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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

30 नवंबर, 2011

यूरोप के एक विफल क्रांतिकारी से : वाल्ट व्हिटमन


अमेरिका में मुक्त छंद के पिता माने जाने वाले कवि वाल्ट व्हिटमन ( मई 31, 1819 – मार्च 26, 1892) कवि होने के साथ एक निबंधकार और पत्रकार भी थे. अपने समय के सर्वाधिक प्रभावशाली कवियों में से एक व्हिटमन अपनी रचनाओं के कारण विवादों में भी रहे. 'लीव्स ऑफ़ ग्रास' उनका सर्वाधिक चर्चित और विवादित कविता संग्रह है . प्रस्तुत है, इसी कविता संग्रह से उनकी एक कविता, ' यूरोप के एक विफल क्रांतिकारी से ' का हिंदी अनुवाद :


यूरोप के एक विफल क्रांतिकारी से

(वाल्ट व्हिटमन)


फिर भी साहस रखो, मेरे बन्धु या मेरी बहन !
लगे रहो – स्वाधीनता की सेवा करनी है, जो भी घटित हो;
कुछ भी नहीं है वह जो एक या दो विफलताओं से या कितनी ही विफलताओं से,
या जन की उदासीनता या कृतघ्नता से या किसी विश्वासघात से,
या शक्ति के लम्बे तेज़ दाँतों के प्रदर्शन से, सैनिकों से, तोपों से, दण्ड के विधानों से दब जाए।

हमारी जो आस्था है, वह सारे महाद्वीपों में सदा-सदा के लिए अप्रकट प्रतीक्षा करती है,
किसी को आमंत्रित नहीं करती, कोई वचन नहीं देती, शान्ति और प्रकाश में स्थित रहती है,
आश्वस्त और स्थिर-चित्त कोई निराशा नहीं जानती है,
धैर्य से प्रतीक्षा करती है, अपने समय की प्रतीक्षा करती है।
( ये केवल निष्ठा के ही गान नहीं, किन्तु विद्रोह के भी गान,
क्योंकि मैं सारी दुनिया में प्रत्येक निर्भीक विद्रोही का प्रतिश्रुत कवि हूँ,
और जो मेरे साथ चलता है, वह शान्ति और लीक अपने पीछे छोड़ देता है,
और किसी क्षण अपने जीवन को ख़ोने का ख़तरा मोल लेता है।

अनगिनत आवाहनों के बीच,
और बार-बार आगे बढ़ने और पीछे हटने के बीच
घमासान युद्ध चलता रहता है,
निष्ठाहीन विजयी होता है,
या मान लेता है कि वह विजयी है,
बंदीगृह, फाँसी का तख़्ता, फंदा, हथकड़ियाँ, लोहे के हार, सीने की गोलियाँ अपना काम करती है,
नामी और गुमनाम शूर दूसरे लोकों को चले जाते हैं,
जो महान वक्ता और लेखक थे, देश से निश्कासित होते हैं, दूर के देशों में वे रूग्ण पड़े होते हैं,
लक्ष्य सो जाता है, सबलतम कंठ को अपने ही रक्त से रुद्ध कर दिया जाता,
युवाजन मिलने पर अपनी पलकें भूमि पर नीचे झुका देते हैं,
किन्तु इस सबके बावजूद स्वाधीनता अपने स्थान से स्खलित नहीं होती
और निष्ठाहीन पूर्ण प्रभुता स्थापित नहीं कर पाता।

स्वाधीनता जब अपने स्थान से स्खलित होती है,
जाने वालों में वह पहली या दूसरी या तीसरी नहीं होती,
वह अन्य सबके चले जाने की प्रतीक्षा करती है, अंतिम वह होती है।

शूरों और शहीदों की यादें जब नहीं रह जाएँगी,
और जब सारा जीवन और पुरुष और स्त्रियों की सारी आत्माएँ
पृथ्वी के किसी भाग से विसर्जित हो जाएँगी,
तभी केवल स्वाधीनता या स्वाधीनता का विचार पृथ्वी के उस भाग से विसर्जित हो पायेगा।
इसलिए साहस रखो योरप के विद्रोही, विद्रोहिणी !
क्योंकि जब तक सबकुछ का अंत नहीं हो जाता, तुम्हारा भी अंत नहीं संभव है।

मुझे मालूम नहीं तुम क्या चाहते हो
( स्वयं मुझे, स्वयं नहीं मालूम मैं क्या चाहता हूँ या किसी भी अन्य चीज़ का लक्ष्य क्या है ? )
किन्तु मैं विफल होकर भी सावधानी से उसकी खोज करता जाऊँगा,
पराजय, दैन्य, क्रान्ति और क़ैद में भी करूँगा-क्योंकि वे भी महान हैं।

क्या हमने विजय को महान समझा..?
बेशक, वह है- किन्तु अब मुझे प्रतीत होता है कि जब अनिवार्य हो जाए,
पराजय भी महान होती है।
और यह कि मृत्यु और कातरता महान होती है।

(अनुवादः चन्द्रबली सिंह)

साभारः वाल्ट व्हिटमन की कविता संचयन ‘घास की पत्तियाँ’ से