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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

09 दिसंबर, 2024

लुईस ग्लुक की कविताऍं

 

लुईस ग्लुक एक अमेरिकी कवियित्री और निबंधकार थीं. उन्हें


साल 2020 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उनका जन्म 22 अप्रैल, 1943 को न्यूयॉर्क शहर में हुआ था. उनका निधन 13 अक्टूबर, 2023 को हो हुआ।



कविताऍं

लुईस ग्लुक

अंग्रेज़ी से अनुवाद: रंजना मिश्र

एक

Twilight 


All day he works at his cousin’s mill, 

so when he gets home at night, he always sits at this one window, 

sees one time of day, twilight. 

There should be more time like this, to sit and dream. 

It’s as his cousin says: 

Living—living takes you away from sitting. 

In the window, not the world but a squared-off landscape 

representing the world. The seasons change, 

each visible only a few hours a day. 

Green things followed by golden things followed by whiteness— 

abstractions from which come intense pleasures, 

like the figs on the table. 

At dusk, the sun goes down in a haze of red fire between two poplars. 

It goes down late in summer—sometimes it’s hard to stay awake. 

Then everything falls away. 

The world for a little longer 

is something to see, then only something to hear, 

crickets, cicadas. 

Or to smell sometimes, aroma of lemon trees, of orange trees. 

Then sleep takes this away also. 

But it’s easy to give things up like this, experimentally, 

for a matter of hours. 

I open my fingers— 

I let everything go. 

Visual world, language, 

rustling of leaves in the night, 

smell of high grass, of woodsmoke. 

I let it go, then I light the candle.

 ****












गोधुलि 

(अ विलेज लाइफ)


सारा दिन वह अपने रिश्तेदार की चक्की में काम करता है

इसलिए रात को जब वह घर आता है

हमेशा इसी एक जंगले पर बैठ

दिन की उस बेला - गोधुलि को निहारता है 

बैठकर सपने देखने के लिए और फुर्सत होनी चाहिए 

पर जैसा उसका रिश्तेदार कहता है – जीना, 

जीना तुम्हें फुर्सत से दूर ले जाता है 

खिड़की से दुनिया नहीं, दुनिया की शक्ल में 

ज़मीन का चौकौर टुकड़ा दिखाई देता है  

ऋतुएँ दिन के कुछ घंटों में दिखती हुई 

बदलती हैं 

हरियाली स्वर्णिम और स्वर्णिम सफ़ेदी का पीछा करती हुई 

अमूर्तताओं से उपजा गहन आनंद

जैसे मेज पर रखा अंजीर  

सूर्य की धुंध भरी लालिमा सूर्यास्त में 

धीरे धीरे दो पोपलर के पेड़ों के बीच

नीचे उतरती हुई  

गर्मियों में वह देर से नीचे जाती है – 

कभी कभी जगे रहना मुश्किल होता है 

फिर सबकुछ धीरे धीरे क्षीण होता जाता है 

दुनिया कुछ देर बाद भी दृश्यों में बची रहती है

कुछ देर तक सुन पड़ते हैं 

टिड्डे और झींगुर.

वह कभी गंधों में बची रहती है - नीम्बू और संतरे के वृक्षों की 

फिर नींद यह भी ले जाती है 

चीज़ों को इस तरह छोड़ना, प्रयोग करते हुए  

कुछ घंटों में, अच्छा है 

मैं अपनी मुठ्ठियाँ खोल देती हूँ 

सबकुछ ओझल होने देती हूँ 

नज़र आने वाली दुनिया, भाषा 

रात को पेड़ के पत्तों की सरसराहट 

ऊॅंची घास, लकड़ी के धुॅंए की महक 

मैं सब कुछ जाने देती हूँ और एक दीप जलाती हूँ     

***

दो

Pastoral 


The sun rises over the mountain. 

Sometimes there’s mist 

but the sun’s behind it always 

and the mist isn’t equal to it. 

The sun burns its way through, 

like the mind defeating stupidity. 

When the mist clears, you see the meadow. 

No one really understands 

the savagery of this place, 

the way it kills people for no reason, 

just to keep in practice. 

So people flee—and for a while, away from here, 

they’re exuberant, surrounded by so many choices— 

But no signal from earth 

will ever reach the sun. Thrash 

against that fact, you are lost. 

When they come back, they’re worse. 

They think they failed in the city, 

not that the city doesn’t make good its promises. 

They blame their upbringing: youth ended and they’re back, 

silent, like their fathers. 

Sundays, in summer, they lean against the wall of the clinic, 

smoking cigarettes. When they remember, 

they pick flowers for their girlfriends— 

It makes the girls happy. 

They think it’s pretty here, but they miss the city, the afternoons 

filled with shopping and talking, what you do 

when you have no money… 

To my mind, you’re better off if you stay; 

that way, dreams don’t damage you. 

At dusk, you sit by the window. Wherever you live, 

you can see the fields, the river, realities 

on which you cannot impose yourself— 

To me, it’s safe. The sun rises; the mist 

dissipates to reveal 

the immense mountain. You can see the peak, 

how white it is, even in summer. And the sky’s so blue, 

punctuated with small pines 

like spears— 

When you got tired of walking 

you lay down in the grass. 

When you got up again, you could see for a moment where you’d been, 

the grass was slick there, flattened out 

into the shape of a body. When you looked back later, 

it was as though you’d never been there at all. 

Midafternoon, midsummer. The fields go on forever, 

peaceful, beautiful. 

Like butterflies with their black markings, 

the poppies open. 

***


चरवाहे 


सूर्य पहाड़ों के ऊपर से उगता है 

कभी कभी वहाॅं धुंध होती है

पर उसके पीछे सूर्य हमेशा होता है 

और धुंध उसकी बराबरी नहीं कर सकती 

सूर्य प्रकाशित करता हुआ अपने रास्ते आता है  

मूर्खता को पराजित करती बुद्धि की तरह  

जब धुंध छंटती है तुम चारागाह देख सकते हो  

इस जगह की क्रूरता कोई नहीं समझ पाता

सिर्फ़ अभ्यास के लिए 

जिस तरह लोग को यह बिना कारण नष्ट करता है 

इसलिए लोग भाग जाते हैं, यहाँ से दूर, कुछ समय के लिए 

प्रफुल्लित, चुनावों से घिरे 

पर धरती का कोई सन्देश सूर्य तक नहीं पहुँचता 

वास्तविकता के बरअक्स, पिटे हुए, भ्रमित 

जब वे वापस आते हैं, और पिटे हुए  

वे समझते हैं, शहरों में वे असफल रहे 

यह नहीं कि शहर ने अपना वादा पूरा नहीं किया 

अपने पालन पोषण को दोष देते युवावस्था बिताकर वे लौटते हैं 

मौन, अपने पिताओं की तरह 

ग्रीष्म के रविवारों को दवाखाने की दीवार से टेक लगाए

सिगरेट पीते याद करते हैं – प्रेमिकाओं के लिए फूल तोडना 

यह लड़कियों को ख़ुश करता था  

वे जानते हैं इसकी सुन्दरता 

पर वे शहरों को, बातचीत और ख़रीदारी से भरी दुपहरियों को याद करते हैं 

आप क्या करते हैं जब पैसे न हों ...

मेरी मानें तो ठहर जाना बेहतर है 

इस तरह सपने आपको नष्ट नहीं करते ... 


साँझ ढले, आप जंगले के करीब बैठते हो.  जहाँ भी रहो 

खेत, नदियों, वास्तविकताओं को देख सकते हो, 

जिनपर हावी नहीं हुआ जा सकता  

मेरे लिए – यह सुरक्षित है 

सूर्य उगता है, धुंध विशाल पर्वतों के लिए छंटती है 

गर्मियों में भी, पहाड़ों की चोटियाँ कितनी धवल  

आकाश कितना नीला, चीड़ की सुइयों से छिदा हुआ 

जब तुम चलते चलते थक जाते हो घास पर लेट जाते हो 

वापस उठते ही, एक क्षण के लिए देख सकते हो तुम कहाँ थे 

घास वहाॅं चिकनी थी, शरीर के आकार की रौंदी हुई.

जब तुम दोबारा देखते हो यह फिर से सीधी है 

जैसे तुम  वहाँ कभी थे ही नहीं.

बीच दुपहरी, बीच गर्मियों में 

खेत हमेशा होते हैं 

सुन्दर, शांत 

जैसे कि नन्ही तितलियाँ अपने पॅंखों में काली चित्तियों के साथ 

पोस्त के फूल खुले हुए   ..

***

तीन 


Before The Storm 


Rain tomorrow, but tonight the sky is clear, the stars shine. 

Still, the rain’s coming, 

maybe enough to drown the seeds. 

There’s a wind from the sea pushing the clouds; 

before you see them, you feel the wind. 

Better look at the fields now, 

see how they look before they’re flooded. 

A full moon. Yesterday, a sheep escaped into the woods, 

and not just any sheep—the ram, the whole future. 

If we see him again, we’ll see his bones. 

The grass shudders a little; maybe the wind passed through it. 

And the new leaves of the olives shudder in the same way. 

Mice in the fields. Where the fox hunts, 

tomorrow there’ll be blood in the grass. 

But the storm—the storm will wash it away. 

In one window, there’s a boy sitting. 

He’s been sent to bed—too early, 

in his opinion. So he sits at the window— 

Everything is settled now. 

Where you are now is where you’ll sleep, where you’ll wake up in the morning. 

The mountain stands like a beacon, to remind the night that the earth exists, 

that it mustn’t be forgotten. 

Above the sea, the clouds form as the wind rises, 

dispersing them, giving them a sense of purpose. 

Tomorrow the dawn won’t come. 

The sky won’t go back to being the sky of day; it will go on as night, 

except the stars will fade and vanish as the storm arrives, 

lasting perhaps ten hours altogether. 

But the world as it was cannot return. 

One by one, the lights of the village houses dim 

and the mountain shines in the darkness with reflected light. 

No sound. Only cats scuffling in the doorways. 

They smell the wind: time to make more cats. 

Later, they prowl the streets, but the smell of the wind stalks them. 

It’s the same in the fields, confused by the smell of blood, 

though for now only the wind rises; stars turn the field silver. 

This far from the sea and still we know these signs. 

The night is an open book. 

But the world beyond the night remains a mystery. 13 

०००


तूफ़ान से पहले 


कल बारिश होगी, पर आज आकाश साफ़ है, तारे चमकते हुए 

हालाॅंकि बारिश होने वाली है

बीजों को सराबोर करने के लिए शायद काफी 

समुद्र की हवा बादलों को आकार देती हुई 

देखने से पहले उन्हें महसूस किया जा सकता है 

खेतों को अभी देखना बेहतर है 

जलाच्छादित होने से पहले, वे देखने योग्य हैं

 

कल पूरे चाँद की रात थी 

एक भेड जंगलों में गायब  

एक भेड़ – नर भेड़, पूरा भविष्य 

दुबारा दिखने पर सिर्फ़ उसकी हड्डियाॅं ही शेष हैं 


घास आहिस्ते से कंपकंपाती हुई  

हवा शायद उनके बीच से गुज़री  

जैतून के नए पत्ते भी उसी तरह कंपकंपाते हैं 

खेतों में चूहे, जहाँ लोमड़ियाँ आखेट पर हैं

कल घास पर रक्त होगा 

पर बारिश – बारिश उसे धो देगी 


किसी जंगले पर बैठा कोई लड़का 

जिसे सोने को भेज दिया गया – बहुत जल्दी 

जंगले के क़रीब बैठा है 

अब सब कुछ तय है 

आप अपने सोने की जगह पर हैं

सुबह आप जहाँ जागेंगे

 

प्रकाश स्तंभों की तरह खड़े पर्वत 

रात को धरती की उपस्थिति की याद दिलाते 

आगाह करते कि इसे भूला नहीं जा सकता 

समंदर की हवा ऊपर उठती हुई बादलों को आकार देती 

उन्हें बिखराती एक उद्देश्य देती हुई 


कल उजाला नहीं होगा 

जब तूफ़ान आएगा, शायद दसेक घंटों के लिए


आकाश दिन का नहीं, रात का नज़र आएगा 

सिर्फ़ तारे मद्धिम हो छिप जाऍंगे 

दुनिया फिर पहले सी नहीं होगी 


गाँव के घरों की बत्तियाँ एक एक कर मद्धिम होती हुईं 

और पहाड़ अंधेरे में प्रतिबिंबित 

कोई खटका नहीं, गलियारे में सिर्फ़ बिल्लियाँ 

धींगा मुश्ती करतीं   

यह और बिल्लियों के जन्म का समय है 

बाद में, वे सड़कों पर हवाओं को सूंघती हुई 

शिकार तलाशेंगी 

ख़ून की गंध से व्याकुल वे खेतों में भी ऐसा ही करेंगी 

हालाॅंकि अभी सिर्फ़ हवा बह रही  

और तारे खेतों को रुपहली रंगत दे रहे हैं 


समन्दर से इतनी दूर, फिर भी हम इशारे पहचानते हैं 

रात एक खुली किताब है 

लेकिन रात के परे धरती, एक रहस्य है

*** 











चार 

Sunset 


At the same time as the sun’s setting, 

a farm worker’s burning dead leaves. 

It’s nothing, this fire. 

It’s a small thing, controlled, 

like a family run by a dictator. 

Still, when it blazes up, the farm worker disappears; 

from the road, he’s invisible. 

Compared to the sun, all the fires here 

are short-lived, amateurish— 

they end when the leaves are gone. 

Then the farm worker reappears, raking the ashes. 

But the death is real. 

As though the sun’s done what it came to do, 

made the field grow, then 

inspired the burning of earth. 

So it can set now.

०००


सूर्यास्त 


ठीक सूर्यास्त के समय, 

एक खेत मजदूर सूखे पत्ते जलाता है

यह कुछ नहीं है, यह आग 

एक तुच्छ चीज़ है, नियंत्रित 

जैसे एक तानाशाह द्वारा नियंत्रित परिवार 

फिर भी जब यह ऊॅंची उठती है 

खेत मजदूर नज़र नहीं आता 

सड़क से, वह अदृश्य है 

सूर्य की तुलना में हर आग 

यहाँ अल्पजीवी है, शौकिया   

पत्तो के जलते ही वह ख़त्म हो जाती है 

फिर खेत मजदूर दिखाई देता है 

राख बटोरता हुआ 


पर मृत्यु वास्तविक है 

मानो सूर्य ने वह कर दिया जिसके लिए वह आया था 

फसल को पकाने फिर धरती को जलाने के लिए 

और अब, जब उसने यह कर दिया, वह अस्त हो सकता है 

०००

पाॅंच 


Walking At Night 


Now that she is old, 

the young men don’t approach her 

so the nights are free, 

the streets at dusk that were so dangerous 

have become as safe as the meadow. 

By midnight, the town’s quiet. 

Moonlight reflects off the stone walls; 

on the pavement, you can hear the nervous sounds 

of the men rushing home to their wives and mothers; this late, 

the doors are locked, the windows darkened. 

When they pass, they don’t notice her. 

She’s like a dry blade of grass in a field of grasses. 

So her eyes that used never to leave the ground 

are free now to go where they like. 

When she’s tired of the streets, in good weather she walks 

in the fields where the town ends. 

Sometimes, in summer, she goes as far as the river. 

The young people used to gather not far from here 

but now the river’s grown shallow from lack of rain, so 

the bank’s deserted— 

There were picnics then. 

The boys and girls eventually paired off; 

after a while, they made their way into the woods 

where it’s always twilight— 

The woods would be empty now— 

the naked bodies have found other places to hide. 

In the river, there’s just enough water for the night sky 

to make patterns against the gray stones. The moon’s bright, 

one stone among many others. And the wind rises; 


it blows the small trees that grow at the river’s edge. 

When you look at a body you see a history. 

Once that body isn’t seen anymore, 

the story it tried to tell gets lost— 

On nights like this, she’ll walk as far as the bridge 

before she turns back. 

Everything still smells of summer. 

And her body begins to seem again the body she had as a young woman, 

glistening under the light summer clothing. 

०००

 

रात की सैर 


अब जबकि वह उम्रदराज़ है

और नौजवान उसका पीछा नहीं करते, रातें खाली हैं 

सड़कें जो शामों को ख़तरनाक हुआ करती थीं

अब चारागाहों की तरह सुरक्षित हैं  

आधी रात तक क़स्बा शांत हो जाता है 

चॉंदनी पत्थर की दीवार पर और उसके परे प्रतिबिंबित है 

फुटपाथ पर घरों में अपनी पत्नियों और माँओं की ओर लौटते नौजवानों की घबराई आवाज़ें सुन पड़ती हैं

इतनी रात को दरवाजें बंद हैं, खिड़कियाँ अँधेरी 


क़रीब से गुज़रते वे उस पर ध्यान नहीं देते 

हरे घास के मैदान में वह एक सूखी घास के तिनके समान है 

उसकी आँखें जो कभी ज़मीन से ऊपर न उठती थीं 

अब कहीं भी विचरने को स्वतंत्र हैं  


जब वह सड़कों से थक जाती है

अच्छे मौसम में खेतों की ओर क़स्बे की सीमा तक चली जाती है 

गर्मियों में कभी कभी नदी तक भी 

युवा इस जगह से थोड़ी ही दूर एकत्र हुआ करते थे 

बारिश की कमी से नदी अब छिछली है और किनारे उजाड़ 

उन दिनों वहॉं वनभोज हुआ करते थे  

लड़के और लडकियों के जोड़े बनते 

आख़िर में वे जंगलों की ओर चले जाते

जहाँ हमेशा धुंधलका बना रहता था  

 

जंगल अब निर्जन होंगे 

अनावृत शरीरों ने छिपने का कोई और ठिकाना ढूॅंढ लिया    

नदी में रात के आकाश के बरक्स 

धूसर पत्थरों की आकृतियाँ बनाने भर ही पानी है. उज्जवल चॅंद्रमा  

बहुत सारे पत्थरों के बीच एक पत्थर है 

हवा के तेज़ झोंके  

नदी किनारे के छोटे पेड़ों को झकझोरते हैं 

जब तुम एक शरीर देखते हो एक इतिहास नज़र आता है 

जब वह शरीर अदृश्य होता है वह कथा भी खो जाती है जो वह कहना चाहता है 

  

ऐसी रातों में लौटने से पहले वह पुल तक चली जाती है 

हर कुछ अब भी ग्रीष्म की महक से आच्छादित है 

और उसका शरीर फिर से युवा स्त्री के शरीर सा महसूस कर रहा है

ग्रीष्म के हलके वस्त्रों के नीचे दमकता हुआ  

***












छ:

A Fantasy


I'll tell you something: every day

people are dying. And that's just the beginning.

Every day, in funeral homes, new widows are born,

new orphans. They sit with their hands folded,

trying to decide about this new life.

Then they're in the cemetery, some of them

for the first time. They're frightened of crying,

sometimes of not crying. Someone leans over,

tells them what to do next, which might mean

saying a few words, sometimes

throwing dirt in the open grave.

And after that, everyone goes back to the house,

which is suddenly full of visitors.

The widow sits on the couch, very stately,

so people line up to approach her,

sometimes take her hand, sometimes embrace her.

She finds something to say to everbody,

thanks them, thanks them for coming.

In her heart, she wants them to go away.

She wants to be back in the cemetery,

back in the sickroom, the hospital. She knows

it isn't possible. But it's her only hope,

the wish to move backward. And just a little,

not so far as the marriage, the first kiss.

०००


फंतासी 


मैं कहूं , हर रोज़ लोग मरते हैं 

और यह सिर्फ़ शुरुआत है 

शव गृहों  में हर दिन नई विधवाऍं जन्म लेती हैं 

नए अनाथ अपने हाथ बांधे बैठते हैं 

अपने नए जीवन पर विचार करते 

फिर वे कब्रगाहों में हैं, कुछ , पहली बार 

वे रोने से डरते हैं, कई बार न रोने से 

कोई उनकी और झुककर कहता है 

आगे क्या करना है, जिसका मतलब है कुछ शब्द कहना 

या खुली कब्र पर मिटटी डालना 

इसके बाद वे घर की ओर लौटते हैं 

जो कि अचानक आगंतुकों से भर गया है 

विधवा सोफे पर बैठती है, सीधी, संयत 

और वे कतारबद्ध उससे मिलते हैं 

हाथ थामते, गले लगाते 

उन सबके पास कहने को कुछ शब्द हैं 

वह उन्हें धन्यवाद देती है, आभार व्यक्त करती है आने का 

मन ही मन वह चाहती है वे लौट जाएँ  

वह वापस कब्रगाह में जाना चाहती है 

बीमार के कमरे, अस्पताल में 

वह जानती है यह संभव नहीं 

पर यह उसकी आखिरी उम्मीद है 

पीछे लौटना 

बस, थोडा सा ही 

विवाह तक नहीं, न कि प्रथम चुम्बन तक .

***

सभी चित्र: रमेश आनंद, देवास


अनुवादक का परिचय 

जमशेदपुर, झारखंड में जन्मी रंजना मिश्र बेहतरीन अनुवादक

और अपने समय, समाज, संस्कृति के प्रति प्रतिबद्ध कवियत्री हैं। उनका कविता संग्रह ' पत्थर समय की सीढ़ियॉं ' चर्चित व संग्रहणीय है। उन्होंने वाणिज्य और शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त की है। वे लम्बे अर्से तक आकाशवाणी, पुणे में कार्यरत रही है। आजकल प्रसार भारती, मुंबई में कार्यरत हैं।


05 दिसंबर, 2024

नरेश चन्द्रकर की कविताऍं


बहुत पसंद घर


जहाँ भी होता हूँ 

पहुँच जाना चाहता हूँ रास्‍ते पूछता हूँ 

वाहन बदलता हूँ 

या पैदल ही चलूँ टापते टापते 

तब भी 

उधर रूख करता हूँ जिधर है घर 




चित्र मुकेश बिजौले 








मैंने कई बार सुपर फास्‍ट ट्रेनें लीं 

मेट्रो में सफर कि‍या 

जहाजें बदलीं ट्रामें लीं 

मोटरबोट रोप-वे से चला हवाई यात्राएं कीं


हर हाल में 

हर वक्‍त यही सोचा  

पहुँचूं सही सलामत आधा अधूरा

भीग कर पसीने में नहाकर तरबतर

लू में , ठंड में

अपने घर में 


मुझे याद नहीं 

उम्र क्‍या रही होगी पहली बार जब हूक उठी थी 

कि ‍जल्‍दि ‍पहुँचूं घर


यह नहीं है कि‍

पाब्‍लो नेरूदा की पुस्‍तक रेसि‍डेन्‍स ऑन अर्थ पढ़कर 

या 

बाबा नागार्जुन की कवि‍ता 

अकाल और उसके बाद सुनकर हूक उठी हो घर की 


वैसे ही पुराने शब्दों में कहूँ 

पीढ़ि‍यों ‍जन्‍मजन्‍मांतरों से जरामरण के पार से 

कामना रही है 

घर की 


भले ही भोजन न बना हों

भले ही खुद ही सांकल खोलनी पड़ी हों 

भले ही प्रतीक्षा में न रहा हों कोई 

भले ही पूर्णिमा की  रात हो 

शरद का खुला आकाश 

ग्रीष्‍म की भरी दुपहरी हों 


भले ही चीजें न खरीदी हों 

पर हर हाल में नंगे पॉंव 

चलकर या दौड़कर राह ली  घर की  


कभी राह चलते टोका भी कि‍सी ने :

क्‍या जल्‍दि ‍है इतनी  

पहुँचने घर 

आखि‍र कहाँ भागा जा रहा है  घर  


मैंने परवाह नहीं की 

ऑंधी की 

तूफान की भूकंप की 


भूत की 

न पलीत की 


अर्जुन की ऑंख में समाई चि‍ड़ि‍या की तरह 

समाई रही मेरी पुतलि‍यों में 

घर की राह 


यह वह कृत्‍य है

घर पहुँचने का 

जि‍से बार बार कि‍या मैंने 


यही वह राह है जि‍स पर 

सहस्र शताब्‍दि‍यों से 

चलता रहा मैं 


यह अपने बारे में कह रहा हूँ  


आप संभवत: 

कहीं और रह कर ज्‍यादा दि‍नों तक 

रह सकते हैं  

ज़ि‍न्‍दा ‍


आप संभवत: कहीं और रह कर 

पूरी  कर सकते हैं 

अधूरी नींदें 


आप संभवत: बेपरवाह रह सकते हैं प्रतीक्षा में बि‍छी 

ऑंखों से

आप संभवत: 

नहीं सुनना चाहते हों संगीत

आप को संभवत: 

नहीं लि‍खनी हों कवि‍ताएं 


आपने संभवत: 

न कोई चि‍ट्ठी लि‍खी 

या पढ़ी है


आप संभवत: 

ऊल-जलूल चीजों से भरे हुए हैं  

उचाट हो चुका है मन 

या 

राख हो चुका है  


मैं अभी भी 

चि‍ड़ि‍यों 

पशुओं 

जानवरों 

आदि‍मानवों की  तरह 

ढूंढता खोजता फि‍रता हूँ 

टोलों टकारों में 

सि‍र छि‍‍पाने की जगह    


फिर पुराने शब्दों मे कहूँ :

अभी भी असंख्‍य योनि‍यों में 

भटकता फि‍रूंगा इसी तरह 

इच्‍छा लि‍ये घर लौटने की 


इसीलि‍ए पसीज जाता हूँ 

जब भी कोई कहे : 

कहॉं जाऊंगा कहॉं रहूंगा कोई ठि‍काना नहीं 

ठि‍या नहीं 

न मेरा डेरा 

न बसेरा 


आँखों में खुब जाती है बांस 

जब कोई मलि‍न नज़रों से कहे : 

मेरा घर नहीं 


भाई,यह घर का प्रश्‍न है 


गारे 

मि‍ट्टी ज़मीन 

और 

कुछ बॉंस की बात नहीं हैं  !    

०००



हमारी उपस्थिति से 


उबलते दूध को गिरने से बचाया जा सकता है 

खुद  को खिलाफ हवाओं से गुजरते बचाया जा सकता है 

बीमार को रक्त दिया जा सकता है 

रोशनी में नहाया जा सकता है 

गुलदाउदी को लगाया  जा सकता हैं 


देर तक नीले अंबर को निहारा जा सकता है 

किसी को ध्रुव तारा समझाया जा सकता है 


ऐसा क्या है जो संभव नहीं हमारी उपस्थिति से !

०००



गंध और कवि


(अग्रज कवि मलय जी को दिनांक 9 जनवरी 2024 को उनके अवसान  दिन पर उन्हें याद  करते हुए )


किताबों  से निकलकर 

सामने आता है कोई


यह कोई

उस किताब का हो सकता है कवि

रजनीगंधा से निकलकर आती हुई गंथ सरीखा

अदृश्य महकता रह सकता है कवि भी देर तक

सांसें बची नही हो उसकी तब भी


मिलते जुलते हैं

किताब में बैठा हुआ कवि और

रजनीगंधा की गंध 

०००



मेरी कविता


मुझसे पहले 

मेरी कविता उठ खड़ी होती है

आने वाले के लिए दरवाजा खोल देती है


मुझसे पहले खरगोश और लोगों से 

प्रेम करने लग जाती है

आगे आगे चले मुझसे हमेशा मेरी कविता


ऐसी ही बनी रहे

और गलती होने पर मुझे

मारे पीटे गरियाए 

घर से तक निकाल दे मुझे


ऐसी ही बनी रहे हमेशा

मेरी कविता

०००


ठीक उसी समय याद आया


कनाड़ा की सड़क पर

पिछली रात की


पिघली नही थी स्नो-परतें  

चल रहा था सुबह की सैर पर  मैं


मेपल के पत्ते टूटे पड़े मिले

कुछेक लोग दिखे


शीत लहरें गर्दनें ऊंची किए हुए

बोलती जा रही थी ऊंचे स्वर में 

कुछ का कुछ


ठीक उसी समय याद आया भारत

पतंगों से भरा आकाश लिये

कतारबद्ध पेड़ गुलमोहर के साथ

और नाशपाती के स्वाद से भरा

याद आया भारत

०००


कवि का परिचय 

कविता-संग्रह

(1) बातचीत की उड़ती धूल में   (2002) सारांश प्रकाशन दिल्‍ली

(2) बहुत नर्म चादर थी जल से बुनी  (2004) परिकल्पना प्रकाशन लखनऊ

(3) अभी जो तुमने कहा   (2015) ज्ञानपीठ प्रकाशन दिल्ली

(4) लौट चुकी बारिशें (चयनित कविताएं) (2021) नोशनल प्रेस,दिल्ली 

(5) सुनाई देती थी आवाज़ (चयनित कविताएं) (2023 ) न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन ,दिल्ली

(6) नए शब्द सुनूँगा (2024 ) न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन ,दिल्ली


गद्य पुस्तके

(7 ) सहित्य की रचना-प्रक्रिया   (1995) पार्श् प्रकाशन अहमदाबाद

(8) चली के जंगलों से पाब्लो नेरुदा का गद्य (2007) संवाद प्रकाशन,मेरठ

(9) जनबुद्धिजीवी एडवर्ड सईद का जीवन व रचना-संसार (2022) संवाद प्रकाशन,मेरठ

(10) कागज़ पर लिखी बातचीत (2023 ) न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन ,दिल्ली

(11) कुछ कवि कुछ किताबें (2023 ) लोकमित्र प्रकाशन ,दिल्ली

०००


होर्हे लुईस बोर्हेस की कविताऍं

  

अर्जेंटीना के लेखक और कवि होर्हे लुईस बोर्हेस का जन्म ब्यूनस आयर्स में 1899 में हुआ था। उनका परिवार 1914 में स्विट्जरलैंड चला गया जहां उनकी पढाई हुई और उन्होंने स्पेन की यात्रा की। 1921 में अर्जेंटीना में वापसी के बाद, बोर्हेस की


कवितायें और लेख अतियथार्थवादी साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे। उन्होंने लाइब्रेरियन और लेक्चरर के रूप में भी  काम किया। वह कई भाषाओं में निपुण थे। पेरोन शासन के दौरान उनका राजनीतिक उत्पीड़न किया गया था क्योंकि उन्होंने सैन्य जन्ता का समर्थन किया था जिसने पेरोन शासन को उखाड़ फेंका था। एक वंशानुगत बीमारी के चलते, बोर्हेस  1950 में अन्धता के शिकार हो गये। उन्हें 1955 में नेशनल पब्लिक लाइब्रेरी के निदेशक और ब्यूनस आयर्स के विश्वविद्यालय में साहित्य के प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया। उन्हें 1961 में अंतरराष्ट्रीय ख्याति तब मिली जब उन्हें अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशकों का  प्रथम पुरस्कार प्रिक्स फोर्मेंटर प्राप्त हुआ। उनके लेखन को संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में व्यापक रूप से अनुवाद और प्रकाशित किया गया। स्विट्जरलैंड में जिनेवा में 1986 में बोर्हेस  की मृत्यु हुई थी।

०००


होर्हे लुईस बोर्हेस की कविताऍं

अनुवाद: सरिता शर्मा 


चौक 


शाम ढले  

निढाल हो जाते हैं,  दो या तीन रंगवाले आंगन।

आज की रात, चमकता पूरा चाँद, 

जगत पर राज नहीं करता।

चौक आकाशगंगा है ।

चौक ढलान है

जिससे बह कर आकाश घर में आता है।

निर्मल,

अनंत काल सितारों के दोराहे पर प्रतीक्षारत है।

जीना सुखद है 

दरवाजे, पेड़ और तालाब के 

दोस्ताना अंधेरे में।

०००



सादगी


यह खोलती है बगीचे का फाटक 

सेवक जैसी विनम्रता से

अत्यधिक निष्ठा सवाल उठाती है 

मन में, मेरी निगाहों को 

ज़रूरत नहीं उन चीजों पर टिकने की

जो पहले से मौजूद हैं हूबहू स्मृति में।

मैं जानता हूँ रिवाजों, आत्माओं और 

संकेतों की बोली को  

हर मानव बुनता चला जाता है जिन्हें।

मुझे नहीं जरूरत कुछ कहने की 

और न ही व्यर्थ सुविधाओं की;

मुझे भली भांति समझते हैं मेरे करीबी लोग 

जानते हैं मेरी तकलीफ और कमजोरी को।

परम सत्य को पाना है,

स्वर्ग दिला दे उसे शायद:

प्रशस्ति या जीत नहीं 

बल्कि सादगी को स्वीकार करना है

निर्विवाद सत्य के अंश के रूप में 

पत्थरों और पेड़ों की तरह।

०००



एक गुलाब और मिल्टन


समय की गहराई में गुम 

गुलाबों की कई पीढ़ियों से


मुझे चाहिए सबसे ज्यादा बेदाग गुलाब,

गुमनामी से बचाया हुआ,

जो अपूर्व हो। भाग्यवश अवसर मिले मुझे 

एक बार उपहार चुनने का 

वह खामोश फूल, आखिरी गुलाब

जिसे मिल्टन ने थामा था 

बिना निहारे। उजाड़ बाग का सिंदूरी, पीला 

या सफेद गुलाब, 

आपका अतीत मौजूद है अब भी जादुई ढंग से 

देदीप्यमान सर्वदा इन गीतों में,

सुनहरा, रक्तिम, हाथीदांत या परछाई 

उनके हाथ में अनदेखा गुलाब हो जैसे।

आत्महत्या


रात में एक भी सितारा नहीं बचेगा ।

रात तक नहीं बचेगी।

मैं मरूंगा और मेरे साथ ख़त्म होगा

असहनीय ब्रह्मांड का सारांश।

मैं मिटा दूंगा पिरामिड, सिक्के, 

महाद्वीप और तमाम चेहरे।

संचित अतीत को मिटा दूंगा।

मिट्टी में मिला दूंगा इतिहास को, मिट्टी को मिट्टी में 

अब मैं देख रहा हूँ आखिरी सूर्यास्त।

सुन रहा हूँ अंतिम पक्षी को।

किसो को कुछ भी नहीं दूंगा मैं वसीयत में।

०००


चॅंद्रमा


वह सोना कितना अकेला है।

इन रातों का चाँद वह चाँद नहीं

जिसे देखा आदम ने पहली बार। लोगों के रतजगों की

लंबी सदियों ने भर दिया है उसने  

पुरातन विलाप से। देखो। वह तुम्हारा दर्पण है।

०००


पछतावा 


 मैंने किये जघन्य पाप 

औरों से कहीं ज्यादा। मैं नहीं रहा 

प्रसन्न। गुमनामी के हिमनदों को 

ले लेने दो मुझे उनकी चपेट में निर्दयता से।

माता पिता ने जन्म दिया मुझे  

जोखिमभरा सुंदर जीवन खेल के लिए,

पृथ्वी, जल, वायु और आग के लिए।

मैंने उन्हें निराश किया, मैं खुश नहीं था।

मेरे लिए उनकी जोशीली उम्मीदें पूरी न हुई 

मैंने दिमाग चलाया सममिति में 

कला के तर्कों, नगण्यता के जाल में।

वे चाहते थे मुझसे बहादुरी। मैं वैसा नहीं था।

यह कभी मुझसे दूर नहीं होती। बगल में रहती है सदा,

उदास आदमी की परछाई।

न्यू इंग्लैंड 1967 


मेरे सपनों में आकृतियां बदल गयी हैं; 

अब साथ लगे लाल घर हैं 

और कांसे रंगी नाजुक पत्तियां 

और अक्षत सर्दी और पावन लकड़ी। 

सातवें दिन की तरह दुनिया 

अच्छी है। सांझ में बनी हुई है 

किंचित साहसी, उदास प्राचीन बड़बड़ाहट, 

बाईबिलों और युद्ध की। 

जल्द ही पहली बर्फ गिर जायेगी (वे कहते हैं)

अमरीका मेरा इंतजार कर रहा है हर सड़क पर, 

मगर कल कुछ पल ऐसा लगा और आज बहुत देर तक 

ढलती शाम में महसूस करता हूँ। 

ब्यूनस आयर्स, मैं भटकता हूँ 

तुम्हारी सड़कों पर बेवक्त या अकारण।

०००

अनूवादिका का परिचय 

सरिता शर्मा (जन्म- 1964) ने अंग्रेजी और हिंदी भाषा में स्नातकोत्तर तथा अनुवाद, पत्रकारिता, फ्रेंच, क्रिएटिव राइटिंग और फिक्शन राइटिंग में डिप्लोमा प्राप्त किया। पांच वर्ष तक

नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया में सम्पादकीय सहायक के पद पर कार्य किया। बीस वर्ष तक राज्य सभा सचिवालय में कार्य करने के बाद नवम्बर 2014 में सहायक निदेशक के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृति। कविता संकलन ‘सूनेपन से संघर्ष, कहानी संकलन ‘वैक्यूम’, आत्मकथात्मक उपन्यास ‘जीने के लिए’ और पिताजी की जीवनी 'जीवन जो जिया' प्रकाशित। रस्किन बांड की दो पुस्तकों ‘स्ट्रेंज पीपल, स्ट्रेंज प्लेसिज’ और ‘क्राइम स्टोरीज’, 'लिटल प्रिंस', 'विश्व की श्रेष्ठ कविताएं', ‘महान लेखकों के दुर्लभ विचार’ और ‘विश्वविख्यात लेखकों की 11 कहानियां’  का हिंदी अनुवाद प्रकाशित। अनेक समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में कहानियां, कवितायें, समीक्षाएं, यात्रा वृत्तान्त और विश्व साहित्य से कहानियों, कविताओं और साहित्य में नोबेल पुरस्कार विजेताओं के साक्षात्कारों का हिंदी अनुवाद प्रकाशित। कहानी ‘वैक्यूम’  पर रेडियो नाटक प्रसारित किया गया और एफ. एम. गोल्ड के ‘तस्वीर’ कार्यक्रम के लिए दस स्क्रिप्ट्स तैयार की। 

संपर्क:  मकान नंबर 137, सेक्टर- 1, आई एम टी मानेसर, गुरुग्राम, हरियाणा- 122051. मोबाइल-9871948430.

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