vihar killing 37 and injuring 39. It was later renamed Vasant Continental

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