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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

27 जनवरी, 2019

परख पैंतीस

कविता की ऋतु में!


गणेश गनी

अमरजीत कौंके ने कविताएं अपने भीतर ठहर गई उस खामोशी के नाम लिखी हैं जो कभी टूटती ही नहीं। कवि ने अपनी कविताएं लिखी हैं मोहब्बत के उस एहसास के लिए जो जीवन की स्याह अंधेरी रातों में किसी जुगनू की तरह टिमटिमाता है। कवि पृथ्वी पर जीवन के मूल्य को जानता है और पृथ्वी के उपकार को भी भली-भांति समझता है-


अमरजीत कौंके


मैं कविता लिखता हूं
कि पृथ्वी का
कुछ ऋण उतार सकूं।

कवि अमरजीत के जीवन में यादों के कई मौसम एक साथ तब आते हैं जब कविता की ऋतु दस्तक देती है। दरअसल मौसम कोई भी हो, वो तभी खुशी देता है जब कोई अपना करीब हो-

जब भी
कविता की ऋतु आई
तुम्हारी यादों के कितने मौसम
अपने साथ लाई ....

कविता की ऋतु में
तुम हमेशा
मेरे पास होती...।

सम्वेदनाओं से भरा हृदय हमेशा खूबसूरत होता है। कविता तो अक्सर ऐसे हृदय में ही बसती है। जहां कविता बसती है वहां कभी कठोरता नहीं ठहरती। बस फूलों जैसी कोमलता घर कर जाती है। अमरजीत की एक खूबसूरत और कोमल कविता की बानगी देखें-

तितली
उड़ती उड़ती आई
आकर एक पत्थर पर
बैठ गई

पत्थर उसी क्षण
खिल उठा
और
फूल बन गया।

कवि ने भरोसे पर जो कहा है, वो याद रखने लायक है। भरोसा जीवन में इंसान को कहां से कहां पहुंचा सकता है। बस एक ही शर्त है कि यह टूटना नहीं चाहिए-

उसको
अपने गीत पर कितना भरोसा है
कि इस समय में
जब दो कौर रोटी के लिए
वह बहुत सारे काम कर सकती है
किसी की जेब काट सकती है
भीख मांग सकती है
देह बेच सकती है
या और ऐसा बहुत कुछ
जो करने से उसे आसानी से
इससे ज्यादा पैसे मिल सकते हैं

लेकिन उसे अपने गीत पर
कितना भरोसा है!

कवि ने एक जगह बड़ी शानदार बात साधारण शब्दों में समझा दी। कोई प्रवचन नहीं, कोई भाषण नहीं, कोई दर्शन नहीं, बस सात पंक्तियों में पूरी बात-

इतिहास सदा
ताकतवर हाथ लिखते
इसीलिए इतिहास में
कमजोर सदा पृष्ठभूमि में चले जाते

जो वास्तव में इतिहास बनाते
उनका इतिहास में
कहीं नामोनिशान भी नहीं होता।

कवि ने सारा दर्शन भी इन चार पंक्तियों में समेट दिया। प्रेम और चाहत पर लम्बी लम्बी बातें कई बार लिखी जा चुकी हैं। अमरजीत कौंके कहते हैं-

तुम्हें पकड़ने की
इच्छा मैं ही
शायद मेरी सारी भटकन
छुपी हुई है।
००
गणेश गनी



परख चौंतीस नीचे लिंक पर पढ़िए
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