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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

04 नवंबर, 2018

समीक्षा

सफेद कीड़े
कुंवर उदय सिंह अनुज

      श्री गोविंद सेन का कहानी संग्रह "सफेद कीड़े"  ग्रामीण जन जीवन का आईना है। इस संग्रह की कहानियों में हमारी भेंट उन सभी तरह के पात्रों से होती है जो गाँवों का हिस्सा हैं।इनमें भोले -भाले लोग हैं तो कुटिल, लोभी, स्वार्थी,लुच्चे ,अहंकारी लोग भी मौजूद हैं। कहानीकार की संवेदना अपने अंचल से जुड़ी होने के कारण ,इन पात्रों से निकटता के कारण और स्वयं की भी इन कहानियों में उपस्थिति के कारण ये कहानियाँ यथार्थ की ठोस ज़मीन पर खड़ी हैं। ये कहानियां किसी भी विचारधारा विशेष  या कहानी के किसी खेमे की फ्रेम में मड़ी हुई नहीं हैं।ये अलग पोत की कहानियाँ हैं , जिनमें शिक्षा के प्रसार से आये बदलाव , आधुनिकता, बाजारवाद का ग्रामीण जीवन पर असर व जीवन के सभी रंग झलकते हैं।





      'दहन' कहानी बाल पात्र संजू अपने आसपास के मारकाट,आगजनी वाले घटनाक्रम की अखबारों से प्राप्त जानकारियों से सहमा हुआ है।पापा के साथ रावण दहन उत्सव में जाकर भी वही भय उसे विचलित करता है। घर आकर वह पट्टी पर खड़िया से रावण का पुतला बनाकर उस पर अनेक आड़ी-तिरछी लकीरें खींचकर उसे अपने सामने से ओझल कर देता है।तब उसे अपने भीतरी भय से मुक्ति मिलती है।यह बाल मनोविज्ञान से जुड़ी रचना है।
     'शहर में गाँव' कहानी की लोभी भाभी छीजती संवेदना व बाजारवाद से जन्मा बाजारू पात्र है ,जो कोफ्त पैदा करता है।
      'काग भगोड़े' कहानी के तीन मित्र त्रिशूल की तीन नोकों के समान आपस मे जुड़े हैं,किंतु परिस्थितियाँ उन्हें अलग-अलग दिशाओं में धकेल देती है और मैत्री का वह त्रिशूल टूट जाता है।दो मित्र असमय कालकवलित हो जाते हैं। तीसरा जो बच जाता उसे उनकी स्मृति खेत मे खड़े 'काग भगोड़े' की तरह अतीत में बुलाती रहती है।
      'वही दूरियाँ' कहानी का संजय एक दम्भी पात्र है जो दिखावे की नकली चमक-दमक में आत्म मुग्ध है,इस कारण वह अपने बाल सखा अध्यापक मित्र को हेय दृष्टि से देखता है।
      'बाड़े का हीरो' कहानी का शंकर शहर में पढ़ने आता है किंतु पिता की आंखों में धूल झोंककर उनकी गाढ़ी कमाई  को धुवें में उड़ाता है। यह शहर के दुष्प्रभावों का उदाहरण है।
       'उनका लोभ' कहानी का श्रम जीवी कृषक पिता अपनी पुत्री के लिए अपने जैसे श्रम जीवी की अपेक्षा नौकरी पेशा बाबू को अधिक महत्व देता है।यह कहानी श्रम के अवमूल्यन पर प्रश्न छोड़ती है।
       संग्रह की 'सफेद कीड़े' कहानी  का शीर्षक प्रतीकात्मक है।यह प्रतीक नाली के कीड़ों की तरह जीवन जी रहे ग्रामीणों तथा कीड़ों की तरह  ग्रामीणों के जीवन को खा रहे सफेद पोश नेताओं, दोनों का प्रतीक बन गई है। कैलाश वनवासी जी ने अपनी प्रतिकिया में ठीक लिखा है - "पूरी कहानी को देखें तो यह अपने गलीज अतीत के दिनों  की यात्रा है जिसमें गांव की खस्ताहाल जिन्दगी से लेकर उसके वर्तमान चेहरे तक को पहचाना गया है।"
       'बरकत' निकट के लोगों द्वारा भावनात्मक शोषण  की मार्मिक व्यथा की कथा है।
       'गड़वाट'- बैलगाड़ी के पहियों से बना कच्चा रास्ता है जो प्रगति के बाद गाँव मे पक्की सड़क बन जाने से उसके नीचे दब गया है, जो स्मृतियों में जीवित है। बचपन में किये एक अपराध बोध का दंश बहुत संजीदगी से  'गड़वाट' प्रतीक के माध्यम से पाठकों के सामने सार्थक होकर उभरता है।
       'वर्दी' कहानी पढ़कर एक मुस्कुराहट चेहरे पर आ जाती है। पड़ोसी  न्हारसिंग द्वारा सताया गया पात्र जब पढ़ लिखकर, सिपाही की नौकरी पा लेता है और वर्दी में जब गाँव आता है तो उसे सताने वाला न्हारसिंग, कैसे उसकी निकटता पाने के लिए चापलूसी करता है । यह एक रोचक कहानी है जो आम लोगों में वर्दी के भय को दिखाती है।
    'गूँगा होता घर'  कहानी में नौकरी पेशा पुत्र के सामने घर के सभी सदस्यों की निरीहता सामने आती है। वे सभी उसी की कृपा पर निर्भर हैं तथा उसके सामने कोई कुछ अपनी राय नहीं रख पाता। लगता है पूरा घर गूँगा हो गया है। यह एक सच्चाई है जीवन की।
      'क्षमा करना बाबा' कहानी  बाजारवाद द्वारा गाँवों के कुटीर उद्योगों को लीलकर ,लोगों को भूखों मारने की दारुण व्यथा की करुणामयी कहानी है।
      'स्पीड ब्रेकर' एक व्यंग्यात्मक कहानी है। रास्ते चलते लोगों को जबरन रोककर अनावश्यक गप्प बाजी करने वाले बातूनी लोगों का अच्छा मज़ाक उड़ाया है इस कहानी में।साथ ही यह कहानी व्यवस्था की ओर उँगली भी उठाती है।कम पढ़े लिखे मन्या जैसे तिकडमी जुगाडू लोग सम्पन्न बनकर अपने अध्यापक मित्र की छोटी तनख्वाह व सामान्य जीवन यापन की शैली का मजाक उड़ाते हैं।यह  कहानी संजीदा प्रश्न छोड़ जाती है।
      'गुमशुदा चाँद की वापसी' कहानी में अर्थाभाव से जूझते परिवार की व्यथा  का चित्रण है ।बाजारवाद के दुष्प्रभाव से सिलाई रोजगार बन्द होने के प्रभाव का जीवन यापन पर जो असर पड़ता है,उस पीड़ा की इसमें अभिव्यक्ति है।
       'सुखदेव की सुबह' रोचक ,धारा प्रवाह शैली में  लिखी कहानी है जो गांव के जीवन की विसंगतियों को परत दर परत उघाड़ती है। इस कहानी को पढ़कर लगता है, जैसे हम गाँव पर बनी कोई डाक्यूमेंट्री फ़िल्म देख रहे हैं।



       'गल्या का सपना' कहानी की विषय वस्तु बहुत संवेदनशील है।दुष्ट लोगों के बीच कुछ हृदय ऐसे हैं जिनमें मानवीय मूल्यों  के बीज, जीवन के प्रति संवेदनशीलता, ग़रीबों शोषितों के प्रति दया व अपनत्व का भाव जीवित है। किंतु दुष्ट पिता द्वारा शोषित नौकर के प्रति उसके पुत्र के प्रेम को चित्रित करती यह कहानी एक करुण अंत पर समाप्त होती है ,जो बहुत व्यथित करता है।
       संग्रह की अंतिम कहानी 'बयरी माँ' एक सहृदय बूढ़ी माँ की  कथा है, जो नल पर पानी भरती भीड़ में, पढ़ने लिखने स्कूल जाते एक बालक की पानी भरने का नम्बर पहले लगाकर उसकी मदद करती है ,ताकि वह बच्चा समय पर स्कूल जा सके।
        गोविंद सेन की इन कहानियों में भाषा का कोई चमत्कार नहीं है। ये सहज,सरल मन से लिखे ग्राम्य जीवन के दस्तावेज हैं। कहानियों में निमाड़ी बोली को प्रयुक्त कर उन्होंने उन्हें  अपनी जमीन से जोड़ दिया है।
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कुँअर उदयसिंह अनुज
ठिकाना-धरगाँव(मण्डलेश्वर)
जिला-खरगोन(म.प्र.)451-221
96694-07634

1 टिप्पणी:

  1. अनुज जी ने मेरे कहानी संग्रह की अच्छी समीक्षा लिखी है। उनका शुक्रिया।

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