image

सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

01 नवंबर, 2018

समीक्षा:

तीसरी कविता की अनुमति नहीं

डॉ अजीत

समकालीन कवियित्रियों में सुदर्शन शर्मा की कविताओं का स्वर भिन्न है. उनकी कविताएँ न बहुत अधिक ऐन्द्रिक है, और न उनकी कविताओं का कोई स्पष्ट पोलिटिकल एजेंडा ही नजर आता है. इनकी कविताओं से गुजरते समय ऐसा लगता है कि जैसे कवियित्री काल के किसी ख़ास प्रहर में उपग्रह की भांति अपनी कक्षा में सजगता से घूम रही हों. इनकी कविताओं में मनुष्य की जटिलताओं के साफ़-साफ अनुमान मिलतें है जिनके अनेक पाठ हो सकते हैं. इनकी कुछ कविताओं से स्त्री विमर्श की ध्वनि जरुर आती है मगर इन कविताओं का विमर्श अकादमिक विमर्श की परिभाषाओं से अलग किस्म का विमर्श है. सुदर्शन जी की कविताओं में स्त्री कोई एक निरीह इकाई नही है बल्कि वो स्त्री चेतना को प्रबुद्ध संवेदनाओं का केंद्र समझकर सृजन करती है.


डॉ अजीत


इस विकट कोलाहाल के समय में उनकी कविताएँ बहुत संयत होकर और सावधानी से पढ़ें जाने की चीज है क्योंकि उनकी वाक्य वक्रता में कोई नारा अंतर्निहित नही है वो वैयक्तिक सामर्थ्य को संगठित करने का प्रयास करती है. लम्बे से से मानव मन को पढ़ने के लिए कविता को एक अच्छा प्रभावी साधन माना गया है मगर मानव मन को पढ़ने के लिए जिस आवश्यक प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है प्राय: वह कविता के अंदर अनुपस्थित पाया जाता है. सुदर्शन शर्मा जी की कविताओं को पढ़कर वह प्रशिक्षण आसानी से प्राप्त हो जाता है इसलिए उनकी कविताओं की एक वृहद भूमिका निर्धारित हो जाती है.

हाल ही में बोधि प्रकाशन, जयपुर से इनका पहला काव्य संग्रह ‘तीसरी कविता की अनुमति नही’ प्रकाशित हुआ है. अपने रचना कर्म पर बात करने को लेकर उनके अपने एकान्तिक किस्म के संकोच है, इसलिए वो प्रचार-प्रसार की प्रक्रिया में खुद को लगभग अनुपस्थित पाती है. साहित्य के विचार और व्यक्तियों के स्थापित स्कूलों से इतर उनका अपना निजी इदारा है. जहां वे नितांत ही निजी सुख की दृष्टि से कविता की बड़ी महीन बुनाई करती है इसलिए उनकी कविता का आकार किसी अन्य से कोई साम्यता नही रखता है.

सुदर्शन शर्मा जी की कविताओं से गुजरने के बाद साफ़ तौर पर पाठक यह पाता है कि कविताओं का वितान लोक में रहकर भो लोकेत्तर बना हुआ है. देश-दुनिया की असंगतताओं से हैरान परेशान लोगो के लिए जैसे एक विकल्प या समाधान की शक्ल में कविता प्रकट होती है और आप कब खुद को उस दुनिया का नागरिक समझने लगते है आपको खुद भी पता नही चलता है.



समकालीन हिन्दी कविता में प्रेम एक लोकप्रिय विषय है निसंदेह बहुत अच्छी प्रेम कविताएँ इस समय में लिखी जा रही है. सुदर्शन शर्मा जी की प्रेम कविताएं वर्जित कामनाओं की दैहिक अभिव्यक्तियों का केंद्र नही बनती है उनमें एक अभौतिक तत्व हमेशा विद्यमान रहता है इसलिए उनकी कविताओं को पढ़कर अपनी रिक्तताएं नही बल्कि प्रेम के विस्तार की ख़ूबसूरती याद आने लगती है. इन प्रेम कविताओं में प्लूटोनिक प्रेम जरूर दिखायी देता है मगर हर हाल में किसी को नायक या खलनायक बनाए की जल्दबाजी कविता में नजर नही आती है. इसलिए इनकी प्रेम कविताएँ प्रेम के निजी पूर्वाग्रहों से लगभग मुक्त प्रेम-कविताएँ हैं.

सुदर्शन शर्मा जी के लेखन का सबसे उज्ज्वल पक्ष यह भी है वो विशुद्ध कवियित्री हैं. वो विधा चंचला प्रवृत्ति की शिकार नही है. कविता ही उनका साध्य और साधन दोनों है इसलिए उत्तरोत्तर उनकी कविताओं का विस्तार और निखार लगातार बनता दिखायी भी देता है.

निजी तौर पर कविता को अच्छी या खराब नही मानता हूँ कविता मजबूत या कमजोर जरुर हो सकती है इसलिए अभी तक सुदर्शन शर्मा जी की कविताएँ पढ़कर यह बात पूरे आत्म विश्वास से कही जा सकती है कि हिन्दी कविता में उनका भविष्य बेहद उज्ज्वल है बशर्तें वो खुद कविता को लेकर अनिच्छा की शिकार न हो जाएं क्योंकि उनकी कविताओं का मनोविज्ञान हमें यह भी बताता है कि वो कविताएँ खुद के लिए लिखती है कविता के माध्यम से लोकयश की कामना से वो लगभग मुक्त हैं.



भविष्य में उनकी अन्य कविताओं से हम रूबरू होते रहेंगे ऐसी मेरी निजी कामना है क्योंकि कवि/कवियित्री जब एक बार कविता की डोर पकड़ लेते है उसके बाद उनका निजी कुछ भी नही रह जाता है वो एक माध्यम भर रह जाते है उनका गान दरअसल लोक का गान होता है जो उन्हें हर हाल में लोक को सौंपना होता है.
कवियों के लिए कविता में यही कैवल्य का मार्ग है.
००



2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर और सटीक समीक्षा।मैं भी सुदर्शन शर्मा दी की कविताओं की बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत शुक्रिया सुमन।हार्दिक आभार बिजूका।अभिभूत हूं।

      हटाएं