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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

30 जून, 2015

ग़ज़लें(पूर्ण/आंशिक) : ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'(1751-1824)

1.
अव्वल तो तेरे कूचे में आना नहीं मिलता
आऊँ तो कहीं तेरा ठिकाना नहीं मिलता   
(अव्वल - सबसे पहले)   

मिलना जो मेरा छोड़ दिया तूने तो मुझसे
ख़ातिर से तेरी सारा ज़माना नहीं मिलता   
(ख़ातिर से तेरी - तेरी वजह से/तेरे वास्ते)

क्या फ़ायदा गर हिर्स करे ज़र की तू नादाँ
कुछ हिर्स से क़ारूँ का खज़ाना नहीं मिलता  
(हिर्स - लालच/लालसा; ज़र - सोना/दौलत; क़ारूँ - पुराने समय का एक बेहद बुरा और धनी आदमी)

भूले से भी उस ने न कहा यूँ मेरे हक़ में
क्या हो गया जो अब वो दिवाना नहीं मिलता   
(हक़ - पक्ष/समर्थन/तरफ़दारी)

फिर बैठने का मुझ को मज़ा ही नहीं उठता
जब तक कि तेरे शाने से शाना नहीं मिलता   
(शाना - कन्धा)

ऐ मुसहफ़ी! उस्ताद-ए-फ़न-ए-रेख़्ता-गोई
तुझ सा कोई, आलम को मैं छाना, नहीं मिलता
(उस्ताद-ए-फ़न-ए-रेख़्ता-गोई - उर्दू शायरी का माहिर; आलम - दुनिया)

2.
रात पर्दे से ज़रा मुँह जो किसू का निकला
शोला समझा था उसे मैं, पे भभूका निकला
(किसू - किसी; पे - पर/लेकिन; भभूका - अंगारा)

'मुसहफ़ी' हम तो ये समझे थे कि होगा कोई ज़ख्म
तेरे दिल में तो बहुत काम रफ़ू का निकला
(रफ़ू - बारीकी से की गयी सिलाई)

3.
जीता रहूँ कि हिज्र में मर जाऊँ, क्या करूँ?
तू ही बता मुझे, मैं किधर जाऊँ, क्या करूँ?
(हिज्र - जुदाई)

बैठा रहूँ कहाँ तलक उस दर पे 'मुसहफ़ी'
अब आई शाम होने को, घर जाऊँ, क्या करूँ?

4.
दिल चीज़ क्या है, चाहिए तो जान लीजिये
पर बात को भी मेरी ज़रा मान लीजिये

मरिए तड़प-तड़प के दिला क्या ज़रूर है
सर पर किसी की तेग़ का एहसान लीजिये
(दिला - दिल; ज़रूर - ज़रूरी; तेग़ - तलवार)

मैं भी तो दोस्त-दार तुम्हारा हूँ मेरी जाँ
मेरे भी हाथ से तो कभू पान लीजिये
(दोस्त-दार - दोस्त; कभू - कभी)

मुश्किल नहीं है यार का फिर मिलना 'मुसहफ़ी'
मरने की अपने जी में अगर ठान लीजिये

5.
जी से मुझे चाह है किसी की
क्या जाने कोई किसी के जी की
(जी - दिल)

शाहिद रहियो तू ऐ शब-ए-हिज्र
झपकी नहीं आँख 'मुसहफ़ी' की
(शाहिद - गवाह; शब-ए-हिज्र - जुदाई की रात)

रोने पे मेरे जो तुम हँसो हो
ये कौन सी बात है हँसी की

जूँ-जूँ कि बनाव पर वो आया
दूनी हुई चाह आरसी की
(जूँ-जूँ - ज्यों-ज्यों; बनाव - संवारना; आरसी - आईना)

गो अब वो जवाँ नहीं पे हम से
लत जाए है कोई आशिक़ी की
(गो - यद्यपि/हालाँकि; पे - पर/लेकिन)

मैं वादी-ए-इश्क़ में जो गया
मजनूँ ने मेरी न हम-सरी की
(वादी-ए-इश्क़ - प्रेम की घाटी; हम-सरी - बराबरी)

क्या रेख़्ता कम है 'मुसहफ़ी' का
बू आती है इसमें फ़ारसी की
(रेख़्ता - 'उर्दू' का पुराना नाम; कम - कमज़ोर)

प्रस्तुति:- फ़रहत अली खान
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टिप्पणियाँ:-

बलविंदर:-
उस्ताद "मुसहफ़ी" की मुख़्तलिफ़ ग़ज़लों के इन उमदः अशआरों के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.
ग़ज़ल 4 देख कर पता चलता है कि फ़िल्म उमराव जान की ग़ज़ल के लिए "शहरयार" साहब ने माल कहाँ से उठाया था..ख़ैर ऐसा करने वाले वो इकलौते नहीँ थे.
हज़रत-ए-मुसहफ़ी की ये ग़ज़लें अगर मुकम्मल होतीं तो और भी लुत्फ़ बढ़ जाता.
मिसरे तक तो बात ठीक है, लेकिन दोनों मिसरे ?
चलिए मान लिया की दोनों मिसरे..लेकिन दुसरे शेर भी..

"मुसहफ़ी" का शेर है..

मरिये तड़प तड़प के क्या ज़रूर है
सर पर किसी की तेग़ का एहसान लीजिय

"शहरयार" साहब का शेर देखिये

माना कि दोस्तों को नहीँ दोस्ती का पास
लेकिन ये क्या जी ग़ैर का एहसान लीजिए

"मुसहफ़ी" का मक़्ता देखिये...

मुश्किल नहीं है यार फिर मिलना "मुसहफ़ी"
मरने की अपने जी में अगर ठान लीजिये

"शहरयार" साहब का शेर देखिये...

कहिये तो आस्मां को ज़मीं पर उतार लाएं
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिये

आलोक बाजपेयी:-
सोचने की बात है की 18वी सदी में भी उर्दू में कितनी अच्छी हिंदी का खड़ी बोली के रूप में इस्तेमाल हो रहा था ।अगर हिंदी उर्दू विभाजन न हुआ होता तो देश की भाषाई तहजीब का कितना भला होता।भाषाई साम्प्रदायिकता ने बहुत नुक्सान किया।

प्रज्ञा :-
वाह फरहत जी आपने सुबह शायराना कर दी। मुसहफ़ी जी की ग़ज़लें और अंश अच्छे लगे। खासकर पहली । और रफू वाला अंश भी छू गया।
यदि शायर का थोडा संक्षिप्त परिचय भी हो तो बेहतर।
शुक्रिया।

फ़रहत अली खान:-
सभी लोग चौथी ग़ज़ल का पहला शेर देखें:
"दिल चीज़ क्या है, चाहिए तो जान लीजिए
पर बात को भी मेरी ज़रा मान लीजिए"

बहुत मुमकिन है कि जब ज्ञानपीठ पुरुस्कार से सम्मानित शायर अख़्लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार' साहब ने जब अपना सबसे ज़्यादा चर्चित शेर लिखा, जो कि निम्न है:
"दिल चीज़ क्या है, आप मेरी जान लीजिए
बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए"
(जो कि 'उमराव जान' फ़िल्म में गाया गया है)
तब वो मुसहफ़ी के ऊपर दिए गए शेर से ख़ासे प्रभावित रहे हों।

ग़ज़लों में किसी दूसरे शायर के अशआर से प्रभावित होकर या कुछ अंश उससे लेकर या उनकी सी ही ज़मीन(प्लेटफॉर्म) पर कई शायरों ने ऐसे शेर कहे जो किसी कारणवश मूल शेर से भी ज़्यादा प्रसिद्ध हुए।
ऐसे में मूल शायर को श्रेय देना ज़रूरी हो जाता है।

निधि जैन :-
जनाबे नज़्म सुभाष से कहीं ज़्यादा तक़्लीफ़ उनके हमदर्दों को हो रही है; लेकिन मुझे उनसे ज़रा-सी हमदर्दी भी महसूस नहीं हो रही; क्योंकि सरका (किसी और शायर के कलाम को अपना लेना) और तवारद (किसी शायर के ख़याल का किसी और पर असर नज़र आना) उर्दू शायरी की बरसों से चली आ रही रवायत है. तरही मुशायरों में तो ये बीमारी कोढ़ में खुजली की तरह आम-फ़हम है. जज़्बाती हज़रात की जानकारी के तौर पर भारतीय ज्ञानपीठ का पुरस्कार पाने वाले मरहूम शायर जनाब शहरयार की करतूत का मुआयना कर लीजिये. अमर शहीद पण्डित रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ की एक और प्रसिद्ध ग़ज़ल है—
दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिए
ख़ंज़र को अपने और ज़रा तान लीजिए
मर जायेंगे मिट जायेंगे हम क़ौम के लिए
मिटने न देंगे मुल्क़, ये ऐलान लीजिए
बेशक़ न मानियेगा किसी दूसरे की बात
बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए
'बिस्मिल' ये दिल हुआ है अभी क़ौम पर फ़िदा
अहले-वतन का दर्द भी पहचान लीजिए
इस ग़ज़ल के मतले के पहले मिसरे के साथ तीसरे शे’र के दूसरे मिसरे को जोड़कर अनेक ईनाम हासिल करने वाली कला-फ़िल्म (?) ‘उमराव जान’ के लोक-प्रिय गीत का मुखड़ा—
दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिए
बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए
‘ईजाद’ करने वाले उस्तादे-सरका (नकल-प्रवीण) मरहूम शायर जनाब शहरयार को आप क्या कहेंगे...?
एक और मिसाल पेशे-ख़िदमत है. बशीर बद्र का एक बहुत प्रसिद्ध शे’र है—
आसमाँ भर गया परिन्दों से
पेड़ कोई हरा गिरा होगा
इस शे’र का पूरी तरह हुलिया बिगाड़कर हरियाणा उर्दू साहित्य अकादमी के अध्यक्ष बनने वाले अफ़सरनुमा-शायर ने एक सरकारी मुशायरे में यों पढ़ा था—
चील-कौओं से भर गया आँगन
कोई उम्मीद मर गई होगी
और हैरान कर देने वाली बात यह है, कि उसे भी बहुत ‘दाद’ मिबी थी.
...बोल जमूरे जय-जय, मेरा भारत देश महान...

फ़रहत अली खान:-
निधि जी।
fb पर तो कोई किसी को भी कुछ भी कह देता है, लेकिन इस ग्रुप में ऐसी भाषा के साथ किसी की आलोचना नहीं की जाती है।
ग़ज़ल एक नियम-बद्ध विधा है जिसमें अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए कुछ निश्चित नियमों पर आधारित पंक्तियाँ लिखी जाती हैं। ऐसे में किसी एक विचार को व्यक्त करने के लिए अलग अलग शायरों द्वारा लिखी गयी पंक्तियों में समानता होना आम बात है। अगर ये आज़ाद नज़्म या कविता होती तो एक ही विचार को अलग अलग आयामों में बिना किसी बंदिश के ज़ाहिर किया जा सकता था।
इसीलिए ग़ज़लों में एक ही ज़मीन या मिसरे पर शेर या ग़ज़ल कहना ग़लत नहीं समझा जाता।
उन साहब के जिनके कमेंट का आपने ज़िक्र किया है, अपने कुछ विचार ऐसे होंगे लेकिन उनके द्वारा किसी शायर का ज़िक्र  अमर्यादित तरीके से करना ठीक नहीं है।
मुसहफ़ी के इस शेर का ज़िक्र मैंने इसलिए किया क्यूँकि मुझे लगता है कि उन्हें भी इसका कुछ श्रेय मिलना चाहिए।

अंजनी शर्मा:-
शानदार शेरों की प्रस्तुति के लिए फरहतजी को बधाई तथा धन्यवाद ।
साथ ही fb के संदर्भ में आपकी गरिमामय व मर्यादित भाषा में नपी -तुली व सधी हुई टिप्पणी ने आपके सुलझे हुए लेखकीय व्यक्तित्व से परिचित कराया है ।
बहुत खूब फरहतजी ।

फ़रहत अली खान:-
ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'(1751-1824) को क्लासिकल उर्दू ग़ज़ल के सबसे बड़े शायरों में शुमार किया जाता है। इनका जन्म यूपी के अमरोहा ज़िले के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। दिल्ली में उर्दू, फ़ारसी और शायरी की शिक्षा पाकर ये लखनऊ चले गए जहाँ मुग़ल दरबार में ये बतौर शाही शायर नियुक्त किये गए।
उर्दू को उस ज़माने में हिंदवी, दकनी, रेख़्ता आदि नामों से जाना जाता था; इन्हें उस ज़माने में उर्दू पर किये गए अपने काम के लिए भी जाना जाता है। इन्हों हज़ारों ग़ज़लें लिखीं; आठ दीवान(सुव्यवस्थित ग़ज़ल संग्रह) लिखे और कुछ दूसरी किताबें भी लिखीं। कहा जाता है कि ये अपने अशआर दूसरे लोगों को बेचा भी करते थे, जो उन अशआर को अपने नाम से प्रसारित करते थे।
इनकी इंशाअल्लाह ख़ाँ 'इंशा'(जिन्होंने पहली हिंदी कहानी 'रानी केतकी की कहानी' लिखी है), जो ख़ुद एक नामचीन शायर थे, से प्रतिद्वंदिता मशहूर है। बाद में इनकी जगह 'इंशा' को लखनऊ के मुग़ल दरबाद का शाही शायर बनाया गया।
मुसहफ़ी की ग़ज़लों में एक ख़ूबसूरत लय नज़र आती है, साथ ही शब्दों का चयन बेजोड़ है; इन्होंने उस समय के प्रचलित मुहावरों का भी अच्छा इस्तेमाल किया है। मूलतः ये एक रूमानी शायर थे लेकिन रफ़ी 'सौदा' की तरह जीवन के गूढ़ फ़लसफ़ों पर भी इन्होंने अशआर लिखे हैं। कुल मिलाकर इनकी शायरी में जीवन का हर रंग और रस नज़र आता है।

बिजूका के साथियों का परिचय

बिजूका समूह के साथियों का और साथ ही इन समूहों व बिजूका ब्लॉग के संस्थापक-संचालक सत्यनारायण पटेल का संक्षिप्त परिचय इस पोस्ट में दिया जा रहा है। अन्य साथियों का परिचय यहां देने का प्रयास जारी है।
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गरिमा श्रीवास्तव:
लिखती हूँ दुनिया भर की औरतों की सच्ची दास्ताने ताकि वे पहुँच सकें जन-जन तक।गायिनोक्रिटिसिज़्म पर विशेष कार्य।भारतीय सैन्य अकादमी से विश्वभारती शांतिनिकेतन, और अब हैदराबाद केंद्रीय विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर पद पर।उम्र पैंतालीस वर्ष, जन्म नयी दिल्ली।रिहाइश हैदराबाद ,अब तक 16पुस्तकें प्रकाशित।सिमोन द बोऊवार की आत्मकथा ए वैरी ईज़ी डेथ का हिंदी रूपांतरण।यूरोप प्रवास के दौरान क्रोएशिया की लोक कथाओं का हिंदी अनुवाद।विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेखन। लेकिन लेखन और पाठन से हमेशा असंतुष्टि।लगता है बहुत कुछ पढ़ना लिखना बाकी है-मलयालम तमिल तेलुगु बंगला उड़िया  के स्त्री लेखन को हिंदी अंग्रेजी पाठकों के सामने लाने की ज़िद..और जूनून।फ़िलहाल मुस्लिम स्त्रियों की आत्मकथाओं पर काम जारी है..पढ़ाने जाती हूँ  तो लगता है जीवन भर शोधार्थी ही रहूँ।स्त्रियों की समस्याएं सुनती हूँ तो लगता है यहीं की होकर रहूँ।प्रिय स्थान फ्रांस ,बोस्निया और केरल।रूचि किताबें और मानुस।सर्वप्रिय कलम।आगामी तद्भव में वॉर विक्टिम्स पर संस्मरण प्रकाशित।

नयना (आरती) :-
मैं आरती(नयना) कानिटकर. शिक्षा M.Sc.LLB . मुर रूप से मध्यप्रदेश की ही.
अपने  सी.ए पती के साथ व्यवसाय मे सहयोग. साहित्य मे रुची.पढती रहती हूँ.अपने आप को व्यक्त करने के लिये आम बोलचल की भाषा मे लेखन की कोशिश.
आज चूँकी मुक्त दिवस है और आज ही अपने वैवाहिक जीवन के २९ वर्ष पूर्ण किये है तो.मेरे शब्दो मे व्यक्त ये बातसाझा  कर रही हूँ
बैलेंस शीट
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वैवाहिक जीवन के २६ सालो की,
जब लिखने बैठी बैलेंस शीट
याद आ रही कैसे रचाई ईंट पे ईंट
कभी सिमेंट का जोड मजबूततो
कभी पानी कि कमी सताई
पर सब चिजों को अनदेखा कर
रिश्तों की मजबूत नींव बनाई

.जीवन की इस बैलेंस शीट मे
देयता और संपत्ति बाँए दाँए----(liability-asset)
साथ-साथ मे चलते रहे हैआय-व्यय के भी साँए---(income-expenditure)
स्थायी संपत्ति के कालम में
जब खुद के घर ने जगह बनाई
आवासिय ऋण के कालम ने
देयता के कालम मे सेंध लगाई

बच्चो की उत्तम शिक्षा का खर्च
जनरल एक्सपेंसेस को हुआ डेबिट
बुद्धि का सारा श्रेय पतिदेव के खाते क्रेडिट
घर कि मेरी मेहनत सेलरी को हुई डेबिट
interest income का मुझे मिला क्रेडिट

बच्चे मेरी बैलेंस शीट के बडे गुड-विल
अब इस घर कि नींव नही सकती हिल
रिश्तें मे अपनत्व और प्यार का
बैंक बेलेन्स रहा  बडा मजबुत
दोनो परिवारो के संबंधो ने साथ मे
प्यार का कैश इन हैंड किया सुदृढ
रिश्तें मे मरम्म्त रख-रखाव का चलता रहा खेल

इसी तरह इस जीवन कि पुर्ण गती से चल रही हे रेल--------

मनीषा जैन :-
मेरा जन्म 24सितम्बर को उत्तर प्रदेश के मेरठ में हुआ। जैसा माँ ने बताया।
जब मेरी माँ का देहान्त हुआ तब  मानसिक रूप से मुझे बहुत धक्का लगा। शायद इस लिऐ कि घर मे सबसे छोटी थी और माँ भी बहुत प्यार करती थीं मुझे सब भाईयों के मुकाबले। खैर
उनके देहान्त ने ही शायद मुझे लिखने की प्ररेणा भी दी।
मेरी पहली कविता नया पथ में 2009 में छपी तथा 2013 में पहला काव्य संग्रह "रोज गूँथती हूँ पहाड़" प्रकाशित हुआ।
और तभी से मेरी कविताएँ, समीक्षायें, आलेख विभिन्न पत्र पत्रिकाओ में छप रहे हैं। मैने हिन्दी साहित्य में एम ए किया है तथा यू जी सी की नेट परीक्षा उत्तीर्ण की है।
वैसे मैं हाउस मेकर ही हूँ और मैं समझती हूँ कि घर संभालना भी किसी भी काम से कमतर नहीं है।
मेरे काव्य संग्रह को भारतीय साहित्य सृजन संस्थान पटना तथा कथा सागर पत्रिका का संयुक्त कथा सागर सम्मान मिल चुका है।
मेरी अधिकतर कविताओ में स्त्री स्वर ही प्रकट होता है और वह अनायास ही आ जाता है।
आजकल मंच पर काव्य पाठ का मौका भी मिल रहा है।

प्रज्ञा :-
नाम प्रज्ञा । एक कला प्रेमी परिवार में जन्म। माँ इतिहास की शिक्षिका पिता हिंदी के। साहित्यिक माहौल में बचपन। कॉलेज के सहपाठी से अंतर्जातीय विवाह। आज 26 साल की दोस्ती है हमारी विवाह अभी 17 वर्ष। एक लाडो है साथ।
हम दोनों मैं और राकेश दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज और राम लाल आनन्द कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर।
दोनों हिंदी साहित्य में पीएच .डी।
मेरी पहली किताब 2006 में nsd से नुक्कड़ नाटक रचना और प्रस्तुति , 2008 में ncert से तारा की अलवर यात्रा और वाणी से जनता के लिये जनता की बात नुक्कड़ नाटक सन्ग्रह और 2013 मेंआईने के सामने सामाजिक शैक्षिक सरोकारों से जुडी किताब।
विश्विद्यालय के लिये पुस्तकें राजकमल राधाकृष्ण से सम्पादित। 2002 से जनसत्ता रास्ष्ट्रीय सहारा में नियमित लेखन। पत्र पत्रिकाओं आकाशवाणी दूरदर्शन के लिये साहित्यिक कार्यक्रम।
पाखी कथादेश वागर्थ परिकथा जनसत्ता हिंदी चेतना बनासजन पक्षधर आदि कई पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित।
परिकथा में रँगमञ्च पर नियमित कॉलम। नाटक रँगमञ्च की कई कार्यशालाओं का आयोजन ।
2008 में तारा की अलवर यात्रा को प्रथम पुरस्कार  सूचना प्रसारण मंत्रालय का भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार।

समूह साथी गरिमा जी से दो वर्ष जूनियर हिन्दू कॉलेज में हम दोनों।

वसुंधरा काशीकर:-: मैं वसुंधरा काशीकर-भागवत, मैं पुना में रेहती हू। जन्म महाराष्ट्र में। मैं आईबीएन- लोकमत चैनल मुंबई में असोसिएट एडिटर और अँकर थी। फिर शादी के बाद पूना शिफ़्ट होना पड़ा। स्टेज और टिव्ही अँकरिंग करती हू। टिव्ही अँकरिंग के लिए २०१० साल का टाईम्स ऑफ़ इंडिया का बेस्ट फ़ीमेल अँकर अवॉर्ड मिला। कुछ कवितायें हिंदी और मराठी में लिखी हैं। मुझे अपनी हिंदी और बेहतर करने की इच्छा है। आप सभी की सलाह चाहूँगी । क्या क्या पढ़ा एवं सुना जाये?

सत्यनारायण:-: मित्रो
मेरा नाम सत्यनारायण पटेल
है...इन्दौर देवास के बीच ए बी रोड़ किनारे गाँव लोहारपिपल्या में छः फरवरी
१९७२ को जन्मा हूँ.....
पढ़ाई शिप्र, देवास और इंदौर में हुई...इन्दौर ही में शासीकीय सेवा में हूँ...

बिजूका समूह 2009 में एक फ़िल्म क्लब के रूप में कुछ मित्रो के साथ
बनाया था....बिजूका की तरफ़ से शहर में अनेक फ़िल्मों का प्रदर्शन किया...कुछ नाटक...और साहित्यिक आयोजन भी किए...

फिर समूह के साथी अपनी अपनी रोजी रोटी की तलाश में शहर से दूर चले गए....और मैं लिखने पढ़ने में व्यस्त हो गया...तभी वॉट्स एप्प आया...इसके आते ही वॉट्स एप्प पर बिजूका
नाम से समूह बनाया....समूह में साथी जुड़ते गए और...समूह का विस्तार होता गया....आज बिजूका
नाम बिजूका एक, दो, तीन, चार समूह तो सक्रिय है ही...जिनमें देश भर के अनेक रचनाकार साथी है....इसके अलावा देश में बिजूका अमरावती, बिजूका दिल्ली, बिजूका भोपाल के नाम से भी सक्रिय समूह है....बिजूका रोहतक और बिजूका मुंबई भी है...लेकिन वे कम सक्रिय है....2009 में ही बिजूका नाम से ब्लॉग भी बनाया था..bizooka2009.blogspot.in के नाम से आज भी सक्रिय है...
बिजूका की इसी ही तरह की छोटी छोटी गतिविधियाँ होती रहती है...जिसमें सभी मित्रो का समय समय पर सहयोग मिलता रहता है....

व्यक्तिगत रूप से जो लिखना संभव हो सका...वह इस प्रकार है..

प्रकाशित कृतियाँ

उपन्यासः  गाँव भीतर गाँव  ( २०१५ )

कहानी संग्रहः

१- भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान (२००८)

२- लाल छींट वाली लूगड़ी का सपना
( २०११)

३- काफ़िर बिजूका उर्फ़ इब्लीस
( २०१४ )

संपादनः  त्रैमासिक पत्रिका ' बया ' के कुछ अंक का संपादन

पुस्तिकाः लाल सलाम एक और दो का संपादन

पुरस्कारः
वागीश्वरी सम्मान २००८, भोपाल (म.प्र.)
प्रेमचंद स्मृति काथा सम्मान २०११
बाँदा, ( उ.प्र.)

मेरा पताः

सत्यनारायण पटेल
M-2 /199, अयोध्यानगरी
( बाल पब्लिक स्कूल के पास )
इन्दौर- 452011
मोबाइल-09826091605
E mail bizooka2009@gmail.com

बस यही संक्षिप्त सा सफर है
आपके सहयोग और मार्गदर्शन
की ज़रूरत सदा बनी रहेगी....

आपका साथी
सत्यनारायण पटेल
लिखने पढ़ने में थोड़ी रुचि है...

फ़रहत अली खान:-
22 मार्च 1986 को मुरादाबाद, यू पी में जन्म हुआ।
इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में पहले डिप्लोमा और फिर 2008 में बी.टेक. करके एक साल मुरादाबाद के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में अध्यापन किया; उसके बाद 2009  से बीएसएनएल, मुरादाबाद में कार्यरत हूँ।
कॉमिक्स पढ़ने का शौक़ बचपन से ही रहा और वहीँ से कहानियाँ लिखने की प्रेरणा मिली। लिखने को तो बचपन से ही लिख रहा हूँ लेकिन जैसे जैसे अक़्ल का दायरा बढ़ता गया वैसे वैसे लेखन शैली और परिपक्वता में भी फ़र्क़ आने लगा। अभी अपनी 14-15 कहानियों को ही ठीक-ठाक(या उससे भी निचले) दर्जे की मानता हूँ।
शायरी का शौक़ अभी कुछ सालों से ही हुआ है; और इतना हुआ कि एक बार तो कीड़ा लगने जैसे हालात हो गए थे। इंटरनेट पर पढ़-पढ़कर ग़ज़लों के नियम-कायदे सीखे और अभी भी सीख रहा हूँ।
उर्दू, हिंदी पर अभी उतनी पकड़ नहीं बन पायी है जितनी चाहता हूँ।
अभी तक कोई भी रचना प्रकाशित नहीं हुई है, असल में कोशिश भी नहीं की। लेकिन जबसे इस समूह से जुड़ा हूँ, लेखन-प्रकाशन को गंभीरता से लेने लगा हूँ।
पिछले साल शादी हो गयी।
मिसेज़ ख़ान(जो कि मेरी पत्नी हैं) साहित्य में कुछ ख़ास रुचि न रखने के बा-वजूद, मुझे लिखने के लिए प्रेरित करती हैं; हालाँकि इसका श्रेय मैं उनसे पहले अपनी अम्मी को देना चाहता हूँ जिन्होंने बचपन से आजतक इस काम के लिए मेरी हौसला-अफ़ज़ायी की।

अर्जन राठौर:
अर्जुन राठौर m.a.llb.1977 से लेखन की शुरुवात धर्मयुग हिंदुस्तान रविवार दिनमान में कविताये तथा आलेख प्रकाशित रोजी रोटी के लिए देनिक भास्कर नवभारत में पत्रकारिता  साल 2000 से संस्कार टीवी में स्क्रिप्ट राइटर producer अभी तक व्यंग लेखन 250 से अधिक व्यंग छपे संस्कार टीवी  के लिए परिक्रमा के 70 एपिसोड बनाये लगभग 10 देशो की यात्रा मानसरोवर की भी अभी संपादक घमासान डॉट कॉम एक पुस्तक समय की गवाही प्रकाशित

अशोक जैन:-
मैं अशोक जैन
29.09.1950

इंदौर यूनिवर्सिटी  से एम काम कर स्टेट बैंक आफ इंदौर में नौकरी पर लग गया। 38 साल की नौकरी और 30 साल के बैंक में विभिन्न प्रशासनिक पदों पर कार्य करने के पश्चात् 5 साल पहले बैंक से सेवानिवृत् हुआ।

विद्यार्थी जीवन में हिंदी साहित्य के सभी लेखकों को खूब पढ़ा। नौकरी में छुट पुट लिखता रहा। विशेष कुछ नहीं । सेवानिवृत होने के बाद स्वांत सुखाय हेतु संस्मरण लिखना चालू किया है और लगभग 300 संस्मरण लिख चुका हूँ। संस्मरण सोशल मीडिया पर पोस्ट करता हूँ। सोशल मीडिया पर  देवनागरी लिपी में लिखने हेतु मित्रों को प्रेरित करता रहता हूँ।

परिवार में दो बेटे हैं । बड़ा बेटा , बहु और पोता साथ ही रहते हैं और छोटा बेटा बैंगलोर में इंजीनियर है।

वर्तमान में मेरा निवास नेमीनगर जैन कालोनी में है।

कविता वर्मा:
गरिमा बताने को बहुत कुछ है नहीं ।मैथ्स टीचर रही हूॅं लगभग १५ साल अब विराम ले लिया है ।पढ़ने लिखने का शौक है पर अपने तक ही सीमित रहती हूॅं ।एक कहानी संग्रह ' परछाइयों के उजाले ' पिछले वर्ष प्रकाशित हुआ है ।इसके अलावा लघुकथाऐं लेख लिखती हूॅं जो यदाकदा प्रकाशित हौते रहते हैं ।पहले कविताएें लिखती थी अब बहुत कम लिखती हूॅं ।अभी एक उपन्यास पर काम कर रही हूॅं जो लगभग पूरा हो चुका है ।

रेणुका:-
मैं रेणुका नंदा पेशे से टेक्सटाईल इंजीनियर हूँ।एक आत्मकथात्मक उपन्यास लिखना हिंदी में शुरू किया है।पढ़ने और काम करने की भाषा अंग्रेजी है।हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद भी करती हूँ।ऐसा लगा कि अपने मन की बातें तो मैं हिंदी में ही व्यक्त कर सकती हूँ।इसलिए उपन्यास लिखना शुरू किया।जीवन को गहराई से देखा है मैंने।विवाह उड़िया परिवार में हुआ और जन्म पंजाबी परिवार में।दो संताने हैं।जिनकी ख़ुशी और गम अब मेरे हैं।आपके बीच आकर ख़ुशी मिलती है।स्वभाव से भावुक हूँ जल्दी टूटना -जुड़ना मेरे स्वभाव में है।अनुवाद में मज़ा आता है।खुश रहना और रखना मेरे शौक हैं।

निधि जैन :-
मेरे बारे में कुछ ख़ास है ही नही

झाँसी में पली बढ़ी तो थोड़ी रानी लक्ष्मी बाई जैसी लडंका हूँ

पढाई में M.A. इंग्लिश लिटरेचर से किया है

M.A. करते करते शादी हो गई
घर संभालती रही

कुछ साढ़े तीन साल पहले एक दिन अचानक किसी का मेरे no. पर बाय मिस्टेक नेट रिचार्ज हो गया। तब ही पहली बार जाना कि इंटरनेट और सोशल मीडिया नाम की भी कोई चीज है।

खेलते खेलते fb पर id बन गई। fb पर एक साल फ़ालतू रही फिर सबसे पफले एक लघुकथा ग्रुप फलक से जुड़ी वहां आतंक मचाया । फिर धीरे धीरे कई और ग्रुप्स से जुड़ी लेखकों कवियों से जुड़ी। सभी ने प्रोत्साहित किया। बातें बहुत सारी कर लेती हो, लिखा करो,अच्छा करोगी। पिछले साल से लिखना या यूँ कहिये पकाना शुरू किया सबको। बस तब से ही लिख रही हूँ। एक प्रकाशक महोदय कओ 1500 rs जमा किये थे जनवरी में , मार्च में लघुकथा साझा संग्रह प्रकाशित होना था। अब तक कुछ न हुआ। तो छपने की लालसा खत्म हो गई।
   अब तो किसी को पसन्द आता है तो fb प्रोफाइल से ही उठाकर e मैगजीन्स पर ही छाप देते हैं।

     बाकी दिन भर पंगे करती रहती हूँ fb पर

आभा :-
मेरा नाम आभा रखा गया। 16 जनवरी 1976 को मैं निवसरकर इस परिवार में पैदा हुई। पिता के कारण खेलों और माँ के कारण नृत्य और कलाओं से जुडी।
इंग्लिश में एम फिल किया। नृत्य में स्नातकोत्तर उपाधि और पत्रकारिता में डिप्लोमा।
लिखना 8 वीं कक्षा से शुरू किया। अधिकतर कविताएं। पिछले कुछ समय से गद्य लिखने की कोशिश कर रही हूँ।
पिछले 13 साल जर्मनी में थी। इनमें से 7 साल जर्मनी की विदेश प्रसारण सेवा में संपादक रही। जनवरी में भारत लौटी हूँ।
सामूहिक कविता संग्रह स्त्री हो कर सवाल करती है,और शतदल में कविताएं प्रकाशित।
राजस्थान खोज खबर के लिए साप्ताहिक लेख लिखती हूँ अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर।

स्वाति श्रोत्रि:-
सभी साथियो को प्रणाम

मै स्वाति आपके समूह में अभी सदस्य बनी हूँ। हिंदी साहित्य  में पीजी हूँ। सरस्वती शिशु मंदिर से प्राचार्या के पद से सेवा निवृत्त हुई हूँ। अभी उम्र नहीं थी सेवानिवृति की पारिवारिक कारणोंसे विद्यालय छोड़ना पड़ा।लिखने का शौक तो था विद्यालय में कविता लिखकर  बधाईया देना अच्छा लगता था।वही बाल नाटक लिखे मंचन भी किये ।कई कहानिया भी लिखी पर संकोच वश किसी को पढ़ा नहीं सकी आप लोगो से मिलने का कारण भी यही है की अपनी कलम को वाणी दे
देकर मुखरित करसकु। कुछ कविताये कुछ नाटक देवपुत्र में प्रकाशीतहुए है।
मेरा निवास तिलक नगर में है।मै नाटको में अभिनय भी करती हूँ।मेरे पति एक सफल निर्देशक है। उन्ही की प्रेरणा से कुछ आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहती हूँ।आप सबका आशीर्वाद चाहिए। जल्दी ही मै अपनी रचनाये आपके समक्ष प्रस्तुतकरुगी।पुनः आप सब को नमस्कार।

स्वेता दुआ:-
आप सबके सामने आपना परिचय देने का साहस अब भी समुश्किल कर पा रही हू
मै श्वेता दुआ ईंंदौर से
MHSc in home management and interiors
Graduation के साथ ही garha chronicle नामक अखबार मे kids page संभालने का मौका मिला
लिखने का शौक हम चारो भाई बहन को पिता से विरासत मे मिला
ईसके बाद दैनिक भास्कर पृभात किरण आदि अखबारो के लिए भी लिखा
Times of India Indore ke city page ki editorial coordinator ke roop me bhi kaam kiya
विवाह के बाद पुणे में दो साल TOI and Symbiosis मे job kiya
फिर ईदौर वापस आ कर क ई  companies ke liye online content writing Kari
Lekin aap sabhi ka knowledge Aur depth dekh kar aap logo se bahut kuch seekhne ki chah hai
Dhanyawad....

रुचि गांधी :-
सभी मित्रों को सादर प्रणाम...
मै रूचि गांधी..
पड़ने लिखने का शौक पिताजी से विरासत में मिला ....बचपन उनके द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका "आरती" में छपने के लिये आने वाले कई नामचीन लेखकों की रचनाओं को पड़ते हुए गुज़रा....पठन पाठन की नींव शायद वहीं से पड़ी...ग्रैजूएशन के साथ ही आकाशवाणी में बतौर अनाउंसर कार्य किया...
होम मैनेजमेंट में मास्टर्स डिग्री के लेने के बाद क्लाथ मार्केट कॉलेज इंदौर में इंटीरियर डिजा़इन विभाग में व्याख्याता पद पर रही...
विवाह पश्चात N.T.T व B.Ed किया विभिन्न विद्यालयों में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहते हुए स्थानीय TV channel पर समाचार वाचन किया..तथा कई समाचार पत्रों में रिपोर्टर व सब एडिटर रही.... मनपसंद कार्य FM channel पर RJ आरज़ू के रूप में "शाम ए ग़ज़ल" पेश करना रहा....
नज़्में लिखने की कोशिश करती हूं....

पेशे से द विध्यांजली इंटरनेश्नल स्कूल में डायरेक्टर प्रिंसीपल हूं...

आप सभी से बहुत कुछ सीखने का अवसर प्राप्त हो रहा है इसलिये स्वयं को भाग्यशाली मानती हूं
स्नेह बनाये रखियेगा...

किसलय पांचोली:-
मैँ किसलय पंचोली।
किसलय यानि नई कोमल लालिमा युक्त पतियाँ।
प्राध्यापक वनस्पति शास्त्र।
पत्तियों में शिराविन्यास की पादप वर्गिकीय उपयोगिता पर डॉक्टरेट उपाधि।
चंद शोध पत्र प्रकाशित।
एक विद्यार्थी शोध रत।
श्री सत्यनारायण पंचोली मिलनसार और सहृदय व्यक्ति की पत्नी।
मेधावी और समझदार बच्चों बेटे श्री किंजल्क और बेटी सात्विका की मम्मी।
90 के दशक से लेखन की शुरुवात वर्जित माने जाने वाले विषय महिलाओं के साथ मासिक धर्म के दिनों में होने वालेअनावश्यक और अवैज्ञानिक भेदभाव / छुआछुत से सम्बंधित आलेख से।
फिर कहानियों की और मुड़ाव।
नईदुनिया इंदौर और आकाशवाणी इंदौर से मिला उत्साहवर्धक प्रतिसाद/  ब्रेक!
फिर कहानियों ने इंदौर ठहरने के साथ साथ अपना फलक किंचित फैलाया । तो वे कथन,कथादेश,
ज्ञानोदय,कथाक्रम,अक्षरपर्व,अक्षरा ,समावर्तन,विज्ञानं प्रगति आदि व् अन्य समाचार पत्रों के साहित्यिक पृष्ठों पर जगह बनाने लगीं।
सिलसिला बढ़ता गया। रफ़्तार निष्चित कम थी। पर अपने तई निर्धारित गुणवत्ता की प्रतिबद्धता बनी हुई थी।
2004 में प्रथम कहानी संग्रह 'अथवा'का श्री कमलेश्वर जी के हाथों विमोचन का सौभाग्य।
छूट पुट कविताओं का प्रकाशन।
विगत कुछ वषों से फेस बुक पर कभीकभी सक्रिय।
2015 में दूसरा कहानी संग्रह 'नो पार्किंग प्रकाशित।
दो चार  उत्साह बढ़ाने वाले पुरस्कार प्राप्त।
बच्चों के दस हजार  नामों के संग्रह 'नामायन' में सह लेखक। 2015
बिजूका इंदौर से जुड़ाव बेहतर और अच्छा लग रहा है।
बस इतना है किसलय का परिचय।