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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

29 नवंबर, 2018

कभी-कभार तीन


एफ्रो-अमेरिकन इतिहास : गुलामी, विद्रोह और सशक्तिकरण का इतिहास  
  
विपिन चौधरी

गुलामी  दुनिया के लगभग सभी देशों के इतिहास का हिस्सा  रही  है. ग्रीक और रोमन सभ्यताओं में मौजूद मानव-तस्करी से लेकर गुलामी के समकालीन रूपों तक इसका  इतिहास आज भी अक्रांत करता है.  संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग चार-सौ वर्षो की गुलामी का असर इस कदर गहरा है कि आज भी नस्लीय असमानता और अन्याय के इतिहास से बोझ से अश्वेत खुद को अलग नहीं कर सके हैं.


विपिन चौधरी


अमेरिका में  1660 तक  गुलामी को  कानूनी रूप से  मान्यता मिल चुकी थी और उत्तरी अमेरिका में  गुलामी ने एक प्रथा के रूप में  अपनी जड़ें गहरे  तक  जमा ली  थी. संयुक्त राज्य अमेरिका में  1865 तक  गुलामी कानूनी रूप से स्वीकृत रही. दिलचस्प बात यह है  कि 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जब
तंबाकू  की खेती पर आधारित  अर्थव्यवस्था  पूरी तरह से  खतरे में पड़ने लगी, तब वर्जीनिया  के कुछ नेताओं ने गुलामी को समाप्त करने के बारे में भी आपस में चर्चा भी  की थी. लेकिन कपास  की खेती से सम्बंधित कुछ तकनीकी अविष्कारों ने  गुलामी-प्रथा को फिर  से  नया जीवन दिया. विश्व पटल पर अमेरिका देश की स्थापना करने में वहां की कृषि जिसमें तंबाकू, चावल, चीनी, कपास का मुख्य योगदान रहा. वर्ष 1850 में 15 गुलाम राज्यों में काम कर रहे 3.2 मिलियन गुलामों में से 1.8 मिलियन, कपास के उत्पादन में लगे हुए थे.

इस बीच गुलामों की भीतर विद्रोह पनपने लगा और सामाजिक स्तर पर भी गुलामी की समाप्ति को लेकर मुहीम तेज़ हो गयी जिसके परिणामस्वरूप गुलामी को राहत  देने के लिए  सरकार को कई  क़ानून बनाने  पड़े.

वर्ष  1793  में फेडरल फुगिटीव कानून  उन गुलामों के लिए लागू किया,  जो राज्य  की सीमाओं को पार करने के बाद  लौट आए  थे. 1808 कांग्रेस  ने  अफ्रीका से गुलामों  के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था. 1820 मिसौरी समझौता पास किया गया जिसके अनुसार  मिसौरी को एक  गुलाम राज्य और  माइनको दास-मुक्त राज्य घोषित किया गया और इस तरह संयुक्त राज्य अमेरिका सीनेट ने दक्षिण और
उत्तर के बीच सत्ता के संतुलन रखने का प्रयास किया .

गुलामी  का भयावह जीवन

 1850 के मैरीलैंड में गुलामों  का शरीर, उनका  समय, उनकी सांसें  सब कुछ गिरवी था. सप्ताह भर  दिन-रात  परिश्रम  करके  वे अपने मालिकों को अमीर बनाने में लगे रहते. उन्हें आज़ादी का अनुभव कभी नहीं लिया न ही उसकी कभी उम्मीद ही की. जमैका में जन्में,  इतिहासकार  और सांस्कृतिक समाजशास्त्री ऑरलैंडो पैटरसन, जिनका विशेष अध्ययन संयुक्त राज्य अमेरिका के नस्लीय  मुद्दों और विकास के समाजशास्त्र पर है, अपनी पुस्तक 'स्लेवरी एंड सोशल डेथ  'ए कम्पेरेटिव स्टडी विथ ए न्यू प्रीफेस’ में गुलामी को  ‘सामाजिक मृत्यु’की  संज्ञा  देते हुए कहते हैं कि सभी सभ्यताओं में  गुलामी की यही परिभाषा  होनी चाहिए. इस सामाजिक मृत्यु की शुरुआत  गुलाम को पकड़ने के साथ शुरू हो जाती है जिसमें किसी  मनुष्य के व्यक्तित्व और  उसकी  योग्यता  पर कब्ज़ा कर लिया जाता है.

सदियों तक अस्तित्व में रही गुलामी की भयावह विभीषिका ने ऐसी परिस्थितियों का निर्माण किया जिसके चलते अश्वेत गुलाम, विद्रोह की ओर अग्रसर हुए. शुरूआती तौर पर यह विद्रोह धीमा रहा मगर बाद में इसका व्यापक रूप से खुल कर सामने आने लगा. अश्वेत लोगों द्वारा गुलामी-विरोधी समूह बने और कुछ प्रबुद्ध लोगों ने भी हिम्मत दिखाते हुए विभिन्न सभाओं में गुलामी के प्रति अपनी आवाज़ बुलंद की.  1775  में फिलाडेल्फिया में क्वेकर्स*  द्वारा दुनिया की पहली एंटीस्लावेरी सोसाइटी  यानी  गुलामी विरोधी संस्था की स्थापना की गई.

युवा अमेरिकी इतिहासकार, स्टेफनी एम.एच. कैंप  गुलामों के प्रतिरोध के लिए कई आयामों पर गहराई से चर्चा करते हुए कहती हैं, ‘उन गुलाम स्त्रियों के जीवन की पड़ताल  जिनके शरीर और और घर राजनीति के क्षेत्र थे,  उनके जीवन की परिस्थितियां गुलामी को लेकर हमारी समझ में नई गहराई लाती है. अपनी पुस्तक ‘क्लोज़र टू फ्रीडम : ईंस्लावेड वीमेन एंड एव्रीडे रेजिस्टेंस’ में स्टेफनी एम.एच. कैंप गुलाम स्त्रियों द्वारा अपनाई गई उन सूक्षम मगर गहरी अभिव्यक्तियों का जिक्र करती हैं जिसे वे गुलाम स्त्रियाँ, स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए बतौर औज़ार इस्तेमाल करती हैं. उदाहरणस्वरुप ये निरक्षर गुलाम स्त्रियाँ, गुलामों के लिए बने केबिनों की दीवारों पर आजादी को लेकर कुछ प्रतीक-चिन्ह कित करती हैं . इन गुलाम स्त्रियाँ द्वारा अपनाई गई ये सब गतिविधियाँ दरअसल सूक्ष्म रूप से आज़ादी के लिए आंदोलन का जरिया बन  गई थी.

इन गुलाम स्त्रियों  द्वारा रोज़मर्रा के जीवन में अपनाये गए प्रतिरोधों के जरिए ही विपक्ष की एक ऐसी संस्कृति का निर्माण हुआ जिसने आगे चलकर अश्वेत समाज की मुक्ति में काफी  मदद की. अपने अंग्रेज़ मालिकों की चुंगल से  निकल भागने के अपने व्यक्तिगत प्रयासों के चलते ही विद्रोह की सामूहिक कार्रवाई में पुरुषों के प्रतिरोध से अधिक गुलाम स्त्रियों ने प्रतिरोध की चिंगारी जलाये रखी.

विद्रोह की इस सुगबुगाहट के कारण  सामाजिक और राजनीतिक हलकों में भी अफ़्रीकी-अमेरिकी गुलामी की समाप्ति को लेकर चर्चा होने लगी. अमेरिकी इतिहासकार,  इरा बर्लिन अपनी किताब ‘मेनी थाउसेंड गोन’ में लिखती हैं, “ अमेरिका के राजनैतिक और आर्थिक स्वतंत्रता की ओर अग्रसर होने के साथ ही गुलामी और नस्ल के अर्थ को लेकर फिर से बहस तेज़ होने लगी और उसे पुन: परिभाषित किया गया”.
एक समय में इस तरह की  चर्चा का माहौल इसलिए भी बन सका क्योंकि उस समय

*शांति-प्रचारक मंडली का सभासद का समाज

प्रबुद्ध आदर्शों के नज़दीक आने लगा था और इन आदर्शों में समानता और नसलवाद की खात्मे की बातें सबसे ऊपर थी. इस तरह अमेरिका में गुलामी ऐसा मुद्दा बन गया जिसमें  समाज में  विभाजन की स्थिति आ गयी और अप्रैल 12, 1861 से लेकर मई 1865 यानी चार साल, तीन हफ्ते और छः दिन चला  अमेरिकी गृहयुद्ध  इसका मुख्य कारण भी बन गया.

*स्प्रिट्युअल्स यानी मुक्ति के उपकरण

अमेरिका की धरती पर गुलाम मजदूर  हालाँकि अलग-अलग जगहों से लाए गए थे, इन सबके
रीति-रिवाज़, धार्मिक-मान्यताएं  और बोली अलग-अलग थीं लेकिन इन सबके पास जीवन जीने के एक ही अलहदा तरीका था जो यूरोपियन लोगों से कहीं अलग था. यह विविधता ही कहीं इन गुलामों को एकसाथ जोड़ती भी थी. गुलाम लोग अपनी विषम परिस्थितियों  के बीच  भी  अपनी
संस्कृति को अपने गले लगाकर  श्रमरत थे और  उनकी यह संस्कृति ही उन्हें प्राणवायु भी देती थी.” इन अश्वेत गुलामों ने अपनी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक इन संगीतमयी संस्कारों  और कहानियों को बखूबी सौंपा और ये गीत-संगीत, संचार के  सहज सुलभ  माध्यम होने की वजह से अश्वेत गुलामों को एक- दूसरे से जोड़ भी रहे थे. गीत-संगीत के जरिये ही अश्वेत गुलाम अपने  दोस्तों, रिश्तेदारों और
प्रेमियों की तलाश करते. अवसाद और पीड़ा से भरे दिनों में गीत-संगीत ही इनके जख्मों पर मलहम
लगाता. ये गीत आमतौर पर  आध्यात्मिक प्रवृति के होते थे जो  मूल रूप से मौखिक परंपरा  का
निर्वाहन करते थे, जो  गुलामी की कठिनाइयों का वर्णन करने के साथ-साथ उन्हें अपने धार्मिक
संस्कारों से भी जोड़े रखते थे”.1
जब अश्वेत गुलाम, आजादी के लिए  भूमिगत रेल मार्ग से गुजरते थे तब उनके होठों पर आध्यात्मिक गीतों के साथ वे गीत भी होते थे जो वे परिश्रम करते समय गाते थे. संयुक्त राज्यों में 19 वीं शताब्दी के मध्य में गुलामों के बच कर निकल भागने के लिए इनमें सांकेतिक शब्दावली भी थी, इन शब्दों में उनका उत्साह व्यक्त होता था, इस तरह कई मायनों में ये गीत अश्वेत गुलामों  के प्रतिरोध का संगीतमयी रूप भी बन गए थे क्योंकि  ये गुलाम  अपनी अफ्रीकी संस्कृति को  अपने साथ रखना चाहते थे और चाहते थे और जीवन की परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने के लिए इन गीतों का इस्तेमाल करते थे.  चूंकि ज्यादातर गुलाम राज्यों में  किसी भी गुलाम के पढ़ने-लिखने पर प्रतिबंध था, इसलिए ये गुलाम, गुप्त संदेशों का इस्तेमाल संवाद करने के लिए किया करते थे.

भूमिगत रेलमार्ग

1800  में अफ्रीकी अमेरिकी गुलाम लोहार, गेब्रियल प्रोसर, वर्जीनिया  की राजधानी रिचमंड  पर  अपने

दक्षिणी अमेरिका के अश्वेत ईसाई गुलामों द्वारा गाए जाने वाले धार्मिक गीत.

गुलाम साथियों के साथ  जुलूस  निकालने  का इरादा किया था, जब उनके इस प्रयास का राज खुला
तब  प्रोसर और  उनके साथियों को इस विद्रोह के लिए फांसी  दे  दी गयी और  वर्जीनिया में गुलामों के लिए क़ानून को सख्त कर दिया गया. भूमिगत रेलमार्ग  अमेरिका के इतिहास में अश्वेत गुलामों द्वारा पलायन  हेतु उत्तरी राज्यों  के  अश्वेत और श्वेत  के समूहों द्वारा  बनाया गया एक संगठित समूह था.  भूमिगत रेलमार्ग  के रूपक का भेद 1840  के आरंभ में  खुला जब उसके बारे में लिखा गया  और  फिर  रेलरोड शब्दावली को बाद में  भूमिगत के  साथ  सम्मिलित किया गया.

भागने वाले गुलाम को यात्री  कहा जाता था,  जहाँ वे शरण पाते थे उसे स्टेशन का नाम दिया जाता और वे लोग जो उन्हें निर्देश देते थे, उन्हें चालक कहा जाता था.  एक मुद्दत तक गुलाम अपनी दारुण परिस्थितियों से लड़ने के लिए संघर्षरत रहे, उन्हें अपनी मुक्ति के लिए बरसों संघर्ष करना पड़ा. गुलामी की बेड़ियों से मुक्ति पाने के लिए उन्हें कई खौफनाक तरीके अपनाने पड़े जिनमें से एक भूमिगत रेल मार्ग से निकल भागना भी एक था.  भूमिगत रेल  मार्ग से अँधेरे में भागना  आसान और सुरक्षित नहीं था, इसके लिए गुलामों को दस-बीस-मील या उससे भी अधिक पैदल चलना पड़ता था. उन्हें
एक जगह रुक कर दूसरे जगह पर पहुँचने के  निर्देश का इंतज़ार करना पड़ता. उनके मालिक उनके
निकल भागने की भनक लगते ही उनकी खोज शुरू कर देते. दिन  के  समय किसी तरह छुपते-छुपाते ये अश्वेत गुलाम खनिज़निकालने के बाद खाली हुई खदानों, गुप्त सुरंगों, ढके हुए माल ढोने वाले वाहनों, फर्श के नीचे बने हुए कमरों, शौचालयों और अलमारी जैसी जगह आसानी से चिन्हित न
की जाने वाली जगहों में  छुपे रहते।
अश्वेत गुलामी के इस इतिहास में हम देखते हैं कि एक स्त्री सिर्फ जन्म देने महिला थी और
माँ कहलाने का सुख उन्हें नसीब नहीं था.2
दक्षिण अमेरिका में जहाँ अश्वेत गुलामों की संख्या अधिक थी, इन भूमिगत या अंडरग्राउंड
रेल रोडपर यात्रा करने में  मदद करना  कानून के खिलाफ था और पकडे जाने पर उन्हें मृत्युदंड देने
का प्रावधान था.  अश्वेत गुलामों द्वारा अंग्रेज मालिकों की चुंगल से भूमिगत रेल से निकल भागने
का  यह सिलसिला  1810  से 1860  तक चला. इस जोखिम भरे रास्ते को अपनाने वाले गुलामों
ने अपने आत्मकथात्मक लेखन के जरिए अपने संघर्षों से संसार भर को वाकिफ करवाया.ऐसे ही एक अश्वेत गुलाम थे  हेनरी "बॉक्स" ब्राउन,  उन्होंने  किसी भी तरह से गुलामी से निकलने  का
संकल्प  लिया और1848 में अपनी पत्नी और बच्चों को  किसी दूसरे राज्य में भेजने के बाद
वे भी निकल भागे.  इसी  तरह  से 1862 को एक अश्वेत दास, रॉबर्ट स्मॉल अपने साथी गुलामों
और अपने परिवार के लोगो के साथ योजनाबद्ध तरीके से  बंदरगाह के माध्यम से फरार हो गए.
उस समय कई अश्वेत हस्तियों ने इन गुलामों की मदद की. ऐसी ही एक अश्वेत लेखिका और गुलाम प्रथा विरोधी हैरियट टूबमान और फ्रांसिस वाटकिंस भी थी जिन्होंने कई अश्वेत  गुलामों
को भूमिगत रेल मार्ग से भागने में  मदद की और बाद में उनके परिवार की देखभाल भी की.
इस कार्य को अंजाम देने के कारण हैरियट टूबमान अमेरिका की सरकार की वांछित सूची में थीं.
उनकी खोज के लिए  40,000  डॉलर के इनाम की घोषणा की गयी थी. इसी तरह कई श्वेत लोगों ने इन अश्वेत गुलामों की मदद की और उनके रहने के लिए घर,  भोजन और कपड़े भी मुहैया करवाए.


गुलामों द्वारा लिखित इतिहास

अमेरिका में  अश्वेत  लोगों द्वारा  लिखे गए स्लेव  नैरेटिव  गुलामी की भयावह दास्तान  के रेशे-रेशे  को
खोलते हैं. कई  अश्वेत गुलामों  की  आत्मकथाओं ने विश्वव्यापी प्रसिद्ध  पायी और इन आत्मकथाओं के जरिए ही आत्मकथा  विधा ने  काफी प्रसिद्धी पायी. ऐसे ही एक अश्वेत गुलाम थे फ्रेडरिक डगलस, जिन्होंने अपनी आत्मकथा ‘नेरेटिव ऑफ़ ए  लाइफ ऑफ़  फ्रेडरिक डगलस में अपने जीवन से जुड़े
कई सनसनी खेज खुलासे किये. इस आत्मकथा में एक जगह वे लिखते हैं,
 “मेरीलैंड के जिस इलाके से मैं भागकर आया हूँ वहां बच्चे से उसकी माँ छीन लीं जाती थी और उसे
किराये पर किसी दूर खेत में काम करने के लिए भेज दिया जाता था. जहाँ तक मुझे याद है मेरी माँ एक
खेत मजदूर थीं. मुझे याद नहीं पड़ता कि मैंने अपनी माँ को दिन की रोशनी में  कभी देखा हो”.
एक और अश्वेत गुलाम, हेरिएट जैकोबस  अपनी आत्मकथा,  'इन्सिडेंट्स इन द लाइफ ऑफ़ ए
स्लेव गर्ल' में एक अश्वेत गुलाम स्त्री के जीवन के दस्तावेज को प्रस्तुत करती हैं जिसने अनगिनत
प्रयासों के बाद अपने और अपने बच्चों के लिए आज़ादी हांसिल की. उनकी आत्मकथा में स्त्री के
संघर्ष और उसके प्रति किये जाने वाले यौन दुर्व्यवहार  की घटनाओं  के अलावा यह भी बताया
 कि उन्हें खेती के साथ अपने बच्चों की देखभाल करनी पड़ती हैं और इस बात को लेकर वे हमेशा
चिंतित रहती हैं कि कभी भी उनके बच्चों को बेचा जा सकता है। 3
आज अमेरिका के इतिहास में जिस तरह गुलामी नत्थी है वहीँ अश्वेत लोगों द्वारा किए संघर्ष की व्यथा-गाथा भी प्रमाणिक तौर पर मौजूद है जो दुनिया भर को यही बताती है कि किसी भी संघर्षशील समुदाय को अधिक समय तक गुलाम नहीं बनाया जा सकता क्योंकि वे अपनी ताकत और लगन के जरिये जहाँ अपने मालिकों के उन्नत अर्थव्यवस्था मुहैया करवा सकते हैं वहीँ अपने पांवों की बेड़ियों को भी पिंघला सकते हैं.

 संदर्भ:

1.   जॉनसन, जेम्स वेलडन, जॉनसन. जे.रोसमोंड  (2009). द बुक्स ऑफ़ अमेरिकन नीग्रो
  स्पिरीटूयल्स,  पृष्ठ . 13, 17
 2. नैरेटिव ऑफ़ द लाइफ ऑफ़ फ्रेडेरिक डगलस, एन अमेरिकन स्लेव ISBN-10: 1728741904
3. वेनेट्रिया के. पट्टों,  वीमेन इन चेन्स : द लिगेसी ऑफ़ स्लेवरी इन ब्लैक वीमेन’स फिक्शन,    अल्बेनी, न्यूयॉर्क : सूनी प्रेस, 2000, प्रष्ठ . 53-55
०००

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कभी-कभार दो

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