रोहित ठाकुर की कविताएं
रोहित ठाकुर |
यादों को बाँधा जा सकता है गिटार की तार से
प्रेम को बाँधा जा सकता है
गिटार की तार से
यह प्रश्न उस दिन हवा में टँगा रहा
मैंने कहा -
प्रेम को नहीं
यादों को बाँधा जा सकता है
गिटार की तार से
यादें तो बँधी ही रहती है -
स्थान , लोग और मौसम से
काम से घर लौटते हुए
शहर ख़ूबसूरत दिखने लगता था
स्कूल के शिक्षक देश का नक्शा दिखाने के बाद कहते थे
यह देश तुम्हारा है
कभी संसद से यह आवाज नहीं आयी
की यह रोटी तुम्हारी है
याद है कुछ लोग हाथों में जूते लेकर चलते थे
सफर में कुछ लोग जूतों को सर के नीचे रख कर सोते थे
उन लोगों ने कभी क्रांति नहीं की
पड़ोस के बच्चों ने एक खेल ईज़ाद किया था
दरभंगा में
एक बच्चा मुँह पर हथेली रख कर आवाज निकालता था -
आ वा आ वा वा
फिर कोई दूसरा बच्चा दोहराता था
एक बार नहीं दो बार -
आ वा आ वा वा
रात की नीरवता टूटती थी
बिना किसी जोखिम के
याद है पिता कहते थे -
दिन की उदासी का फैलाव ही रात है |
उसने धीरे से कहा -
शहर यहीं से शुरू होता है
और हम लोगों के चेहरों पर दिखा भय
हम ने एक दूसरे का नाम पूछा
हम ने महसूस किया की
घर से चलते समय हमने जो
सत्तू पी वह कब की सूख चुकी
हम घर से छाता लाना भूल गये थे
हम ने मन ही मन आकाश से की प्रार्थना
हम दोनों अलग-अलग दिशाओं में बढ़ रहे हैं
हमारी जमा पूंजी हमारी प्रार्थनायें हैं
किसी ने कहा था - शहर की भीड़ में हमारा गाँव - घर बहुत याद आता है
यहाँ सिर्फ गर्म हवा बह रही है
कोलतार की सड़क पर चलते हुये हमारे पाँव पिघल रहे हैं
एक दिन हम इस अनजाने शहर में भाप बनकर उड़ जायेंगे ।।
गुलमोहर के फूल ज्वालामुखी के संतान हैं
मुझे दिखाई देता है
सड़क के किनारे हवा में हिलता
गुलमोहर का फूल
इस तरह भ्रम होता है
आकाश में फैला हुआ है
किसी का खून
इस समय गुलमोहर का खिलना
संशय पैदा करता है
इस समय सारे फूल झंडे में न बदल जाए
इस समय कोई झंडा बहुत आसानी से
बदल सकता है किसी जगह को युद्ध क्षेत्र में
इस समय गुलमोहर के फूल
किसी ज्वालामुखी के संतान हैं
यकीन करो एक दिन सभी फूल झंडों में बदल जायेंगे ।।
कविता
यूरोप में बाजार का विस्तार हुआ है
कविता का नहीं
कुआनो नदी पर लम्बी कविता के बाद
कई नदियों ने दम तोड़ा
लापता हो रही हैं लड़कियाँ
लापता हो रहे हैं बाघ
खिजाब लगाने वालों की संख्या बढ़ी है
इथियोपियाई औरतें इंतजार कर रही हैं
अपने बच्चों के मरने का
संसदीय इतिहास में भूख
एक अफ़वाह है
जिसे साबित कर दिया गया है
सबसे अधिक पढ़ी गई प्रेम की कविताएँ
पर उम्मीदी से अधिक हुईं हैं हत्यायें
चक्रवातों के कई नये नाम रखे गये हैं
शहरों के नाम बदले गये
यही इस सदी का इतिहास है
जिसे अगली सदी में पढ़ाया जायेगा
इतिहास की कक्षाओं में
राजा के दो सींग होते हैं
सभी देशों में
यह बात किसने फैलायी है
हमारी बचपन की एक कहानी में
एक नाई था बम्बईया हज्जाम उसने ।
हम सब लौट रहे हैं
हम सब लौट रहे हैं
त्यौहार के दिनों में खाली हाथ
हम सब भय और दुःख के साथ लौट रहे हैं
हमारे दिलो-दिमाग में गहरे भाव हैं पराजय के
इत्मीनान से आते समय अपने कमरे को भी नहीं देखा
बिस्तर के सिरहाने तुम्हारी बड़ी आँखों वाली एक फोटो पड़ी थी
बंद अंधेरे कमरे में अब भी टँगी होगी
रोटी के लिए फिरते हमारे जैसे लोग
जो दूर प्रदेश गये थे
वे थके और बेबस मन लौट रहे हैं
महीने का हिसाब अभी बकाया था
हम सब बिना मजदूरी के लौट रहे हैं
हिम्मत अब टूट गई है
सर पर जो महाजनों का कर्ज है
उसे बिना चुकाये घर लौटना शायद मरने जैसा है
हम सब मरे हुए लोग घर लौट रहे हैं |
उसने कहा
उसने कहा सुख जल्दी थक जाता है
और दुःख एक पैसेंजर ट्रेन की तरह है
उसने सबसे अधिक गालियाँ
अपने आप को दी
उसका झगड़ा पड़ोस से नहीं
उस आकाश से है जो
तारों को आत्महत्या के लिए उकसाता है
उसने सबसे डरा हुआ आदमी
उस पुलिस वाले को माना
जो गोली मार देना चाहता है सबको
वह चाहता है कि एक
धुँआ का पर्दा टंगा रहे
हर अच्छी और बुरी चीज़ों के बीच
ताकि औरतों और बच्चों के सपनों पर
एक पीला पत्ता गिरता है
एक पीला पत्ता गिरता है
एक मजदूर थक कर गिरता है
एक आदमी भूख से गिरता है
एक राजा सत्ता के नशे में गिरता है
एक बच्चा चलना सीख रहा है
एक बच्चा चलने के यत्न में गिरता है
एक बच्चा
गिरने में जो निराशा का भाव है
उसके पार जाता है |
भाषा
वह बाजार की भाषा थी
जिसका मैंने मुस्कुरा कर
प्रतिरोध किया
वह कोई रेलगाड़ी थी जिसमें बैठ कर
इस भाषा से
छुटकारा पाने के लिए
मैंने दिशाओं को लाँघने की कोशिश की
मैंने दूरबीन खरीद कर
भाषा के चेहरे को देखा
बारूद सी सुलगती कोई दूसरी चीज
भाषा ही है यह मैंने जाना
मरे हुए आदमी की भाषा
लगभग जंग खा चुकी होती है
सबसे खतरनाक शिकार
भाषा की ओट में होती है |
एक जाता हुआ आदमी
एक जाता हुआ आदमी
जब गुज़रता है किसी शहर से
उस शहर की छाया
उसके मन पर पड़ती है
एक जाता हुआ आदमी
अपने साथ थोड़ा शहर ले जाता है
एक जाता हुआ आदमी
थोड़ा सा शहर में रह जाता है
न आदमी शहर को कुछ लौटाता है
न शहर आदमी को
दोनों धंसे रहते हैं
देनदारी में |
घर
कहीं भी घर जोड़ लेंगे हम
बस ऊष्णता बची रहे
घर के कोने में
बची रहे धूप
चावल और आंटा बचा रहे
जरूरत भर के लिए
कुछ चिड़ियों का आना-जाना रहे
और
किसी गिलहरी का
तुम्हारे गाल पर कुछ गुलाबी रंग रहे
और
पृथ्वी कुछ हरी रहे
शाम को साथ बाजार जाते समय
मेरे जेब में बस कुछ पैसे |
०००
सभी चित्र: कुंअर रवीन्द्र जी के हैं।
परिचय
नाम रोहित ठाकुर
जन्म तिथि - 06/12/ 1978
शैक्षणिक योग्यता - परा-स्नातक राजनीति विज्ञान
विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित ।
वृत्ति - सिविल सेवा परीक्षा हेतु शिक्षण
रूचि : - हिन्दी-अंग्रेजी साहित्य अध्ययन
पत्राचार :- जयंती- प्रकाश बिल्डिंग, काली मंदिर रोड,
संजय गांधी नगर, कंकड़बाग , पटना-800020, बिहार
मोबाइल नंबर- 7549191353
ई-मेल - rrtpatna1@gmail.com
नीचे लिंक पर सुनिए आशुतोष दुबे का कविता पाठ
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